RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
वो काफ़ी देर से मेरा सर दबा रही थी. ऐसा अक्सर होता नही था. वो 5 या 10 मीं मेरा सर दबाके हट जाती थी पर इस बार 20 मिनट से ज़्यादा हो चुके थे. ना इस दौरान मैने ही कुच्छ कहा और ना ही उसने खुद हटने की कोशिश की. अब मेरा सर लगातार उसकी चूचियो पर ही टीका हुआ था और बीच बीचे में उसके मेरे सर पर हाथ से ज़ोर डालने की वजह से चूचियो पर दबने भी लगता था. ऐसा होने पर वो मेरे सर को कुच्छ पल के लिए यूँ ही दबाके रखती और उसकी इस हरकत से मुझे शक होने लगा था के वो ये जान भूझकर कर रही थी.
जाने ये खेल और कितनी देर तक चलता या फिर कहाँ तक जाता पर तभी मेरे सामने रखे फोन की घंटी बजने लगी. घंटी की आवाज़ सुनते ही मैने फ़ौरन अपनी आँखें खोली और प्रिया मुझे एक झटके से दूर हो गयी, जैसे नींद से जागी हो.
"हेलो" मैने फोन उठाया. प्रिया वापिस अपनी डेस्क पर जाकर बैठ चुकी थी.
"मिस्टर आहमेद" दूसरी तरफ से वही आवाज़ आई जिसे सुनकर मैं दीवाना सा हो गया था "मैं रश्मि सोनी बोल रही हूँ"
"हाँ रश्मि जी" मैने कहा
"मैं सोच रही के के क्या आपको बंगलो 13 से बात करने का मौका मिला?"
मैं इस बारे में भूल ही चुका था. मुझे उसको बंगलो दिखाने ले जाना था.
"मैं आपको शाम को फोन करता हूँ" मैने कहा.
फोन रखने के बाद मैं प्रिया की तरफ पलटा तो वो मुस्कुरा रही थी.
"रश्मीईीईईईईई" उसने जैसे गाना सा गया
"सिर्फ़ क्लाइंट है" मैने जवाब दिया
"तो चेहरा इतना चमक क्यूँ रहा है उसकी आवाज़ सुनके" प्रिया बोली तो मैं किसी नयी दुल्हन की तरह शर्मा गया.
ये प्यार भी साला एक अजीब बला होती है. वैसा ही जैसा घालिब जे अपनी एक गाज़ल में कहा था "ये इश्क़ नही आसान बस इतना समझ लीजिए, एक आग का दरिया है और डूबके जाना है". मेरे साथ भी कुच्छ ऐसा ही हो रहा था. रश्मि का ख्याल आते ही समझ नही आता था के हसु या रो पदू. दिल में दोनो तरह की फीलिंग्स एक साथ होती थी. अजीब गुदगुदी सी महसूस होती थी जबकि उससे मिले मुझे अभी सिर्फ़ एक दिन ही हुआ था. उसका वो मासूम खूबसूरत चेहरा मेरे आँखों के सामने आते ही मुझे अजीब सा सुकून मिलता था और उसी के साथ दिल में बेचैनी भी उठ जाती थी.
मैं जब लॉ पढ़ रहा था उस वक़्त एक हॉस्टिल में रहता था.
हॉस्टिल एक ईईडC नाम की कमिट चलती थी. इंडियन इस्लामिक डेवेलपमेंट कमिटी के नाम से वो ऑरजिसेशन उन मुस्सेलमान लड़के और लड़कियों की मदद के लिए बनाई गयी थी जो अपनी पढ़ाई का खर्चा खुद नही उठा सकते थे. मैं जब शहेर आया था तो जेब में बस इतने ही पैसे थे के अपने कॉलेज की फीस भर सकूँ, रहने खाने का कोई ठिकाना नही था. एक शाम मस्जिद के आगे परेशान बैठा था तो वहाँ नमाज़ पढ़ने आए एक आदमी ने मुझे इस कमिटी के बारे में बताया. एक छ्होटे से इंटरव्यू के बाद मुझे हॉस्टिल में अड्मिशन मिल गया. रहना खाना वहाँ फ्री था और पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिए मैने एक गॅरेज में हेलपर की नौकरी कर ली.
वो हॉस्टिल मस्जिद में जमा चंदे के पैसे से चलाया जाता था पर वहाँ अड्मिशन की बस एक ही कंडीशन थी, आप इंटेलिजेंट हों और अपने फ्यूचर के लिए सीरीयस हों तो आपको मदद मिल सकती है. सिर्फ़ मुस्सेलमान हों ऐसी कोई कंडीशन नही थी जिसकी वजह से हॉस्टिल में एक मिला जुला क्राउड था. हर मज़हब के लोग वहाँ मौजूद थे. लड़के भी और लड़कियाँ भी.
मुस्लिम ऑर्गनाइज़ेशन का कंट्रोल होने की वजह से वहाँ लड़के और लड़कियों को साथ में रहने की इजाज़त नही थी. लड़कियों का हॉस्टिल वहाँ से थोड़ी दूर पर था और वहाँ ना जाने की हिदायत हर लड़के को दी गयी थी. जो कोई भी हॉस्टिल के रूल्स तोड़ता था उसको वहाँ से निकाल दिया जाता था.
वहाँ मौजूद लड़को मे ज़्यादातर ऐसे थे जो अपने फ्यूचर को लेकर काफ़ी सीरीयस थे और ये बात जानते थे के अगर हॉस्टिल से निकाले गये तो बस अल्लाह ही मालिक है. इन सबका नतीजा ये हुआ के मैं कभी किसी लड़की से दोस्ती नही कर सका. कॉलेज में कुच्छ थी साथ में पढ़ने वाली पर वहाँ किसी से बात नही हो सकी. कॉलेज के बाद मुझे नौकरी पर जाना होता था और वहाँ से वापिस आते ही बिस्तर पकड़ लेता था. उस तेज़ी से भागती ज़िंदगी में प्यार किस चिड़या का नाम है कभी पता ही ना चला. किसी लड़की के साथ हम-बिस्तर होना तो दूर की बात थी, मैने तो कभी किसी लड़की का हाथ तक नही पकड़ा था. रुक्मणी वो पहली औरत थी जिससे मेरा जिस्मानी रिश्ता बना और काफ़ी टाइम तक मेरी ज़िंदगी में बस वही एक औरत रही.
रश्मि को देखकर मुझे लगा के मैं समझ गया के प्यार क्या होता है पर अभी भी कन्फ्यूज़्ड था के ये प्यार ही है ये यूँ बस अट्रॅक्षन. परेशान इसलिए था के वो इतनी खूबसूरत है तो ज़रूर उसका कोई चाहने वाला भी होगा जिसका मतलब ये है के मेरा कोई चान्स नही था. कहते हैं के प्यार एक झलक में ही हो जाता है. मेरा इसमें कभी यकीन नही था पर शायद अब मैं अपने आपको ही ग़लत साबित कर रहा था. मेरी ज़िंदगी में औरतें थी उस वक़्त, रुक्मणी, देवयानी और प्रिया और तीनो के साथ किसी ना किसी लम्हे मेरा एक जिस्मानी तार जुड़ा ज़रूर था पर उन तीनो में से किसी के लिए भी मुझे अपने दिल में वो महसूस ना हुआ जो रश्मि को बस एक बार देखने भर से हो गया था.
मैं एक वकील था और एक लड़की पर बुरी तरह मर मिटा था पर इसके बावजूद मैं ये जानता था के जो मैं कर रहा हूँ वो मेरे लिए भी ख़तरनाक साबित हो सकता है. बिना हाँ बोले ही मैने रश्मि की मदद के लिए उसको हाँ बोल दी थी. वो एक लड़की थी जो अपने बाप की मौत का बदला लेना चाहती थी पर मुझे समझ नही आ रहा था के इसमें मेरे लिए क्या है? पैसा पर वो उस रिस्क के मामले में कुच्छ भी नही जो मैने ली है. उपेर से मेरे कानो में गूँजती वो गाने की आवाज़ जिसके वजह से मैने अदिति केस के गाड़े मुर्दे उखाड़ने शुरू कर दिए थे. जिसकी वजह से मुझे लगने लगा था के कहीं मैं पागल तो नही हो रहा. मेरा खामोश चलती ज़िंदगी अचानक इतनी तेज़ी से भागने लगी थी के मेरे लिए उसके साथ चलना मुश्किल हो गया था.
उसी शाम मैने बंगलो के मालिक से बात की. वो मुझे जानता था इसलिए काफ़ी आसानी से मुझे बंगलो की चाबी दे दी. मैने रश्मि को फोन करने की सोची पर फिर अपना ख्याल बदल कर एक मेसेज उसके सेल पर भेज दिया के वो मुझे कल सुबह 10 बजे बंगलो के पास मिले. उसका थॅंक यू मेसेज आया तो मेरा दिल जैसे एक बार फिर भांगड़ा करने लगा.
शाम को मुझे पता चला के रुक्मणी और देवयानी दोनो किसी किटी पार्टी में जा रही हैं और रात को घर वापिस नही आएँगी. उनके जाने के बाद मैं थोड़ी देर यूँ ही घर में अकेला बैठा बोर होता रहा. जिस हॉस्टिल में मैं रहता था वहाँ कोई टीवी नही था और बचपन में मेरे घर पर भी कोई टीवी नही था. पड़ोसी के यहाँ मैं कभी कभी टीवी देखने चला जाता था इसलिए जब रुक्मणी के यहाँ शिफ्ट किया तो वहाँ एक अपने टीवी पाकर मुझे बहुत खुशी हुई थी. मैं घंटो तक बैठा टीवी देखता रहता था और कभी कभी तो पूरी रात टीवी के सामने गुज़र जाती थी. पर उस वक़्त तो टीवी देखना भी जैसे एक बोरिंग लग रहा था. मैं बेसब्री से अगले दिन का इंतेज़ार कर रहा था ताकि मैं सुबह सुबह रश्मि से जाकर मिल सकूँ.
शाम के 8 बजे मैने स्विम्मिंग के लिए जाने का फ़ैसला किया. कॉलोनी में एक स्विम्मिंग पूल था जो रात को 10 बजे तक खुला रहता था इसलिए मेरे पास 2 घंटे थे. पहले मैं वहाँ तकरीबन हर रोज़ शाम को ऑफीस के बाद जाया करता था पर पिच्छले कुच्छ दिन से गया नही था. मैने अपने कपड़े बदले और बॅग उठाकर पैदल ही स्विम्मिंग पूल की तरफ निकल पड़ा.
आधे रास्ते में मेरे फोन की घंटी बजने लगी. नंबर प्रिया का था.
"हाँ बोल" मैने फोन उठाते ही कहा
"कल रात क्या कर रहे हो?" उसने मुझसे पुचछा
"कल रात?" मुझे कुच्छ समझ नही आया
"हाँ. मैं चाहती हूँ के कल रात का डिन्नर आप मेरे घर पर करें. मम्मी डॅडी से मैने बात कर ली है" वो खुश होते हुए बोली
"यार कल रात तो .........."
"प्लज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़"
मैने कुच्छ कहना शुरू ही किया था के उसने इतना लंबा प्लीज़ कहा के मैं इनकार नही कर सका और अगले दिन शाम को ऑफीस के बाद उसके घर पर डिन्नर के लिए मान गया.
जब मैं स्विम्मिंग पूल पहुँचा तो एक पल के लिए अपना स्विम्मिंग का इरादा बदलने की सोची. आम तौर पर रात को उस टाइम ज़्यादा लोग नही होते थे और पूल तकरीबन खाली होता था पर उस दिन तो जैसे पूल में कोई मेला लगा हुआ था. कुच्छ पल वहीं खड़े रहने के बाद मैने फ़ैसला किया के अब आ ही गया हूं तो थोड़ी देर स्विम कर ही लेता हूँ और कपड़े बदलकर पानी में उतर गया.
तकरीबन अगले आधे घंटे तक मैं कॉन्टिनोसली स्विम करता रहा. पूल के एक कोने से दूसरे कोने तक लगातार चक्कर लगता रहा और इसके साथ ही पूल में लोगों की भीड़ कम होती चली गयी. जब पूल में मौजूद आखरी आदमी बाहर निकला तो मैने वहीं साइड में लगी एक वॉल क्लॉक पर नज़र डाली. 9.30 हो रहे थे यानी मेरे पास अभी और आधा घंटा था पर एक घंटे की कॉन्टिनोस स्विम्मिंग के बाद मैं बुरी तरह थक चुका था. वहीं पूल के साइड में रखे एक छ्होटे से वॉटर कुशन को मैने पानी में खींचा और उसपर चढ़कर आराम से स्विम्मिंग पूल के बीच में आँखें बंद करके लेट गया.
मैं थका हुआ था इसलिए आँखें बंद करते ही मुझे लगा के मैं कहीं यहीं सो ना जाऊं. मेरे पेर अब भी पानी के अंदर थे और चारो तरफ एक अजीब सी खामोशी फेल चुकी थी. बस एक पानी के हिलने की आवाज़ आ रही थी. पूल में उस वक़्त कोई भी नही था सिवाय उस वॉचमन के जो गेट के बाहर बैठा था. मुझे खामोशी में यूँ घंटो बेते रहने की आदत थी पर उस वक़्त वो खामोशी बहुत अजीब सी लग रही थी, दिल को परेशान कर रही थी. मैने पूल से निकल कर घर जाने का फ़ैसला किया. मैं अभी निकलने के बारे में सोच ही रहा था के फिर वही गाने की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी और जैसे सारी बेचैनी और परेशानी एक सेकेंड में हवा हो गयी. आँखें बंद किए किए में कुच्छ ही मिनिट्स में नींद के आगोश में चला गया.
तभी पानी में हुई कुच्छ हलचल से मेरी नींद फ़ौरन खुल गयी. मैने आँखें खोलकर चारो तरफ देखा ही था के जैसे किसी ने मेरा पेर पकड़ा और मुझे पानी में खींच लिया. पानी में गिरते ही मुझे ऐसा लगा जैसे मैं स्विम करना भूल गया हूँ और मेरा वज़न कई गुना बढ़ गया जिसकी वजह से मैं पानी में डूबता चला गया. जब मेरे पावं नीचे पूल के फ्लोर से जाके लगे तो मैने अपनी सारी ताक़त दोबारा जोड़ी और फिर से उपेर की तरफ स्विम करना शुरू किया. जो एक रोशनी पानी में से मुझे नज़र आ रही थी वो आसमान में चाँद की थी और मैं बस उसको देखते हुए ही पूरी हिम्मत से उपेर को तैरता रहा. पर पानी तो जैसे ख़तम होने का नाम ही नही ले रहा था. मैं उपेर को उठता जा रहा था पर पानी से बाहर नही निकल पा रहा था जैसे मैं किसी समुंदर की गहराई में जा फसा था. मेरा दम घुटने लगा था और मैं जानता था के अगर पानी से बाहर नही निकला तो यहीं मर जाऊँगा.
पानी अब भी मेरे उपेर उतना ही था और चाँद था के करीब आने का नाम ही नही ले रहा था. लग रहा था जैसे मैं एक ही जगह पर हाथ पावं मार रहा हूँ जबकि मैं जानता था के मैं उपेर उठ रहा हूँ क्यूंकी पूल का फ्लोर मुझे अब दिखाई नही दे रहा था. मेरे उपेर भी पानी था और नीचे भी. साँस और रोके रखना अब नामुमकिन हो गया था. मेरे लंग्ज़ जैसे फटने लगे थे. आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा था और लग रहा था जैसे दिमाग़ में कोई हथोदे मार रहा है. मैं समझ गया के मेरा आखरी वक़्त आ गया है.
तभी ऐसा लगा जैसे चाँद टूट कर पूल में ही आ गिरा और पानी में रोशनी फेल गयी. मुझसे कुच्छ दूर पानी में कुच्छ बहुत तेज़ चमक रहा था. मैं एकटूक उसकी तरफ देखता रह गया और तभी मुझे एहसास हुआ के मेरा दम अब घुट नही रहा था और ना ही मुझे साँस लेने की ज़रूरत महसूस हो रही थी. मैं बिल्कुल ऐसे था जैसे मैं ज़मीन पर चल रहा हूँ. फिर भी मैने हल्की सी साँस अंदर ली तो उम्मीद के खिलाफ मुझे अपने लंग्ज़ में पानी भरता महसूस ना हुआ. सिर्फ़ हवा ही अंदर गयी और मैं बेझिझक साँस लेने लगा. मैं अब उपेर उठने की कोशिश नही कर रहा था. बस पानी में एक जगह पर रुका हुआ था पर उसके बावजूद भी डूब नही रहा था. किसी फिश की तरह मैं पानी में बस एक जगह पर रुका हुआ अपने सामने पानी में उस सफेद रोशनी को देख रहा था.
तभी मुझे फिर वही गाने की आवाज़ पानी में सुनाई दी. आवाज़ उस सफेद रोशनी की तरफ से ही आ रही थी. और उस गाने के साथी ही मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे चारो तरफ पानी में कॅंडल्स जल गयी हो. पानी में हर तरफ रोशनी ही रोशनी थी. लाल, नीली, हरी, हर तरह की रोशनी.
गाने की आवाज़ अब तेज़ हो चली थी और थोड़ी देर बाद इतनी तेज़ हो गयी थी के मुझे अपने कानो पर हाथ रखने पड़े. वो क्या गा रही थी ये तो अब भी समझ नही आ रहा था पर एक हाइ पिच की आवाज़ मेरे कान के पर्दे फाड़ने लगी. आवाज़ इतनी तेज़ हो गयी थी के मेरे लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया था. वो अब एक मधुर गाने की आवाज़ ना बनकर एक ऐसा शोर बन गयी थी जो मुझे पागल कर रहा था. मैने अपने कानो पर हाथ रखकर अपनी आँखें बंद की और एक ज़ोर से चीख मारी. इसके साथ ही शोर रुक गया और मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे मुँह पर पानी फेंका हो.
पानी मुँह पर गिरते ही मेरी आँख खुल गयी और मैं जैसे एक बहुत लंबी नींद से जागा. मैं अब भी पानी में था और मेरा सर पानी के बाहर था.आसमान पर सूरज ही हल्की सी रोशनी फेल चुकी थी. मैने हैरान होकर घड़ी की तरफ नज़र डाली तो सुबह के 6 बज रहे थे. मेरा दिमाग़ घूम सा गया. मैं पूरी रात यहीं पूल में सोता रहा था और पानी में गिरने की वजह से मेरी आँख खुली. परेशान मैं पानी से निकला और चेंज करके गेट तक पहुँचा. गेट लॉक्ड था. मैं अभी सोच ही रहा था के क्या करूँ के तभी दरवाज़ा खुला. वो वॉचमन था जो मुझे यूँ अंदर देखकर परेशान हो उठा. वो रात को 10 बजे पूल बंद करके घर चला जाता था और सुबह 6 बजे आकर खोलता था. मैने उसको बताया के रात उसने मुझे रात अंदर ही बंद कर दिया था. उसने फ़ौरन मेरे पावं पकड़ लिए के मैं किसी को ये बात ना बताऊं वरना उसकी नौकरी जाएगी. उसके हिसाब से उसने लॉक करने से पहले पूरे पूल का चक्कर लगाया था और मैं कहीं भी उसको नज़र नही आया था.
मैने उसको भरोसा दिलाया के मैं किसी से नही कहूँगा और घर की तरफ बढ़ा. वापिस जाते हुए मेरे दिमाग़ में बस एक ही ख्याल था. वो क्या सपना था जो मैं पूल में सोते हुए देख रहा था. वो रोशनी और उस आवाज़ का इस तरह तेज़ हो जाना. और ऐसा कैसे हुआ के मैं आराम से पूल के बीचो बीच उस कुशन पर पड़ा सोता रहा और पूरी रात मुझे इस बात का एहसास भी नही हुआ जबकि मेरी नींद तो हल्की सी आवाज़ से भी खुल जाती थी. और सबसे बड़ी बात ये के जब उस वॉचमन ने पूल का चक्कर लगाया तो मैं पूल के बीचो बीच उसको सोता हुआ नज़र क्यूँ नही आया.
क्रमशः.........................
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