Bhoot bangla-भूत बंगला
06-29-2017, 11:15 AM,
#16
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--10

गतान्क से आगे...................

"फिर एक दिन मुझे पता चला कि मेरे जाने के बाद उसने उस हैदर रहमान को सरे आम घर पर बुलाना शुरू कर दिया था. पापा ने रोकने की कोशिश की या नही ये तो मैं जानती नही पर उसके बाद शायद वो भूमिका तो जैसे पापा के मरने का इंतेज़ार ही करती होगी ताकि वो उस हैदर से शादी कर सके. और इसी बीच मेरे पापा भी घर छ्चोड़कर चले गये, शायद अपनी बीवी को अपने ही घर में किसी और के साथ देखना बर्दाश्त नही हुआ उनसे"
"ऐसा आपको लगता है पर फिर भी हम पक्के तौर पर नही कह सकते के आपके पापा ने घर क्यूँ छ्चोड़ा था" मैने शक जताते हुए कहा
"वो भूमिका क्या कहती है?" रश्मि ने पुचछा
"कोई साफ वजह तो वो भी नही बता पा रही पर......."
"कोई और वजह होगी तो बताएगी ना" रश्मि ने मेरी बात काट दी "मेरी बात मानो इशान उसी ने पापा को मरवाया है"
"हमारे पास कोई सबूत नही है" मैने कहा
"हम ढूँढ सकते हैं" रश्मि बोली
"मुझे नही लगता" मैने इनकार में सर हिलाया
"अगर हम उस घर की तलाशी लें जहाँ पापा रह रहे थे?" रश्मि ने पुचछा
"वो काम पोलीस ऑलरेडी कर चुकी है और मैं भी उस वक़्त साथ था वहीं. यकीन जानिए घर में कुच्छ हासिल नही हुआ" मैने कहा
"मैं खुद एक बार देखना चाहूँगी" रश्मि ने कहा

उस वक़्त उसके चेहरे पर जो एक्सप्रेशन थे उनको देखकर वो अगर मेरी जान भी माँग लेती तो मैं हरगिज़ इनकार ना करता. आँखों में हल्की सी नमी लिए वो मेरी तरफ ऐसी उम्मीद भरी नज़र से देख रही थी जैसे मैं ही अब वो एक आखरी इंसान हूँ जिसपर वो भरोसा कर सकती है. मैं अगर चाहता भी तो ना नही कह सकता था और हुआ भी वही, मैं ना नही कह सका.

मैने रश्मि से कहा के मैं बंगलो 13 के मालिक से बात करके उसको फोन करूँगा. हम थोड़ी देर तक और बैठे बातें करते रहे और फिर मैं होटेल से निकल आया. बाहर रात का अंधेरा घिर चुका था और सड़क सुनसान हो चली थी. मेरी कार खराब कहीं खड़ी थी इसलिए मेरे पास इस बात के अलावा कोई चारा नही था के मैं टॅक्सी से ही घर वापिस जाऊं.

सड़क पर थोड़ी देर खड़े रहने के बाद भी जब मुझे कोई टॅक्सी नज़र नही आई मैने पैदल ही घर की तरफ चलने का इशारा किया. सड़क के किनारे पर थोड़ी दूर एक टॅक्सी खड़ी ज़ावरूर थी पर उसके खिड़की दरवाज़े सब बंद थे और ना ही ड्राइवर कहीं नज़र आ रहा था. मैने अपना फोन जेब से निकाला और कानो में इयरफोन लगाकर गाने सुनता हुआ पैदल ही घर की तरफ चल पड़ा. मुझे म्यूज़िक हमेशा लाउड वॉल्यूम पर सुनने की आदत थी इसलिए उस वक़्त मुझे इयरफोन से आते हुए गाने के साइवा कुच्छ सुनाई नही दे रहा था.उस वक़्त तक होटेल के बाहर जो एक दो गाड़ियाँ थी वो भी जा चुकी थी और सड़क पर ट्रॅफिक ना के बराबर था.

मुश्किल से मैं 10 कदम ही चला था के मुझे अपने पिछे हेडलाइट्स की रोशनी दिखाई दी. पलटकर देखा तो जो टॅक्सी सड़क के किनारे बंद खड़ी थी मेरी तरफ बढ़ रही थी. मैने राहत की साँस ली के टॅक्सी के लिए भटकना नही पड़ा. हाथ दिखाकर मैने टॅक्सी को रुकने का इशारा किया. टॅक्सी की स्पीड धीमी हुई और वो सड़क के किनारे पर मेरी तरफ बढ़ी. हेडलाइट्स की रोशनी सीधी मेरी आँखों पर पड़ रही थी जिसकी वजह से मुझे टॅक्सी सॉफ दिखाई नही दे रही थी और इसलिए टॅक्सी में बैठा वो दूसरा आदमी मुझे तब तक दिखाई नही दिया जब तक के टॅक्सी मेरे काफ़ी करीब नही आ गयी. मुझसे कुच्छ मीटर्स के फ़ासले पर टॅक्सी की खिड़की से एक हाथ बाहर को निकला.
और उसी वक़्त एक ही पल में बहुत कुच्छ एक साथ हुआ.

टॅक्सी मेरे काफ़ी करीब आ चुकी थी. एक हाथ टॅक्सी से निकला और मुझे उसमें कुच्छ चमकती हुई सी चीज़ नज़र आई.
तभी टॅक्सी ड्राइवर ने हेडलाइट्स हाइ बीम पर कर दी जिससे मेरी आँखें एक पल के लिए बंद हो गयी.
म्यूज़िक अब भी मेरे कानो में फुल वॉल्यूम पर बज रहा था पर फिर भी उसके बीच भी वो आवाज़ मुझे सॉफ सुनाई दी.
"इशान......."
एक ही पल में मैं पहचान गया के ये उसी औरत की आवाज़ है जिसे मैं अक्सर गाता हुआ सुनता हूँ. आवाज़ फिर मेरे ठीक पिछे से आ रही थी. मैं चौंक कर फ़ौरन एक कदम पिछे को हुआ और पलटकर अपने पिछे देखा.
उसी पल टॅक्सी मेरे पिछे से गुज़री और मुझ अपने कंधे पर तेज़ दर्द महसूस हुआ जैसे को जलती हुई चीज़ मेरे अंदर उतार दी गयी हो.
वो औरत मेरे पिछे नही थी.
मैने हाथ अपने कंधे पर रखा और फिर सड़क की तरफ पलटा.
टॅक्सी मुझसे अब दूर जा रही थी. एक हाथ मुझे टॅक्सी के अंदर वापिस जाता हुआ दिखाई दिया जिसमें एक खून से सना हुआ चाकू था. मेरे खून से सना हुआ.
लड़की की कहानी जारी है .......................
हल्की सी आहट से उसकी आँख खुली. वो फ़ौरन बिस्तर में उठकर बैठ गयी और ध्यान से सुनने लगी के आवाज़ क्या थी. कुच्छ देर तक कान लगाकर सुनने के बाद उसको एहसास हो गया के शायद वो कोई सपना देख रही थी और फिर बिस्तर पर करवट लेकर लेट गयी.

वो घर के सामने बने छ्होटे से आँगन में चारपाई डालकर सोती थी. गर्मी हो या सर्दी, उसको वहीं सोना पड़ता था और हाल ये था के अगर बारिश हो जाए, तो वो रात भर नही सो पाती थी क्यूंकी घर के दरवाज़े फिर भी उसके लिए नही खुलते थे और ना ही उसकी हिम्मत होती थी के नॉक करे. बस कहीं एक कोने में बारिश से बचने के लिए छुप जाती थी.

ये सिलसिला कुच्छ साल पहले शुरू हुआ था और इसकी वजह भी वो अच्छी तरह से जानती थी. चाचा चाची का वो खेल जो वो अक्सर रात को खेला करते थे. बचपन से ही वो ये खेल अक्सर हर दूसरी रात देखा करती थी. अक्सर रात में किसी आहट से उसकी आँख खुलती और अंधेरे में जब वो गौर से देखती तो अपने चाची को टांगे फेलाए लेटा हुआ पाती और चाचा उनके उपेर चढ़े हुए टाँगो के बीच उपेर नीचे हो रहे होते. कमरे के अंधेरे में कुच्छ ख़ास नज़र तो नही आता था पर जितना भी दिखाई देता था उसको देखकर उसके दिल में एक अजीब सी गुदगुदी होती थी. वो अक्सर रात को उस खेल का इंतेज़ार किया करती थी और इसी चक्कर में देर रात तक जागती रहती थी. वो अच्छी तरह से जानती थी के जो कुच्छ भी वो खेल था, वो उसके देखने के लिए नही था इसलिए अक्सर रात को चाचा उसकी चाची से कहता था के थोड़ी देर रुक जाए ताकि सब सो जाएँ.

और फिर एक दिन जब उसको बाहर सोने के लिए कहा गया तो जैसे उसका दिल ही टूट गया. उसके हर रात वो खेल देखने की आदत सी हो गयी थी. वो जानती थी के ये वही खेल है जो चाचा अक्सर दिन में अकेले में उसके साथ खेला करता था और रात को चाची के साथ. पर चाची के साथ वो थोड़ा अलग होता था. उसके साथ तो चाचा सिर्फ़ उसको लंड हिलने को कहता था पर चाची के साथ तो जाने क्या क्या करता था. अंधेरे में वो बस उन दोनो को उपेर नीचे होता हुआ देखता रहती थी. और फिर जबसे वो बाहर सोने लगी तबसे चाचा चाची का वो खेल देखना उसके लिए बंद हो गया.

फिर जब चाचा ने एक दिन उसके पिछे अपना वो घुसाया तो वो समझ गयी के वो चाची के साथ रात को क्या करता था. पर उसको हैरत थी के चाची कुच्छ नही कहता थी जबकि उसे तो कितना दर्द हुआ था. वो दर्द के मारे बेहोश हो गयी थी और बाद में उसको बुखार भी हो गया था. वो ठीक से चल भी नही पा रही थी. इसका नतीजा ये हुआ के चाचा खुद बहुत डर गया था और फिर उसने दोबारा ये कोशिश नही की और फिर से उस खेल को सिर्फ़ लंड हिलाने तक ही सीमित रखा.

"सुनो" आवाज़ सुनकर उसके कान खड़े हो गये. आवाज़ चाची की थी जो कमरे के अंदर से आ रही थी.
थोड़ी देर तक खामोशी रही.
"सुनो ना" चाची की आवाज़ दोबारा आई.
"क्या है?" चाचा की नींद से भरी गुस्से में आवाज़ आई.
"छोड़ो ना. मैं गरम हो गयी हूँ. नींद भी नही आ रही इस वजह से" चाची ने कहा तो वो फ़ौरन समझ गयी के वही खेल दोबारा शुरू होने वाला है. पर अफ़सोस के वो ये खेल देख नही सकती थी.
"उपेर आओ ना" थोड़ी देर बाद फिर से चाची की आवाज़.
उसके बाद जवाब में उसको कुच्छ अजीब सी आआवाज़ आई जैसे चाची को मारा हो या धक्का दिया हो और फिर चाची के करहने की आवाज़ से उसको पता चल गया के ऐसा ही हुआ है.
"रांड़ साली सोने दे" चाचा की आवाज़ फिर गुस्से में थी "जब देखो चूत खोले पड़ी रहती है"

उसको बाद फिर थोड़ी देर तक कोई आवाज़ नही आई. वो भी समझ गयी थी के हमेशा की तरह चाची ही ये खेल खेलना चाहती है पर आज रात चाचा मना कर रहा है. हर रात यही होता था. पहेल उसकी चाची ही करती थी और थोड़ी देर तक उसको चाचा को मनाती रहती थी खेल के लिए.

कुच्छ पल बाद कमरे का दरवाज़ा खुला. उसने फ़ौरन अपनी आँखें बंद कर ली और फिर हल्की सी खोलकर दरवाज़े की तरफ देखा. दरवाज़े पर चाची खड़ी थी और उनके हाथ में एक चादर और तकिया था.

"मरो अकेले अंदर" कहते हुए चाची ने दरवाज़ा बंद कर दिया और फिर उसकी चारपाई के पास ही नीचे ज़मीन में चादर बिछाकर लेट गयी.

चाँदनी रात थी इसलिए हर तरफ रोशनी थी. चाची उसकी चारपाई के पास ही नीचे लेटी हुई थी इसलिए वो आसानी से उनको देख सकती थी. आँखें हल्की सी खोले हुए उसने एक नज़र चाची पर उपेर से नीचे तक डाली.

वो एक ब्लाउस और नीचे पेटिकट पहने उल्टी लेटी हुई थी. चाची हल्की सी मोटी थी पर बहुत ज़्यादा नही. कमर के दोनो तरह हल्की सी चर्बी थी और गांद एकदम उपेर को उठी हुई. उस वक़्त उल्टी लेटी होने की वजह से उनके पेटिकट में उनकी गंद पूरी तरह उभर कर सामने आई हुई थी. वो बस चुपचाप नज़र गड़ाए एकटूक चाची की गांद की तरफ देखती रही.

यूँ तो उसने अपनी चाची को कई बार रात के खेल में पूरी तरह नंगी देखा था पर उस वक़्त कमरे में बिल्कुल अंधेरा होता था. वो सिर्फ़ उनके जिस्म को देखकर ये अंदाज़ा लगा लेती थी के दोनो चाचा चाची नंगे हैं पर वो नज़र नही आते थे. अंधेरे में बस उनकी जिस्म का काला अक्स ही दिखाई देता था. उससे पहले भी घर में अक्सर काम करते वक़्त जब चाची झुकती तो उनकी बड़ी बड़ी छातिया जैसे ब्लाउस से बाहर गिरने को तैय्यार रहती जिन्हें वो अक्सर छुप्कर देखा करती. चाची को देख कर उसके दिमाग़ में अक्सर ये ख्याल आता था के उसकी खुद की इतनी बड़ी क्यूँ नही हैं.

पर उस दिन शाम को जब वो वापिस आई थी तब उसने पहली बार चाची को पूरी तरह नंगी देखा था जब वो उस आदमी के साथ वही खेल खेल रही थी और बस देखती रह गयी थी. चाचा का लंड वो अक्सर देखा करती थी इसलिए उसमें उसके लिए कुच्छ नया नही था पर पहली बार वो एक पूरी जवान औरत को पूरी तरह से नंगी देख रही थी. वो नज़ारा जैसे उसके दिमाग़ पर छप सा गया था. उसके बाद भी कई दिन तक वो जब चाची की तरफ देखती तो उसको वही टांगे फेलाए नंगी पड़ी चाची ही दिखाई देती. हाल ये हो गया था के खाना खाते वक़्त जब चाची मुँह खोलती तो उसको यही याद आता था के कैसे चाची ने उस आदमी के सामने मुँह खोला था और कैसे उसने लंड में से वो सफेद सी चीज़ उनके मुँह में गिराई थी.

पर उस सारे खेल में भी जो एक हिस्सा वो नही देख पाई थी वो थी चाची की गांद. चाची पूरे खेल में इस तरह से रही के एक बार भी उनकी गांद पूरी तरह से उसके सामने नही आई. अब भी चाची की तरफ देखती हुई वो यही सोच रही थी के चाची की नंगी गांद कैसी दिखती होगी और कहीं दिल में ये चाह रही थी के कास ये पेटिकट हट जाता.

चाची ने हल्की सी हरकत की तो उसने फ़ौरन अपनी आँखें बंद कर ली और फिर थोड़ी देर बाद हल्की सी खोली. अब सामने नज़ारा हल्का सा बदल चुका था. चाची अब भी उसी तरह उल्टी पड़ी हुई थी पर उनकी गांद हल्की सी हवा में उठी गयी थी. उसके दिल की धड़कन तब एकदम रुक सी गयी जब उसने देखा के उनका पेटिकट उपेर तक सरका हुआ था. इतना उपेर तक के उनकी जाँघो का पिच्छा हिस्सा पूरा नंगा था और पेटिकट बस गांद को ही ढके हुए हल्का सा नीचे तक जा रहा था. वो हैरत में पड़ी देखती रही के चाची क्या कर रही है. चाची के घुटने मुड़े हुए थे जिसकी वजह से गांद हल्की हवा में थी और जब उसने ध्यान दिया तो देखा के चाची का एक हाथ नीचे था. सामने की तरफ से ब्लाउस पूरा उपेर तक उठा हुआ था और चाची का एक हाथ उनकी टाँगो के बीच हिल रहा था. उसको कुच्छ समझ नही आया के क्या हो रहा है और चाची क्या कर रही है.

थोड़ी देर तक चाची उसी पोज़िशन में रही. उल्टी पड़ी हुई, घुटने हल्के मुड़े हुए, गांद हल्की सी हवा में उठी हुई, मुँह तकिया में घुसा हुआ, पिछे से बाल बिखरे हुए और एक हाथ सामने से नीचे उनकी टाँगो के बीच घुसा हुआ. वो देखती रही के चाची के हाथ की हरकत तेज़ होती जा रही थी और उनकी गांद भी हल्की सी हिल रही थी. तभी उन्होने एक तेज़ झटका मारा और उनका पूरा जिस्म काँप गया और वो पल था जब शायद भगवान ने उसके दिल की सुन ली थी.

यूँ झटका लगने के कारण पेटिकट का वो हिस्सा जो गांद को ढके हुए था और सरक गया. चाची की गांद उपेर को उठी हुई थी इसलिए पेटिकट सरक कर उनकी कमर तक आ गया और अगले ही पल चाची कमर के नीचे पूरी तरह नंगी हो गयी. उसकी तो जैसे दिल की मुराद पूरी हो गयी. चाची की गांद आज पहली बार पूरी तरह उसके सामने नंगी थी जिसे वो हैरत से देखे जा रही थी. जितनी बड़ी बड़ी चाची की छातिया थी उतनी ही बड़ी उनकी गांद भी थी. हवा में उठी हुई उनकी भारी गांद को धीरे धीरे हिलता हुआ देखकर उसका कलेजा जैसे उसके मुँह को आ गया थी. पर एक चीज़ जो उसको अब भी नज़र नही आ रही थी के चाची हाथ से क्या कर रही है. पेटिकोट कमर पर पड़ा होने के कारण उनका हाथ पेटिकोट में घुसा हुआ था जिसको वो देख नही पा रही थी.

अचानक चाची फिर से कराही, बदन काँपा था और वो फिर से पूरी तरह सीधी लेट गयी. घुटने सीधे कर लिए पर पेटिकोट नीचे नही किया जिसकी वजह से उनकी गांद अब भी उसके सामने थी. वो उपेर चारपाई पर पड़ी नीचे लेटी अपनी चाची को कभी हैरत से देखती तो कभी यूँ सोचती के उसका खुद का जिस्म ऐसा क्यूँ नही है.
"हे भगवान" चाची ने ऐसी आवाज़ में कहा जैसे वो बहुत तकलीफ़ में हों.
और फिर चाची पलटी और सीधी होकर लेट गयी. उनके सीधे होते ही उसने फिर से आँखें बंद कर ली और फिर थोड़ी देर बाद हल्की सी खोलकर चाची पर नज़र डाली. सामने का मंज़र फिर बदल चुका था. अब चाची सीधी लेटी हुई थी पर नीचे से अब भी नंगी थी. पेटिकोट कमर तक चढ़ा हुआ था और सामने से उनके पेट पर पड़ा हुआ था. चाची के घुटने मुड़े हुए थे और दोनो टांगे हल्की सी हवा में उठी हुई थी. एक हाथ अब भी टाँगो के बीच हिल रहा था जिसे वो इस बार भी पेटिकोट की वजह से देख नही पा रही थी. वो उस अजीब से अंदाज़ में पड़ी अपनी चाची को बस देखती रही जिनका एक हाथ टाँगो के बीच हिल रहा था और दूसरा उनकी चूचियो को एक एक करके दबा रहा था. चाची के मुँह से अजीब सी आह आह की आवाज़ आ रही थी जो उनकी हाथ की तेज़ी के साथ ही कभी बढ़ती तो कभी कम हो जाती.

वर्तमान मे.............................
उस रात ज़ख़्म खाने के बाद मैं एक दूसरी टॅक्सी लेकर घर वापिस आया था. मेरे कंधे पर टॅक्सी में बैठे उस दूसरे आदमी ने चाकू से वार किया था जो किस्मत से ज़्यादा गहरा नही हुआ. बस चाकू कंधे को च्छुकर निकल गया था जिसकी वजह से कंधे पर एक लंबा सा कट आ गया था. मेरा खून बह रहा था और शर्ट खून से सनी हुई थी. वहाँ से मैं टॅक्सी लेकर एक डॉक्टर के पास गया जो मेरी पहचान का था. उसको मैने ये बहाना मार दिया के किसी से झगड़ा हो गया था और क्यूंकी मैं उसको जानता था इसलिए उसने पोलीस को फोन भी नही किया.

एक पल को मेरे दिमाग़ में ये ख्याल आया के मैं मिश्रा को फोन करके सब बता दूँ पर फिर मैने इरादा बदल दिया. मेरे ऐसा करने से काफ़ी सवाल उठ सकते थे जैसे के मैं वहाँ क्या कर रहा था और रश्मि से मिलने क्यूँ गया था. मिश्रा मेरा दोस्त सही पर एक ईमानदार पोलिसेवला था और मैं जानता था के अगर उसको मुझपर खून का शक हुआ तो वो मुझे अरेस्ट करने से भी नही रुकेगा.

रात को मैं घर पहुँचा तो देवयानी और रुक्मणी दोनो सो चुके थे. ये भी अच्छा ही हुआ वरना मुझे उनको बताना पड़ता के मेरी शर्ट खून से सनी हुई क्यूँ है. घर पहुँचकर मैने अपने लिए एक कप कॉफी बनाई और उस दिन की घटना के बारे में सोचने लगा था.

ये बात ज़ाहिर थी के वो जो कोई भी टॅक्सी में था, मुझपर हमले के इरादे से ही आया था इसलिए होटेल के बाहर टॅक्सी में मेरा इंतेज़ार कर रहा था. पर सवाल ये था के वो कौन था और ऐसा क्यूँ चाहता था और मुझे एक चाकू मारकर क्या साबित करना चाहता था? या उसका इरादा कुच्छ और था? क्या वो मुझे सिर्फ़ चाकू मारना चाहता था या मेरा खेल ही ख़तम करना चाहता था?

और तभी मेरे दिमाग़ में जो ख्याल आया उसे सोचकर मैं खुद ही सिहर उठा. उस आदमी के हाथ में जो चाकू था वो यक़ीनन काफ़ी बड़ा और ख़तरनाक था. वो चाकू मेरे कंधे के पिच्छले हिस्से पर बस लगा ही था पर जहाँ तक वो मेरे कंधे पर खींचा, वहीं तक काट दिया. जब वो टॅक्सी मेरी तरफ बढ़ी थी उस वक़्त मैं सीधा खड़ा था तो इसका मतलब अगर मैं पलटा आखरी सेकेंड पर एक कदम पिछे होकर पलटा ना होता तो वो चाकू का वार सीधा मेरी गर्दन पर पड़ता और ज़ाहिर है के वो चाकू अगर मेरी गर्दन पर खींच दिया गया होता तो मैं वहीं किसी बकरे की तरह हलाल हो जाता.

फिर मेरा ध्यान अपने पिछे से आई उस आवाज़ की तरफ गया. वो आवाज़ ठीक उसी वक़्त आई थी जब ड्राइवर ने लाइट्स को हाइ बीम पर किया था. मतलब वार होने से बस कुच्छ सेकेंड्स पहले. और उसी आवाज़ की वजह से ही मैं पलटा था. अगर वो औरत मेरे पिछे से मेरा नाम ना बुलाती तो मैं वैसा ही खड़ा रहता और वार सीधा मेरी गर्दन पर होता. मतलब देखा जाए तो वो आवाज़ ही थी जिसकी वजह से मैं अब तक यहाँ ज़िंदा बैठा था.

मेरा दिमाग़ घूमने लगा. कुच्छ समझ नही आ रहा था. क्या है ये आवाज़? शायद मैं एक पल के लिए इसको अपना भ्रम मान भी लेता पर आज जिस तरह से उस आवाज़ ने मेरी जान बचाई थी, उससे इस बात को नही नकारा जा सकता था के ये सिर्फ़ मेरा वहाँ नही है. पर अगर भ्रम नही है तो क्या है?
और मुझपर हमला? कोई मेरी जान क्यूँ लेना चाहेगा? मेरा तो किसी से झगड़ा भी नही.

और फिर जैसे मुझे मेरे सवाल का जवाब खुद ही मिल गया. वो रेप केस जिसमें मैं इन्वॉल्व्ड था. मुझे एक धमकी भरा फोन आया था जिसको मैं पूरी तरह भूल चुका था. मेरे जान लेने की धमकी मुझे दी गयी थी और फिर कोशिश भी की गयी. पर क्या वो लोग इतने बेवकूफ़ हैं के वकील को यूँ सरे आम मार देंगे? इससे तो बल्कि प्रॉसिक्यूशन का केस और भी मज़बूत हो जाएगा और ये बात अपने आप में उनके खिलाफ एक सबूत बन जाएगी.

सोचते सोचते मेरे सर में दर्द होने लगा तो मैं उठकर बिस्तर पर आ गया और आँखें बंद कर ली. पर नींद तो जैसे आँखों से बहुत दूर थी. मुझे समझ नही आ रहा था के मिश्रा को सब बताउ या ना बताउ? और तभी फिर वही गाने की आवाज़ मेरे कानो में आई. एक पल के लिए मैने सोचा के उठकर देखूं के ये आख़िर है तो क्या है पर मैं उस वक़्त काफ़ी थका हुआ था. और फिर वही हुआ जो हमेशा होता था, मैं अगले कुच्छ मिनिट्स के अंदर ही नींद के आगोश में जा चुका था.

क्रमशः...............................
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RE: Bhoot bangla-भूत बंगला - by sexstories - 06-29-2017, 11:15 AM

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