RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--13
गतान्क से आगे............
रश्मि ने जो कहा वो सुनकर कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा च्छा गया. ना वो खुद कुच्छ बोली, ना मैं और श्यामला बाई तो बस खड़े खड़े हम दोनो का चेहरा ही देख रही थी. आख़िर में वो चुप्पी श्यामला बाई ने ही तोड़ी.
"अगर आपको ये रिब्बन चाहिए तो एक 100 के नोट के बदले में मैं ये आपको दे सकती हूँ. इन साहब ने मुझे चुप रहने को जो 200 देने थे वो मिलके 300 हो जाएँगे"
"तू मेरी ही चीज़ मुझे बेचने की कोशिश कर रही है?" रश्मि अपने फिर से उस मा काली के रूप में आ गयी "तेरी हिम्मत कैसे हुई इसको अपने पास रखने की? अगर तू ये पोलीस को दिखा देती तो शायद अब तक वो खूनी पकड़ा जाता"
कहते हुए रश्मि श्यामला की तरफ ऐसे बढ़ी जैसे उसको थप्पड़ मारने वाली है और शायद मार भी देती अगर मैं उसको रोकता नही
"एक मिनट रश्मि" मैने बीचे में आते हुए कहा "अगर ये रिब्बन पोलीस को मिल भी जाता तो कुच्छ ना होता क्यूंकी सिर्फ़ आपको पता था के ये रिब्बन उस खंजर पर बँधा हुआ था और आप तो ऑस्ट्रेलिया में थी"
मेरी बात सुनकर वो चुप हो गयी और रिब्बन की तरफ देखने लगी
"अच्छा आपने आखरी बार वो खंजर कहाँ देखा था?" मैने सवाल किया
"मुंबई के घर में जो डॅड की लाइब्ररी है वहीं दीवार पर टंगा हुआ था" उसने जवाब दिया
"और आपको पूरा यकीन है के ये वही रिब्बन है" मैने कन्फर्म करना चाहा
"मेरी निगाहें धोखा नही खा सकती" वो रिब्बन की और इशारा करते हुए बोली "रंग वही है, पॅटर्न भी वही है. कहाँ मिला था तुझे ये?" रश्मि ने श्यामला से सवाल किया
"कहा तो किचन के घर में पड़ा मिला था" श्यामला बोली
"कुच्छ और मिला वहाँ" मैने पुचछा तो श्यामला ने इनकार में सर हिला दिया
"कोई खंजर नही मिला?" कहते हुए रश्मि ने रिब्बन अपनी जेब में रख लिया
"खंजर वंजर मुझे कुच्छ नही मिला" श्यामला रश्मि को घूरते हुए बोली "बस ये एक मेरा रिब्बन ही मिला था जो अब ये मेमसाहब अपना बताकर ले जा रही हैं"
"वो रिब्बन तेरा नही है" रश्मि ने कहा
"जो चीज़ जिसको मिलती है वो उसी की होती है" श्यामला भी पिछे हटने को तैय्यार नही थी
"मेरा ख्याल है के इसको नाराज़ नही करना चाहिए" मैने धीरे से रश्मि के कान में कहा "इससे कुच्छ और फयडे की बात भी मालूम ही सकती है"
मेरा बात शायद रश्मि को ठीक लगी. उसने एक नज़र श्यामला पर उपेर से नीचे तक डाली और अपने पर्स में हाथ डालकर 500 के दो नोट निकले और श्यामला की तरफ बढ़ा दिए.
"रिब्बन के लिए" उसने श्यामला से कहा तो वो खुशी से उच्छल पड़ी
"भगवान आपका भला कर मेमसाहब. मेरा आजा का दिन ही अच्छा है. एक दिन 1200 कमा लिए"
"वो 1200 नही 1000 हैं" मैने मुस्कुराते हुए कहा
"आअप भूल रहे हैं साहब" वो भी वैसे ही मुस्कुराते हुए बोली "आपने अभी मुझे चुप रहने के 200 भी तो देने हैं"
"काफ़ी होशियार हो तुम" कहते हुए रश्मि ने फिर अपने बॅग में हाथ डाला और खुद ही 200 और दे दिए "ये लो और अगर और चाहिए तो इस घर में कुच्छ भी तुम्हें सफाई करते हुए मिले तो फ़ौरन इन साहब के घर पर जाकर दे आना"
श्यामला ने फ़ौरन हाँ में सर हिला दिया. वो रिब्बन लेकर हम बंगलो से बाहर निकले.
"अजीब घर है" रश्मि कार की तरफ कदम बढ़ाती बोली "अंदर अजीब सा डर लगता है"
"कहते हैं के इसमें किसी औरत का भूत रहता है" मैने हस्ते हुए कहा "वैसे अब क्या इरादा है इस रिब्बन के लेकर?"
"फिलहाल मैं अगली फ्लाइट से मुंबई जा रही हूँ. अगर वो खंजर लाइब्ररी में ही है तो वो रिब्बन भी वहीं होगा और तब मैं मान लूँगी के मेरी नज़र धोखा खा रही है. पर अगर वो खंजर वहाँ ना हुआ तो ये प्रूव हो जाएगा के ये वही रिब्बन है"
"और अगर खंजर हुआ पर रिब्बन नही?" मैने सवाल किया
"फिर भी इससे ये तो साबित हो ही जाएगा के खंजर यहाँ लाया गया था तभी तो ये रिब्बन यहाँ पहुँचा. और अगर ऐसा हुआ तो मैं वापिस आकर आपसे बात करूँगी"
"मुझसे जो बन सका वो मैं करूँगा" मैने कहा.
वो अपनी कार में जा बैठी.
"आपको बेकार परेशान कर रही हूँ ना मैं" खिड़की का शीशा नीचे करते हुए उसने किसी छ्होटी बच्ची की तरह मुझसे कहा.
"आपको मुझे परेशान करने का पूरा हक है" ये कहते ही मैने अपनी ज़ुबान अपने ही दांतो के नीचे दबा ली और एक पल के लिए रश्मि के चेहरे पर जो एक्सप्रेशन आकर गया, उससे मुझे पता चल गया के वो समझ गयी के मैं क्या कह रहा हूं.
"मेरा मतलब है के मैं एक वकील हूँ और आपके पिता को मैं खुद भी जानता था इसलिए मेरा फ़र्ज़ है के आपकी मदद करूँ" मैने बात फ़ौरन संभालने की कोशिश की पर मेरे इस अंदाज़ ने मेरी पहले कही गयी बात को और साफ कर दिया
"आपकी फीस?" उसने सवाल किया
"जिस दिन आपके डॅड का खूनी पकड़ा गया उस दिन वो भी देख लेंगे" मैने हस्ते हुए कहा
"तो मैं चलती हूँ" कहते हुए उसने अपना हाथ पिछे को खींचा तो मुझे एहसास हुआ के मैं तबसे उसका हाथ पकड़े खड़ा था जबसे उसने मुझसे कार में बैठने के बाद जाने के लिए हाथ मिलाया था.
घर से मैं रुक्मणी को ये बताकर निकला था के मैं ऑफीस जा रहा हूँ पर उस दिन शाम को प्रिया के यहाँ डिन्नर था इसलिए डिन्नर की तैय्यारि का बहाना बनाकर वो ऑफीस आई नही. मेरी कोर्ट में कोई हियरिंग नही थी इसलिए मेरा भी ऑफीस में अकेले जाके बैठने का दिल नही किया. ऑफीस जाने के बजाय मैने गाड़ी वापिस घर के तरफ मोड़ दी.
घर पहुँचकर मैं डोर बेल बजाने ही वाला था के फिर इरादा बदलकर अपनी चाबी से दरवाज़ा खोलकर दाखिल हो गया.
घर में अजीब सी खामोशी थी वरना यूष्यूयली इस वक़्त ड्रॉयिंग रूम में रखा टीवी ऑन होता है और रुक्मणी और देवयानी सामने बैठी या तो गप्पे लड़ा रही होती हैं या पत्ते खेल रही होती हैं. रुक्मणी की कार घर के बाहर ही खड़ी थी इसलिए मुझे लगा था के वो दोनो घर पर ही होंगी. पर फिर ये सोचकर के शायद दोनो बिना कार के ही कहीं चली गयी मैं अपने कमरे की तरफ बढ़ा.
मैं अपने कमरे का दरवाज़ा कभी लॉक नही करता था. ज़रूरत ही नही थी. कमरे में कुच्छ भी ऐसा नही था जिसको छुपाने की कोशिश की जाए और ना ही घर में कोई ऐसा था जिससे छुपाया जाए. रुक्मणी तो वैसे भी देवयानी के आने से पहले मेरे एक तरह से मेरे ही कमरे में रहती थी.
जब मैं कमरे के सामने पहुँचा तो कमरे का दरवाज़ा हल्का सा खुला हुआ था और अंदर से किसी के बात करने की आवाज़ आ रही थी.
"ये दोनो मेरे कमरे में क्या कर रही हैं" ये सोचकर मुझे कुच्छ शक सा हुआ और अंदर दाखिल होने के बजाय मैने कान लगाकर सुनना शुरू किया और खुले हुए हिस्से से कमरे के अंदर झाँका.
अंदर मैने जो देखा वो देखकर मेरी आँखें फेल्ती चली गयी. कमरे में मेरे बिस्तर पर रुक्मणी और देवयानी दोनो लेटी हुई थी. उस वक़्त वो दोनो जिस हालत में थी वो देखकर मेरे जिस्म का हर हिस्सा में एक लहर सी दौड़ गयी. अपनी ज़िंदगी में पहली बार मैं 2 औरतों को काम लीला करते हुए देख रहा था.
रुक्मणी के जिस्म पर उपेर सिर्फ़ एक लाल रंग की ब्रा और नीचे एक सलवार थी और देवयानी तो पूरी तरह नंगी थी. रुकमी बिस्तर पर सीधी लेटी हुई थी और देवयानी उसके साइड में लेटी उसपर झुकी हुई उसके होंठ चूस रही थी. मुझे समझ नही आया के क्या हो रहा है और क्यूँ हो रहा है और काब्से हो रहा है. दोनो बहानो के बीच ये रिश्ता भी था इसका मुझे कोई अंदाज़ा नही था और अगर आज इस तरह अचानक घर ना आ जाता तो शायद पता भी ना लगता.
देवयानी रुक्मणी पर झुकी हुई कुच्छ देर राक उसके होंठ चूस्ति रही. दूसरे हाथ से वो रुक्मणी की दोनो चूचिया ब्रा के उपेर से ही दबा रही थी. दोनो औरतों को देखकर ही पता चलता था के वो बुरी तरह से गरम थी.
"फिर?" देवयानी ने रुक्मणी के होंठ से अपने होंठ हटाकर कहा.
रुक्मणी ने जवाब में कुच्छ ना कहा. बस तेज़ी से साँस लेती रही. देवयानी का एक हाथ अब भी लगातार उसकी चूचिया मसल रहा था.
"बता ना" देवयानी ने फिर पुचछा
"फिर धीरे धीरे नीचे जाना शुरू करता है" रुक्मणी ने लंबी साँसे लेते कहा. उसकी बात मुझे समझ नही आई.
"साइड लेटके या उपेर चढ़के?" देवयानी ने सवाल किया
"उपेर चढ़के" रुक्मणी ने जवाब दिया
"ऐसे?" कहते हुए देवयानी रुक्मणी के उपेर चढ़ गयी और अपनी दोनो टाँगें उसके दोनो तरफ करके झुक कर दोनो चूचिया फिर दबाने लगी.
"नही मेरे उपेर लेट जाता है और मेरी टाँगो के बीच होता है" रुक्मणी ने फिर आँखें बंद किए हुए ही कहा
उसकी ये बात सुनकर मुझे दूसरा झटका लगा. वो मेरी बात कर रही थी और रुक्मणी देवयानी को ये बता रही थी के मैं उसको चोदता कैसे हूँ.
मैं खामोश खड़ा कमरे के अंदर जो भी हो रहा था उसको देख रहा था. आँखों पर यकीन नही हो रहा था के 2 बहनो में ऐसा भी रिश्ता हो सकता है.
देवयानी अब रुक्मणी के उपेर चढ़ि हुई उसके गले को चूम रही थी और दोनो हाथों से उसकी चूचिया ऐसे दबा रही थी जैसे आटा गूँध रही हो. रुक्मणी की दोनो टांगे फेली हुई हल्की सी हवा में थी.
"ऐसे ही करता है वो?" देवयानी ने रुक्मणी की छातियो पर ज़ोर डालते हुए कहा
"नही और ज़ोर से दबाता है" रुक्मणी ने उखड़ी हुई सांसो के बीच कहा. उसकी दोनो आँखें बंद थी और अपने हाथों से वो उपेर चढ़ि हुई देवयानी का जिस्म सहला रही थी.
"ऐसे?" देवयानी ने उसकी छातियो पर ज़ोर बढ़ाते हुए कहा
"और ज़ोर से" रुक्मणी ने जवाब दिया
"ऐसे?" देवयानी ने इस बार पूरे ज़ोर से रुक्मणी की चूचिया मसल दी.
"आआहह" रुक्मणी के मुँह से आह निकल गयी "हाँ ऐसे ही"
देवयानी ने उसी तरह से ब्रा के उपेर से ही देवयानी की चूचियो को बुरी तरह मसलना शुरू कर दिया. कभी वो उसके होंठ चूस्ति तो कभी गले के उपेर जीभ फिराती. खुद रुक्मणी के हाथ देवयानी की नंगी गांद पर थे और वो उसको और अपनी तरह खींच रही थी, ठीक उसी तरह जैसे वो मेरी गांद पकड़कर मुझे आगे को खींचती थी जब मेरा लंड उसकी चूत में होता था.
"और वो नीचे से कपड़ो के उपेर से ही लंड नीचे को दबाता रहता है" रुक्मणी ने देवयानी के चेहरे को चूमते हुए कहा.
देवयानी उसकी बात सुनकर मुस्कुराइ और अपने घुटने अड्जस्ट करके रुक्मणी की टाँगो को मॉड्कर और हवा में उठा दिया. फिर उसके बाद जो हुआ वो देखकर मेरे जिस्म जैसे सिहर सा उठा. वो रुक्मणी के उपेर लेटी हुई अपनी गांद हिलने लगी और उसकी चूत पर ऐसे धक्के मारने लगी जैसे उसको चोद रही हो.
"ऐसे?" उसने रुक्मणी से पुचछा तो रुक्मणी ने हाँ में सर हिला दिया
अजीब मंज़र था. मेरे सामने एक नंगी औरत अपनी आधी नंगी बहेन पर चढ़ि हुई उसकी टाँगो के बीच धक्के मार रही थी.
"फिर क्या करता है?" देवयानी ने पुचछा
"मुझे उल्टी कर देता है और मेरी कमर पर चूमता है और फिर ब्रा खोल देता है. और जैसे तू आगे से कमर हिला रही है वैसे ही पिछे लंड रगड़ता है" रुक्मणी ने कहा.
मेरे देखते ही देखते देवयानी ने रुक्मणी को उल्टा कर दिया और उसकी कमर को उपर से नीचे तक चूमने लगी. उसके दोनो हाथ रुक्मणी की कमर को सहलाते हुए उसके ब्रा के हुक्स तक पहुँचे जिनको खोलने में एक सेकेंड से भी कम का वक़्त लगा. हुक्स खुलने के बाद देवयानी रुक्मणी के उपेर उल्टी लेट गयी और उसकी गांद पर अपनी कमर हिलाकर ऐसे धक्के मारने लगी जैसे अपनी बहेन की गांद मार रही हो.
"फिर सीधी लिटाकर तेरे निपल्स चूस्ता होगा" इस बार देवयानी ने खुद ही पुचछा तो रुक्मणी ने हाँ में सर हिला दिया.
देवयानी हल्की सी उपेर को हुई और रुक्मणी को अपने नीचे सीधा कर दिया. रुक्मणी का खुला हुआ ब्रा उसकी बड़ी बड़ी चूचियो पर ढीला सा पड़ा हुआ था जिसको देवयानी ने एक झटके में हटाकर एक तरफ फेंक दिया. अपनी बहेन की दोनो चूचिया खुलते ही वो उनपर ऐसे टूट पड़ी जैसे ज़िदगी में पहली बार किसी औरत की चूचिया देख रही हो. जैसे उसके खुद के पास तो चूचिया हैं ही नही. वो एक एक करके रुक्मणी के दोनो निपल्स कभी चूस्ति तो कभी ज़ुबान से चाटने लगती. दोनो हाथ अब भी बुरी तरह से चूचिया दबा रहे थे और खुद रुक्मणी के हाथ भी अपने उपेर चढ़ि हुई अपनी बहेन की छातियो से खेल रहे थे. उसकी दोनो टाँगो के बीच देवयानी के झटके वैसे ही चालू थे जैसे वो उसको चोद रही हो.
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