RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--9
गतान्क से आगे...............
लड़की की कहानी जारी है ..........................
वो वापिस घर पहुँची. दरवाज़ा खोलने ही वाली थी के उसके कदम वहीं जम गये. अंदर से किसी मर्द की आवाज़ आ रही थी. यानी चाचा जी वापिस आ गये? उसके अंदर ख़ौफ्फ की एक ल़हेर दौड़ गयी. वो जानती थी के अगर उसके चाचा ने देखा के वो इस वक़्त बाहर घूम रही है तो उसको बहुत मारेगा.
तभी उसके दिमाग़ में ख्याल आया के अगर चाची अंदर ना हुई तो? ये सोचते ही उसका रोम रोम काँप उठा. अगर चाची ना हुई तो चाचा और वो घर पर अकेले होंगे और चाचा जी फिर उसके साथ कुच्छ कर सकते हैं. उसने डर के मारे अंदर जाने से पहले ये पता करने की सोची के चाची वापिस आई हैं या नही?
दरवाज़ा खोले बिना ही उसने दरवाज़े और दीवार के बीच एक छ्होटी सी खुली हुई जगह पर अपनी आँख लगाई और अंदर झाँकने लगी. अंदर नज़र पड़ी तो उसने फ़ौरन एक पल के लिए नज़र वहाँ से हटा ली. एक पल के लिए समझ नही आया के उसने क्या देखा और वो क्या करे. फिर ये पक्का करने के लिए के उसने सही देखा है, उसने फिर अंदर देखा.
उसकी चाची पूरी तरह से नंगी नीचे ज़मीन पर बिछि हुई चादर पर पड़ी हुई थी. जिस्म पर एक भी कपड़ा नही था. जहाँ वो खुद खड़ी हुई थी वहाँ से उसको चाची की बड़ी बड़ी चूचिया सॉफ नज़र आ रही थी और नज़र आ रहा था वो चेहरा जो उन चूचियो को चूस रहा था. वो चेहरा जो उसके चाचा का नही था.
वो आदमी उसकी चाची के साइड में लेटा बारी बारी दोनो निपल्स चूस रहा था. उसने देखा के आदमी का एक हाथ चाची की जाँघो के बीच था और वहाँ पर बालों के बीच कुच्छ कर रहा था. उसको समझ ना आया के वहाँ से हट जाए या खड़ी रहे. वो जानती थी के चाची जो कर रही थी वो ग़लत था और उसका ये देखना भी ग़लत था पर वो जैसे वहीं जम गयी थी. नज़र वहीं चाची के नंगे जिस्म पर जम गयी थी.
"तुम भी ना" चाची कह रही थी "अभी थोड़ी देर पहले ही तो चोद्के हटे हो और अब फिर शुरू हो गये?"
इसपर वो आदमी हसा और बोला
"क्या करूँ जानेमन. तू है ही इतनी मस्त के दिल करता है लंड तेरे अंदर डालकर ज़िंदगी भर के लिए भूल जाऊं"
वो जानती थी के वो आदमी क्या कह रहा था. वो उसकी चाची के नंगे पड़े जिस्म की तारीफ कर रहा था. ये बात सुनकर उसका खुद का ध्यान भी चाची की तरफ गया. उसने एक नज़र अपनी चाची पर उपेर से नीचे तक डाली. उसकी चाची हल्की सी मोटी थी पर अंदर से बिल्कुल गोरी थी. बड़ी बड़ी चूचिया, भरा भरा जिस्म और जाँघो के बीच हल्के हल्के बाल. वो बार बार अपनी चाची को उपेर से नीचे तक देखती रही पर हर बार उसकी नज़र चाची की चूचियो पर आकर ही अटक जाती. उसका एक हाथ अपने आप उसके अपने सीने पर आ गया और वो सोचने लगी के उसकी ऐसी बड़ी बड़ी चूचिया क्यूँ नही हैं?
तभी वो आदमी हल्का सा उठा और उसकी चाची के उपेर को आया और फिर उसकी नज़र कहीं और अटक गयी. इस बार वो देख रही थी वो चीज़ जो उसकी चाची ने अपने हाथ में पकड़ रखी थी, उस आदमी का लंड जो वो हिला रही थी. ये देखकर उसको खुद भी याद आ गया के चाचा भी उससे अपने लंड यूँ ही हिलवाया करता था. तो क्या इस आदमी के लंड में से भी चाचा जी की तरह कुच्छ निकलेगा?
"अंदर ले" वो आदमी चाची से कह रहा था
"अभी नही" चाची ने कहा "थोड़ा गीली करो. मैं इतनी जल्दी तैय्यार नही हो जाती दोबारा. टाइम लगता है मुझे"
उस आदमी ने दोबारा अपना हाथ चाची की टाँगो के बीच रखा तो चाची ने मुस्कुराते हुए हाथ हटा दिया.
"मुँह से" चाची ने कहा
ये सुनकर वो आदमी नीचे को सरका और अपना मुँह उसकी चाची की टाँगो के बीच घुसा दिया. वो चुप खड़ी सोच रही थी के वो आदमी क्या कर रहा है? वो बड़े ध्यान से देख रही थी पर समझ नही आ रहा था के क्या हो रहा है. चाची ने अपनी टांगे उपेर को उठा ली थी और आँखें बंद करके आह आह कर रही थी. ये सब देखकर उसके खुद के जिस्म में भी एक अजीब सी ल़हेर उठ रही थी. उसने चाचा का लंड देखा हुआ था इसलिए उस आदमी का लंड देखकर उसको कुच्छ भी नया ना लगा. पर वो पहली बार किसी पूरी औरत को इस तरह से नंगी देख रही थी और सामने का नज़ारा जैसे उसपर जादू सा कर रहा था.
"आ जाओ" चाची ने कहा तो वो आदमी उपेर को आया. चाची ने अपनी ज़ुबान पर हाथ लगाया और थोडा सा थूक हाथ पर लगाकर लंड पर रगड़ने लगी.
"झुक जा" आदमी ने कहा तो चाची फिर हस पड़ी.
"तुम्हारा भी एक से काम नही चलता. हर बार तुम्हें आगे पिछे दोनो जगह घुसाना होता है, है ना?
"अरे चूत तो तेरी अभी थोड़ी देर पहले ही ली थी ना, अब थोडा गांद का मज़ा भी ले लेने दे जान"
उसकी अब भी समझ नही आ रहा था के क्या हो रहा है और क्या होने वाला है. चाची अब अपने घुटनो पर किसी कुतिया की तरह झुक गयी थी. वो वहाँ खड़ी कभी नीचे लटकी हुई चाची की चूचियो को देखती तो कभी उपेर को उठाई हुई चाची की गांद को. वो आदमी अब लंड पर तेल लगा रहा था और चाची उसको देख कर मुस्कुरा रही थी. तेल लगाने के बाद वो फिर चाची की पिछे आया और लंड चाची की गांद पर रखा. अगले ही पल वो समझ गयी के वो आदमी क्या करने वाला है. जो उस दिन चाचा जी ने किया था वो आदमी भी वैसा ही चाची के साथ करेगा. उसको अपना उस दिन का दर्द याद आ गया और वो काँप उठी. वो उम्मीद कर रही थी के अब चाची भी यूँ ही दर्द से चिल्लाएगी और रोएगी पर उसकी उमीद के बिल्कुल उल्टा हुआ. चाची ने बस एक हल्की से आह भारी और उसके देखते ही देखते लंड पूरा चाची की गांद में घुस गया.
वो मुँह खोले सब देखती रही. वो आदमी अब उसकी चाची की गांद में लंड अंदर बाहर कर रहा था. उसको याद नही था के उस दिन लंड घुसने के बाद चाचा ने उसके साथ क्या किया था पर शायद ऐसा ही कुच्छ किया होगा. आदमी चाची की गांद पर ज़ोर ज़ोर से धक्के मार रहा था और सबसे ज़्यादा हैरत थी के चाची बिल्कुल नही रो रही थी. वो तो बल्कि ऐसे कर रही थी जैसे उसको भी अच्छा लग रहा हो.
थोड़ी देर बाद वो आदमी थकने सा लगा और ज़ोर ज़ोर से लंड उसकी चाची की गांद में घुसाने लगा.
"निकलने वाला है. कहाँ?" आदमी ने पुचछा
"तू कहाँ चाहता है?" चाची ने अपनी आह आह की आवाज़ के बीच पुचछा
"पी ले" आदमी ने कहा तो चाची ने हाँ में सर हिला दिया.
थोड़ी देर अंदर बाहर करने के बाद उस आदमी ने अचानक लंड बाहर निकाल लिया. लंड बाहर निकलते ही चाची फ़ौरन पलटी और उसकी तरफ घूमकर लंड मुँह में लेकर चूसने लगी. देखते ही देखते उस आदमी के लंड में से भी वही सफेद सी चीज़ निकली जो चाचा के लंड से निकलती थी और उसकी चाची के मुँह पर गिरने लगी.
इशान की कहानी जारी है.................................
उसी शाम मैं रश्मि से मिलने के लिए घर से निकला और आधे रास्ते ही पहुँचा था के मेरी कार मुझे धोखा दे गयी. एक पल के लिए मैने सोचा के मेकॅनिक का इंतज़ाम करूँ पर रश्मि से मिलने के लिए मैं लेट हो रहा था इसलिए गाड़ी वहीं साइड में पार्क करके एक टॅक्सी में बैठकर होटेल की तरफ चल पड़ा.
टॅक्सी में बैठे बैठे मेरे मेरे दिमाग़ में फिर सारे ख्याल एक एक करके दौड़ने लगे. शुरू से लेकर आख़िर तक सब कुच्छ एक पहेली जैसा था जो सुलझने का नाम नही ले रहा था और अचानक इन सब के चक्कर में मेरी आराम से चलती ज़िंदगी भी एकदम से तेज़ हो गयी थी. हर एक वो सवाल जिसका जवाब अब तक मुझे मिला नही था मेरे दिमाग़ में आने लगा. कौन थे वो दो लोग जिन्हें मैने उस रात बंगलो में बाहर से देखा पर अंदर जाते ही गायब हो गये, कैसे मारा गया सोनी को और क्यूँ मारा गया, क्या उसकी बीवी ने मारा हो सकता है या कोई बिज़्नेस डील थी और क्यूँ मुझे बार बार उस गाने की आवाज़ सुनाई देती है? ये सब सोचते सोचते मेरे सर में दर्द होने लगा और मैने अपनी आँखें पल भर के लिए बंद की. वो आवाज़ जैसे मेरे आँखें बंद करने का इंतेज़ार कर रही थी और आँखें बंद होते ही फिर वो हल्की सी लोरी की आवाज़ मेरे कानो में आने लगी. जैसे कोई बड़े प्यार से मुझे सुलाने की कोशिश कर रही हो. और हमेशा की तरह उस आवाज़ के मेरे कान तक पहुँचते ही मैं फिर नींद के आगोश में चला गया.
"उठिए साहब, होटेल आ गया" टॅक्सी ड्राइवर की आवाज़ पर मेरी नींद खुली तो देखा के हम लोग होटेल के बाहर ही खड़े थे.
टॅक्सी वाले को पैसे देकर मैं होटेल के अंदर आया और रश्मि के बताए कमरे के सामने पहुँचकर रूम की घंटी बजाई.
कमरा जिस औरत ने खोला उसको देख कर जैसे मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी. उससे ज़्यादा खूबसूरत औरत मैने यक़ीनन अपनी ज़िंदगी में नही देखी थी. गोरी चित्ति, हल्के भूरे बॉल, नीली आँखें, सुडोल बदन, मेरे सामने खड़ी वो लड़की जैसे कोई लड़की नही अप्सरा थी. वो ऐसी थी के अगर उसके इश्क़ में कोई जान भी दे दे तो ज़रा भी अफ़सोस ना हो.
"मिस्टर आहमेद?" उसने मुझसे पुचछा तो मैं जैसे फिर नींद से जागा.
"यस" मैने कहा "रश्मि सोनी?"
"जी हाँ. अंदर आइए" उसने मेरे लिए जगह बनाई और मेरे अंदर आने पर दरवाज़ा बंद कर दिया.
"कुछ लेंगे आप?" वो पुच्छ रही थी पर मैं तो किसी पागल की तरह उसकी सूरत ही देखे जा रहा था. मेरा हाल उस पतंगे जैसा हो गया था जो कमरे में जलती रोशनी की तरफ एकटक देखता रहता है और बार बार जाकर उसी से टकराने की कोशिश करता है. जिस तरह उस रोशनी के सिवा ना तो उस पतंगे को कुच्छ दिखाई देता है और ना सुनाई देता है, ठीक उसी तरह मुझे भी उस वक़्त कुच्छ नही सूझ रहा था.
"कुच्छ लेंगे आप?" उसने अपना सवाल दोहराया तो मैने इनकार में सर हिला दिया. मेरी ज़ुबान तो जैसे उसको देखकर मेरे मुँह में चिपक सी गयी थी. शब्द ही नही मिल रहे थे बोलने के लिए.
उसका हर अंदाज़ा किसी राजकुमारी जैसा था. पता नही उसके पास इतना पैसा था इसलिए या फिर कुदरत ने ही उसको ऐसा बनाया था. उसके बोलने का अंदाज़, चलने का अंदाज़, मुस्कुराने की अदा और लिबास, सब कुच्छ देखकर ऐसा लगता था जैसे मैं किसी रानी के सामने खड़ा हूँ. पर एक बात जो उस चाँद में दाग लगा रही थी वो थी उसके चेहरे पर फेली उदासी जो उसके मुस्कुराने में भी सॉफ झलक रही थी.
"मिस्टर आहमेद सबसे पहले आइ वुड लाइक टू थॅंक यू के आपने मेरे लिए टाइम निकाला" हमारे बैठने के बाद वो बोली "आप शायद सोच रहे होंगे के मुझे आपका नाम और नंबर कहाँ से मिला"
"शुरू में थोड़ा अजीब लगा था" मैने मुस्कुराते हुए कहा "पर फिर मैं जान गया के आपको नंबर तो किसी भी फोन डाइरेक्टरी से मिल सकता है और मेरा नाम उन पोलीस फाइल्स में लिखा हुआ है जो आपको फादर के मौत से रिलेटेड हैं"
"यू आर ए स्मार्ट मॅन" मैने गौर किया के वो अपनी आधी बात इंग्लीश में और आधी हिन्दी में कहती थी.शायद इतने वक़्त से ऑस्ट्रेलिया में थी इसलिए
"रिपोर्ट्स में लिखा था के मरने से पहले मेरे डॅड आपसे ही आखरी बार मिले थे. मैने पता लगाया तो मालूम हुआ के आप शहेर के एक काबिल वकील हैं जो इस वक़्त एक ऐसा रेप केस लड़ रहे हैं जिसको कोई दूसरा वकील हाथ लगाने को तैय्यार ही नही था.
"नही इतना भी काबिल नही हूँ मैं" जवाब में मैने मुस्कुराते हुए कहा "और जहाँ तक मेरा ख्याल है के आप भी अपने पिता के आखरी दीनो के बारे में मुझसे बात करना चाहती हैं"
"मैं भी मतलब?" उसने हैरानी से पुचछा
"आपकी स्टेपमदर, भूमिका सोनी, वो भी मिली थी मुझसे. वो अपने पति के आखरी दीनो के बारे में बात करना चाहती थी" मैने कहा
"तो वो मिल चुकी है आपसे" रश्मि ने इतना ही कहा और कमरे में खामोशी छा गयी. अपनी सौतेली माँ के नाम भर से ही उसके चेहरे के अंदाज़ जैसे बदले थे वो मुझसे छिप नही पाए थे.
"नही आहमेद साहब" थोड़ी देर बाद वो बोली "मैं ये नही चाहती. मैं चाहती हूँ के आप मेरे पिता के क़ातिल को ढूँढने में मेरी मदद करें. कीमत जो आप कहें"
उसकी बात सुनकर मैं जैसे सन्न रह गया. समझ नही आया के वो एग्ज़ॅक्ट्ली चाहती क्या है और मैं क्या जवाब दूँ.
"जी?" मैं बस इतना ही कह सका
"जी हाँ" उसने जवाब दिया "मैं अपने डॅड की मौत को यूँ ही दफ़न नही होने दूँगी. मैं चाहती हूँ के आप मेरी मदद करें और क़ातिल को सज़ा दिलवाएँ. कीमत जितनी आप कहें उतनी और जब आप कहें तब"
उसकी बात सुनकर मैं फिर से खामोश हो गया. वो एक ऐसी औरत थी जिसको इनकार दुनिया का कोई भी मर्द नही कर सकता था, भले वो जान ही क्यूँ ना माँग ले. पर मेरे दिमाग़ का कोई हिस्सा मुझे इस लफदे में पड़ने से रोक रहा था. ये सारा का सारा केस सीबीआइ मुझपर भी थोप सकती थी.
"आइ आम सॉरी पर इस मामले में मैं आपकी कोई मदद नही कर पाऊँगा" मैने बिना उसकी तरफ देखे ही कहा
"सो यू आर रेफ्यूसिंग टू हेल्प मी?" थोड़ी देर बाद वो बोली
"ई आम नोट" मैने कहा "पर मैं एक वकील हूँ कोई जासूस नही. आपको मदद के लिए पोलीस के पास जाना चाहिए और अगर आपको तसल्ली ना ही तो कोई प्राइवेट डीटेक्टिव हाइयर कर लीजिए"
उसकी चेहरे पर फेली उदासी मेरा इनकार सुनकर और बढ़ गयी और मेरा कलेजा मेरे मुँह को आ गया. उस चाँद से चेहरे पर वो गम देखते ही मेरा दिल किया के मैं आगे बढ़कर उसको अपनी बाहों में ले लूँ.
"दे से दट ए वुमन'स विट कॅन डू मोरे दॅन ए मॅन'स लॉजिक." वो बोली "इसलिए मुझे लगता है के अगर मैं और आप साथ मिलका सोचें तो शायद क़ातिल को पकड़ सकते हैं"
मैं कुच्छ ना बोला. मुझे खामोश देखकर उसने दूसरा सवाल किया
"आपको शक है किसी पर?"
जाने क्यूँ पर मैने हाँ में सर हिला दिया
"मुझे भी" वो बोली और फिर ना जाने कैसे पर शब्द मेरे मुँह से मानो अपने आप ही निकलते चले गया
"भूमिका?" मैने पुचछा तो उसने फ़ौरन मेरी तरफ देखा
"आपको कैसे पता के मुझे भूमिका पर शक है?" वो बोली
"क्यूंकी मुझे भी उसी पर शक है" मैं जैसे किसी पिंजरे में बैठे तोते की तरह सब गा गाकर सुना रहा था.
"अपने सही सोचा" वो पक्के इरादे से बोली "मुझे शक नही पूरा यकीन के उस औरत जो अपने आप को मेरी माँ कहती है, उसी ने मेरे डॅडी को मारा है"
"मेरा ख्याल है के आप ग़लत सोच रही हैं" मैने कहा
"पर अभी तो आप कह रहे थे के आपको खुद भी शक है भूमिका पर"
"है नही था" मैने बात बदलते हुए कहा "पर हमारे पास इस बात के सबूत हैं के खून के वक़्त वो कहीं और मौजूद थी"
"लाइक नेयरो फिडलिंग वेन रोम वाज़ बर्निंग" वो हल्के गुस्से से बोली "आप मेरी बात का मतलब नही समझे. मैं ये नही कहती के भूमिका ने खुद ही मेरे डॅडी को मारा है पर मरवाया उसी ने है"
"और किससे मरवाया?" मैने सवाल किया
"उस हैदर रहमान से" जवाब मेरे सवाल के साथी ही आया
"हैदर रहमान?" मैने नाम दोहराया
"हाँ. एक कश्मीरी और मेरी सौतेली माँ का लवर बॉय"
"मुझे पूरा यकीन है के उस हैदर रहमान और भूमिका ने ही मिलके मेरे डॅडी को मारा है" रश्मि ने कहा.
"मेरे ख्याल से हमें इतनी जल्दी किसी नतीजे पर नही पहुँचना चाहिए और इस वक़्त तो मुझे इस हैदर रहमान के बारे में भी कुच्छ नही पता" मैने कहा
"उसके बारे में आपको सब कुच्छ मैं बता दूँगी पर काफ़ी लंबी कहानी है"
"जितनी लंबी और डीटेल में ही उतना ही अच्छा है" मुझे खुद को खबर नही थी के मैं ये सब क्यूँ पुच्छ रहा था.
"मेरे पापा कुच्छ साल पहले घूमने के लिए कश्मीर गये थे, मैं भी साथ थी और वहीं उनकी मुलाक़ात भूमिका और उसके बाप से हुई. इन फॅक्ट जब वो पहली बार उनसे मिले तो मैं साथी ही थी" रश्मि ने कहा
"और आपको भूमिका कैसी लगी?" मैने पुछा
"कैसी लगी?" रश्मि ने कहा "वो और उसका बाप दोनो ही जैल से भागे हुए मुजरिम लगे मुझे और भूमिका लुक्ड सो पाठेटिक"
वो फिर आधी इंग्लीश और हिन्दी में बोल रही थी और भूमिका के बारे में बताते हुए उसके चेहरे पर गुस्से के भाव फिर भड़के जा रहे थे.
"वो एक ऐसी औरत है जो अपनी ज़ुबान से किसी को भी पागल कर सकती है और यही उसने मेरे डॅड के साथ भी किया. पहले मुझे इस बात पर मजबूर कर दिया के मैं घर छ्चोड़कर चली जाऊं और फिर मेरे बेचारे पापा को उनके अपने ही घर से निकाल दिया. शी ईज़ आ विच, एक चुड़ैल है वो और मैं उससे नफ़रत करती हूँ इशान. आइ हेट हर विथ ऑल माइ हार्ट आंड सौल"
बात ख़तम करते करते रश्मि तकरीबन गुस्से में चीखने लगी थी. गुस्सा उसकी आँखों में उतर गया था और उसके हाथों की दोनो मुत्ठियाँ बंद हो चुकी थी. अब तक वो मुझे मिस्टर आहमेद के नाम से बुला रही थी पर गुस्से में उसने मुझे पहली बार इशान कहा था. पर उस गुस्से ने भी जैसे उसके हुस्न में चार चाँद लगा दिए थे. उस वक़्त उसको देख कर मुझे एक पुराना शेर याद आ गया.
जब कोई नज़नीं, बिगड़ी हुई बात पर,
ज़ुलफ बिखेरकर,
यूँ बिगड़ी बिगड़ी सी होती है,
तो ये ख्याल आता है,
कम्बख़्त मौत भी कितनी हसीन होती है
मुझे अपनी तरफ यूँ देखता पाकर वो संभाल गयी और हल्के से शरमाई. उसका वो शरमाना था के मेरे दिल पर तो जैसे बिजली ही गिर पड़ी. और फिर वो हल्के से हस दी.
"मैं मानती हूँ के मैं भी कोई कम नही हूँ" वो हस्ते हुए बोली "गुस्से में ऐसी ही हो जाती हूँ पर क्या करूँ, उस औरत के बारे में सोचती हूँ तो दिमाग़ फटने लगता है जैसे"
"फिलहाल के लिए आप अपनी नफ़रत भूल जाएँ और मुझे सब ठंडे दिमाग़ से बताएँ" मैने कहा तो उसने हाँ में गर्दन हिला दी.
"मोम की डेत के बाद डॅडी काफ़ी परेशान से रहने लगे थे और उनकी तबीयत भी ठीक नही रहती थी" उसने बताना शुरू किया "काफ़ी चाहते थे वो मोम को इसलिए उनके जाने के बाद टूट से गये थे. जब एक बार उनकी तबीयत थोड़ा ज़्यादा खराब हुई तो डॉक्टर्स ने उन्हें कुच्छ दिन के लिए मुंबई से दूर किसी हिल स्टेशन में जाने की सलाह दी. और यही वो मनहूस घड़ी थी जब मैने और डॅडी ने कश्मीर जाने का फ़ैसला किया. वहाँ गुलमर्ग में हमारा एक घर है"
उसने कहा तो मुझे मिश्रा की कही वो बात याद आई के इस लड़की के पास देश के तकरीबन हर बड़े हिल स्टेशन में एक बड़ा सा घर है.
"उस वक़्त डॅडी की हालत काफ़ी खराब थी और वो बहुत ज़्यादा शराब पीने लगे थे और मुझे शक था के वो ड्रग्स के चक्कर में भी पड़ गये थे. मुझे लगा के गुलमर्ग में कुच्छ दिन मेरे साथ रहेंगे अकेले तो वहाँ मैं उनको शराब पीने से रोक सकती हूँ. एक ऐसी ही मनहूस शाम को हम स्रीनगार आए थे और वहीं एक रेस्टोरेंट में हमारी मुलाकात भूमिका और उसके बाप से हुई. उस वक़्त उसकी शादी हैदर रहमान से होने वाली थी"
"शादी?" मैं चौंक पड़ा "भूमिका की?"
"हाँ" रश्मि ने कहा "उस वक़्त उसके बाप और भूमिका ने हम पर ऐसे ज़ाहिर किया जैसे के वो लोग बहुत अमीर हैं पर पापा के साथ उसकी शादी के बाद ही मुझे पता चला वो सब दिखावा था. वो हैदर रहमान किसी नवाब के खानदान से है इसलिए पैसे के चक्कर में पहले भूमिका उससे शादी कर रही थी पर जब मेरे पापा से मिली और ज़्यादा दौलत दिखी तो उसने हैदर रहमान को छ्चोड़ मेरे पापा को अपने जाल में फसा लिया"
"वो प्यार करती थी उस हैदर से?" मैने सवाल किया
"करती थी नही, अब भी करती है" रश्मि ने नफ़रत से कहा.
"तो उसने शादी से इनकार क्यूँ किया?"
"दौलत के आगे प्यार अपना रंग खो देता है मिस्टर आहमेद" रश्मि बोली
"प्लीज़ कॉल मे इशान" मैने हल्के से हस्ते हुए कहा "और वो भूमिका अब भी मिलती है हैदर से?"
"जी हाँ" मेरे अपने नाम से बुलाए जाने की बात पर भूमिका मुस्कुराइ "पर उस वक़्त उसने अपनी खूबसूरती का जाल मेरे पापा के चारों तरफ ऐसा बिच्छाया के वो बेचारे फस गये. हम लोग गुलमर्ग में 4 महीने रहे और उन 4 महीनो में भूमिका म्र्स विपिन सोनी बन चुकी थी. उसके बाद हम लोग वापिस मुंबई आ गये और इस बार हमारे साथ भूमिका भी थी. वो मेरे डॅडी की हर कमज़ोरी जानती थी पर उसके रास्ते में सबसे बड़ी मुश्किल में थी. वापिस आकर उस औरत ने मुझे इतना परेशान कर दिया के मैं अक्सर घर से बाहर ही रहने लगी और एक दिन परेशान होकर घर छ्चोड़कर ही चली गयी"
"मतलब उनकी शादी नही चली?" मैने पुचछा
"शादी तो मेरे ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले ही ख़तम हो चुकी थी. शी ओपन्ली इग्नोर्ड माइ फादर इन हिज़ ओन हाउस व्हेन ही ट्राइड टू मेक हर कंडक्ट इन आ मोर बिकमिंग मॅनर, लाइक आ नोबल लेडी. हर बात पर उनसे लड़ती थी. पापा ने जब देखा के वो उस औरत के सामने कमज़ोर पड़ रहे हैं तो वो फिर से शराब पीने लगे और ज़्यादा वक़्त किताबें पढ़ते हुए बिताते. मेरे ऑस्ट्रेलिया जाने के बाद मुझे कुच्छ फ्रेंड्स के लेटर आते थे के भूमिका मेरे जाने के बाद भी पापा को वैसे ही परेशान करती थी"
क्रमशः............................
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