RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--4
गतान्क से आगे.....................
मैं अंदर घुसते ही फ़ौरन दूसरी तरफ पलट गया.
"क्या हुआ? उधर क्या देख रहे हो?" उसने मेरी तरफ पीठ किए किए ही पुचछा
"उधर कुच्छ नही देख रहा. तेरी तरफ ना देखने की कोशिश कर रहा हूँ" मैने जवाब दिया
"क्यूँ?" प्रिया भोलेपन से बोली
"क्यूंकी तू इस वक़्त मेरे सामने आधी नंगी खड़ी है इसलिए" मैने जवाब दिया और फिर बाहर जाने लगा
"अरे कहाँ जा रहे हो? इधर आओ" वो मुझे रोकते हुए बोली. अब भी उसकी पीठ मेरी तरफ थी
"क्या?" मैं रुक गया. पर अब भी मैने दूसरी तरफ चेहरा किया हुआ था.
"अरे यार अब ये फ़िज़ूल की नौटंकी छ्चोड़ो" वो थोड़ा सा चिड़के बोली "ज़रा मेरे पिछे आकर ये हुक्स बंद करो. मुझसे हो नही रहे"
मुझे समझ नही आ रहा था के हो क्या रहा है. या तो ये लड़की बिल्कुल बेवकूफ़ है या मुझपर कुच्छ ज़्यादा ही भरोसा करती है.
"कुच्छ पहेन ले प्रिया" मैने कहा
"हाँ पहेन लूँगी पर ज़रा ये हुक्स तो बंद करो. जल्दी करो ना" वो खुद ही थोड़ा सा मेरी तरफ सरक गयी.
जब मैने देखा के उसके दिल में कुच्छ नही है और ना ही वो मुझसे ज़रा भी शर्मा रही है तो मैं भी उसकी तरफ घूम गया और उसके नज़दीक गया. स्कर्ट उसने सरका कर काफ़ी नीचे बाँध रखा था और उसकी पॅंटी उपेर से दिखाई दे रही थी. मैने एक नज़र उसकी नंगी कमर पर डाली तो अंदर तक सिहर उठा. आख़िर था तो एक लड़का ही ना. भले वो लड़की कोई भी थी पर सामने एक लड़की आधी नंगी हालत में खड़ी हो तो असर तो होना ही था. मेरा लंड मेरी पेंट में झटके मारने लगा. मैने आगे बढ़कर उसकी ब्रा के दोनो स्ट्रॅप्स पकड़े और हुक लगाने की कोशिश करने लगा. मेरे दोनो हाथ की उसकी उंगलियाँ उसकी नंगी कमर पर लगी तो हटाने का दिल नही किया. मैने 2-3 बार कोशिश की पर हुक बंद नही कर पाया. एक बार मैने ज़ोर से कोशिश की तो थोड़ा सा हिली और पिछे को मेरे और करीब हो गयी. वो मुझसे हाइट में छ्होटी थी इसलिए उसके पिछे खड़े हुए मेरी नज़र सामने सीधा उपेर से उसके क्लीवेज पर पड़ी और नज़र जैसे वहीं जम गयी. ब्रा में उसकी चूचिया मुश्किल से क़ैद हो पा रही थी. मेरा दिल किया के अपने हाथ आगे करके उन दोनो चूचियो को मसल डालूं.
फाइनली मैं हुक बंद करने में कामयाब हो गया. प्रिया ने जब देखा के हुक लग गया तो वो आगे को हुई और मेरे सामने ही घूम गयी और मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी.
"तुम कह रहे थे ने के मुझसे लड़की बन कर रहना चाहिए इसलिए मैने सोचा के ये भी ले ही लूँ" उसने कहा
पर मुझे तो जैसे उसकी आवाज़ आ ही नही रही थी. वाइट कलर के ब्रा में उसकी हल्की सावली चूचिया जैसे मुझपर कहर ढा रही थी. आधी से ज़्यादा चूचिया ब्रा के उपेर और साइड से लग रहा था मानो अभी गिर पड़ेंगी. मेरी नज़र वहीं जमकर रह गयी थी. मैने जब जवाब नही दिया तो प्रिया ने महसूस किया के मैं क्या देख रहा हूँ. उसने शर्मा कर अपने दोनो हाथ आगे कर लिए और फिर से दूसरी तरफ घूमकर खड़ी हो गयी.
तभी बाहर दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और मैं समझ गया के दुकान की मलिक वो औरत आ गयी है. प्रिया ने फ़ौरन आगे बढ़कर एक टॉप उठाया और मैं दरवाज़ा खोलकर स्टोर रूम से बाहर आ गया
थोड़ी देर बाद हम कपड़े उठाकर दुकान से निकल गये और बस स्टॉप की तरफ बढ़े जहाँ से प्रिया बस लेकर घर जाती थी. स्टोर रूम में मुझे अपनी तरफ यूँ देखता पाकर वो शायद थोडा शर्मा गयी थी इसलिए कुच्छ कह नही रही थी और मुझे भी बिल्कुल समझ नही आ रहा था के बात कैसे शुरू करूँ. हम दोनो चुप चाप चलते रहे.
थोड़ी ही देर में वो अपनी बस में बैठकर जा चुकी थी. मैने एक ठंडी आह भारी और अपनी कार की तरफ बढ़ गया.
शाम को तकरीबन 7 बजे मैं घर पहुँचा और ये देखकर राहत की सास ली के देवयानी घर पर नही थी.
"बाहर वॉक के लिए गयी है" रुक्मणी ने मुस्कुराते हुए मुझे बताया.
वो किचन में खड़ी खाना बना रही थी. मैने जल्दी से अपना समान वहीं सोफे पर रखा और किचन के अंदर दाखिल हुआ और रुक्मणी के पिछे जा खड़ा हुआ. मेरे हाथ उसकी कमर से होते हुए सीधा सामने उसकी चूचियो पर जा पहुँचा और मैं उसके गले को चूमते हुए उसकी चूचिया दबाने लगा. लंड पिछे से उसकी गांद से सॅट चुका था.
"क्या बात है बड़े मूड में लग रहे हो?" रुक्मणी आह भरते हुए बोली
मैं उसको कैसे बताता के प्रिया को यूँ ब्रा में देखकर लंड तबसे ही खड़ा हुआ है.
"कल रात तो आई नही थी ना" मैने लंड उसकी गांद पर रगड़ते हुए कहा
"वो देवयानी ..... "रुक्मणी कुच्छ कहना ही चाह रही थी के मैने उसको अपनी तरफ घुमाया और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए. मैने पागलों की तरह उसको चूमने लगा और वो भी उसी गर्मी से मेरा जवाब दे रही थी.
"बेडरूम में चलो" मैने रुक्मणी से कहा
"नही" उसने फ़ौरन जवाब दिया "देवयानी काफ़ी देर की गयी हुई है. आती ही होगी"
मैं समझ गया के वो कह रही थी के जो करना है जल्दी निपटा लें वरना कहीं ऐसा ना हो के देवयानी आ जाए और मामला अधूरा रह जाए. उसने उस वक़्त एक टॉप और नीचे पाजामा पहेन रखा था. उसको चूमते हुए मैने उसका टॉप उपेर उठाया और उसकी दोनो चूचिया हाथों में पकड़ ली. ब्रा उसने अंदर पहेन नही रखा था इसलिए टॉप उठाते ही चूचिया नंगी हो गयी. बहुत जल्द उसका एक निपल मेरे मुँह में था और दूसरा मेरे हाथ की उंगलियों के बीच.
"आआहह " रुक्मणी ने अपनी गर्दन पिछे झटकते हुए अपना हाथ सीधा मेरे लंड पर रख दिया और पेंट के उपेर से दबाने लगी.
आग काबू के बाहर हो रही थी. मैने उसके दोनो कंधे पकड़े और नीचे की और दबाया. वो मेरा इशारा समझकर फ़ौरन अपने घुटनो पर बैठ गयी और मेरी पेंट खोलने लगी. पेंट खोलकर उसने नीचे घुटनो तक खींची और मेरा लंड अपने मुँह में भर लिया.
उसकी इस अदा का मैं क़ायल था. वो जिस तरह लंड चूस्ति थी वो मज़ा उसको चोदने में भी नही था. जो मज़ा वो अपने मुँह और हाथ से देती थी उसके चलते कई बार तो मेरा दिल करता था के मैं बस उससे लंड चुस्वता रहूं, चोदु ही ना. और उस वक़्त भी वो वही कर रही थी. मेरे सामने बैठी वो मेरा लंड पूरा का पूरा अपने मुँह में ले लेती और अंदर उसपर जीभ फिराती. उसका एक हाथ मेरी बॉल्स सहला रहा था और दूसरे हाथ से वो लंड चूसने के साथ साथ मसल भी रही थी.
इससे पहले के मैं उसके मुँह में ही पानी गिरा देता, मैने उसको पकड़कर फिर से खड़ा किया और घूमकर हल्का सा झुका दिया. वो इशारा समझते हुए किचन में स्लॅब के उपेर झुक गयी और अपनी गांद उठाकर मेरे सामने कर दी. मैने उसका पाजामा और पॅंटी खींचकर उसको घुटनो तक कर दी और उसकी गांद को हाथों में थाम कर लंड चूत पर रखा.
"आआहह जल्दी करो" वो भी अब मेरी तरह जिस्म की आग में बुरी तरह झुलस रही थी और लंड चूत में लेने को मरी जा रही थी.
मैने लंड पर हल्का सा दबाव डाला और लंड के आगे का हिस्सा उसकी चूत के अंदर हो गया.
"पूरा घुसाओ" उसने झुके झुके ही कहा
मैने लंड थोडा बाहर खींचा और इस बार धक्का मारा तो रुका नही. लंड उसकी चूत में अंदर तक घुसता चला गया. वो कराह उठी. मैने उसका टॉप उपेर खींचा और पिछे से उसकी कमर सहलाते हुए फिर से हाथ आगे लाया और उसकी छतिया पकड़ ली.
"ज़ोर से दबाओ" रुक्मणी बोली तो मैं उसकी चूत पर धक्के मारता हुआ उसकी चूचिया ऐसे रगड़ने लगा जैसे उनसे कोई दुश्मनी निकल रहा था. पीछे उसकी चूत पर मेरे धक्के पूरी ताक़त के साथ पड़ रहे थे. हवा में एक अजीब सी वासना की खुसबु फेल गयी थी और हमारी आअहह की आवाज़ों के अलावा सिर्फ़ उसकी गांद पर पड़ते मेरे धक्को की आवाज़ सुनाई दे रही थी. मेरी खुद की आँखें भी बंद सी होने लगी थी और लग रहा था के किसी भी पल मेरा लंड पानी छ्चोड़ देगा. एक बार आँखें बंद हुई तो ना जाने सामने कैसे प्रिया का नंगा जिस्म फिर से आँखों में घूमने लगा और इस ख्याल ने मेरे मज़े को कई गुना बढ़ा दिया. मैने यूँ ही आँखें बंद किए प्रिया की चूचियो के बारे में सोचने लगा और पूरी तेज़ी के साथ रुक्मणी को चोदने लगा. मैं प्रिया के हर अंग के बारे में सोच रहा था. उसकी नंगी कमर, ब्रा में बंद चूचिया और उठी हुई गांद.
गांद का ख्याल आते ही मेरे हाथ अपने आपं रूमानी की गांद पर आ गये और मैं उसकी गांद सहलाने लगा. धक्को की रफ़्तार अब काफ़ी बढ़ चुकी थी और मैं जानता था के अब किसी भी वक़्त मैं ख़तम हो जाऊँगा. मैने रुक्मणी से गांद मारने के बारे में पुच्छने की सोची और उसकी एक अंगुली उसकी गांद में घुसाने की कोशिश की. अंगुली गांद पर महसूस होते ही वो फ़ौरन आगे को हो गयी और मना करने लगी. एक बार गांद मरवाने की कोशिश से वो इतनी डर गयी थी के अब अंगुली तक नही घुसाने देती थी.
"अंदर मत निकालना" वो मेरे धक्को की रफ़्तार से समझ गयी के मैं ख़तम होने वाला हूँ "बाहर गिराना"
मैने हाँ में गर्दन हिलाई और फिर से उसको चोदने लगा
थोड़ी ही देर बाद देवयानी आ गयी और हम सब खाना खाकर अपने अपने रूम्स में चले गये.
अगले दिन सॅटर्डे था और सॅटर्डे सनडे को मैं काम नही करता था. चाय पीते हुए मैने न्यूसपेपर खोला तो फ्रंट पेज पर ही मनचंदा के बारे में छपा हुआ था के पोलीस को उसके बारे में कोई जानकारी नही है और अगर कोई कुच्छ जनता है तो पोलीस से कॉंटॅक्ट करे.
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