RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--7
गतान्क से आगे.............
उसी शाम मैं शहेर के एक छ्होटे से रेस्टोरेंट में डिन्नर टेबल पर मिश्रा के सामने बैठा था.
"तबीयत कैसी है तेरी अब?" उसने मुझसे पुचछा
"मुझे कुच्छ नही हुआ है यार. बिल्कुल ठीक हूँ मैं. भला चंगा" मैं मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"अबे तो क्या तू पेट से है जो कल रात बेहोशी की हालत में हॉस्पिटल पहुँच गया था?"
उसकी बात सुनकर मैं हस पड़ा.
"वो छ्चोड़ "मैने कहा "बाद में बताता हूँ. सोनी मर्डर केस में बात कुच्छ आगे बढ़ी"
"ना" उसने इनकार में सर हिलाया "वही ढाक के तीन पात. वैसे भूमिका सोनी आजकल शहेर में है"
"वो यहाँ क्या कर रही है?" मैने सवाल किया
"मेरे कहने पे है" मिश्रा ने जवाब दिया "मैने उसको कहा है के जब तक मर्डर इन्वेस्टिगेशन चल रही है, वो कुच्छ दिन तक यहीं रहे"
"उससे क्या होगा?" मैने मिश्रा की तरफ देखते हुए कहा
"अब देख यार वो जो भी है, मर्डर का एक मोटिव तो था ही उसके पास. भले मैं उसपर शक नही करता पर इस बात से इनकार मैं भी नही कर सकता के खून करने की सबसे बढ़ी वजह उसकी के पास थी" मिश्रा एक साँस में बोल गया. उसके चेहरे से ही मालूम पड़ रहा था के भूमिका के बारे में ऐसी बात करना उसको अच्छा नही लग रहा था.
"मोटिव? पैसा?" मैने पुचछा
"और पैसा भी थोड़ा बहुत नही मेरे भाई, इतना जितना के तू और मैं सारी ज़िंदगी अपनी घिसते रहें तो भी नही कमा सकते" वो बोला
"मैं सुन रहा हूँ" मैं उनकी बात पर गौर कर रहा था
"देख विपिन सोनी एक खानदानी अमीर था. बहुत बड़ा बिज़्नेस एंपाइयर था उसका एक ज़माने में और खानदानी ज़मीन भी" मिश्रा ने कहा
"ह्म्म्म्म "मैने हामी भरी
"पिच्छले कुच्छ सालों में उसने अपना बिज़्नेस समेटना शुरू कर दिया था. फॅक्टरीस और स्टॉक वगेरह सब बेचकर उसने उस सारे पैसे की ज़मीन खरीद कर छ्चोड़ दी थी" मिश्रा ने कहा
"कोई वजह?" मैने पुचछा
"जहाँ तक मुझे पता चला है उससे तो यही लगता है के बीवी की मौत के बाद उसका बिज़्नेस से ध्यान हट गया था. कुच्छ टाइम बाद बिज़्नेस लॉस में जाने लगा तो उसने एक दूसरी तरह की इनवेस्टमेंट सोची. अब ज़मीन से ज़्यादा अच्छी और फ़ायदे वाली इनवेस्टमेंट कौन सी हो सकती है" मिश्रा ने बात जारी रखी
"फिर? " मैने कहा
"तो मतलब ये के जब वो मरा तो अपना बिज़्नेस तो वो पूरी तरह बेच चुका था और सारे पैसे की ज़मीन खरीद ली थी. उसको उसने अपनी आखरी विल में अपनी दूसरी बीवी यानी भूमिका और बेटी में बाट रखा था"
"ओके" मैं बोला
"उसकी एक इन्षुरेन्स पॉलिसी थी. विल के हिसाब से इन्षुरेन्स का सारा पैसा भूमिका को मिलेगा या शायद मिल भी चुका हो"
"कितना?" मैने पुचछा
"25 करोड़" मिश्रा मुस्कुराता हुआ बोला. मेरा मुँह खुला का खुला रह गया
"25 करोड़ ?" मैं सिर्फ़ इतना ही कह सका
"आगे सुनता रह बेटे" मिश्रा बोला "विल के हिसाब से भूमिका को इस पॉलिसी की सारा पैसा, मुंबई में एक आलीशान घर और एक बॅंक अकाउंट में जमा सारे पैसे मिले. घर, पॉलिसी और कॅश सब मिलके पति की मौत की बात भूमिका की झोली में तकरीबन 40 करोड़ आए"
"वाउ" मेरा पहले से खुला मुँह और खुल गया "मैने तो आज तक ज़िंदगी में 1 लाख भी कभी एक साथ नही देखे यार"
"आगे तो सुन" मिश्रा बोला "इसके अलावा सोनी के पास और जो कुच्छ भी था उसने अपने बेटी के नाम कर दिया था"
"और वो और कुच्छ क्या था?" मैं सुनने को बेताब था
"ख़ास कुच्छ नही. मुंबई में 3 कीमती बुगलोव, लोनवला में एक फार्म हाउस, माहरॉशट्रे के कई हिस्सो में फेली हुई ज़मीन, गोआ में एक घर, देश के तकरीबन हर बड़े हिल स्टेशन और हर बड़े बीच रिज़ॉर्ट में एक बड़ा सा घर और सोनी के बाकी अकाउंट्स में जमा सारा पैसा" मिश्रा ने बात पूरी की.
"और ये सब कुल मिलके कितना होता है?" मैने सवाल किया
"एग्ज़ॅक्ट तो मुझे आइडिया नही है पर सोनी के वकील से मेरी बात हुई थी. उसने कहा के ये सब मिलके 700 करोड़ के उपेर है"
मेरे गले का पानी जैसे गले में ही अटक गया.
"तो बात ये है मेरे भाई के अगर 700 करोड़ के मुक़ाबले छ्होटी ही सही पर 40 करोड़ एक बहुत बड़ी रकम है इसलिए भूमिका भी सस्पेक्ट्स की लिस्ट में आती है. इसलिए मैने उसको यहाँ रहने को कहा है" मिश्रा बोला पर मैं तो उसकी बात जैसे सुन ही नही रहा था. मेरा दिमाग़ तो 700 करोड़ में अटका हुआ था.
"यार मिश्रा अगर मुझे पता होता के वो साला सोनी इतना बड़ा अमीर है तो मैं भी उसकी थोड़ी सेवा कर लेता. शायद एक दो करोड़ मेरे नाम भी छ्चोड़ जाता" मैने कहा तो हम दोनो हस पड़े.
डिन्नर ख़तम करके हम दोनो रेस्टोरेंट से निकले. मैं अपनी कार की तरफ बढ़ ही रहा था के पलटा और पोलीस जीप में बैठ चुके मिश्रा से कहा
"यार मिश्रा एक बात हाज़ाम नही हो रही. अगर उसके पास पहले से इतना पैसा था तो इतनी बड़ी इन्षुरेन्स पॉलिसी लेके का क्या तुक था? बिज़्नेस वो बेच चुका था इसलिए लॉस में सब कुच्छ गवा देने कर डर ही नही और वैसे भी 700 करोड़ लॉस में ख़तम होते होते तो उसकी बेटी भी बुद्धि हो जाती. तो इतनी बड़ी इन्षुरेन्स पॉलिसी?"
"बड़े लोगों की बड़ी बातें" मिश्रा ने मुस्कुराते हुए कहा और जीप स्टार्ट करके चला गया.
मैं भी अपनी कार निकालकर घर की तरफ बढ़ा. घड़ी की तरफ नज़र डाली तो शाम के 8 ही बजे था. मैं घर पहुँचने ही वाला था के मेरे फोन की घंटी बजने लगी.
"हेलो इशान" मैने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से एक औरत की आवाज़ आई.
"जी बोल रहा हूँ. आप?" मैने कार साइड में रोकते हुए कहा
"मैं भूमिका बोल रही हूँ इशान" दूसरी तरफ से आवाज़ आई "भूमिका सोनी"
उसका यूँ मुझे फोन करना अजीब लगा. सबसे अजीब बात थी के उसको मेरा नंबर कहाँ से मिला
"हाँ भूमिका जी कहिए" मैने मुस्कुराते हुए कहा
"मैं सोच रही थी के क्या आप मुझसे मिल सकते हैं?" कुच्छ काम था आपसे" उसने जवाब दिया
"हां ज़रूर. कहिए कब मिलना है?" मैने पुचछा
"अभी. क्या आप मेरे होटेल आ सकते हैं?"
मैं फिर घड़ी की तरफ नज़र डाली. टाइम तो था अभी.
"श्योर. किस होटेल में रुकी हैं आप?"
तकरीबन आधे घंटे बाद मैं शहर के सबसे बड़े होटेल के एक कमरे में भूमिका सोनी के सामने बैठा हुआ था.
पिच्छली बार जिस भूमिका को मैने देखा था और अब जो भूमिका मेरे सामने बैठी थी उन दोनो में ज़मीन आसमान का फरक था. जिसको मैने पोलीस स्टेशन में देखा था वो एक पति की मौत के गम में डूबी हुई औरत थी और अब जो मेरे सामने बैठी थी वो एक सो कॉल्ड हाइ सोसाइटी वुमन थी जिसके एक हाथ में शराब का ग्लास था. जो पिच्छली बार मिली थी वो एक सीधी सादी सी मिड्ल क्लास औरत लगती थी और जो अब मिल रही थी उसके हर अंदाज़ में पैसे की बू आ रही थी. जिस म्र्स सोनी से मैं पहले मिला था वो एक सारी में लिपटी हुई एक विधवा थी जो अपने पति की मौत के बारे में सुनकर पोलीस स्टेशन में ही बेहोश हो गयी थी और अब जो मेरे सामने बैठी थी वो एक वेस्टर्न आउटफिट में लिपटी हुई एक करोड़ पति औरत थी जिसके चेहरे पर गम का कोई निशान नही था.
"पैसा आ जाए तो इंसान के चेहरे पर अपने आप ही नूर आ जाता है" उसको देखकर मैने दिल ही दिल में सोचा
"क्या पिएँगे?" उसने मुझसे पुचछा "विस्की, वाइन, बियर?"
"जी मैं शराब नही पीता" मैने इनकार में सर हिलाते हुए कहा
"ओह हां" उसको जैसे कुच्छ याद आया "आप तो मुस्लिम हैं. क्या इसलिए?"
"जी कुच्छ इसलिए भी और कुच्छ इसलिए के मुझे एक ऐसी चीज़ पीने का मतलब समझ नही आता जो इंसान को इंसान से बंदर बना दे" मैने मुस्कुराते हुए जवाब
"वेल वो तो डिपेंड करता है के आप कैसे पीते हैं और कितनी पीते हैं" उसने कहा
"खैर वो छ्चोड़िए म्र्स सोनी...."मैने कहना शुरू ही किया था के उसने मेरी बात काट दी
"कॉल मी भूमिका"
"ओके" मैने कहा "मुझे कैसे याद किया भूमिका"
"कोई वजह नही है" उसने कहा "आपसे काफ़ी वक़्त से मिली नही थी और आप वो शख्स हैं जो मेरे पति से उनके आखरी वक़्त में मिले थे और शायद अकेले शख्स हैं जिनसे मेरे पति ने अपने आखरी दीनो में बात की थी. तो मैने सोचा के शायद आप मुझे उनके आखरी कुच्छ दीनो के बारे में बता सकें"
मुझे उसकी बात समझ नही आई और जिस तरह से मैने उसकी तरफ देखा उससे वो समझ गयी के मुझे उसकी बात पल्ले नही पड़ी
"यादें यू नो" उसने कहा "मैने अपनी पति के आखरी दीनो की यादें अपने साथ रखना चाहती हूँ"
उसकी बात सुनकर मैने बड़ी मुश्किल से अपनी हसी रोकी. इस औरत को देखकर तो कोई बेवकूफ़ ही कहेगा के इसको अपने पति की मौत का गम है. और एक बार फिर उसने मेरे चेहरे को पढ़ लिया.
"मैं जानती हूं तुम क्या सोच रहे हो इशान" उसने कहा "यही ना के मुझ देखकर तो कोई बेवकूफ़ ही कहेगा के मुझे अपने पति की मौत का गम है. पर वो कहते हैं के जाने वाला तो चला गया. अब उनके पिछे रोते बैठकर मैं कौन सा सावित्री की तरह यम्देव से उनको वापिस ले आओंगी. क्यूँ है ना?"
मैं हां में सर हिलाया
"वैसे वो इनस्पेक्टर, क्या नाम था उसका ...... "
"मिश्रा" मैने याद दिलाया
"हाँ मिश्रा" उसने कहा "कुच्छ सुराग मिला उसको मिस्टर सोनी के खून के बारे में"
"कुच्छ नही" मैने जवाब दिया "ना कुच्छ अब तक पता चला है और सच मानिए भूमिका जी तो जिस हिसाब से सब कुच्छ हो रहा है तो उससे तो मुझे लगता ही नही के मिस्टर सोनी का खूनी कभी पकड़ा जाएगा"
"मुझे भी ऐसा ही लगता है" उसने अपने खाली हो चुके ग्लास में और वाइन डाली "और शायद आपको पता नही के मैने अपने पति के खूनी के बारे में कोई भी जानकारी देने वाले को 10 लाख का इनाम देने की बात न्यूसपेपर में छपवाई है"
ये सच एक नयी बात थी जिसका मुझे कोई अंदाज़ा नही था
"नही इस बारे में मुझे कोई खबर नही थी" मैने कहा
"वेल अगर 10 लाख का लालच देकर भी कुच्छ पता ना चला तो मैं भी यही कहूँगी के कभी कुच्छ पता नही चलेगा" उसने एक लंबी साँस ली
"शायद" मैने कहा "आपके पति की मौत हुए 2 महीने से ज़्यादा हो गये हैं और हर गुज़रते दिन के साथ खूनी के पकड़े जाने की चान्सस भी कम हो रहे हैं"
"फिर भी मिस्टर सोनी की बेटी को लगता है के वो अपने बाप के खूनी को सज़ा ज़रूर दिलवाएगी" उसने हल्के से हस्ते हुए कहा. मैं चौंक पड़ा
"रश्मि?" मैने पुचछा
"हां" भूमिका बोली "अभी ऑस्ट्रेलिया में ही है वो. कल मेरी फोन पर बात हुई थी. जब तक हम उसको ढूँढ कर उसके बाप की मौत के बारे में बताते तब तक तकरीबन एक महीना गुज़र चुका था. अब वो अगले हफ्ते आ रही. अब वो आगे हफ्ते आ रही है. कह रही थी के हर हाल में अपनी बाप की मौत का बदला लेगी.
"मुझे लगता तो नही के उनको कोई ख़ास कामयाबी मिलेगी" मैने कहा
"आप उसको जानते नही आहमेद साहब. अपने बाप की तरह ज़िद्दी है वो और उनकी तरह ही होशियार भी. जो एक बार करने की ठान लेती है तो फिर चाहे ज़मीन फट पड़े या आसमान गिर जाए, वो करके ही दम लेती है" भूमिका ने वाइन का ग्लास नीचे रखते हुए कहा.
अगले दिन मैं ऑफीस में आके बैठा ही था के प्रिया मेरे सामने आ बैठी.
"सर एक बात करनी थी" उसने मुझसे पुचछा
"हां बोल" मैने सामने रखी एक फाइल पर नज़र डालते हुए कहा. उसने जब देखा के मेरा ध्यान फाइल की तरफ ही है तो आगे बढ़कर फाइल मेरे सामने से हटा दी.
"ऐसे नही. सिर्फ़ मेरी बात सुनिए फिलहाल. काम बाद में करना"
"अच्छा बोल" मैने भी अपने हाथ से पेन एक साइड में रख दिया
"और प्रॉमिस कीजिए आप मेरे हर सवाल का जवाब पूरी ईमानदारी से देंगे और मुझे यहाँ से जाके अपना काम करने को नही कहेंगे"
"क्यूँ ऐसा क्या पुच्छने वाली है तू?"
"आप प्रॉमिस कीजिए बस" उसने बच्ची की तरह ज़िद करते हुए कहा
"अच्छा बाबा प्रॉमिस. अब बोल और जल्दी बोल मुझे थोड़ी देर में कोर्ट के लिए भी जाना है" मैने घड़ी पर एक नज़र डालते हुए कहा
"आप कहते हो ना के मुझे पहले एक लड़की की तरह लगना पड़ेगा उसके बाद ही मुझे कोई लड़का मिलेगा...... "उसने बात अधूरी छ्चोड़ दी
"हाँ तो .... " मैने सवाल किया.
"तो ये के मैं तो हमेशा से ऐसी ही रही हूँ तो मुझे तो कुच्छ पता नही और दोस्त भी नही हैं मेरे कोई एक आपके सिवा. तो मैने सोचा के आपसे ही मदद ली जाए." उसने खुश होते हुए कहा
"किस तरह की मदद?" मैने सवाल किया
"अरे यही के लड़कियों वाले स्टाइल्स कैसे सीखूं, मेक उप वगेरह और दूसरी चीज़ें" उसने कहा
"तुझे नही लगता के तुझे ये बातें अपनी माँ से करनी चाहिए?" मैने कहा
"माँ के साथ वो बात नही आएगी जो एक दोस्त के साथ आती है. आपके साथ मैं एकदम खुलकर बात कर सकती हूँ पर अपनी माँ के साथ इतना फ्री नही" उसने कहा तो मैं भी मुस्कुरा उठा
"अच्छा तो बोल के क्या पुच्छना है?" मैने कहा
"सर ये बताइए के लड़के लड़कियों में क्या देखते हैं?" उसने सवाल किया तो मैं चौंक पड़ा
"ये किस तरह का सवाल था?"
"बताइए ना" उसने कहा
"पहले तू ये बता के इस तरह के सवाल तेरे दिमाग़ में आए कैसे?"
"वो मैं शादी में गयी थी ना?" उसने कहा
"हाँ तो?"
"वहाँ मेरी एक कज़िन मुझे मिली और शादी में एक लड़का हम दोनो को पसंद आया. मेरी कज़िन ने मुझसे शर्त लगाई के वो उस लड़के को खुद पटाएगी और यकीन मानिए सर, वो बहुत छ्होटी सी है हाइट में और बहुत दुबली पतली है. लड़कियों वाली कोई चीज़ नही है उसके पास फिर भी वो लड़का उससे फस गया. इसलिए पुच्छ रही हूँ"
उसकी बात सुनकर मैं हस पड़ा. तभी मेरी टेबल पर रखा फोन बजने लगा. मैने उठाया तो लाइन पर मेरा एक क्लाइंट था जो मुझसे मिलना चाहता था. मैने थोड़ी देर बात करके फोन रख दिया और प्रिया से कहा
"एक काम कर. अभी तो मुझे एक क्लाइंट से मिलने के लिए निकलना है. शाम को डिन्नर साथ करते हैं ऑफीस के बाद. तब बात करते हैं"
उसने भी हाँ में सर हिला दिया तो मैं उठा और कुच्छ पेपर्स बॅग में डालकर ऑफीस से निकल गया.
क्लाइंट के साथ मेरी मीटिंग काफ़ी लंबी चली और उसके बाद कोर्ट में हियरिंग में भी काफ़ी वक़्त लग गया. उस वक़्त वो केस मेरा सबसे बड़ा केस था क्यूंकी उसमें उसमें शहेर के एक जाने माने आदमी का बेटा इन्वॉल्व्ड था. ये केस बिल्कुल एक हिन्दी फिल्म की कहानी की तरह था इल्ज़ाम था रेप का. उस लड़के के ऑफीस में ही काम करने वाली एक लड़की ने इल्ज़ाम लगाया था ऑफीस के बाद काम के बहाने लड़के ने उस लड़की को ऑफीस में रोका और बाद में उसके साथ सेक्स करने की कोशिश की. लड़की ने जब इनकार किया तो लड़के ने उसके साथ ज़बरदस्ती की. मेडिकल टेस्ट में ये साबित हो चुका था लड़का और लड़की ने आपस में सेक्स किया था पर लड़के का दावा था के लड़की अपनी मर्ज़ी से उसके साथ सोई और बाद में उससे पैसे लेने के लिए ब्लॅकमेल करने की कोशिश की. लड़के ने जब मना किया तो लड़की ने उसपर रेप केस कर दिया.
मैं वो केस लड़की की तरफ से लड़ रहा था. लड़की के घर पर उसके माँ बाप के सिवाय कोई नही था इसलिए इस केस में मेरे लिए पैसा तो कोई ख़ास नही था पर शहेर का दूसरा कोई भी वकील ये केस लेने को तैय्यार नही था. रुक्मणी ने कहा के अगर मैं ये केस ले लूँ तो भले बाद में हार ही जाऊं, पर इससे मेरा नाम फेलेगा जो मेरे लिए अच्छा साबित हो सकता था. मैं इस मामले ज़्यादा श्योर तो नही था पर उसके कहने पर मैने ये केस ले लिए.
मेरे पास साबित करने को ज़्यादा ख़ास कुच्छ था नही. सारे सबूत खुद लड़की के खिलाफ थी. जैसा की हिन्दी फिल्म्स में होता है, लड़के ने बड़ी आसानी से ऑफीस के दूसरे लोगों से ये गवाही दिलवा दी थी के लड़की बदचलन थी और दूसरे कई लोगों के साथ सो चुकी थी. शुरू शुरू में तो मुझे लगा था के ये केस मैं बहुत जल्द ही हार जाऊँगा पर केस में जान तब पड़ गयी तब उस ऑफीस में शाम को ऑफीस बंद होने के बाद सफाई करने वाले एक आदमी ने मेरे कहने पर ये गवाही दे दी के उसने लड़की के चीखने चिल्लाने की आवाज़ सुनी थी.
केस अभी भी चल रहा था और मैं उसी की हियरिंग से निपटकर कोर्ट से निकला और ऑफीस की तरफ बढ़ा.
"हेलो" मेरा फोन बजा तो मैने उठाया. कॉल किसी अंजान नंबर से थी.
"इशान आहमेद?" दूसरी तरफ से एक अजनबी आवाज़ आई
"जी बोल रहा हूँ. आप कौन?" मैं पुचछा
"मैं कौन हूँ ये ज़रूरी नही. ज़रूरी ये है के तुम कोई ऐसी रकम बताओ जो आज तब तुमने सिर्फ़ सोची हो, पर देखी ना हो" उस अजनबी ने कहा
"मैं कुच्छ समझा नही"
"बात सॉफ है वकील साहब. आप एक रकम कहिए, आपके घर पहुँच जाएगी और बदले में आप ये केस हार जाइए"
मैं दिल ही दिल में हस पड़ा. एक फिल्मी कहानी में एक और फिल्मी मोड़. वकील को खरीदने की कोशिश.
"मैं फोन रख रहा हूँ. खुदा हाफ़िज़" मैने हस्ते हुए कहा.
उस आदमी को शायद मुझसे ये उम्मीद नही थी. एक तो ये झटका के मैं फोन रख रहा हूँ और दूसरा ये के मैं हस भी रहा हूँ.
"सुन बे वकील" अब वो बदतमीज़ी पर आ गया "साले या तो केस से पिछे हट जा वरना तेरी कबर खोदने में ज़्यादा वक़्त नही लगेगा हमें"
"कब्र खोदने का काम करते हो तुम?" मैने मज़ाक उड़ाते हुए कहा
"मज़ाक करता है मेरे साथ?" उसने कहा "साले तो उस लड़की का रेप केस लड़ रहा है ना? जानता है तेरे घर की हर औरत को, तेरी मा बहेन को इसके बदले में बीच बज़ार नंगा घुमा सकता हूँ मैं"
मेरा दिमाग़ सनना गया. खून जैसे सर चढ़ गया
"अब तू मेरी सुन. जो फोन पर धमकी देते हैं उनकी औकात मेरे लिए गली में भौकने वाले कुत्ते से ज़्यादा नही. साले अगर तू रंडी की औलाद नही है तो सामने आके बोल. मेरा नाम जानता है तो तू मेरा ऑफीस भी जानता होगा. सुबह 9 से लेके शाम 5 तक वहीं होता हूँ. है अगर तुझ में इतना गुर्दा हो तो आ जा"
ये कहकर मैने फोन काट दिया. मुझे इस फोन के आने की उम्मीद बहुत पहले थी इसलिए ना तो मैं इस फोन के आने से हैरान हुआ और ना ही डरा. पर मेरी मा बहेन को जो उसने गाली दी थी उस बात को लेकर मेरा दिमाग़ खराब हो गया था. थोड़ी देर रुक कर मैं वहीं कार में आँखें बंद किए बैठा रहा और गुस्सा ठंडा होने पर फिर ऑफीस की तरफ बढ़ा.
ऑफीस पहुँचा तो प्रिया जैसे मेरे इंतेज़ार में ही बैठी थी. शाम के अभी सिर्फ़ 6 बजे थे इसलिए डिन्नर का तो सवाल ही पैदा नही होता था. हम लोग ऑफीस के पास ही बने एक कॉफी शॉप में जाके बैठ गये. पर वहाँ काफ़ी भीड़ थी इसलिए प्रिया को वहाँ बात करना ठीक नही लगा. उसके कहने पर हम लोग वहाँ से निकले और पास में बने एक पार्क में आकर बैठ गये. हल्का हल्का अंधेरा फेल चुका था इसलिए पार्क में ज़्यादा लोग नही थे.
"हाँ बताइए" उसने बैठते ही पुचछा
"क्या बताऊं?" मैने कहा
"अरे वही जो मैने आपसे पुचछा था. लड़के लड़कियों में क्या देखते हैं?"
"प्रिया ये काफ़ी मुश्किल सवाल है यार" मैने कहा
"मुश्किल क्यूँ?"
"क्यूंकी ये बात लड़के या लड़की की नही है. ये बात है इंसान की. हर इंसान की अपनी अलग पसंद होती है. किसी को कुच्छ पसंद आता है तो किसी को कुच्छ और" मैने कहा
"मैं जनरली पुच्छ रही हूँ" उसने कहा
"अगेन ये भी डिपेंड करता है के वो लड़का कौन है और किस तरह का है" मैने कहा
"ओफहो" वो चिड गयी "अच्छा कोई भी लड़का छ्चोड़िए और अपना ही एग्ज़ॅंपल लीजिए. आप सबसे पहले लड़की में क्या देखते हैं?"
उसने सवाल किया. मैने सोचने लगा और इससे पहले के कोई जवाब देता वो हस्ने लगी.
"हस क्यूँ रही हो?" मैने पुचछा तो वो मुस्कुरकर बोली
"क्यूंकी मैं जवाब खुद जानती हूँ"
"क्या?"
"यही के आप लड़की में सबसे पहले ये देखते हैं" उसने अपनी चूचियो की तरफ इशारा किया
जाने क्यूँ पर मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया
"ऐसी बात नही है यार" मैने कहा
"और नही तो क्या. ऐसी ही बात है. आपकी नज़र हर बार मेरी छातियो पर ही अटक जाती है आकर" वो हर बार की तरह बिल्कुल बेशरम होकर बोले जा रही थी. मैने कोई जवाब नही दिया.
"देख ये डिपेंड करता है" आख़िर में मैने बोला "अगर लड़का शरिफ्फ सा है, तो वो उसुअल्ली लड़की का चेहरा ही देखगा या उसका नेचर. अगर लड़के के दिमाग़ में कुच्छ और चल रहा है तो वो कहीं और ही देखेगा"
"तो आपके दिमाग़ में क्या था सर?" उसने फिर वही शरारत आँखों में लिए कहा
"मतलब?"
"मतलब ये के आपनी नज़र तो मेरी छातियो पर थी. तो आपके दिमाग़ में क्या चल रहा था" उसने कहा
मुझे लगा जैसे मैं एक कोर्ट में खड़ा हूँ और सामने वाले वकील ने ऐसी बात कह दी जिसका मेरे पास कोई जवाब नही था.
"अरे यार" मैने संभालते हुए कहा "तेरे साथ वो बात नही है. तेरा चेहरा ही देख रहा था मैं पिच्छले 6 महीने से से. और तेरे बारे में ऐसा कुछ भी मेरे दिल में कभी था नही. तूने कभी नोटीस किया उस दिन से पहले के मैं तेरी छातियो की तरफ घूर रहा था?"
उसने इनकार में सर हिलाया
"एग्ज़ॅक्ट्ली" मैने जैसे अपनी दलील पेश की "क्यूंकी मैं नही घूर रहा था. पर आख़िर हूँ तो लड़का ही ना यार. ऑपोसिट सेक्स हमेशा अट्रॅक्ट करता है. उस दिन तू मेरे सामने पहली बार यूँ ब्रा में आ खड़ी हुई तो मेरी नज़र पड़ गयी वहाँ"
उसने जैसे मेरी बात समझते हुए सर हिलाया. फिर कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के मैं पहले बोल पड़ा.
"आंड फॉर युवर इन्फर्मेशन, मुझे लड़कियों में सबसे ज़्यादा छातिया पसंद नही हैं"
"तो फिर?" उसने फ़ौरन सवाल दाग दिया
हम जहाँ बैठे थे वहीं एक लॅंप पोस्ट भी था इसलिए वहाँ पर रोशनी थी. इसकी वजह से एक फॅमिली अपने बच्चो के साथ वहीं घास में आकर बैठ गयी. हमारे लिए अब इस बारे में खुलकर बात करना मुमकिन नही था इसलिए हमने फिर कभी इस बारे में बात करने का फ़ैसला किया. पार्क से बाहर निकलकर मैने प्रिया के लिए एक ऑटो रोका और उसके जाने के बाद कार लेकर घर की तरफ निकल गया. हैरत की बात ये थी के उस दिन फोन पर मिली धमकी को मैं पूरी तरह भूल चुका था.
विपिन सोनी के मर्डर को अब तकरीबन 3 महीने हो चले थे. ना तो क़ातिल का कुच्छ पता चल पाया था और ना ही किसी का कोई सुराग मिल सका था. न्यूसपेपर्स भी अब इस बारे में बात कर करके थक चुके थे और रोज़ाना जिस तरह से वो इस बारे में शोर मचा रहे थे अब वो भी धीरे धीरे हल्का पड़ता जा रहा था. धीरे धीरे जब किसी का कुच्छ पता ना चला तो लोगों ने बंगलो के भूत को विपिन सोनी का हत्यारा मान लिया और बात फेल गयी के विपिन सोनी ने जाकर ऐसे घर में आसरा लिया जहाँ की प्रेत आत्मा वास करती है और जब सोनी ने वहाँ से निकालने का नाम नही लिया तो उस आत्मा ने उसका खून कर दिया.
अब हमारी कॉलोनी में भी हर कोई ये बात जान गया था के मरने वाला एक बहुत ही अमीर आदमी था जिसकी एक बहुत ही सुंदर सी जवान बीवी थी. हर कोई जानता था के वो अपनी बीवी से अलग हो गया था और कोई दुश्मन ना होते हुए भी यहाँ डरा सहमा सा पड़ा रहता था. लोगों का मानना ये था के विपिन सोनी एक पागल था पर उसका पागल होना भी उसकी मौत की वजह नही बता सकता था.
खून होने का सबसे ज़्यादा नुकसान अगर किसी को हुआ तो वो बंगलो नो 13 और उसके मालिक को हुआ. वो घर जो पहले से बदनाम था अब और बदनाम हो गया. लोग अक्सर आते और घर के बाहर खड़े होकर उसको देखते. सब देखना चाहते थे के भूत बंगलो कैसा होता है और शाद कुच्छ इस उम्मीद से भी आते थे के कोई भूत शायद उनको नज़र आ जाए. किसको नज़र आया और किसको नही ये तो मुझे नही पता पर मेरे साथ जो हो रहा था वो खुद बड़ा अजीब था.
वो गाने की आवाज़ जो मुझे पहले कभी कभी सुनाई देती थी अब जैसे हर रात सुनाई देने लगी थी. मैं बिस्तर पर आता ही था के उस औरत की आवाज़ मेरे कानो में आने लगती जैसे कोई मुझे लोरी गाकर सुलाने की कोशिश कर रहा हो. मैने कई बार उस आवाज़ को रात में ही फॉलो करने की कोशिश की पर या तो वो मुझे हर तरफ से आती हुई महसूस होने लगती या फिर मेरी तलाश बंगलो नो 13 के सामने आकर ख़तम हो जाती. वो आवाज़ सॉफ तौर पर घर के अंदर से ही आती थी पर हैरत की बात ये थी के यहाँ से मुझे मेरे कमरे तक सुनाई देती थी. लोग कहते थे के उस घर में एक भूतनि रहती है पर ये कितना सच था मैं नही जानता था. फिर भी इस बात से इनकार नही कर सकता था के मैने खुद अपनी आँखों से घर में एक औरत को घूमते देखा है, और एक बार कुच्छ लोगों को अंदर देखा था जो मेरे अंदर जाने पर गायब हो गये थे और इस बात से तो मैं अंजाने में भी इनकार नही कर सकता था के मुझे एक औरत के गाने की आवाज़ सुनाई देती थी.
मेरे अलावा वो आवाज़ किसी और को आती थी या नही इसकी मुझे कोई खबर नही थी और ना ही मैने इसका किसी से ज़िकार किया. एक बार मैने रात को रेस्टोरेंट में मिश्रा से इस बारे में बात करने की सोची ज़रूर थी पर फिर इरादा बदल दिया था ये सोचकर के वो मुझे पागल समझेगा.
विपिन सोनी के बाद उस घर में कोई रहने नही आया. मकान मलिक ने न्यूसपेपर में घर के खाली होने का आड़ ज़रूर दिया था पर मुझे यकीन था के लोग उसको पढ़कर शायद हसे ही होंगे. भला भूत बंगलो में रहने की हिम्मत कौन कर सकता था. घर के बाहर अब एक बड़ा सा ताला पड़ा रहता. अंदर जितना भी फर्निचर सोनी ने खरीद कर रखा था वो सब भूमिका बेच चुकी थी. लोग अक्सर घर के सामने से अगर निकलते तो जितना दूर हो सके उतनी दूर से निकलते. पर इस सबके बावजूद अजीब बात ये थी के उस बंगलो के दोनो तरफ के घरों में लोग रहते थे. वो कभी खाली नही हुए और ना ही उनके साथ कोई अजीब हरकत हुई. लोग उनके घर ज़रूर आते पर बंगलो 13 की तरफ कोई नज़र उठाकर ना देखता. अजीब था के उस घर के दोनो तरफ के लोगों को भूत बिल्कुल परेशान नही करता था पर उस घर में रहने वाले को ज़िंदा नही छ्चोड़ता था. खुद मेरे घर की छत से भी उस बंगलो का एक हिस्सा नज़र आता था और सोनी के खून से पहले मैने बीते सालों में कुच्छ भी अजीब नही देखा था वहाँ.
सोनी के खून से जिन लोगों को फायडा हुआ था उनमें खुद एक रुक्मणी भी थी. अब उसके पास बताने को और नयी कहानियाँ मिल गयी थी जिन्हें वो अक्सर बैठकर मुझे और देवयानी को बताया करती थी और नुकसान जिन लोगों को हुआ था उनमें एक मिश्रा भी था. भले उसकी नौकरी नही गयी थी पर एक ऐसा आदमी जिसकी वर्दी पर कोई दाग नही था और जिसने अपने हिस्से में आने वाले हर केस को सॉल्व किया था, उस आदमी के हिस्से में अब एक ऐसा केस आ गया था जिसको वो सॉल्व नही कर सका था.
इसी तरह से तकरीबन एक महीना और गुज़र गया. सर्दियाँ जा चुकी थी पर देवयानी अब भी वहीं घर में ही टिकी हुई थी जिसकी वजह से मुझे अकेला रहने की आदत पड़ गयी. अब उस गाने की आवाज़ मुझे परेशान नही करती थी बल्कि मैं तो अक्सर हर रात इंतेज़ार करता था के वो औरत गाए और मुझे चेन की नींद आ जाए. कोर्ट में वो रेप केस अब भी चल रहा था और अब सिर्फ़ तारीख ही मिला करती थी. लड़का बेल पर बाहर आ चुका था पर लड़की केस कंटिन्यू करना चाहती थी. उसके बाद ना ही कभी मुझे कोई धमकी फोन पर मिली.
मिश्रा से ही मुझे पता चला के रश्मि इंडिया आ चुकी थी और अब यहीं मुंबई में ही सेटल्ड थी. मिश्रा के सस्पेक्ट्स की लिस्ट में उसका भी नाम था पर उसके खिलाफ भी वो कोई सबूत नही जुटा पाया था. ऐसी ही एक मुलाक़ात में उसने मुझको बताया के सोनी मर्डर केस अब सीबीआइ को दिया जा रहा है और इसके लिए उसने भी हाँ कर दी.
"क्या?" मैने हैरत से पुचछा "तूने हार मान ली?"
उसने हाँ में सर हिलाया
"10 लाख का नुकसान?" मैने भूमिका सोनी के अनाउन्स किए हुए इनाम की तरफ इशारा किया
"अबे 10 करोड़ भी देती तो कुच्छ नही होने वाला था यार. मुझे नही लगता के वो हत्यारा कभी पकड़ा जाएगा" उसने सिगेरेत्टे जलाते हुए कहा
"सही कह रहा है" मैने उसकी हाँ में हाँ मिलाई. इसके बाद मेरे और मिश्रा के बीच काफ़ी टाइम तक इस केस के बारे में कोई बात नही हुई. हम दोनो अपने दिल में ये बात मान चुके थे के सोनी का हत्यारा जो कोई भी था, वो बचकर निकल चुका है.
क्रमशः.......................
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