RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
उस दिन और उसके अगले दिन और कुच्छ ना हुआ. रुक्मणी और देवयानी दोनो साथ ही घर पर रही और बाहर गयी भी तो साथ. ना तो मैं देवयानी से कुच्छ बात कर सका और ना ही रुक्मणी को चोदने का मौका मिला. उपेर से दिमाग़ में मनचंदा यानी विपिन सोनी के खून का किस्सा घूमता रहा.
मंडे सुबह ही मेरे पास मिश्रा का फोन आ गया और उसने मुझे पोलीस स्टेशन पहुँचने को कहा. सोनी की बीवी सुबह ही उससे मिलने आने वाली थी. मेरी भी उस दिन कोर्ट में कोई हियरिंग नही थी इसलिए मैं भी तैय्यर होकर पोलीस स्टेशन जा पहुँचा.
तकरीबन सुबह 10 बजे मैं और मिश्रा बैठे भूमिका सोनी का इंतेज़ार कर रहे थे. वो अपने बताए वक़्त से आधा घंटा लेट आई.
"सॉरी इनस्पेक्टर. मैं ट्रॅफिक में फस गयी थी" उसने पोलीस स्टेशन में आते ही कहा.
भूमिका सोनी कोई 35 साल की गोरी चित्ति औरत थी. वो असल में इस क़दर गोरी थी के उसको देखने वाला या तो ये सोचता के वो कोई अँग्रेज़ है या उसको कोई बीमारी है जिसकी वजह से उसकी स्किन इतनी गोरी है. वो तो उसका बात करने का अंदाज़ था जो उसके हिन्दुस्तानी होने की गवाही दे रहा था वरना पहली नज़र में तो शायद मैं भी यही सोचता के वो कोई अँग्रेज़ औरत है. वो एक प्लैइन काले रंग के सलवार सूट में थी. ना कोई मेक उप और ना ही कोई ज्यूयलरी उसके जिस्म पर थी. तकरीबन 5"5 लंबी, काले रंग के बॉल और हल्की भूरी आँखें. उसके साथ एक कोई 60 साल का आदमी भी था जो खामोशी से बैठा उसके और मिश्रा के बीच हो रही बातें सुन रहा था.
मरनेवाला, यानी विपिन सोनी, तकरीबन 50 से 60 साल के बीच की उमर का था इसलिए मैं उम्मीद कर रहा था के जो औरत खुद को उसकी बीवी बता रही है वो भी उतनी ही उमर के आस पास होगी पर जब एक 35 साल की औरत पोलीस स्टेशन में आई तो मैं हैरान रह गया. और औरत भी ऐसी जो अगर बन ठनके गली में निकल जाए तो शायद हर नज़र उसकी तरफ ही हो. और अपनी बातों से तो वो 35 की भी नही लग रही थी. हमें लग रहा था जैसे हम किसी 16-17 साल की लड़की से बात कर रहे हैं. वो बहुत ही दुखी दिखाई दे रही थी और आवाज़ भी जैसे गम से भरी हुई थी जो मुझे बिल्कुल भी ज़रूरी नही लगा क्यूंकी अब तक ये साबित होना बाकी था के मरने वाला उसका पति ही थी. पर शायद ये उसका 35 साल की उमर में भी एक बचपाना ही था के उसने अपने आपको विधवा मान भी लिया था.
मेरी नज़र उसके साथ बैठे उस बूढ़े आदमी पर पड़ी जिसने अब तक कुच्छ नही कहा था और चुप बैठा हुआ था. थोड़ी देर बाद भूमिका ने बताया के वो आदमी उसका बाप था जो उसके साथ लाश को आइडेंटिफाइ करने के लिए आया था. सुरेश बंसल, जो की उसका नाम था, देखने से ही एक बहुत शांत और ठहरा हुआ इंसान मालूम पड़ता था. उसके चेहरे पर वो भाव थे जो उस आदमी के चेहरे पर होते हैं जिसने दुनिया देखी होती है, अपने ज़िंदगी में ज़िंदगी का हर रंग देखा होता है.
मिश्रा ने शुरू से लेकर आख़िर तक की कहानी भूमिका को बताई के किस तरह विपिन सोनी यहाँ रहने आया था और किस तरह घर के अंदर उसकी लाश मिली थी. इसी कहानी में उसने मुझे भूमिका से इंट्रोड्यूस कराया और बताया के मरने से पहले मैं ही वो आखरी आदमी था जिससे विपिन सोनी मिला था. वो मेरी तरफ घूम और मुझे देखते हुए बोली
"चलिए मुझे ये जानकार खुशी हुई के यहाँ कोई तो ऐसा था जो मेरे हज़्बेंड को जानता था"
"जी नही" मैने उसकी बात का जवाब दिया "मैं उन्हें आपके हज़्बेंड के तौर पर नही बल्कि मनचंदा के नाम से जानता था"
"उनका असली नाम विपिन सोनी था" कहते कहते भूमिका रो पड़ी "पर शायद अब तो उन्हें किसी नाम की ज़रूरत ही नही"
"दिल छ्होटा मत करो बेटी" भूमिका के बाप यानी सुरेश बंसल ने उसकी तरफ रुमाल बढ़ाया "वो अब भगवान के पास हैं और उससे अच्छी जगह एक भले आदमी के लिए कोई नही है"
थोड़ी देर तक सब खामोश बैठे रहे. जब भूमिका ने रोना बंद किया तो मिश्रा ने उससे फिर सवाल किया
"म्र्स सोनी आप ये कैसे कह सकती हैं के मरने वाला आपका पति था?"
"मैं जानती हूँ इनस्पेक्टर साहब" वो बोली "मनचंदा हमारे मुंबई के घर के ठीक सामने एक कपड़ो के दुकान का नाम है, मनचंदा गारमेंट्स. वहाँ से मिला था उन्हें ये नाम"
"और कुच्छ?" मिश्रा ने सवाल किया
"और मेरे पति के चेहरे पर बचपन से एक निशान था, स्कूल में लड़ाई हो गयी थी और किसी दूसरे बच्चे ने एक लोहे की रोड मार दी थी जिससे उनका चेहरा कट गया था. और उनके एक हाथ के छ्होटी अंगुली आधी है. एक बार शिकार पर उनके अंगुली कर गयी थी. और कोई सबूत चाहिए आपको?" भूमिका बोली
"जी नही इतना ही काफ़ी है" मिश्रा बोला "वैसे आपके पति कब्से गायब थे?"
"यही कोई एक साल से" भूमिका बोली
"नही बेटी" उसकी बात सुनकर उसके पास बैठा उसका बाप बोला "8 महीने से"
"यहाँ वो 6 महीने से रह रहे हैं. बीच के 2 महीने कहाँ थे आपको पता है?" मिश्रा ने पुचछा
भूमिका ने इनकार में सर हिलाया
"वो घर से गये क्यूँ थे? आपसे कोई झगड़ा?" मिश्रा ने फिर सवाल किया
इस बार जवाब भूमिका ने नही मैने दिया
"मिश्रा तुझे नही लगता के ये सारे सवाल बॉडी को आइडेंटिफाइ करने के बाद होने चाहिए?"
"सही कह रहा है" मिश्रा ने मुकुरा कर जवाब दिया "पहले म्र्स सोनी ये कन्फर्म तो कर दें के मरने वाला विपिन सोनी ही है"
वो थोड़ी देर बाद भूमिका और उसके बाप को जीप में बैठाकर हॉस्पिटल ले गया आइडेंटिफिकेशन के लिए. मुझसे उसने चलने के लिए कहा पर मुझे हॉस्पिटल्स से हमेशा सख़्त नफ़रत रही है. वहाँ फेली दवाई की महेक मुझे कभी बर्दाश्त नही हुई इसलिए मैने जाने से मना कर दिया और वापिस अपने ऑफीस की तरफ चला.
ऑफीस पहुँचा तो प्रिया खिड़की पर खड़ी बाहर देख रही थी. मैं अंदर आया तो उसने पलटकर मुझे एक नज़र देखा और फिर खिड़की से बाहर देखने लगी. हमेशा की तरह ने तो उसने मुझे गुड मॉर्निंग कहा और ना ही ये पुचछा के मैं देर से क्यूँ आया. उसकी इस हरकत से मुझे उस दिन चेंजिंग रूम में हुई घटना याद आ गयी और जाने मुझे क्यूँ लगने लगा के अब शायद वो रिज़ाइन कर देगी. मैं चुप चाप आकर अपनी डेस्क पर बैठ गया. मैं उम्मीद कर रहा था के शायद वो अब उस दिन खरीदे अपने नये कपड़े पहेनकर आएगी पर उसने फिर से वही अपने पुराने लड़को जैसे कपड़े पहेन रखे थे.
कमरे में यूँ ही थोड़ी देर खामोशी च्छाई रही. आख़िर में कमरे का सन्नाटा प्रिया ने ही तोड़ा.
"तुम उस दिन मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे थे?" वो बिना मेरी तरफ पलते बोली
"मतलब?" मैने उसकी तरफ देखते हुए कहा
"मतलब उस दिन जब स्टोर रूम में मैने तुम्हें ब्रा का हुक बंद करने को कहा तो तुम्हारी नज़र कही और ही अटक गयी थी. क्यूँ?" इस बार भी वो बिना पलते खिड़की के बाहर देखते हुए बोली
मुझसे जवाब देते ना बना
"बताओ" वो फाइनली मेरी तरफ पलटी और खिड़की पर कमर टीकाकार खड़ी हो गयी
"क्या बताऊं प्रिया?" मैने भी सोचा के खुलके बात करना ही ठीक है. वो एक अच्छी सेक्रेटरी थी और उसको खोना बेवकूफी होती
"यही के क्यूँ देख रहे थे ऐसे" वो आदत के मुताबिक अपनी बात पर आड़ गयी
"अरे यार मैं एक लड़का हूँ और तुम एक लड़की तो ये तो नॅचुरल सी बात है. तुम अचानक मेरे सामने ऐसे आ गयी तो थोड़ा अजीब लगा मुझे. एक लड़का होने की हिसाब से मेरी नज़र तो वहाँ जानी ही थी. नॅचुरल क्यूरीयासिटी होती है यार" मैने एक साँस में कह डाला
कमरे में फिर खामोशी च्छा गयी
"मैने घर जाकर इस बारे में बहुत सोचा" वो धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ी "और साची कहूँ तो तुम्हारा यूँ देखना अच्छा लगा मुझे. कम से कम इस बात का तो पक्का हो गया के मैं लड़की हूँ और लड़के मेरी तरफ भी देख सकते हैं"
मैने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा. वो मुस्कुरा रही थी. मेरी जान में जान आई
"थॅंक्स यार" वो मेरे सामने बैठते हुए बोली "मुझे तो डाउट होने लगा था के कोई लड़का कभी क्या मेरी तरफ देखेगा पर उस दिन तुम्हारी नज़र ने ये साबित कर दिया के मुझ में वो बात है"
"है तो सही" मैने हस्ते हुए जवाब दिया "बस थोड़ा सा अपना ख्याल रखा करो"
"ह्म्म्म्म" वो गर्दन हिलाते हुए बोली
"और आज तुमने वो नये कपड़े नही पहने?" मैने सवाल किया
"नही साथ लाई हूँ" वो खुश होती हुई बोली "सोचा के पहले तुमसे एक बार बात कर लूँ फिर ट्राइ करूँगी. अच्छा बताओ के तुम्हें सबसे अच्छी ड्रेस कौन सी लगी?
"वो स्कर्ट और टॉप" मैने सोचते हुए जवाब दिया
"मुझे भी" वो बच्चो की तरह चिल्ला पड़ी "मैं वही पहेन लेती हूँ"
"ओह नो" मैने कहा "अब फिर उधर घूमना पड़ेगा"
"ज़रूरत नही है" वो खड़ी होते हुए बोली "मैने ब्रा पहेन रखा है आज"
मुझे उसकी बात एक पल के लिए समझ नही आई और जब तक समझ आई तब तक देर हो चुकी थी. वो फिर से मेरे सामने ही कपड़े बदलने वाली थी और मुझे डर था के अगर वो फिर उसी तरह मेरे सामने आई तो मेरी नज़र फिर उसकी चूचियो पर जाएगी. मैने उसको रोकना चाहा ही था पर तब वो अपनी शर्ट के सारे बटन खोल चुकी थी और फिर मेरे देखते देखते उसने एक झटके में अपनी शर्ट उतार दी.
क्रमशः........................
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