Bhoot bangla-भूत बंगला
06-29-2017, 11:13 AM,
#8
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
मेरे पास करने को आज कुच्छ ख़ास नही था. आम तौर पर मेरे सॅटर्डे और सनडे रुक्मणी के साथ बिस्तर पर गुज़रते थे पर देवयानी के घर में होने की वजह से अब ये मुमकिन नही था. मैं काफ़ी देर तक बैठा न्यूसपेपर पढ़ता रहा. थोड़ी देर बाद रुक्मणी मुझे ब्रेकफास्ट के लिए बुलाने आई. उसको देखने से लग रहा था के वो कहीं जाने के लिए तैय्यर थी.

"कहाँ जा रही हो?" मैने उसको देखते हुए पुचछा

"कुच्छ काम है. थोड़ी देर में वापिस आ जाऊंगी. ब्रेकफास्ट टेबल पर मैने लगा दिया है खा लेना" उसने मुझसे कहा तो मैं हां में सर हिलाता खड़ा हो गया.

मैं नाहकार ब्रेकफास्ट के लिए टेबल पर आ बैठा. अभी मैं खा ही रहा था के देवयानी के कमरे का दरवाज़ा खुला और वो बाहर निकली. मैं उसको घर पर देखकर हैरान रह गया क्यूंकी मुझे लगा था के शायद वो भी रुक्मणी के साथ बाहर गयी होगी. पर शायद उसको देर तक सोने की आदत थी इसलिए रुक्मणी उसके बिना ही चली गयी थी.

"गुड मॉर्निंग" उसने मुझको देखते हुए कहा

मैने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए जवाब दिया. वो अपने कमरे के दरवाज़े पर खड़ी थी और उसके कमरे की खिड़की ठीक उसके पिछे खुली हुई थी. उसने एक सफेद रंग की नाइटी पहेन रखी थी. खिड़की से सूरज की रोशनी पिछे से कमरे के अंदर आ रही थी जिसके वजह से उसकी नाइटी पारदर्शी हो गयी थी और उसकी दोनो टाँगो का आकर नाइटी के अंदर सॉफ दिखाई दे रहा था. मैने एक पल के लिए उसको देखा और फिर नज़र हटाकर नाश्ता करने लगा.

"रुक्मणी कहाँ है?" उसने वहीं खड़े खड़े पुचछा

"कहीं बाहर गयी है. थोड़ी देर में आ जाएगी" मैने जवाब दिया

"वैसे आपकी रात कैसी गुज़री ?" वो मेरे सामने टेबल पर बैठते हुए बोली

"ठीक ही थी" मैने मुस्कुरा कर जवाब दिया

"नही मेरा मतलब के रात अकेले कैसे गुज़री? मेरे आने से काफ़ी प्राब्लम हो रही होगी आपको, नही?" उसने सामने रखा एक एप्पल उठाया और बड़ी मतलबी निगाह से मेरी तरफ देखते हुए एप्पल खाने लगी.

"क्या मतलब?" मैने सवाल किया

"मतलब सॉफ है आहमेद साहब. पहले हर रात मेरी बहेन आपके साथ बिस्तर पर होती थी और अब आपको मेरी वजह से अकेले सोना पड़ रहा है" उसने जवाब दिया

मेरा मुँह का नीवाला मेरे मुँह में ही रह गया और मैं चुपचाप उसकी तरफ देखने लगा. जबसे वो आई थी तबसे मैने उससे कोई बात नही की थी इसलिए इस बात का सवाल ही नही उठता के उसको मेरी बातों से मेरे और रुक्मणी के रिश्ते पर कोई शक उठा हो और ऐसा भी नही हो सकता था के रुक्मणी ने उससे कुच्छ कहा हो.

"क्या कह रही हैं आप?" मैने धीरे से कहा

"ओह कम ऑन इशान" उसने हस्ते हुए कहा "तुम्हें क्या मैं छ्होटी बच्ची लगती हूँ? जिस तरह से तुमने मुझे पिछे से किचन में आकर पकड़ा था ये सोचकर के मैं रुक्मणी हूँ उससे इस बात का सॉफ अंदाज़ा लग जाता है के तुम्हारे और मेरी बहेन के बीच क्या रिश्ता है"

मेरे सामने उसकी बात सॉफ हो गयी. मैने उस दिन किचन में उसको पकड़ लिया था ये सोचकर के वो रुक्मणी है और ये बात सॉफ इशारा करती थी के मेरे और रुक्मणी के शारीरिक संबंध थे. मैं खामोशी से उसको देखता रहा

"अरे क्या हुआ?" वो उठकर मेरे करीब आते हुए बोली "रिलॅक्स. मुझे कोई प्राब्लम नही है यार. तुम दोनो की अपनी ज़िंदगी है ये और मुझे बीच में दखल अंदाज़ी का कोई हक नही. मुझे कोई फरक नही पड़ता"

उसने कहा तो मेरी जान में जान आई वरना मुझे लग रहा था के कहीं ये इस बात पर कोई बवाल ना खड़ा कर दे. वो अब मेरे पिछे आ खड़ी हुई थी और दोनो हाथ मेरे कंधे पर रख दिए

"और वैसे भी" वो नीचे को झुकी और मेरे कान के पास मुँह लाकर बोली "तुम यहाँ मेरी बहेन के घर में फ्री में रहो तो उसके बदले उसको कुच्छ तो देना ही पड़ेगा ना. और ठीक भी तो है, उस बेचारी की भी अपनी ज़रूरत है जिसका ध्यान तुम रख लेते हो. फेर डील"

वो पिछे से मुझसे सटी खड़ी थी और उसके दोनो हाथ मेरे कंधो से होते हुए अब मेरी छाती सहला रहे थे. उसकी दोनो चूचिया मेरे सर के पिछे हिस्से पर दबे हुए थे.

"वैसे एक बात कहूँ इशान" उसने वैसे ही झुके झुके कहा "जिस तरह से उस दिन तुमने मुझे पकड़ा था, उससे मुझे अंदाज़ा हो गया था के तुम मेरी बहेन को काफ़ी खुश रखते होंगे. और इसलिए ही शायद वो तुम पर इतनी मेहरबान है"

मेरी समझ में नही आ रहा था के क्या करूँ. वो जिस तरह से मेरे साथ पेश आ रही थी उससे ये बात ज़ाहिर हो गयी थी के वो क्या चाहती है.

"मैं तो सिर्फ़ ये कहना चाह रही थी के मर्दानगी की कदर करना मैं भी चाहती हूँ" उसने अपने होंठ अब मेरे कानो पर रख दिए थे.

उसके दोनो हाथ अब भी मेरी छाती सहला रहे थे और धीरे धीरे नीचे को जा रहे थे. जो करना था वो खुद ही कर रही थी. मैं तो बस बैठा हुआ था. उसके हाथ मेरे पेट से होते हुए मेरे लंड तक पहुँचे ही वाले थी के ड्रॉयिंग रूम में रखे फोन की घंटी बजने लगी और जैसे हम दोनो को एक नींद से जगा दिया. वो फ़ौरन मेरे से हटकर खड़ी हो गयी और मैं भी उठ खड़ा हुआ. एक नज़र मैने उसपर डाली और ड्रॉयिंग रूम में आकर फोन उठाया.

फोन के दूसरी तरफ इनस्पेक्टर मिश्रा था

"यार तेरी बात तो एकदम सही निकली" फोन के दूसरी तरफ से उसकी आवाज़ आई

"कौन सी बात"" मैने एक नज़र देवयानी पर डाली जो मुझे खड़ी देख रही थी.

"वो अड्वर्टाइज़्मेंट वाली" मिश्रा ने जवाब दिया

"मतलब? कुच्छ पता चला क्या?" मेरा ध्यान देवयानी से हटकर मिश्रा की तरफ आया

"हाँ और अड्वर्टाइज़्मेंट का इतनी जल्दी जवाब आएगा ये तो मैने सोचा ही नही था. आज सुबह ही तो छपा था" मिश्रा की आवाज़ से ऐसा लग रहा था जैसे वो अभी कोई जुंग जीत कर आया हो

"किसका जवाब दिया?" मैने पुचछा

"मनचंदा की बीवी का. फोन आया थे मुझे. वो कहती है के जिस आदमी का डिस्क्रिप्षन हमने अख़बार में छापा है वो उसके पति का है जो पिछले 8 महीने से गया है" मिश्रा ने कहा

"कहाँ से आया था" मैने पुचछा

"मुंबई से" मिश्रा बोला "और तेरी दूसरी बात भी सही थी"

"कौन सी?" मैने पुचछा

"मनचंदा उसका असली नाम नही था. उसका असली नाम विपिन सोनी था. और उसकी बीवी का नाम है भूमिका सोनी" मिश्रा बोला

"गुजराती?" मैने सोनी नाम से अंदाज़ा लगाते हुए कहा

"नही राजस्थानी" मिश्रा ने कहा "वो मंडे को आ रही है बॉडी देखने के लिए. फिलहाल तो वो ऐसा कह रही है. पक्का तो बॉडी देखने के बाद ही कह सकती है"

"ह्म्‍म्म्म" मैने सोचते हुए कहा "चलो केस में कुच्छ तो आगे बढ़े"

"हाँ अब कम से कम उस बेचारे की लाश लावारिस तो नही बची" मिश्रा बोला

"पर एक बात समझ नही आई" मेरे दिमाग़ में अचानक एक ख्याल आया "ये अड्वर्टाइज़्मेंट तो हमने यहाँ के अख़बार में दिया था. उसको मुंबई में खबर कैसे लग गयी?"

"उसकी कोई दोस्त है जो इसी शहेर में रहती है. उसने पेपर देखा तो फोन करके सोनी बताया और उसके बाद उसने मुझे फोन किया"

"ह्म्‍म्म्म" मैने फिर हामी भारी

"तू आएगा?" मिश्रा बोला

"कहाँ?" मैने पुचछा

"यार मैं सोच रहा थे के जब वो आइडेंटिफिकेशन के लिए आए तो तू भी यहाँ हो. अब तक तेरी ही कही बात से ये केस थोड़ा आगे बढ़ा है. हो सकता है आगे भी तेरी सलाह काम आए" मिश्रा ने कहा

"ठीक है. मुझे टाइम बता देना" मैने जवाब दिया
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