RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
उसके बाद अगले कुच्छ दीनो तक मेरी ज़िंदगी जैसे एक ही ढर्रे पर चलती रही. मैं सुबह ऑफीस के लिए निकल जाता और शाम को घर आ जाता. रुक्मणी और देवयानी के साथ डिन्नर करता और जाकर सो जाता. देवयानी कब तक यहाँ रहने वाली थी इस बात का ना तो मुझे अंदाज़ा था और ना ही मुझे कुच्छ रुक्मणी से पुछने का मौका मिला पर अब उसके वहाँ होने से मुझे अजीब सी चिड होने लगी थी. वो हमेशा अपनी बहेन से चिपकी रहती और एक पल के लिए भी मुझे रुक्मणी के साथ अकेले ना मिलने देती. उसके उपेर से जब भी मौका मिलता तो वो मुझे छेड़ने से बाज़ नही आती थी. जानकर मेरे सामने ढीले गले के कपड़े पहेनकर आती और मौका मिलते ही झुक जाती ताकि मैं उसके कपड़ो के अंदाज़ का नज़ारा सॉफ देख सकूँ. पर इससे ज़्यादा बात नही बनी. ऑफीस में भी अब प्रिया नही आ रही थी. उसके बड़े भाई की शादी थी जिसके लिए उसने 2 महीने की छुट्टी ली हुई थी. मैं ऑफीस जाता तो वहाँ कोई ना होता और रोज़ रात को मैं बिस्तर पर भी अकेला ही सोता.
विपिन सोनी का खून हुए 2 महीने से भी ज़्यादा वक़्त हो चुका था पर अब भी रोज़ाना ही न्यूसपेपर में उसके बारे में कुच्छ ना कुच्छ होता था. मिश्रा से मेरी बात इस बारे में अब नही होती थी. मैने कई बार उसको फोन करने की कोशिश की पर वो मिला नही और ना ही उसने कभी खुद मुझे फोन किया. धीरे धीरे मेरा इंटेरेस्ट भी केस में ख़तम हो गया और अब मेरे लिए विपिन सोनी का केस सिर्फ़ न्यूसपेपर में छपने वाली एक खबर होता था.
जितना मैने न्यूसपेपर में पढ़ा उस हिसाब से विपिन सोनी कोई बहुत बड़ा आदमी था. एक बहुत ही अमीर इंसान जिसके पास बेशुमार दौलत थी. उसकी पहली बीवी से उसको एक बेटी थी और बीवी के मर जाने के बाद उसने बुढ़ापे में भूमिका से दूसरी शादी की थी. एक ज़माने में वो पॉलिटिक्स में बहुत ज़्यादा इन्वॉल्व्ड था और ये भी कहा जाता था के जिस तरह से माहरॉशट्रे के पोलिटिकल वर्ल्ड में उसकी पकड़ थी, उस तरीके से वो दिन दूर नही जब वो खुद एक दिन माहरॉशट्रे के चीफ मिनिस्टर होता. मुंबई का वो जाना माना बिज़्नेसमॅन था और शायद ही कोई इंडस्ट्री थी जहाँ उसका पैसा नही लगा हुआ था. पर अपनी बीवी के गुज़रने के बाद जैसे उसने अपने आपको दुनिया से अलग सा कर लिया. पॉलिटिक्स से उसने रिश्ता तोड़ दिया और उसका बिज़्नेस भी उसके मॅनेजर्स ही संभालते थे. पता नही कितना सच था पर उसके किसी नौकर के हवाले से एक न्यूसपेपर ने ये भी छपा था के अपनी बीवी के गुज़रने के बाद सोनी जैसे आधा पागल हो गया था और एक साइकिट्रिस्ट के पास भी जाता था.
इन सब बातों का नतीजा ये निकला के मीडीया ने उसके खून के मामले को दबने ना दिया. नेवपपेर्स और टीवी चॅनेल्स तो जैसे दिन गिन रहे थे और रोज़ाना ही ये बात छपती के सोनी का खून हुए इतने दिन हो चुके हैं और पोलीस को उसके खूनी का कोई सुराग अब तक नही मिल पाया है.
ऐसे ही एक दिन मैं अपने ऑफीस में अकेला बैठा था के दरवाज़ा खुला और मिश्रा दाखिल हुआ.
"बड़े दिन बाद" मैं उसको देखकर मुस्कुराता हुआ बाओला "आज इस ग़रीब की याद कैसे आई?"
"पुच्छ मत यार" वो मेरे सामने बैठता हुआ बोला "ज़िंदगी हराम हो रखी है साली"
"क्यूँ क्या हुआ?" मैने पुचछा
"अरे वही विपिन सोनी का केस यार" उसके हाथ में एक न्यूसपेपर था जिसे वो मेरी तरफ बढ़ता हुआ बोला "मेरी जान की आफ़त बन गया है ये केस. वो सला सोनी पोलिटिकली इन्वॉल्व्ड था और कयि बड़े लोगों को जानता था. रोज़ाना ही मेरे ऑफीस में फोन खड़कता रहता है के केस में कोई प्रोग्रेस है के नही"
"ह्म्म्म्म" मैने उसके हाथ से न्यूसपेपर लिया
"और उपेर से ये मीडीया वाले" वो अख़बार की तरह इशारा करते हुए बोला "बात को दबने ही नही दे रहे. और आज ये एक नया तमाशा छाप दिया"
"क्या छाप दिया?" मैने अख़बार खोला. उस दिन सुबह मैं कोर्ट के लिए लेट हो रहा था इसलिए न्यूसपेपर उठाने का वक़्त नही मिला था
"खुद पढ़ ले" उसने कहा और सामने रखे ग्लास में पानी डालकर पीने लगा
मैने न्यूसपेपर खोला और हेडलाइन देखकर चौंक पड़ा
"पढ़ता रह" मिश्रा ने कहा
न्यूसपेपर वालो ने खुले तौर पर पोलीस का मज़ाक उड़ाया था और इस बात को के पोलीस 2 महीने में भी खूनी की तलाश नही कर पाई थी पोलीस की नाकामयाबी बताया था. जिस बात को पढ़कर मैं चौंका वो ये थी के न्यूसपेपर में मिश्रा के नाम का सॉफ ज़िक्र था.
"नौकरी पर बन आई है यार" मिश्रा ने आँखें बंद की और कुर्सी पर आराम से फेल गया "समझ नही आता क्या करूँ"
"कोई सुराग नही?" मैने न्यूसपेपर को एक तरफ रखते हुए कहा
मिश्रा ने इनकार में सर हिलाया. मुझे याद था के आखरी बार जब मैने मिश्रा से इस बार में बात की थी तो मैने उसको भूमिका सोनी के बारे में पता करने को कहा था.
"उसकी बीवी के बारे में पता किया तूने?" मैने मिश्रा से सवाल किया
"आबे यार तू यही क्यूँ कहता है के खून उसने किया है?" मिश्रा ने सवाल किया
"मैं ये नही कहता के खून उसकी बीवी ने किया है" मैने जवाब दिया "मैं सिर्फ़ ये कह रहा हा के ऐसा हो सकता है."
"नही यार" मिश्रा ने कहा
"क्यूँ?" मैने पुचछा
"पता किया है मैने. पर्फेक्ट अलिबाइ हैं उसके पास. " मिश्रा बोला. कमरे में कुच्छ देर खामोशी रही
"यार जिस तरह से वो अब तक अपने पति के खून को ले रही है उस हिसाब से मैं तो कहता हूँ के ज़रा भी गम नही है उसको अपने पति की मौत का. और उस दिन यूँ पोलीस स्टेशन में बेहोश हो जाना भी सला एक ड्रामा था" मैने अपना शक जताते हुए क़ा
अगले एक घंटे तक मिश्रा मेरे ऑफीस में बैठा रहा और मैं ये कहता रहा के भूमिका ने खून किया हो सकता है पर वो नही माना.
उस रात डिन्नर के बाद मैं घर से थोड़ी देर बाहर घूमने के लिए निकल गया. ऐसे ही टहलता हुआ मैं बंगलो नंबर 13 के सामने से निकला तो एक पल के लिए वही खड़ा होकर उस घर की तरफ देखने लगा. उस घर में 2 खून हो चुके थे. एक आज से कई साल पहले जब एक पति ने गुस्से में अपने बीवी को गोली मार दी थी और जिसके बात ये बात फेल गयी थी के उस घर में उस औरत की आत्मा आज भी भटकती है और दूसरा खून विपिन सोनी का. पहले खून में तो पति को सज़ा हो गयी थी पर सोनी को मारने वाला आज भी फरार था.
थोड़ी देर वहीं रुक कर मैने एक लंबी साँस ली और आगे बढ़ने के लिए कदम उठाए ही थे के फिर वही गाने की आवाज़ मेरे कान में पड़ी.
आवाज़ अब भी वैसे ही थी. बहुत ही सुरीली और धीमी आवाज़ में कुच्छ गया जा रहा था पर क्या ये समझ अब भी नही आया. फिर ऐसा लगा जैसे कोई माँ अपने बच्चे को एक लोरी गाकर सुला रही है. मैं एक पल के लिए फिर वहीं रुक गया और जब मेरी नज़र बंगलो की तरफ पड़ी तो जैसे मेरी रूह तक काँप गयी.
आवाज़ यक़ीनन बंगलो की तरफ से ही आ रही थी पर जिस बात ने मुझे अंदर तक डरा दिया था वो थी घर के अंदर से आती हुई रोशनी. घर की सारी खिड़कियाँ खुली हुई थी और उनपर पड़े पर्दों के पिछे एक रोशनी एक कमरे से दूसरे कमरे तक आ जा रही थी. लग रहा था जैसे कोई हाथ में एक कॅंडल लिए घर के अंदर एक कमरे से दूसरे कमरे में फिर तीसरा कमरे में घूम रहा है और गाने की आवाज़ भी उसी तरफ से आती जिस तरफ से रोशनी आती. मुझे बंगलो के बारे में सुनी गयी हर वो बात याद आ गयी के इस घर में एक आत्मा भटकती है और लोगों ने अक्सर इस घर में रातों को किसी को गाते हुए सुना है. मैने आज तक कभी इस बात पर यकीन नही किया था और नही ही कभी ये सोचा के ये सच हो सकती है. मैं तो उल्टा ये बात सुनकर हस देता था पर आज जो हो रहा था वो मेरी आँखों के सामने था. बंगलो के अंदर रोशनी मैं अपने आँखो से देख रहा था और गाने की आवाज़ अपने कान से सुन रहा था. मेरे कदम वहीं जमे रह गये और मेरी नज़र उस रोशनी के साथ साथ ही जैसे चलने लगी.
अचानक गाने की आवाज़ रुक गयी और मेरे ठीक पिछे बिल्कुल मेरे कान के पास एक औरत की धीमी सी आवाज़ आई
"इशान"
उसके बाद क्या हुआ मुझे कुच्छ याद नही.
मेरी आँख खुली तो मैं हॉस्पिटल में था. मेरा अलावा कमरे में सिर्फ़ एक रुक्मणी थी.
"क्या हुआ?" मैने उठकर बैठने की कोशिश की
"लेते रहो" मुझे होश में देखकर वो फ़ौरन मेरे करीब आई
"हॉस्पिटल कैसे पहुँच गया मैं?" मैने उससे पुचछा
"तुम बंगलो 13 के सामने बेहोश मिले थे हमें" वो मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली "क्या हो गया था?"
मेरे दिमाग़ में सारी बातें एक एक करके घूमती चली गयी. वो गाने की आवाज़, रोशनी और फिर मेरे पिछे से मेरे नाम का पुकारा जाना.
"क्या हो गया था?" रुक्मणी ने सवाल दोहराया
अब मैं उसको कैसे बताता के मैं अपना नाम सुनकर डर के मारे बेहोश हो गया था इसलिए इनकार में सर हिलाने लगा.
"पता नही मैं वॉक कर रहा था के अचानक ठोकर लगी और मैं गिर पड़ा. उसके बाद कुच्छ याद नही"
एक नज़र मैने घड़ी पर डाली तो सुबह के 7 बज रहे थे.
"कौन लाया मुझे यहाँ" मैने रुक्मणी से पुचछा
"मैं और कौन?" उसने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा "जब तुम 3 घंटे तक वापिस नही आए तो मैं और देवयानी ढूँढने निकले. बंगलो के सामने तो सड़क किनारे बेहोश पड़े थे"
मुझे अपने उपेर और शरम आने लगी. मैं डर के मारे 3 घंटे तक बेहोश पड़ा रहा सड़क पे पर इसके साथ ही कई सारे सवाल फिर से दिमाग़ में घूमने लगे. रोशनी देखी वो तो समझ आता है के कोई बंगलो के अंदर हो सकता है पर वो गाने की आवाज़ और मेरे पिछे से मेरा नाम किसने पुकारा था. मुझे याद था के जिस तरह से मेरा नाम लिया गया था उससे सॉफ ज़ाहिर था के कोई मेरे पिछे बहुत करीब खड़ा था. बरहाल मैने रुक्मणी से इस बात का ज़िक्र ना करना ही ठीक समझा.
डॉक्टर ने मुझे हॉस्पिटल से एक घंटे के अंदर ही डिसचार्ज कर दिया. मैं बिल्कुल ठीक था और ऑफीस जाना चाहता था पर रुक्मणी ने मना कर दिया. उसके हिसाब से मुझे आज आराम करना चाहिए था. मेरी कोर्ट में कोई हियरिंग भी नही थी इसलिए मैने भी ज़िद नही की और घर आ गया.
घर पहुँचा तो देवयानी मुझे देखते ही मुस्कुराइ.
"ठीक हो? मैं तो घबरा ही गयी थी"
पता नही वो सच घबराई थी या ड्रामा कर रही थी पर उसका यूँ पुच्छना मुझे जाने क्यूँ अच्छा लगा.
"मैं ठीक हूँ" मैने कहा और अपने कमरे में आ गया. मैं अभी चेंज ही कर रहा था के मेरा फोन बजने लगा. नंबर प्रिया का था.
"कब आएगी तू?" मैने फोन उठाते ही सीधा सवाल किया
"ना ही ना हेलो सीधा सवाल?" दूसरी तरफ से उसकी आवाज़ आई "मैं तो आ चुकी हूँ बॉस पर आप ऑफीस कब आएँगे?"
मैने उसको बताया के आज मेरी तबीयत ठीक नही है इसलिए आ नही सकूँगा. थोड़ी देर बात करके मैने फोन रखा ही था के फोन दोबारा बजने लगा. इस बार मिश्रा था.
"क्या हो गया भाई?" इस बार फोन उठाते ही सवाल उसने कर दिया.
"कहाँ?" मैने सवाल के बदले सवाल किया
"अबे कहाँ नही तुझे क्या हो गया. अभी हॉस्पिटल से फोन आया था के कल रात एक औरत किसी इशान आहमेद नाम के वकील को बेहोशी में लाई थी." उसने कहा "अब इशान आहमेद नाम का वकील तो शहेर में तू ही है"
"किसका फोन था?" मैने पुचछा
"डॉक्टर का" उसने जवाब दिया "कह रहा था के वैसे तुझे कोई चोट नही थी इसलिए कल रात ही फोन नही किया पर जब पता चला के तू सड़क के किनारे पड़ा मिला था तो उसने हमें बताना बेहतर समझा"
"मैं ठीक हूँ यार" मैने कहा "ऐसे ही थोड़ा सर चकरा गया था. एक काम कर आज शाम को डिन्नर करते हैं साथ. फिर बताता हूँ"
मैं मिश्रा से उस रोशनी और गाने के बारे में बात करना चाहता था इसलिए रात को डिन्नर के लिए पास के एक होटेल में मिलने को कहा.
मैं नाहकार कमरे से बाहर जाने की सोची ही रहा था के रुक्मणी कमरे में आ गयी.
"कैसा लग रहा है अब?" उसने मुझसे पुचछा
"मैं ठीक हूँ. वो तो तुम ज़बरदस्ती घर ले आई वरना मैं ऑफीस जा सका था" मैने अपने बालों में कंघा घूमाते हुए कहा
मेरी बात सुनकर वो हस पड़ी.
"इसलिए ले आई क्यूंकी तुम्हारी फिकर है मुझे. कुच्छ चाहिए तो नही?"
इस बार सवाल सुनकर मैं हस पड़ा.
"तुम जानती हो मुझे क्या चाहिए" मैने आँख मारी
"उसका इंतज़ाम तो नही हो सकता" उसने कहा
"देवयानी घर पे है?" मैने पुचछा तो वो इनकार में सर हिलाने लगी
"बाहर गयी है" कहते हुए वो मेरे करीब आई और मेरे गले में बाहें डालकर खड़ी हो गयी
"तो क्यूँ नही हो सकता?" मेरे हाथ उसकी कमर पर आ गये
"आज डेट क्या है भूल गये क्या?" कहते हुए उसने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए
मुझे याद आया के इन दीनो उसके पीरियड्स होते हैं. देवयानी के घर पर ना होने की बात सुनकर मेरा जो चेहरा खिल गया था वो पीरियड्स की बात सोचकर मुरझा गया
"फिकर मत करो" मेरे चेहरे के बदलते भाव रुक्मणी ने पढ़ लिए "एक इंतज़ाम और है मेरा पास"
कहते हुए उसने अपना हाथ मेरे सीने पर रखा और मुझे बेड की तरफ धक्का देकर गिरा दिया. मैं समझ गया के वो क्या करने वाली है इसलिए आराम से लेटकर मुस्कुराने लगा. मेरे सामने खड़ी रुक्मणी ने अपनी कमीज़ को उपेर की तरफ खींचा और उतारकर एक तरफ फेंक दिया. फिर खड़े खड़े ही उसके हाथ पिछे गये और अपना ब्रा खोलकर उसने कमीज़ के साथ ही गिरा दिया. उपेर से नंगी होकर वो बिस्तर पर आई और एक हाथ पेंट के उपेर से ही मेरे लंड पर फिराया और मेरे पेट पर किस किया.
"आआहह " उसके यूँ लंड पकड़कर दबाने से मेरे मुँह से आह निकल गयी.
वो मेरे पेट पर किस करती हुई धीरे धीरे उपेर की ओर आने लगी. मेरी च्चती पर किस करते हुए उसके होंठ मेरे निपल्स तक आए और वो मेरे निपल्स चूस्ते हुए उनपर जीभ फिराने लगी. उसकी इस हरकत से मुझे हमेशा गुदगुदी होती थी और इस बार भी ऐसा ही हुआ. मुझे गुदगुदी होने लगी और मैं उसका चेहरा अपने निपल्स से हटाने लगे.
मुझे हस्ते देखकर वो खुद भी हस्ने लगी और फिर अगले ही पल उपेर को होकर अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए.
उसका उस दिन मुझे यूँ चूमना अजीब था. उसके चूमने के अंदाज़ में जैसे सब कुच्छ शामिल था सिवाय वासना के. उसके मेरे लिए प्यार, मेरे लिए फिकर करना, मेरे लिए परेशान होना सब कुच्छ उस एक चुंबन से ज़ाहिर हो रहा था. वो मेरे यूँ बेहोश मिलने से घबरा गयी थी ये बात मैं जानता था. हालाँकि उसने अपने मुँह से कुच्छ नही कहा था पर उसके चेहरे पर मैने सब कुच्छ देख लिया था. और इस वक़्त भी वो मुझे ऐसे चूम रही थी जैसे कोई मुझे उससे छींके ले गया था और वो बढ़ी मुश्किल से अपनी खोई हुई चीज़ वापिस लाई है. वो ऐसी ही थी. कहती नही थी कुच्छ और ना ही मुझपर हक जताती थी पर दिल ही दिल में बहुत ज़्यादा चाहती थी मुझे.
उसके दिल में अपने लिए मोहब्बत देखकर मैने भी पलटकर उसको अपनी बाहों में भर लिया और उसी तरह से उसको चूमने लगा. उसके होंठ से लेकर उसके चेहरे और गले के हर हिस्से पर मेरे होंठ फिर गये. वो हल्की सी उपेर को हुई और मेरे साइड में लेते लेते अपनी दोनो छातियो मेरे चेहरे के उपेर ले आई. उसके दोनो निपल्स मेरे मुँह के सामने लटक गये जिन्हें मैने फ़ौरन अपने होंठों के बीच क़ैद कर लिया और बारी बारी चूसने लगा. मैने एक निपल चूस्ता तो दूसरी फिर से मेरे जिस्म को चूमती हुई नीचे को जाने लगी. मेरे पेट से होती हुई वो मेरे लंड तक पहुँची और बिना लंड को हाथ लगाए उसके अपनी एक जीब मेरे लंड के नीचे से उपेर तक फिरा दी.
"आआक्कककक रुकी" मैं बिस्तर पर हमेशा उसको प्यार से रुकी बुलाता था और इस वक़्त भी लंड पर उसकी जीभ महसूस होने से मेरे मुँह से उसका वही नाम निकला.
वो कुच्छ देर तक यूँ ही मेरे लंड पर बिना हाथ फिराए जीभ घूमती रही. मेरे पूरा लंड उसकी जीभ से गीला हो चुका था. फिर वो थोड़ा और नीचे हुई और अपने दोनो हाथो से मेरी टांगे फेला दी. आपने चेहरा उसने नीचे को झुकाया और मेरी बॉल्स के ठीक नीचे से अपनी जीभ उपेर मेरे लंड तक फिराने लगी. उसकी इस हरकत से मेरा पूरा जिस्म जैसे काँप उठा और एक पल के लिए मेरे दिमाग़ में ये ख्याल तक आ गया के आज पीरियड्स में सेक्स करके देख लूँ. ऑफ कोर्स ये ख्याल मैने दिमाग़ से फ़ौरन निकाल भी दिया.
रुक्मणी ने चेहरा उठाकर मेरी और देखा और मुस्कुराइ और मेरे लंड को अपने मुँह में लिया. मुझसे नज़र मिलाए मिलाए ही वो लंड अपने मुँह में लेती चली गयी जब तक के मेरा पूरा लंड उसके मुँह में गले के अंदर तक नही पहुँच गया. लंड यूँ ही मुँह में रखे रखे वो अंदर ही अंदर अपनी जीभ मेरे लंड के निचले हिस्से पर रगड़ने लगी. कुच्छ देर तक यूँ ही करने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और फिर से अपने मुँह ही ले लिया और अंदर बाहर करने लगी. अब उसका एक हाथ भी इस मेरे लंड तक आ चुका था. वो मेरे लंड की उपेर के हिस्से को चूस रही थी और नीचे से हाथ से हिला रही थी. उसका दूसरा हाथ नीचे मेरी बॉल्स को सहला रहा था. कभी वो लंड और हाथ का ऐसे कॉंबिनेशन मिलती के मेरे लिए रोकना मुश्किल हो जाता. लंड मुँह में जाता तो हाथ लंड को नीचे से पकड़ता और जब मुँह से निकलता तो हाथ लंड को सहलाता हुआ उपेर तक आ जाता.
जब रोकना मुश्किल हो गया तो मैने उसका सर अपने हाथों में पकड़ लिया और नीचे से कमर हिलाने लगा. वो इशारा समझ गयी और चूसना बंद करके अपना मुँह पूरा खोल दिया. मैं नीचे से लेटा लेटा ही धक्के मारने लगा और उसके मुँह को चोदने लगा. एक आखरी धक्का मारकर मैने पूरा लंड उसके गले तक उतार दिया और लंड ने पानी छ्चोड़ दिया.
क्रमशः..........................
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