Bhoot bangla-भूत बंगला
06-29-2017, 11:16 AM,
#19
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--12

गतान्क से आगे................

लड़की की कहानी जारी है........................
वो खामोशी से नीचे ज़मीन पर बैठी हुई थी. चेर पर उसका चाचा नंगा टांगे फेलाए बैठा था जिसके खड़े हुए लंड को वो अपने हाथ से पकड़े उपेर नीचे हिला रही थी. पास ही आयिल की एक बॉटल रखी हुई थी जिसमें से वो थोड़ा थोडा आयिल निकालकर लंड पर डालती रहती थी.

"ज़ोर से हिला और हाथ उपेर से नीचे तक पूरा ला" चाचा ने आँखें बंद किए किए ही कहा.
उनके बताए मुताबिक ही उसने अपना हाथ की स्पीड बढ़ा दी और हाथ लंड के उपेर से लेके नीचे तक रगड़ने लगी. चाचा के चेहरे पर एक नज़र डालके वो बता सकती थी के उन्हें बहुत मज़ा आ रहा था. उनके चेहरे पर अजीब से भाव थे और बीच बीच में वो अपनी कमर को उपेर नीचे हिलाने लगते.

आज जाने क्यूँ उसको इस खेल में मज़ा आ रहा था. अब तक वो सिर्फ़ अपने चाचा के कहने पर उनका लंड हिलाती थी वो भी आधे मंन से पर आज उसको भी इस काम में मज़ा आ रहा था. आज चाचा के लंड पर पहली नज़र पड़ते ही सबसे पहले उसके दिमाग़ में उस आदमी का लंड आया था जो उस दिन चाची के साथ ये खेल खेल रहा था. वो आपस में दोनो लंड मिलाने लगी. उस आदमी का लंड चाचा के लंड से मोटा भी था और लंबा भी और चाची दोनो के साथ ही खेलती थी. पर उस दिन की चाची की आवाज़ों से उसको समझ आ गया था के चाची को उस आदमी के साथ ज़्यादा मज़ा आ रहा था.

उस रात के बाद जब उसने अपनी चाची को नंगी देखा था वो बस इसी मौके की तलाश में रहती थी के किसी तरह चाची के नंगे जिस्म की एक झलक मिल जाए. पर ये मौका उसके हाथ आया नही. एक दो बार जब चाची झुकी तो उसको उनकी चूचिया ज़रूर नज़र आई पर उनके जिस्म को वो हिस्सा जो उसको सबसे अच्छा लगता था, उनकी गांद वो दोबारा देख नही सकी. साथ साथ उसके दिल में ये भी एक अजीब सी क्यूरीयासिटी थी के उस दिन चाची टाँगो के बीच हाथ डालकर क्या कर रही थी.

चाचा की सांसो अब भारी हो चली थी और उनके चेहरे के एक्सप्रेशन और भी ज़्यादा इनटेन्स हो गये थे. वो समझ गयी थी के अब क्या होने वाला है. जब चाचा के लंड से वो सफेद सी चीज़ निकलने वाली होती थी तब उनका चेहरा ऐसा ही हो जाता था.
पहली बार जब उसने लंड हिलाया तो वो सफेद सी चीज़ ठीक उसके उपेर आ गिरी थी और उसको बहुत घिंन आई थी. उसके बाद वो होशियार रहने लगी थी. जब भी चाचा का चेहरा सख़्त होता, वो साइड होकर लंड हिलाती ताकि लंड से निकलता पानी उसके उपेर ना गिरे. पर आज ऐसा ना हुआ. उसको वो मंज़र याद आया जब उस आदमी ने चाची के मुँह में अपने लंड से सफेद पानी गिराया था. उसको समझ नही आया के चाची ऐसा क्यूँ कर रही थी पर वो अब ये खुद करके देखना चाहती थी.

उसने अपने हाथ की स्पीड बढ़ा दी और तेज़ी से लंड हिलाने लगी. 10-12 बार हाथ उपेर नीचे हुआ ही था के चाचा की कमर ने एक झटका मारा और लंड ने धार छ्चोड़ दी. वो सफेद सी चीज़ लंड से निकलकर उसके उपेर गिरने लगी. कुच्छ उसके बालों में, कुच्छ कपड़ो पर और कुच्छ सीधा उसके मुँह पर. पानी की कुच्छ बूँदें उसके होंठो पर थी जिसको उसने जीभ फिराकर टेस्ट करके देखा और अगले ही पल लगा के उसको उल्टी हो जाएगी. उसने फ़ौरन बाहर थूक दिया. उसकी इस हरकत पर चाचा ने आँखें खोली और उसकी तरफ देखकर हस पड़े. पर उसके दिमाग़ में उस वक़्त कुच्छ और ही सवाल गूँज रहा था.

"क्या उस लड़के का भी ऐसा ही लंड होगा जिससे वो मिलने जाती थी और क्या उसके लंड से भी ऐसे ही पानी निकलता होगा?"

"एक बात बतानी थी तुम्हें. काफ़ी दिन से सोच रही थी के बताऊं पर हिम्मत नही कर पाई"उसने कहा

उस शाम वो फिर उस लड़के से मिलने पहुँची. उसके दिल में एक सवाल था के उसके चाचा चाची आपस में करते क्या हैं. उसका कोई दोस्त नही था उस लड़के के सिवा इसलिए उसने उससे ही पूछना बेहतर समझा.

"हाँ बोलो" लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा
कुच्छ पल के लिए खामोशी च्छा गयी.
"बोलो ना" लड़के ने दोबारा कहा
"समझ नही आ रहा कैसे बताऊं." वो शरमाती हुई बोली
"मुँह से बताओ और कैसे बतओगि" कहकर वो लड़का हस पड़ा.

अगले आधे घंटे तक वो उससे बार बार वही सवाल करता रहा और वो बताने में शरमाती रही. आख़िरकार उसने फ़ैसला किया के उसको पुच्छ ही लेना चाहिए.
"अक्सर रात को मेरे चाची चाची जब सब सो जाते हैं ना, उसके बाद वो ....... अंधेरे में....." इससे आगे की बात वो कह नही पाई
"आपस में लिपटकर कुच्छ करते हैं?" अधूरी बात लड़के ने पूरी कर दी.
उसने चौंक कर लड़के की तरफ देखा
"तुम्हें कैसे पता?"
"अरे सब करते हैं" लड़का मुस्कुराता हुआ बोला
"सब मतलब?" उसकी समझ नही आया

"सब मतलब पूरी दुनिया. इसको सेक्स करना कहते हैं. दुनिया का हर मर्द औरत ये करता है. जानवर भी करते हैं. इसे से तो बच्चे पैदा होते हैं" लड़के ने कहा
वो हैरानी से आँखें खोले उसकी तरफ देख रही थी. जानवर भी ये काम करते हैं? और बच्चे?
"बच्चे?" उसके मुँह से निकला
"हाँ. जब औरत मर्द आपस में ये करते हैं तो दोनो को बहुत मज़ा आता है और ऐसा करने के बाद ही औरत के पेट में बच्चा आता है" लड़के ने हॅस्कर जवाब दिया

मज़ा आता है ये बात तो वो अच्छी तरह जानती थी क्यूंकी चाचा और चाची को उसने कई बार कहते सुना था के बहुत मज़ा आ रहा है. पर बच्चे वाली बात अब भी उसके पल्ले नही पड़ रही थी.

"क्या कर रहा है बे?" आवाज़ सुनकर उसने लड़के की तरफ देखा तो डर से काँप गयी. वहाँ 3 लड़के और खड़े थे और उसके दोस्त को कॉलर से पकड़ रखा था.
"क्या कर रहा है यहाँ?" उन 3 लड़कों में से एक ने कहा
"कुच्छ नही. बस ऐसे ही बातें कर रहे थे" उसके दोस्त उस लड़के ने हकलाते हुए कहा
"अच्छा?" 3 लड़को में से एक दूसरे ने कहा "हमें पता है के तू यहाँ क्या कर रहा है"

इसके बाद क्या हुआ उसको कुच्छ समझ नही आया. उन तीनो ने मिलकर उस लड़के को मारना शुरू कर दिया. वो उसको नीचे गिराकर उसपर लातें बरसाने लगे. उसकी अपनी भी अजीब हालत हो रही थी. उसके मुँह से चीखे निकल रही थी और वो उन लड़को पर ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थी जिसका उनपर कोई असर नही हो रहा था. उस लड़के के जिस्म से कई जहा से खून निकल रहा था जिसको देखकर उसका दिल जैसे रो उठा. उसको लग रहा था के ये चोट उसको खुद को लगी हैं और दर्द का एहसास उसके अपने जिस्म में हो रहा है.

फिर जाने उसमें कहाँ से अजीब सी ताक़त आ गयी. उसने पास पड़ा एक बड़ा सा पथर उठाया और पूरी ताक़त से एक लड़के की तरफ फेंका. पत्थर सीधा उसके माथे पर लगा और वो पिछे को जा गिरा. सब कुच्छ जैसे एक पल के लिए रुक सा गया. बाकी के दोनो लड़के एक कदम पिछे को हट गये. उसका दोस्त वो लड़का ज़मीन पर पड़ा हैरत से उसकी तरफ देखने लगा..
जिस लड़के के माथे पर पथर पर लगा था वो अभी भी उल्टा ज़मीन पर गिरा पड़ा था.

"ये उठ क्यूँ नही रहा. मर गया क्या?" उन बाकी बचे 2 लड़को में से एक ना कहा
"मर गया क्या?" ये शब्द उसके खुद के कान में किसी निडल की तरह चुभ गये. ऐसा तो वो नही चाहती थी. वो तो बस अपने दोस्त को बचाना चाहती थी. अगर चाचा चाची को पता लगा तो? उसकी रूह डर के मारे काँप गयी और वो सबको वहीं छ्चोड़ पागलों की तरह अपने घर की तरफ भागने लगी.

वर्तमान मे इशान की कहानी..........................


इस बात को शायद मैं अपने दिल ही दिल में मान चुका था के मैं रश्मि से प्यार करता हूँ. ऐसा क्यूँ था था ये मैं नही जानता था. उस औरत से मैं सिर्फ़ एक ही बार मिला था और जबसे उससे मिला था शायद हर पल उसी के बारे में सोचता था. उसके खूबसूरत ने मेरे दिल और ज़हेन में एक जगह बना ली थी जैसे. आँखें बंद करता तो उसका चेहरा दिखाई देता, आँखें खोलता तो उसका ख्याल दिमाग़ में शोर करने लगता. मेरी अकेली ज़िंदगी को जैसे एक मकसद मिल गया था और वो था रश्मि को हासिल करना.

पर इसके लिए मेरा उसको चाहना काफ़ी नही था ये बात भी मैं जानता था. अगर उसे मेरी होना है तो इसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी ये है के वो भी मुझे चाहे. शकल सूरत से मैं बुरा नही था पर क्या ये काफ़ी था. वो एक बहुत अमीर लड़की थी. शायद हिन्दुस्तान की सबसे अमीर लड़की जिसके अपने पास इतनी बेशुमार दौलत थी जितनी मैं 7 जन्मो में भी नही कमा सकता था. और मैं जानता था के जिस तरह से हमारी मुलाक़ात का मुझपे असर हुआ है शायद हर उस मर्द पर होता होगा जो उससे मिलता होगा और जाने कितने यही ख्वाब देखते होंगे के उसको हासिल करें. और अब जबकि उसके पास इतनी दौलत है, अब तो जाने कितने उसके पिछे भाग रहे होंगे. और मुझे तो ये भी नही पता था के क्या उसकी ज़िंदगी में मुझे पहले कोई और है या नही.

अगले दिन वादे के मुताबिक मैं बंगलो नो 13 के सामने खड़ा रश्मि का इंतेज़ार कर रहा था. उसने मुझसे कहा था के वो बंगलो को खुद एक बार देखना चाहती है और इसके लिए मैने बंगलो के मालिक से बात कर ली थी. घर की चाबी उस नौकरानी के पास थी जो वहाँ सफाई करने आती थी. मैं वहाँ खड़ा बेसब्री से रश्मि का इंतेज़ार कर रहा था और मेरे दिमाग़ में सिर्फ़ एक सवाल चल रहा था, मैं ये क्यूँ कर रहा हूं? मैं एक वकील से एक जासूस कब हो गया?
थोड़ी ही देर बाद एक बीएमडब्लू मेरे सामने आकर रुकी और उसमें से रश्मि बाहर निकली. उसको फिर से देखा तो एक पल के लिए तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं वहीं चक्कर खाकर गिर जाऊँगा. ब्लॅक कलर के फुल लेंग्थ स्कर्ट और उसकी कलर के टॉप में वो बिना किसी मेक अप के भी किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी.

"आइ आम सो सॉरी" आते ही उसने कहा "रास्ते में ट्रॅफिक काफ़ी ज़्यादा था"
"कोई बात नही" मैने मुस्कुराते हुए कहा "सुबह के वक़्त यहाँ ऐसा ही होता है. छ्होटे शहेर की छ्होटी सड़कें और उसपर रोज़ाना बढ़ता ट्रॅफिक"
"आइ अग्री" कहते हुए उसने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया.
मैं हाथ मिलने की लिए जब उसका हाथ अपने हाथ में लिए तो शायद वो मेरी ज़िंदगी को सबसे यादगार पल बन गया. उसका मुलायम हाथ जब मेरे हाथ में आया तो ऐसा लगा जैसे पूरी दुनिया मिल गयी मुझे.
"अंदर चलें?" उसने पुचछा तो मैं अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आया.
"श्योर" कहते हुए मैने बंगलो के गेट की तरफ उसके साथ कदम बढ़ाए.

कल जब मैने बंगलो के मालिक से चाबी माँगने के लिए फोन पर बात की थी तो उसने मुझे बताया था के तकरीबन जिस वक़्त हम लोग वहाँ जाने वाले थे उसी वक़्त नौकरानी भी वहाँ सफाई करने आती थी. तो हम लोगों को वो अंदर ही मिल जाएगी.
"कोई घर दोबारा किराए पर ले रहा है क्या जो सफाई करवा रहे हैं?" मैने हस्ते पुचछा था
"आपके मुँह में घी शक्कर" मकान मालिक ने कहा "पर आप चाभी क्यूँ माँग रहे हो? आप ही किराए पर ले रहे हो क्या?
"नही नही" मैने उसको बताया "मैं असल में उस घर को सिर्फ़ देखना चाहता हूँ. शायद मर्डर से रिलेटेड कुच्छ मिल जाए"
"वहाँ कुच्छ नही है आहमेद साहब" मकान मलिक ने कहा था "उस घर को अंदर बाहर से तलाश किया जा चुका है. कुच्छ नही मिला वहाँ. जाने कौन और कैसे मार गया उस आदमी को. काश उसने मरने के लिए कोई और जगह चुनी होती मेरे घर के सिवा"

"चाबी?" घर के सामने पहुँच कर रश्मि ने मेरी और देखते हुए सवाल किया
"चाबी घर की नौकरानी के पास ही है जो इस वक़्त अंदर सफाई कर रही है" कहते हुए मैने दरवाज़े पर नॉक किया.

"नौकरानी? सफाई?" रश्मि ने पुचछा "डिड ही गेट ए न्यू टेनेंट?"
"नही फिलहाल तो नही पर मालिक चाहता है के घर सॉफ सुथरा रहे जस्ट इन केस इफ़ सम्वन डिसाइडेड टू मूव इन" मैने जवाब दिया
"नाम क्या है इस नौकरानी का" उसने अजीब सा सवाल पुचछा
"श्यामला बाई" कहते हुए मैने फिर से नॉक किया
"ये वही औरत है जो मेरे डॅडी के टाइम पे घर की सफाई करती थी?" उसने पुचछा तो मैने हाँ में सर हिला दिया.

"यही थी ना वो जिसने मेरे डॅडी को सबसे पहले मरी हुई हालत में देखा था?"
इस बार भी मैं जवाब ना दे सका. बस हाँ में सर हिला दिया और दरवाज़ा तीसरी बार नॉक किया
"इससे ज़्यादा सवाल मत करना आप" मैने रश्मि से कहा
"क्यूँ?" पहले उसने मुझसे पुचछा और फिर खुद ही जवाब दे दिया "ओह आपको लगता है के ये मेरे डॅडी के बारे में कुच्छ ग़लत बोलेगी जिसका आइ माइट फील बॅड"
मैने जवाब नही दिया तो वो समझ गयी के मेरा जवाब हाँ था.

"आइ आम प्रिपेर्ड फॉर ऑल दट. आइ डॉन'ट ब्लेम हिम सो मच अस दोज़ हू ड्रोव हिम टू इनटेंपरेन्स " वो ऑस्ट्रेलियन आक्सेंट में बोली
तभी घर का दरवाज़ा खुला और हमारे सामने एक करीब 40 साल की औरत खड़ी थी. श्यामला बाई की शकल देखकर ही लगता था के वो एक बहुत खड़ूस औरत है, ऐसी जो अपने सामने किसी और को बोलने ना दे और अगर कोई बोल पड़े तो फिर खुद ही पछ्ताये.

"क्या चाहिए?" उसने हम दोनो से सवाल किया
"घर देखना है" मैने जवाब दिया "मालिक से मेरी बात हो चुकी है"
"और ये मैं कैसे मान लूँ?" उस खड़ूस औरत ने पुचछा
"क्यूँ मैं कह रहा हूँ" मैने हैरत से जवाब दिया
"और क्यूंकी मैं मिस्टर सोनी की बेटी हूँ" कहते हुए रश्मि आगे बढ़ी और बिना उस औरत से बात किए घर के अंदर दाखिल हो गयी. एक पल के लिए और श्यामला बाई दोनो हैरत से उसको देखते रह गयी.

"आप मनचंदा साहब की बेटी हैं" श्यामला बाई ने एक तरफ होते हुए कहा "मनचंदा या सोनी जो भी नाम था उनका"
"हाँ" रश्मि ने जवाब दिया
"अब तो यहाँ कुच्छ नही मिलेगा आपको उनका. लाश पोलीस ले गयी, समान कोई और ले गया"
रश्मि ने कुच्छ नही कहा और घर पर एक नज़र डाली.

"हाँ अपने बाप के खून के धब्बे ज़रूर मिल जाएँगे आपको यहाँ" वो कम्बख़्त काम वाली फिर बोली "वहाँ कार्पेट पर और उसके नीचे शायद फ्लोर पर अब भी खून का हल्का सा निशान हो"
रश्मि ने मेरी तरफ देखा. अपने बाप के बारे में ऐसी बात सुनकर उसके चेहरा पीला पड़ गया था. मेरा दिल किया के उस श्यामला बाई का खून भी उसी जगह पर बहा दूँ जिस तरफ वो इशारा कर रही थी.
"बकवास बंद करो और जाकर अपना काम करो"
"हां जा रही हूँ" वो मेरी तरफ घूरते हुए बोली और फिर रश्मि की तरफ पलटी "वैसे अगर आप एक 100 का नोट मुझे दे दो तो घर मैं आपको खुद ही दिखा दूँगी"
"मेरी माँ मैं तुझे चुप रहने के 200 दूँगा. अब जाओ यहाँ से" मैने दरवाज़े की तरफ इशारा किया
"200 के लिए तो मैं कुच्छ भी कर सकती हूँ" वो खुश होते हुए बोली "और एक प्रेमी जोड़े को अकेला में छ्चोड़ने के लिए 200 मिले तो क्या बुरा है. वैसे ज़्यादा देर मत लगाना तुम दोनो. जल्दी काम ख़तम कर लेना"

उसकी ये बात सुनकर मैं जैसे शरम से ज़मीन में गड़ गया और रश्मि ने तो अपनी नज़र दूसरी तरफ फेर ली.
"बहुत हुआ" कहते हुए मैं श्यामला बाई की तरफ बढ़ा "दफ़ा हो जाओ यहाँ से"
उसको किचन की तरफ धकेल कर मैं वापिस रश्मि के पास पहुँचा जो उसकी कोने में खड़ी थी जहाँ उस नौकरानी ने इशारा किया था. घर की ब्लू कलर की कार्पेट पर एक जगह गहरा लाल रंग का निशान था और मैं जानता था के वो क्या है. रश्मि एकटूक उस निशान को देखे जा रही थी.
"रश्मि शायद इस घर में आने का आपका ख्याल इतना ठीक नही था. हमें चलना चाहिए यहाँ से" मैं उसके चेहरे को देखते हुए बोला जो पीला पड़ चुका था
"नही" कहते हुए रश्मि ने मेरी तरफ देखा "जब तक मैं इस घर का हर कोना नही देख लेती तब तक नही"

मैं उसको चाहता था. उस वक़्त अगर वो जान भी मांगती तो इनकार की कोई गुंज़ाइश ही नही थी. जब उसने घर की तलाशी लिए बिना वहाँ से ना जाने का फ़ैसला किया तो मैने भी हाँ में सर हिला दिया. खामोशी के साथ हम दोनो काफ़ी देर तेक एक कमरे से दूसरे कमरे तक जाते रहे और किसी ऐसी चीज़ को ढूँढते रहे जिससे हमें सोनी मर्डर केस में कुच्छ मादा मिल सके. हर कमरा खाली था और कुच्छ कमरो में तो अब तक धूल थी जिसको देखकर ये अंदाज़ा हो जाता था के श्यामला बाई यहाँ कितना अच्छा काम कर रही है.

रश्मि ने हर कमरे को अच्छी तरह तलाशा यहाँ तक की खिड़कियो का भी काफ़ी बारीकी से मुआयना किया पर कहीं कुच्छ नही मिला. हम लोग नीचे बस्मेंट में पहुँचे. बस्मेंट की और जाती सीढ़ियों के पास ही एक दरवाजा था जो बंगलो के पिछे की तरफ के लॉन में खुलता रहा. दरवाज़े को देखकर इस बात का अंदाज़ा होता था के वो काफ़ी दिन से बंद नही था और हाल फिलहाल में ही उसको खोला गया था. रश्मि ने फ़ौरन मेरा ध्यान दरवाज़े की तरफ खींचा पर मैने उसको बताया के ये दरवाज़ा मैने और मिश्रा ने खोला था जब हम इससे पहले एक बार घर की तलाशी लेने आए थे. मैने ये भी बताया के उस वक़्त इस दरवाज़े को खोलने में हम दोनो को ख़ासी परेशानी हुई थी क्यूंकी ये दरवाज़ा जाने कितने सालों से बंद था.

"तो फिर वो लोग आए कहाँ से थे मेरे डॅड को मारने के लिए?" रश्मि एक सोफे पर बैठते हुए बोली
"वो लोग?" मैं भी उसके सामने बैठ गया "मतलब एक से ज़्यादा?"
"क्यूंकी मुझे यकीन है के भूमिका और उसके आशिक़ हैदर रहमान ने मिलकर मेरे डॅड को मारा है" रश्मि हाँ में सर हिलाते हुए बोली
"मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ के जिस रात खून हुआ वो यहाँ नही थी" मैने कहा
"मैं जानती हूँ पर मैं ये भी जानती हूँ के उसी ने हैदर को भेजा था डॅड को मारने के लिए. और मैं एक से ज़्यादा लोग इसलिए कह रही हूँ क्यूंकी हैदर को भेजने के बाद वो भी तो खून की उतनी ही ज़िम्मेदार हुई जितना हैदर" रश्मि बोली
"हमारे पास इस वक़्त इस बात का कोई सबूत नही है रश्मि"

"मैं जानती हूँ" कहते हुए वो खड़ी हो गयी और किचन की तरफ बढ़ चली. मैं भी उठकर उसके पिछे पिछे किचन तक पहुँचा.

उस घर में भले कोई रहता नही था पर इंसान की हर ज़रूरत की मॉडर्न चीज़ वहाँ पर थी. एक बड़ा ही स्टाइलिश गॅस स्टोव से लेकर ओवेन और एक किंगसिज़े फ्रिड्ज तक सब था. हमारे किचन में पहुँचते ही श्यामला बाई ने एक बार हमारी तरफ देखा और फिर अपने काम में लग गयी. रश्मि खामोशी से किचन का जायज़ा लेने लगी.

"ये फ्रिड्ज खराब है क्या?" उसने श्यामला से पुचछा
"नही तो" श्यामला बाई ने इतनी जल्दी जवाब दिया जैसे उसपर फ्रिड्ज खराब करने का इल्ज़ाम लगा दिया गया हो "क्यूँ?"
"इसके ये सारी ट्रेस यहाँ बाहर क्यूँ रखी हैं?" रश्मि ने कहा

वो उस फ्रिड्ज के अंदर लगी ज़ालिया और ट्रेस की तरफ इशारा कर रही थी जिनपर फ्रिड्ज के अंदर समान रखा जाता है और जो इस वक़्त फ्रिज के उपेर रखी थी.
"वो मैं सफाई करने के बाद लगा दूँगी. आप लोगों को क्या चाहिए?" श्यामला बाई चिढ़ते हुए हमारी तरफ चेहरा करके खड़ी हो गयी.

उसका हमारी तरफ पलटा ही था के रश्मि ने एक पल के लिए तो उसको ऐसे देखा जैसे भूत देख लिया हो और फिर अगले ही पल तेज़ी से उसके करीब हो गयी.
"ये रिब्बन कहाँ से मिला तुम्हें?" उसने श्यामला के सर पर बँधे एक लाल रंग के रिब्बन की तरफ इशारा किया जिससे श्यामला ने अपने बॉल बाँध रखे थे.

"यहीं घर में ही पड़ा मिला" श्यामला थोडा पिछे होते हुए बोली "बेकार घर में पड़ा था तो मैने अपने सर पर बाँध लिया"

रश्मि ने तो जैसे उसकी बात सुनी ही नही. उसने अगले ही पल आगे बढ़कर श्यामला के सर से वो रिब्बन खोल लिया और मुझे दिखाने को मेरी तरफ बढ़ा दिया. वो एक लाल रंग का रिब्बन था जिसको देखने से ही पता चलता था के वो बहुत महेंगा था, वजह थी उसके उपेर की गयी कारिगिरी. उस पूरे रिब्बन पर जैसे एक डिज़ाइन सा बना हुआ था, एक नक्काशी की तरह जिसकी वजह से वो बहुत ही एलिगेंट और खूबसूरत लग रहा था.

"ये वही रिब्बन है इशान" वो मेरी और देखते हुए बोली "वही रिब्बन जो मैने कश्मीर में खरीदा था"
"और उससे क्या साबित होता है?" मैने पुचछा

"जिस दुकान से मैने ये रिब्बन लिया था वो एक आंटीक शॉप थी. उसी दुकान से मेरे डॅडी ने एक खंजर खरीदा था जो उन्हें बहुत पसंद आया था. जब उन्होने खंजर ले लिया तो मेरी नज़र इस रिब्बन पर पड़ी. मुझे लगा के ये उस खंजर के साथ अच्छा लगेगा इसलिए मैने खरीद कर उस रिब्बन के हॅंडल के पास बाँध दिया था. ये रिब्बन यहाँ है इसका मतलब ये के वो खंजर भी यहीं था. मेरे डॅड को उनके अपने ही खंजर से मारा गया इशान" कहते हुए वो रो पड़ी.
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RE: Bhoot bangla-भूत बंगला - by sexstories - 06-29-2017, 11:16 AM

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