Bhoot bangla-भूत बंगला
06-29-2017, 11:14 AM,
#14
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--8

गतान्क से आगे.....................

उसी शाम डिन्नर टेबल पर रुक्मणी ने मुझे और देवयानी को फिर से बंगलो के भूत के बारे में कहानी सुननी शुरू कर दी.

"गले पर उंगलियों के नीले पड़ चुके निशान, आँखों में खून उतरा हुआ, चेहरे पर डर और घर अंदर से बंद, इसको देखकर तो कोई बच्चा भी बता सकता है के खून एक भूत ने ही किया है" वो बोली

"रुक्मणी तुम भूल गयी शायद पर सोनी का खून एक खंजर से हुआ था" मैने हस्ते हुए कहा

"तुम्हें कैसे पता के वो खंजर था?" उसने मुझे पुचछा "क्या खंजर मिला कभी? नही मिला ना. यकीन करो इशान वो हथ्यार उस आत्मा का ही था"

"वेल उस केस में तो फाँसी भी नही हो सकती उसको. जो मर गयी अब उसको सरकार दोबारा कैसे मारेगी?" मैं अब भी हस रहा था "कम ओन रुक्मणी. मुझे हैरत होती है के तुम जैसी समझदार औरत इस बकवास पर यकीन करती है"

"मुझसे भी ज़्यादा समझदार लोग करते हैं" उसने रोटियाँ मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा "वेद पुराणो में भी प्रेत आत्माओं का ज़िक्र है. तुम मुस्लिम्स में भी तो है के जिन्न और प्रेत होते हैं"

"श्योर लगती हो?" मैने कहा "मैं एक पूरी रात उस बंगलो में जाकर सो जाता हूँ और देखना मुझे कुच्छ नही होगा"

मेरा इतना कहना ही था के रुक्मणी के मुँह से चीख निकल गयी. देवयानी के चेहरे पर भी ख़ौफ्फ सॉफ दिखाई दे रहा था

"तुम ऐसा कुच्छ नही करोगे इशान" वो लगभग चीखते हुए बोली

"ओके ओके" मैने कहा "मैं तो सिर्फ़ मज़ाक कर रहा था"

थोड़ी देर के लिए हम सब खामोश हो गये. किसी ने कुच्छ ना कहा और चुपचाप खाना खाते रहे. थोड़ी देर बाद खामोशी रुक्मणी ने ही तोड़ी.

"उस घर में जो रोशनी दिखाई देती है, उसके बारे में का कहना है तुम्हारा?" उसने मुझसे पुचछा.

इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नही था. रोशनी वाली बात से मैं भी इनकार नही कर सकता था क्यूंकी वो मैने भी देखी थी, खुद अपनी आँखों से. मैने कोई जवाब नही दिया.

"मेरा यकीन करो इशान. अदिति की आत्मा आज भी भटकती है वहाँ"

"अदिति?" नाम सुनकर मैने रुक्मणी की तरफ देखा

"हाँ. यही नाम था उस औरत का जिसका खून आज से कई साल पहले उस बंगलो में हुआ था" रुक्मणी ने कहा

"वही जिसको उसके पति ने मार दिया था?" मैने पुचछा तो रुक्मणी हाँ में सर हिलाने लगी.

वो हमारे देश के उन हज़ारों बच्चो में से एक थी जिन्हें ज़िंदगी बचपन में ही ये एहसास करा देती है के दुनिया में ज़िंदा रहना कुच्छ लोगों के लिए कितना मुश्किल होता है. उसके माँ बाप बचपन में ही गुज़र गये थे और पिछे रह गयी थी वो अकेली. उस वक़्त वो बमुश्किल 5 बरस की थी. रिश्तेदारों के नाम पर दूर दूर तक कोई नही था सिवाय एक चाचा के जिसने उसको अपने साथ ही रख लिया. उसके चाचा की अपनी कोई औलाद नही थी इसलिए सबने सोचा के अपने भाई की बच्ची को वो अपनी बच्ची की तरह रखेगा. खुद उसको भी अपने चाचा के घर में ही रहना अच्छा लगा. पर जैसे जैसे वो बड़ी होती गयी ये भरम ख़तम होता चला गया. उसके आने के एक साल बाद ही चाचा की यहाँ भी अपनी एक औलाद हो गयी, एक बेटा और उसके बाद उसकी अपने ही चाचा के घर में एक नौकरानी से ज़्यादा हालत नही बची. घर का सारा काम वो अकेली करती. खाना बनाने से लेकर घर की सॉफ सफाई और कपड़े धोना तक उसी के ज़िम्मे था. सुबह से शाम तक वो एक मज़दूर की तरह घर के काम में लगी रहती.

यूँ तो दिखाने को उसके चाचा ने उसको स्कूल में दाखिल करा दिया था और दुनिया वालो के सामने वो उनकी अपनी बेटी थी पर घर की दीवारों के अंदर कहानी कुच्छ और ही थी. वो स्कूल से आती और आते ही उसको घर पर 10 काम तैय्यार मिलते. किताब खोलने का काम सिर्फ़ स्कूल में ही होता था. शाम तक वो इतना तक जाती के बिस्तर पर गिरते ही फिर उसको अपना होश ना रहता. बिस्तर भी क्या था सिर्फ़ घर के स्टोर रूम में पड़ी एक टूटी हुई चारपाई थी. रात भर स्टोर रूम में मच्च्छार उसका खून चूस्ते रहते पर वो इतनी गहरी नींद में होती के उसको इस बात का एहसास तक ना होता.

टॉर्चर क्या होता है ये बात शायद एक ऐसे क्रिमिनल से जिसने पोलीस रेमंड रूम में वक़्त बिताया हो, उससे ज़्यादा वो खुद जानती थी. अक्सर छ्होटी छ्होटी ग़लतियों पर उसको मारा पीटा जाता. कभी कभी तो इस क़दर मारा जाता के वो मार खाते खाते बेहोश हो जाती. कभी कभी उसको 2-3- दिन तक भूखी रखा जाता. अगर ग़लती उसके चाचा चाची की नज़र में बड़ी हो तो कभी कभी उसको गरम लोहे से जलाया भी जाता तो कभी कॅंडल जलाकर उसके जिस्म पर पिघलता हुआ मो'म डाला जाता.

उसके पिता उस इलाक़े के जाने माने आदमी थे और उनका अच्छा कारोबार था. उसका चाचा एक अय्याश आदमी था जिसने कारोबार पर कभी ध्यान नही दिया. उसने तो बल्कि शादी भी एक रंडी से की थी जो उसके बाद एक कोठे से उठकर सीधा महल जैसे घर में आ बैठी थी. इस बात पर दोनो भाइयों में झगड़ा हुआ और इसका नतीजा ये निकला के चाचा को घर छ्चोड़कर जाना पड़ा. पर बड़े भाई की मौत उसके लिए एक वरदान साबित हुई. सारी जायदाद का वो अकेला वारिस साबित हुआ जिसको हड़पने में उसने देर नही लगाई.

जैसे जैसे वो बड़ी होती गयी वैसे वैसे उसको भी इस बात का एहसास हो गया के उसको इस घर में इसलिए रखा गया के जायदाद का और कोई हिस्सेदार ना हो और सारी उसके चाचा के पास ही रहे. उसकी चाची भले एक कोठे से उठकर एक भले घर में आ गयी थी पर उसके अंदर की रांड़ अब भी मरी नही थी. बात बात पर वो उसको ऐसी ऐसी गालियाँ देती के सुनने वालो के कानो में से खून उतर जाए. पर अपने बेटे को वो किसी नवाब से कम नही रखती थी. उसका हर शौक पूरा किया जाता. हर चीज़ उसके लिए लाई जाती और हर ज़िद उसकी पूरी होती और दूसरी तरफ उस बेचारी को 2 वक़्त की रोटी भी मज़दूरी करने के बाद मिलती और वो भी इस तरह जैसे उसपर कोई एहसान किया गया हो.

उसकी इन मुसीबतो में एक मुसीबत और शामिल थी. और वो था उसका चाचा. बचपन से ही उसके चाचा ने उसका ग़लत फयडा उठना शुरू कर दिया था. उसको एक नया खेल सीखा दिया. अक्सर जब घर पर कोई ना होता तो उसका चाचा बंद कमरे में उस ज़रा सी बच्ची के साथ गंदी हरकतें करता.

वो अपनी ज़िंदगी से हार मान चुकी थी. एक ऐसी उमर में जब उसको अपनी ज़िंदगी ज़ीनी शुरू करनी थी, वो थक चुकी थी. उसको लगता था के उसने अपने ज़िंदगी के कुच्छ ज़रा से सालों में एक बहुत लंबा अरसा जी लिया है. दिल में कहीं मौत की ख्वाहिश भी थी पर अपनी जान लेने की हिम्मत उसके अंदर अभी आई नही थी. ज़िंदगी ने वक़्त से बहुत पहले उसको पूरी तरह से समझदार कर दिया था.

स्कूल में भी वो चुप चुप सी रहती. ना वो किसी से बात करती थी और ना ही कोई उसका दोस्त था. सब उसका मज़ाक उड़ते और कहते के वो पागल है. उसके टीचर अक्सर उसके चाचा से इस बारे में बात करते पर वो हमेशा हॅस्कर ये बात टाल देता.

दोस्त के नाम पर बस एक वो ही था उसकी ज़िंदगी में था. वो कौन था ये तो उसको पता नही था पर अक्सर वो उससे मिला करती . वो गाओं में ही कहीं रहता था और उसके स्कूल के बाहर उसका अक्सर इंतेज़ार करता. वो कहीं किसी खेत में अकेले में मिलते और साथ बैठकर घंटो तक बातें करते, साथ में खेलते. उसके साथ बिताए कुच्छ लम्हो में वो जैसे रोज़ाना अपनी पूरी ज़िंदगी जिया करती थी और हर रात अगले दिन उससे मिलने का इंतेज़ार करती थी. उस एक लड़के के चारो तरफ ही उसकी दुनिया जैसे सिमटकर रह गयी थी.

कारोबार जिस तरह से उसके बाप ने संभाल रखा था उसका चाचा ना संभाल पाया. नतीजा ये हुआ के जब तक वो 16 साल की हुई, तब तक सारा कारोबार बिक चुका था और वो लोग एक महेल जैसे घर से निकलकर एक झोपडे में आ बसे थे. उसका चाचा जो कभी पंखे की हवा के नीचे बैठकर दूसरे आदमियों पर हुकुम चलाता था अब खुद मज़दूरी करके अपना घर चला रहा था.

इस सारी मुसीबत में एक वो लड़का ही था जिसको वो अपना कहती थी. वो अजनबी होते हुए भी उसका अपना था जिसके साथ वो खुद को महफूज़ महसूस करती थी.

उस शाम भी वो उस लड़के का इंतेज़ार करती थी. वो उसको कभी अपना नाम नही बताता था. वो पुछ्ति तो हॅस्कर टाल दिया करता. और ना ही कभी उस लड़के ने उससे उसका नाम पुचछा. उनमें बस एक खामोश रिश्ता था जो वो दोनो बखूबी निभा रहे थे.

उसके 10थ के एग्ज़ॅम्स अभी अभी ख़तम हुए थे और स्कूल की छुट्टिया चल रही थी इसलिए स्कूल से आते हुए उस लड़के से मिलने का सिलसिला रुक गया था. फिर भी वो कभी कभी जब घर में कोई ना होता तो उस जगह पर आती जहाँ वो मिला करते थे और जाने कैसे पर वो लड़का हमेशा उसको वहाँ मिलता जैसे उसको पता हो के वो आने वाली है.

आज भी ऐसा ही हुआ. उसका चाचा मज़दूरी पर गया था और उसकी चाची अपनी किसी सहेली के यहाँ गयी हुई थी. उसके चाचा का बेटा पड़ोस के लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने गया हुआ था. वो घर पर अकेली थी इसलिए जल्दी जल्दी घर के सारे काम निपटाकर अपने दोस्त उस लड़के से मिलने पहुँची.

पर आज उसके हाथ मायूसी ही लगी. आज पहली बार ऐसा हुआ था के वो वहाँ पहुँची और वो लड़का नही मिला. एक घिसी हुई शर्ट और पुरानी सी पेंट पहने वो उसी जगह पर बैठी आधे घंटे तक उसका इंतेज़ार करती रही पर जब वो नही आया तो मायूस होकर अपने घर की और चल दी. रास्ते में उसका दिल एक तरफ तो उस लड़के के ना आने की शिकायत करता रहा और दूसरी तरफ वो खुद अपने ही दिल को समझती रही के भला उसको कैसे पता होगा के वो आने वाली है जो वो यहाँ पहुँच जाता.

घर पहुँची तो उसके हाथ पावं काँप गये. उसका चाचा घर पर आ चुका था. वो जानती थी के चाचा को उसका यूँ घर से बाहर भटकना पसंद नही है इसलिए वो समझ गयी के अब उसके साथ मार पीट की जाएगी. पर अब उसको इसका फरक पड़ना बंद सा हो गया था. वो तकरीबन हर दूसरे दिन किसी जानवर की तरह मार खाती. अब ना तो उसके जिस्म को दर्द का एहसास होता था और ना ही उसके दिमाग़ को. वो उसको मार पीट कर थक जाते और वो चुप खड़ी मार खाती रहती.

"कहाँ से तशरीफ़ आ रही है?" उसके चाचा ने उसको देखकर पुचछा. वो एक चारपाई पर लूँगी बाँधे पड़ा हुआ था. चाची अभी तक नही आई थी.

उससे जवाब देते ना बना. वो तो बस खामोश खड़ी मार खाने का इंतेज़ार कर रही थी पर उसको हैरत तब हुई जब चाचा चारपाई से उठा नही.

"दरवाज़ा बंद कर और यहाँ मेरे पास आ" उसने चाचा ने हुकुम दिया

वो ये बात पहले भी कई बार सुन चुकी थी, बचपन से सुनती आ रही थी. दरवाज़ा बंद कर और मेरे पास आ, ये लाइन उसके ज़हेन में बस गयी थी. इस बार भी वो समझ गयी के अब क्या होने वाला है.घर पर उन दोनो के सिवा कोई नही था और इस बात का मतलब वो समझती थी.

वो चुपचाप दरवाज़ा बंद करके अपने चाचा की चारपाई के साथ जा खड़ी हुई. चाचा ने लूँगी खोली और अपना लंड बाहर निकाल दिया. ये लंड वो बचपन से देखती आ रही थी इसलिए कोई नयी चीज़ नही था उसके लिए. वो ये भी जानती थी के अब उसने आगे क्या करना है. आख़िर बचपन से कर रही थी और अब तो वो 18 साल की होने वाली थी. वो चुपचाप चारपाई पर चाचा के पैरों के पास बैठ गयी और लंड अपने हाथ में लेकर हिलाना शुरू कर दिया. हमेशा यही होता था और इतना ही होता था. अकेले होते ही चाचा उसके हाथ में अपना लंड थमा देता जिसे वो तब तक हिलाती जब तक के उसका पानी ना निकल जाता. इससे ज़्यादा हरकत उसके साथ कभी की नही गयी और अब तो उसको इस बात का डर भी लगना बंद हो गया था.

वो चुपचाप बैठी लंड को उपेर नीचे कर रही थी. चाचा अपनी आँखें बंद किए आराम से लेटा था और आआह आह की आवाज़ें निकाल रहा था.

"तेल लगाके हिला" उसने आँखें बंद किए हुए ही बोला

वो ये भी पहले कई बार कर चुकी थी. अक्सर उसका चाचा उसको लंड पर तेल लगाके हिलाने को कहता. वो पास पड़ी एक तेल की शीशी उठा लाई और थोड़ा सा तेल अपने हाथ पर लेकर लंड पर लगाया और फिर से हिलाना शुरू कर दिया. अब वो ये अच्छी तरह सीख चुकी थी. अपने चाचा के मुँह से आती हुई आवाज़ों के साथ वो समझ जाती थी के कब उसको तेज़ी से हिलाना है और कब धीरे. उसकी कोशिश खुद भी यही रहती के वो ये काम अच्छे से कर ताकि जल्दी से चाचा का पानी निकले और उसकी जान च्छुटे.

पर आज उसको हिलाते हिलाते काफ़ी देर हो चुकी थी पर लंड पानी ही नही छ्चोड़ रहा था. चाचा की आवाज़ से वो अंदाज़ा लगा सकती थी के अभी और काफ़ी देर तक पानी नही निकलने वाला है पर मुसीबत ये थी के उसका अपना हाथ अब दुखने लगा था.

चाचा ने अपनी आँखें खोली और एक नज़र उसपर डाली और उसका हाथ लंड से हटा दिया. उसने हैरत से अपने चाचा की तरफ देखा जो अब चारपाई से उठ रहा था. खड़ा होकर चाचा ने उसका हाथ पकड़कर उसको खड़ा किया और झोपडे के साथ दीवार से लगाकर खड़ा कर दिया. उसका चेहरा दीवार की तरफ था और कमर चाचा की तरफ. चाचा पिछे से उसके साथ लग कर खड़ा हो गया. उसका खड़ा हुआ लंड वो अपनी गांद पर महसूस कर रही थी और दिल के कहीं किसी कोने में उसको डर लगने लगा था. उसको समझ नही आ रहा था के चाचा क्या कर रहा है क्यूंकी उसने पहले कभी ऐसा नही किया था. आजतक तो वो सिर्फ़ लंड हिलाया करती थी पर आज कुच्छ और भी हो रहा था.

उसको झटका तब लगा जब चाचा का एक हाथ उसकी घिसी हुई पुरानी पेंट के उपेर से उसकी टाँगो के बीच आ गया.

"चाचा जी" उसने सिर्फ़ इतना ही कहा

"डर मत" चाचा ने धीरे से कहा "कुच्छ नही होगा"

भले ये बात धीरे से कही गयी थी पर उसके अंदर के जानवर को उसने सुन लिया था. वो जानती थी के अगर अब उसके एक शब्द भी बोला तो उसके फिर बुरी तरह से मारा पीटा जाएगा इसलिए वो खामोशी से खड़ी हो गयी. उसके पिछे खाड़ा चाचा थोड़ी देर उसकी जाँघो के बीच अपना हाथ फिराता रहा और पिछे से लंड उसकी गांद पर रगड़ता रहा. फिर उस वक़्त तो हद ही हो गयी जब उसने पेंट के हुक्स खोलकर पेंट को नीचे खींच दिया और उसको नीचे से नंगी कर दिया. वो शरम से जैसे वहीं गड़ गयी और आँखो से आँसू आ गये. वो एक लड़की थी और यूँ अपने ही चाचा के सामने नंगी कर दिए जाना उसके लिए मौत से भी कहीं बढ़कर था.

चाचा उससे एक पल के लिए दूर हुआ. उसने आँख बचाकर देखा तो वो खड़ा अपने लंड पर और भी तेल लगा रहा था. लंड पर अच्छी तरह तेल लगाने के बाद वो फिर उसके नज़दीक आया और अपने घुटने मॉड्कर लंड को उसकी गांद के बराबर लाया. चाचा का लंड उसको एक पल के लिए अपनी गांद पर महसूस हुआ और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती, एक दर्द की तेज़ लहर उसके जिस्म में उठ गयी. उसकी गांद के अंदर एक मोटी सी चीज़ घुसती चली गयी और वो जानती थी के ये उसके चाचा का लंड है. दर्द की शिद्दत जब बर्दाश्त से बाहर हो गयी तो वो चीख पड़ी और फिर उसके बाद उसकी आँखों के आगे अंधेरा छाता चला गया.

वर्तमान मे....................

उस सॅटर्डे सुबह मेरी आँख फोन की घंटी से खुली. ऑफीस मैने जाना नही था इसलिए सुबह के 9 बजे भी पड़ा सो रहा था.

"हेलो" मैने नींद से भारी आवाज़ में कहा.

"ई आम सॉरी. मैं नही जानती थी के आप देर तक सोते हैं वरना लेट फोन करती. ई आम सॉरी टू डिस्टर्ब यू" दूसरी तरफ से किसी औरत की आवाज़ आई. वो आवाज़ इतनी खूबसूरत थी के मुझे लगा के शायद मैं अब भी ख्वाब में ही हूँ. एकदम ठहरी हुई जैसे एक एक लफ्ज़ को बहुत ही ध्यान से उठाके ज़ुबान पर रखा जा रहा हो के कहीं लफ्ज़ टूट ना जाए. उस आवाज़ की कशिश ऐसी थी के अगले ही पल मेरी नींद पूरी तरह खुल चुकी थी.

"हेलो?" मैने कुच्छ नही कहा तो आवाज़ दोबारा आई.

"यॅ हाई" मैं जैसे एक बार फिर नींद से जगा "नही कोई बात नही. मैं वैसे भी उठने ही वाला था. कहिए"

"इशान आहमेद?" उसने मेरा नाम कन्फर्म किया

"जी हां मैं ही बोल रहा हूँ"

"आहमेद साहब मेरा नाम रश्मि है. रश्मि सोनी" कहकर वो चुप हो गयी

एक पल के लिए मुझे दिमाग़ पर ज़ोर डालना पड़ा के ये नाम मैने कहाँ सुना है और दूसरे ही पल सब ध्यान आ गया. रश्मि सोनी, विपिन सोनी की बेटी.

"हाँ रश्मि जी कहिए" मैने फ़ौरन जवाब दिया

"मेरा ख्याल है के आपने अब तक मेरा ज़िक्र तो सुना ही होगा" उसने दोबारा कुच्छ कहने से पहले कन्फर्म करना चाहा.

"जी हाँ. आप मिस्टर. विपिन सोनी की बेटी हैं. राइट?" मैने कहा. दिल ही दिल में मुझे हैरानी हो रही थी के उसने मुझे फोन क्यूँ किया.

"राइट" दूसरी तरफ से आवाज़ "मैं आपसे मिलना चाह रही थी. क्या वक़्त निकल पाएँगे आप?"

मुझे कुच्छ समझ नही आ रहा था वो मुझसे मिलना क्यूँ चाहती है.

"जी किस सिलसिले में?" मैने पुचछा

"मिलकर बताऊं तो ठीक रहेगा?"

"श्योर" मैने कहा "आप मंडे मेरे ऑफीस में ....."

"मैं अकेले में मिलना चाह रही थी" उसने मेरी बात काट दी

"तो आप बताइए" मैने कहा तो एक पल के लिए वो चुप हो गयी.

"आप आज शाम मेरे होटेल में आ सकेंगे? डिन्नर साथ में करते हैं"

उसके फोन रखने के काफ़ी देर बाद तक मैं यही सोचता रहा के वो मुझसे मिलना क्यूँ चाहती है. मैने हां तो कर दिया था पर सोच रहा था के क्या मुझसे उससे मिलना चाहिए? मैं ऑलरेडी इस मर्डर केस में काफ़ी इन्वॉल्व्ड था और ज़्यादा फसना नही चाहता था. सीबीआइ अब इस केस को हॅंडल कर रही थी और क्यूंकी मैं वो शख़्श था जो उसके मर्डर की रात उसके घर में गया था, इस बात को लेकर सीबीआइ वाले मुझे भी लपेट सकते थे. पर इन सब बातों के बावजूद मैने उसको हाँ कह दी थी और उस रात डिन्नर उसके साथ करने की बात पर हाँ कह दी थी.

सबसे ज़्यादा ख़ास बात जो मुझे लगी वो थी रश्मि की आवाज़. उस आवाज़ से ही इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता था के उसकी मालकिन कितनी खूबसूरत हो सकती है. उस आवाज़ में वही ठहराव था, वही खूबी थी, वही मीठास था जू..............

जू .............

और मेरा दिमाग़ घूम सा गया. उस आवाज़ में वही मीठास था जो उस गाने की आवाज़ में था जिसे मैं तकरीबन हर रात सुनने लगा था. अगर ध्यान से सुना जाए तो ये दोनो आवाज़ें बिल्कुल एक जैसी थी. और दोनो ही आवाज़ों को सुनकर मेरा दिमाग़ में एक सुकून सा आ जाता है.

फिर अपनी ही बात सोचकर मुझे हसी आ गयी. रश्मि सोनी ऑस्ट्रेलिया में थी तो यहाँ मेरे कान में गाना कैसे गा रही हो सकती है?

"ये अदिति केस के बारे में तू क्या जानता है?" शाम को रश्मि से मिलने जाने से पहले मैने मिश्रा को फोन किया. मैने सोचा तो ये था के उसको बता दूँगा के मैं रश्मि से मिलने जा रहा हूँ पर फिर मैं ये सोचकर चुप हो गया के पहले उससे मिलके ये जान लूँ के वो मुझसे मिलना चाहती क्यूँ है. थोड़ी देर इधर उधर की बातें करके मैं फोन रखने ही वाला था के मुझे बंगलो 13 में हुए पहले खून की बात याद आ गयी.

"कौन अदिति?" मिश्रा ने पुचछा

"अरे वही जिसका बंगलो नो. 13 में खून हुआ था, सोनी से पहले" मैने कहा

"अच्छा वो" वो अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालता हुआ बोला "वो तो काफ़ी पुरानी बात है यार. तब तो शायद मैं पोलीस में भरती हुआ भी नही था. तू क्यूँ जानना चाहता है"

"ऐसे ही. क्यूर्षसिटी" मैने कहा

"देख भाई ज़्यादा तो मैं कुच्छ जानता नही" उसने कहा "पोलीस फाइल्स में इतना ही पढ़ा है के ये बंगलो पहले उसके पति का ही था. जब उसने अपनी बीवी को मार दिया तो उसको जैल हो गयी और उसके घरवालों ने बंगलो काफ़ी सस्ते में बेच दिया"

"और अदिति. उसके बारे में?" मैने फिर पुचछा

"ज़्यादा कुच्छ नही. यही के वो एक बहुत ग़रीब घर से थी, माँ बाप उसके मार गये और थे और किसी रिश्तेदार ने ही पाला था. नौकरी की तलाश में शहेर आई थी और यहाँ उसने जिसके यहाँ नौकरी की उसी से शादी कर ली. तो वो भी ग़रीब से अमीर हो गयी"

"लव मॅरेज?" मैने पुचछा

"हाँ शायद" मिश्रा बोला

"और उसके पति ने बताया के उसने खून क्यूँ किया था?"

"हाँ उसके स्टेट्मेंट में था. खून के बाद उसने खुद ही पोलीस को सरेंडर कर दिया था. उसका कहना था के उसकी बीवी का कोई आशिक़ भी था जो उसका कोई बचपन का दोस्त था. पहले तो उसको अपनी बीवी पर शक था पर फिर उस दिन उसने उन दोनो को बिस्तर में रंगे हाथ पकड़ लिया. लड़का तो भाग गया और गुस्से में उसने अपनी बीवी का खून कर दिया" मिश्रा बोला

"और वो लड़का मिला कभी?"

"नही" मिश्रा बोला "फाइल्स में तो यही लिखा है के पोलीस ने ढूँढने की कोशिश की पर उन्हें कोई सुराग नही मिला. अब कितना ढूँढा था ये मुझे भी नही पता. वैसे तुझे इतना इंटेरेस्ट क्यूँ है इसमें?"

"कुच्छ नही यार. ऐसे ही इतनी कहानियाँ उड़ती हैं तो मैने सोचा के मैं बंगलो के उपेर एक किताब लिख दूँ" मैं मज़ाक करता हुआ बोला

"अगर ये बात है तो अकॅडमी ऑफ म्यूज़िक चला जा" उसने भी मज़ाक करते हुए कहा

"अकॅडमी ऑफ म्यूज़िक?"

"हाँ. पोलीस फाइल्स में लिखा है के वो वहीं पर बच्चो को म्यूज़िक सिखाया करती थी" मिश्रा बोला "कहते हैं के वो गाती बहुत अच्छा थी. आवाज़ में जादू था उसकी. जब गाती थी तो उसकी आवाज़ सुनकर परेशान आदमी को सुकून मिल जाए, आदमी बस जैसे कहीं खो जाए और रोता हुआ बच्चा सो जाए"

लड़की की कहानी.......................................................

"तुम इतने दिन से क्यूँ नही आए थे?" वो फिर उस लड़के के साथ बैठी थी और उससे सवाल कर रही थी.

"कुच्छ काम आ गया था. तुमने मेरा इंतेज़ार किया था?" लड़के ने सवाल किया

"हां और नही तो क्या?" वो बोली " अभी भी बस यूँ ही आई हूँ थोड़ी देर के लिए. चाची कभी भी वापिस आ सकती हैं. ज़्यादा देर नही रुक सकती"

वो बड़ी मुस्किल से घर से निकल पाई थी. पिच्छले 1 महीने से वो तकरीबन रोज़ाना ही उस जगह पर आती थी और थोड़ी देर इंतेज़ार करके चली जाती थी पर वो लड़का उससे मिलने नही आ रहा था. आज जब उसको वहाँ खड़ा देखा तो जैसे उसकी जान में जान आई थी.

"तुम्हारा स्कूल बंद होने से काफ़ी मुश्किल हो गयी है. वरना आराम से मिल लेते थे" वो लड़का कह रहा था

"तुम्हारा भी मुझसे मिलने का दिल करता है?" वो मुस्कुराते हुए बोली

"हाँ और नही तो क्या यहाँ मैं क्यूँ आता हूँ?"

"अच्छा तो इतने दिन से आए क्यूँ नही थे झूठे?" वो ऐसे इठला रही थी जैसे कोई नयी दुल्हन अपनी पति के सामने नखरे करती हो

"कहा ना कुच्छ काम आ गया था वरना तुमसे मिलने तो मैं रोज़ आता"

"इतनी अच्छी लगती हो मैं तुम्हें?"

लड़के ने हाँ में सर हिलाया.

"क्या अच्छा लगता है तुम्हें मुझ में?" उसने फिर सवाल किया

"सब कुच्छ" लड़के ने कहा

"जैसे?" उसका दिल कर रहा था के वो लड़का उसकी तारीफ करे

"सबसे ज़्यादा तुम्हारी बातें. मेरा दिल करता है के तुम्हारे सामने बैठकर तुम्हारी बातें सुनता रहूं"

"बस मेरी बातें?" वो बोली

"और तुम्हारे हाथ, तुम्हारी आँखें, तुम्हारा चेहरा" लड़का मुस्कुरा कर कह रहा था

"मेरा चेहरा?" उसने पुचछा

"हां और नही तो क्या. तुम बहुत सुंदर हो. बस अगर थोडा सा बन संवार जाओ तो गाओं में सबसे सुंदर लगोगी"

"वो कैसे होगा. मेरा पास तो और कपड़े हैं भी नही" वो अपने घिसे हुए कपड़ो की तरफ इशारा करते हुए कह रही थी

"तुम जैसी भी हो मुझे पसंद हो" लड़के ने कहा तो वो हस पड़ी

"झूठे" उसने कहा "तुमने तो मुझे आज तक अपना नाम नही बताया"

"वक़्त आने पर बता दूँगा और उसी दिन मैं तुमसे तुम्हारा नाम भी पुच्हूंगा" लड़के ने कहा

"और वक़्त कब आएगा?" वो दिल ही दिल में चाहती थी के लड़का उससे कह दे के वक़्त अभी आ गया है.

"वक़्त तब आएगा जब मैं और तुम्हें यहाँ से बहुत दूर शहेर चले जाएँगे. सबसे दूर. सिर्फ़ तुम और मैं" लड़के ने कहा तो उसके खुद के दिल में भी उम्मीद की शमा जल उठी.

"और वहाँ क्या करेंगे?" उसने कहा

"वही रहेंगे. अपना घर बनाएँगे और हमेशा साथ रहेंगे" वो लड़का कह रहा था और उसको ये सब एक सपना लग रहा था. वो हमेशा इसी सपने में रहना चाहती थी उसके साथ.

क्रमशः.........................
Reply


Messages In This Thread
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला - by sexstories - 06-29-2017, 11:14 AM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,511,688 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 545,563 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,236,281 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 934,756 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,660,002 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,086,349 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,960,111 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,085,402 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,043,731 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 285,917 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)