RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट-16
गतान्क से आगे..................
लड़की की कहानी जारी है ..............................
वो आँखों में खून लिए कमरे के दरवाज़े के बाहर खड़ी थी. हाथ में एक बहुत बड़ा सा पथर था. उसे अपने दोनो तरफ एक नज़र दौड़ाई. आस पास कोई नही था.
"कौन है?" कमरे का दरवाज़ा खटखटाने पर अंदर से आवाज़ आई. उसने कोई जवाब नही दिया और फिर से दरवाज़ा खटखटाया.
दरवाज़ा एक लड़के ने खोला जो तकरीबन उसके बराबर ही लंबा था पर कद काठी में उससे कहीं ज़्यादा मज़बूत था.
"क्या है?" लड़के ने पुचछा
जवाब में उसका वो हाथ जिसमें पथर था हवा में उठाया और अगले ही पल पथर का वार सीधा लड़के के सर पर पड़ा. उसके सर से खून बह चला और वो लड़खडकर ज़मीन पर गिर पड़ा. लकड़े के गिरने के बाद उसने अपने दोनो तरफ एक नज़र दौड़ाई और अंदर आकर कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया.
इस लड़के से उसकी कोई दुश्मनी नही थी पर इसने उसके दोस्त पर हाथ उठाया था जो उसके बिल्कुल भी गवारा नही था. उस वक़्त तो उसकी समझ में नही आया के क्या करे और बड़ी मुश्किल से अपने दोस्त को खींच कर दूर ले गयी थी ताकि झगड़ा ख़तम हो सके पर दिल ही दिल में उसने सोच लिया था के इसका बदला वो खुद लेगी और ये करने के लिए उसको रात का वक़्त बिल्कुल ठीक लगा.
उस वक़्त कमरे में उस लड़के के सिवा कोई नही था. वो कुच्छ देर तक खड़ी हुई उसके नीचे ज़मीन पर गिरे हुए जिस्म की तरफ देखती रही. उसके सर से खून निकलकर ज़मीन पर बह रहा था. ज़्यादा देर उसको वहाँ छ्चोड़ना ठीक नही था और वो अब उसको ऐसे भी नही छ्चोड़ सकती थी क्यूंकी उसने उसका चेहरा देख लिया था.
उसने कमरे का दरवाज़ा एक बार फिर खोला और बाहर नज़र दौड़ाई. बाहर अब भी सन्नाटा था. उसने उस लड़के के हाथ पकड़ा और खींच कर उसको कमरे से बाहर निकाला. दिल की धड़कन अब उसको खुद भी शोर लग रही थी. लग रहा था के कहीं कोई सुन ना ले और अगर कोई आ गया तो वो फस जाएगी. दुनिया की उसको कोई फिकर नही थी पर डर ये था के अगर उसके दोस्त को पता चला तो वो उसके बारे में जाने क्या सोचेगा.
बहुत ही खामोशी से लड़के के बेहोश जिस्म को खींचती हुई वो तीसरे माले की छत पर ले आई. उसको वो वक़्त अब भी याद था जब उसने गाओं में पहली बार एक लड़के के सर पर तब पथर मारा था जब उन लड़को ने उसके दोस्त की पिटाई की थी और अब भी वो वैसा ही कर रही थी. फरक सिर्फ़ ये था के इस बार वो पथर मारकर वहाँ से भागी नही.
लड़के के बेहोश जिस्म को खींचती हुई वो छत के उस किनारे की तरफ लाई जिसके नीचे कुच्छ कन्स्ट्रक्षन वर्क चल रहा था जिसकी वजह से नीचे बहुत सारे पथर पड़े हुए थे. उसने छत से नीचे एक बार देखा और जब यकीन हो गया के दूर दूर तक कोई नही है, उसने लड़के का जिस्म को तीसरी मंज़िल से नीचे धकेल दिया. जिस्म नीचे पत्थरो में गिरने की एक हल्की सी आवाज़ उसके कानो में आई और फिर पहली की तरह ही सन्नाटा च्छा गया. अंधेरा होने की वजह से वो नीचे देख नही पा रही थी.
पहली के जैसी खामोशी के साथ ही वो सीढ़ियाँ उतरकर फिर नीचे पहुँची और उस जगह पर गयी जहाँ उसने उस लड़के को फेंका था. वो पत्थरो में गिरा पड़ा था और चारों तरफ उसका खून फेला हुआ था. एक नज़र डालने से ही पता चलता था के वो मर चुका है पर उसने फिर भी अपनी तसल्ली के लिए एक बार उसकी साँस और दिल की धड़कन देखी. जब यकीन हो गया के लड़का पूरी तरह मर चुका है तो वो मुस्कुराइ और मुड़कर अपने घर की तरफ चल दी.
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"तुम्हें वो लड़का याद है जिसने मुझे थप्पड़ मारा था?" उस लड़के ने पुचछा
वो दोनो आज काफ़ी दिन बाद अकेले में मिल रहे थे. वो प्यार से उसकी गोद में सर रखे लेटा हुआ था.
"हां याद है" वो बोली
"वो मर गया" लड़का उसकी तरफ देखते हुए बोला "घर की छत से कूद कर स्यूयिसाइड कर ली उसने"
"अच्छा हुआ" वो बोली "तुम इस बारे में क्यूँ सोच रहे हो. थके हुए हो ना. सो जाओ चुप चाप"
"तुम गाओ ना" लड़का बोला "तुम गाती हो तो फ़ौरन नींद आ जाती है"
"इतना बुरा गाती हूँ मैं?" वो बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली "के सुनने वाला बोर होके सो जाए?"
उसकी बात पर वो दोनो ही हस पड़े
इशान की कहानी जारी है............................
कल रात प्रिया के घर पर जो हुआ था उसके बाद मुझे उसके सामने जाने में बड़ा अजीब सा लग रहा था इसलिए मैने उसके सेल पर मेसेज कर दिया था के मैं ऑफीस थोड़ा लेट आऊंगा. सच तो ये था के मैं पहले ये डिसाइड करना चाहता था के उसके सामने बिहेव कैसे करूँ, कैसे उसको फेस करूँ और क्या कहूँ.
मेरे दिल का एक कोना ये कह रहा था के उसने खुद मुझे डिन्नर के लिए इन्वाइट किया, खुद मेरे सामने अपनी शर्ट खोली और खुद ही कहा के वो ये अपनी मर्ज़ी से कर रही है पर मेरा दिल का दूसरा कोना ये कह रहा था के मैं ज़रूरत से ज़्यादा आगे बढ़ गया था. पहली बार में मुझे इतना ज़्यादा नही करना चाहिए था वरना वही होता जो हुआ. अब मैं खुद ही एक अनकंफॉरेटीब्ल सिचुयेशन में पहुँच गया था.
दूसरी ऑफीस ना जाने की वजह ये थी के मैं घर जाकर आराम करना चाहता था. मैं कल पूरी रात बंगलो 13 के सामने अपनी कार में पड़ा हुआ सोया था. मैने बंगलो 13 के गेट के सामने एक लड़की को खड़ा हुआ देखा था जो गाना गा रही थी. पहली बार मुझे पता चला था के वो गाने की आवाज़ कहाँ से आती थी और फिर वही हुआ था जो हमेशा होता था. उसके गाने की आवाज़ ने मुझे ऐसा मदहोश किया के मैं फ़ौरन नींद के आगोश में चला गया.
गुज़री रात ने मेरे एक सवाल का जवाब दिया था पर उसके साथ ही दिल में जाने और कितने सवाल खड़े कर दिए थे. अब मैं ये जानता था के मुझे जो गाना सुनाई देता है वो गाता कौन है पर उसके साथ ही और सवाल ये उठ गये थे के ये गाना मुझे क्यूँ सुनाई देता है. और वो लड़की कौन थी? उसने मुझे मेरे नाम से बुलाया था, मेरा नाम कैसे जानती थी वो? रात को उस वक़्त बंगलो में क्या कर रही थी? जितना मैं इस बारे में सोचता मेरा दिमाग़ उतना ही घूमने लगता. दिल ही दिल में मैं कहीं शायद ये मान चुका था के वो लड़की वही आत्मा है जो इतने लोग कहते हैं के वहाँ भटकती है. आख़िर पूरा शहेर तो ग़लत नही हो सकता? पर फिर मेरा वकील का दिमाग़ इस बात को झुटलाने लगता और इस कन्फ्यूषन का नतीजा ये हुआ के घर पर आराम करने के बजाय मैं अदिति के बारे में और पता करने के लिए अकॅडमी ऑफ म्यूज़िक की पुरानी प्रिन्सिपल के यहाँ जा पहुँचा.
"वो लड़की अब मर चुका है मिस्टर आहमेद" प्रिन्सिपल म्र्स द'सूज़ा ने कहा "अब उसके बारे में कुच्छ लिखकर क्यूँ उस बेचारी की बदनामी करना"
वो एक बूढ़ी औरत थी जिसके चेहरे पर ही उसकी गुज़री हुई ज़िंदगी की समझ नज़र आती थी. उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी जो इस बात का सबूत थी के वो एक बहुत ही इंटेलिजेंट औरत थी. ज़िंदगी में काफ़ी कुच्छ देखा था उसने और ज़िंदगी से काफ़ी कुच्छ सीखा भी था.
"मैं उसको बदनाम नही करना चाहता मॅ'म" मैने कहा "उस बेचारी का खून हुआ और फिर उसपर अपने पाती के साथ बेवफ़ाई का दाग भी लगाया गया. मैं जानता हूँ के क़ानून उसके पति को सज़ा दे चुका है पर मैं चाहता हूँ के उस बेचारी की इमेज भी उस घर की इमेज के साथ ही सॉफ हो जाए"
मैं झूठ पर झूठ बोले जा रहा था.
"क्या मालूम करना चाहते हैं आप?" म्र्स डी'सूज़ा ने मेरी बात समझते हुए बोला
"जो कुच्छ भी आप बता सकें" मैने पेन और नोटेपेड निकाला
"वो एक बहुत ही सिंपल लड़की था, बहुत साइलेंट टाइप. किसी से फ़िज़ूल बात नही करता था और गॉड क्या वाय्स दिया था उसको. जब वो गाता था ना तो जैसे पूरा दुनिया रुक जाता था. हमको कई बार नींद नही आता था तो हम रात को उसको फोन करता था और वो हमको फोन पे गाना सुनाके सुला देता था" वो मुस्कुराते हुए बोली. जवाब में मैं भी मुस्कुरा दिया.
"हम स्कूल में उसका बॉस था पर वैसे हम उसका मदर, सिस्टर सब कुच्छ था. कुच्छ टाइम हमारे साथ ही रहा वो इस घर में जब उसके पास रहने को जगह नही थी. हमको भी उसने ज़्यादा नही बताया था अपने बारे में. कहती थी के उसके माँ बाप मर चुके थे और उसके रिश्तेदार परेशान करते थे इसलिए भाग कर अकेली शहेर आ गयी थी पर हम जानता था के वो झूठ बोलता है"
"कैसे?" मैने पुचछा
"अरे वो छ्छोकरी रात को फोन पे किसी से बात करता था. कई बार हमको लगता था के वो किसी छ्होकरे के साथ भाग कर आया है. पर फिर धीरे धीरे उसका वो फोन पे बात करना ख़तम हो गया और वो पहले से साइलेंट लड़की और भी ज़्यादा साइलेंट हो गया. बहुत सॅड रहता था. हम पुछ्ता था तो बताता ही नही था. सारा दिन कहीं जॉब करता, शाम को बच्चा लोग को म्यूज़िक सिखाता और रात को चुप सो जाता. और फिर एक दिन फोन आया के उसने अपना बॉस से शादी कर लिया"
"मिलने आती थी वो आपसे?" मैने पुचछा
"हाँ कभी कभी वरना जब हमको नींद नही आता था तो हम उसको रात को फोन कर लेता था. और फिर एक दिन हम न्यूसपेपर में पढ़ा के हमारा बच्ची को उसका वो बस्टर्ड हज़्बेंड मार डाला" कहते कहते म्र्स डी'सूज़ा की आँखों से आँसू बह चले.
"म्र्स डी'सूज़ा उसके पति का कहना था के अदिति उसको धोखा दे रही थी और आपने खुद कहा के वो किसी लड़के के साथ भागकर आई थी तो क्या ........"
"हमारा छ्छोकरी एकदम मदर मेरी का माफिक प्यूर था मिस्टर आहमेद" उन्होने मेरी बात बीचे में ही काट दी "वो अगर किसी छ्होकरे के साथ था तो वो रिश्ता ख़तम हो चुका था ये हम अच्छी तरह जानता है. और अगर उसका हज़्बेंड को ऐसा लगा के हमारा छ्छोकरी उसको धोखा दिया ये तो उस हरामी का ही ग़लती रहा होएंगा. वो सताया होएंगा उस बच्ची को. और जब कोई परेशान हो तो वो सहारा तो ढूंढता ही है ना?
थोड़ी देर बाद मैं उनके घर से बाहर निकला तो मैं वहीं का वहीं था. वो मुझे कुच्छ भी ऐसा नही बता पाई थी जो मुझे पोलीस फाइल्स से नही मिला था. मैं अब भी वहीं था और उस लड़की के बारे में कुच्छ नही जानता था. एक बड़ा रेप केस, सोनी मर्डर केस में मदद माँग रही रश्मि सोनी और अब ये अदिति की कहानी, मेरी ज़िंदगी अचानक एक ऐसे तेज़ ढर्रे पर चल पड़ी थी के मेरे लिए कदम मिलना मुश्किल हो गया था.
म्र्स डी'सूज़ा के घर से निकलकर मैं सोच ही रहा था के घर जाऊं या ऑफीस के मेरा फोन बजने लगा. कॉल रश्मि की थी. वो आज की ही फ्लाइट से वापिस आ रही थी.
फोन रखा ही था के घंटी दोबारा बजने लगी. इस बार कॉल प्रिया की थी. मुझे समझ नही आया के रिसीव करूँ या ना करूँ. आख़िर में मैने कॉल रिसीव कर ही ली.
"कहाँ हैं आप?" वो बोली
"कुच्छ काम है वहीं अटक गया हूँ. क्या हुआ?" मैने पुचछा
"वो कुच्छ लोग मिलने आए थे आपसे वो रेप केस के मामले में" वो बोली
"नाम और नंबर ले ले. मैं कॉल कर लूँगा बाद में" मैने कहा
"ले लिए मैने. चले गये वो लोग"
मैं एक पल के लिए बात ख़तम कर दूं पर फिर ना जाने क्या सोचके कल रात के बारे में बोल ही पड़ा. उसको अवाय्ड भी तो नही कर सकता था.
"प्रिया यार कल रात तेरे घर....." मैने कहना शुरू ही किया था के वो बीच में बोल पड़ी
"सर वो मेरा घर था. कोई भी आ सकता था. मैं रोकती नही तो क्या करती?"
मैने एक लंबी राहत की साँस ली. मतलब उसको कल रात की बात का बुरा नही लगा. उल्टा वो तो ये सोच रही थी के मैं उसके रोकने पर नाराज़ हो जाऊँगा. मैं हस पड़ा.
"थॅंक गॉड आप हसे. मुझे तो लग रहा था के आपका दिमाग़ आज काफ़ी गरम होगा." उसने कहा
"दिमाग़ तो गरम ही है पर कल रात की बात को लेकर नही किसी और बात को लेकर. मैं ऑफीस आ रहा हूं अभी. कुच्छ खाने का इंतज़ाम करके रख और कुच्छ ठंडा भी मंगवा लेना" मैने कहा
"मैं तो कब्से कह रही हूँ के ऑफीस में एक फ्रिड्ज रख लो कम से कम ठंडा पानी तो मिलेगा पीने को" कहते हुए उसने फोन काट दिया.
मैने ऑफीस की तरफ गाड़ी घुमाई ही थी. आधे रास्ते में मुझे प्रिया की कही बात याद आई और जैसे मेरे दिमाग़ की बत्ती जली. फ्रिड्ज. मैने गाड़ी वापिस बंगलो 13 की तरफ घुमा दी.
जैसा की मुझे उम्मीद थी, श्यामला बाई मुझे बंगलो पर ही सफाई करती हुई मिल गयी.
"चुप चाप अपना काम करती रहो और मुझे अपना करने दो तो 100 के 2 नोट तुम्हारे" मैने कहा तो उसके चेहरे पर चमक आ गयी और उसने मुझे अंदर आने दिया.
घर के अंदर आते ही मैं किचन में पहुँचा और वहाँ रखे उस बड़े से फ्रीदे के सामने जा खड़ा हुआ. कल जब मैं और रश्मि आए थे तो फ्रिड्ज की सारी ट्रेस निकली हुई बाहर रखी थी जो अब अंदर लगी हुई थी.
"ये अंदर तुमने लगाई हैं?" मैं हैरान खड़ी श्यामला बाई से पुचछा
"हाँ. कल आप लोगों के जाने के बाद" वो उसी हैरानी से मुझे देखते हुई बोली.
मैने फ्रिड्ज पर एक नज़र डाली.
"इसकी चाभी तुम्हारे पास है?" मैने फ्रिड्ज के लॉक की तरफ देखते हुए कहा
"मैने तो हमेशा इसको खुला ही देखा है. फ्रिड्ज में ताला लगाने की क्या ज़रूरत है" वो ऐसे बोली जैसे मैं कोई पागलों वाला सवाल कर रहा था.
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