Bhoot bangla-भूत बंगला
06-29-2017, 11:13 AM,
#5
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
रात को मैं बड़ी देर तक जागता रहा जिसका नतीजा ये निकला के मैं सुबह देर से उठा. भागता दौड़ता तैय्यार हुआ और ऑफीस जाने के बजाय सीधा कोर्ट पहुँचा जहाँ 11 बजे मुझे एक केस के सिलसिले में जाना था.

हियरिंग के बाद मैं ऑफीस पहुँचा. प्रिया सुबह से मुझे फोन मिलाने की कोशिश कर रही थी पर कोर्ट में होने की वजह से मैं फोन उठा नही सका.

ऑफीस पहुँचा तो वो मुझे देखते ही उच्छल पड़ी.

"कहाँ हो कल से इशान?" वो मुझे सर या बॉस कहने के बजाय मेरे नाम से ही बुलाती थी

"अरे यार सुबह बहुत देर से उठा था इसलिए ऑफीस आने के बजाय सीधा कोर्ट ही चला गया था" मैं बॅग नीचे रखता हुआ बोला

"एक फोन ही कर देते. मैं सुबह से परेशान थी के तुम हियरिंग के लिए पहुँचे के नही" उसने कहा तो मैं सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गया

"और कल कहाँ गायब हो गये थे?" उसने कल के बारे में सवाल किया

"दोपहर को ऑफीस आया तो तू नही थी. तभी वो इनस्पेक्टर मिश्रा आ गया और मुझे उसके साथ जाना पड़ा. शाम को वापिस आया तो तू घर जा चुकी थी" मैं हमेशा की तरह उसको अपने पूरे दिन के बारे में बताता हुआ बोला. हमेशा ऐसा ही होता था. वो मेरी ऑफीस के साथ साथ पर्सनेल लाइफ की सेक्रेटरी भी थी.

"हां वो मैं कल थोड़ा जल्दी चली गयी थी" वो मुस्कुराते हुए बोली "तुम नही आए तो मैने सोचा के मैं अकेले ही कुच्छ कपड़े ले आउ"

"कपड़े?" मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा

"हां वो तुमने ही कहा था ना. लड़कियों के जैसे कपड़े" उसने याद दिलाते हुए कहा

"अच्छा हां. तो कुच्छ पसंद आया?"

"हां लाई हूँ ना. तुम्हें दिखाऊँगी सोचकर कल घर ही नही ले गयी. यहीं छ्चोड़ गयी थी" कहते हुए उसने टेबल के पिछे से एक बॅग निकाला और उसमें से कुच्छ कपड़े निकालकर मुझे दिखाने लगी. 2 लड़कियों के टॉप्स और 2 जीन्स थी. रंग ऐसे थे के अगर वो उनको पेहेन्के निकलती तो गली कर हर कुत्ता उसके पीछे पड़ जाता. पर मैं उसका दिल नही तोड़ना चाहता था इसलिए कुच्छ नही कहा.

"कैसे हैं?" उसने खुश होते हुए कहा

"अच्छे हैं" मैने जवाब दिया. सच तो ये था के वो कपड़े अगर कोई फ्री में भी दे तो मेरे हिसाब से इनकार कर देना चाहिए था

"मुँह उधर करो" उसने मुझसे कहा और आगे बढ़कर ऑफीस का गेट अंदर से लॉक कर दिया

"मतलब? क्यूँ?" मुझे उसकी बात कुच्छ समझ नही आई

"अरे पेहेन्के दिखाती हूँ ना. अब यहाँ कोई सेपरेट रूम या चेंजिंग रूम तो है नही. तो तुम मुँह उधर करो मैं चेंज कर लेती हूँ" उसने खिड़की बंद करते हुए कहा

"तू पागल हो गयी है?" मुझे यकीन नही हुआ के वो पागल लड़की क्या करने जा रही थी "यहाँ चेंज करेगी? बाद में पेहेन्के दिखा देना अभी रहने दे"

"नही. अगर ठीक नही लगे तो आज शाम को वापिस कर दूँगी. आज के बाद वो वापिस नही लेगा" उसने एक टॉप निकालते हुए कहा

"तो वॉशरूम में जाके चेंज कर आ" मैने उसे लॅडीस रूम में जाने को कहा. बिल्डिंग के उस फ्लोर पर एक कामन टाय्लेट था.

"पागल हो? वहाँ कितना गंदा रहता है. अब तुम उधर मुँह करो जल्दी" कहते हुए उसने अपनी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए. मेरे पास कोई चारा नही बचा सिवाय इसके के मैं दूसरी तरफ देखूं.

थोड़ी देर तक कपड़े उतारने और पहेन्ने की आवाज़ आती रही.

"अब देखो" उसने मुझसे कहा और मैं पलटा. उस एक पल में मैं 2 चीज़ें एक साथ महसूस की. एक तो मेरा ज़ोर से हस्ने का दिल किया और दूसरा मैं हैरत से प्रिया की तरफ देखने लगा.

वो हल्के सावले रंग की थी और उसपर वो भड़कता हुआ लाल रंग का टाइट टॉप लाई थी जो उसपर बहुत ज़्यादा अजीब लग रहा था. ये देखकर मेरा हस्ने का दिल किया. पर जिस दूसरी बात ने मेरा ध्यान अपनी तरफ किया वो था प्रिया का जिस्म. वो हमेशा लड़को के स्टाइल की ढीली सी शर्ट और एक ढीली सी पेंट पहने रखती थी और उसपर से लड़को के जैसा ही अंदाज़. मैने कभी उसको एक लड़की के रूप में ना तो देखा था और ना ही सोचा था पर आज वो मेरे सामने एक टाइट टॉप और उतनी ही टाइट जीन्स में खड़ी थी. आज मैने पहली बार नोटीस किया के वो आक्चुयल में एक लड़की है और बहुत खूब है. उसकी चूचिया उस टाइट टॉप में हद से ज़्यादा बड़ी लग रही थी. लग रहा था टॉप फाड़के बाहर आ जाएँगी. मेरी नज़र अपने आप ही उसकी चूचियो पर चली गयी. एक नज़र पड़ते ही मैं समझ गया के उसने अंदर ब्रा नही पहेन रखा था. उसके दोनो निपल्स कपड़े के उपेर सॉफ तौर पर उभर आए थे. दिल ही दिल में मैं ये सोचे बिना नही रह सका के उसकी चूचिया इतनी बड़ी थी और आज तक मैने कभी ये नोटीस नही किया

"कैसी लग रही हूँ?" उसने इठलाते हुए पुचछा तो मेरा ध्यान उसकी चूचियो से हटा. और अगले ही पल उसने जो हरकत की उससे मेरा दिल जैसे मेरे मुँह में आ गया. वो मुझे दिखाने के लिए घूमी और अपनी पीठ मेरी तरफ की. लड़कियों के जिस्म का एक हिस्सा मेरी कमज़ोरी है, उनकी गांद और प्रिया की गांद तो ऐसी थी जैसी मैने कभी देखी ही नही थी. उसने रुक्मणी और देवयानी को भी पिछे छ्चोड़ दिया था. वो हमेशा एक ढीली सी पेंट पहने रहती थी इसलिए आज से पहले कभी मुझे ये बात नज़र ही नही आई थी.

"बहुत अच्छी लग रही हो" वो फिर से मेरी तरफ पलटी तो मैने कहा.

"दूसरा पेहेन्के दिखाती हूँ" उसने कहा और दूसरी जीन्स उठाई

मैं हमेशा उसको एक सॉफ नज़र से देखता था और उसके लिए मेरे दिल में कोई बुरा विचार नही था. पर आज उसको यूँ देख कर एक पल के लिए मेरी नीयत बिगड़ गयी थी और मुझे दिल ही दिल में इस बात का अफ़सोस हुआ. मैने फ़ौरन उसको रोका

"अभी नही. शाम को. अभी वो मिश्रा आने वाला है" मैने बहाना बनाते हुए कहा.

"मिश्रा?" उसने मेरा झूठ मान लिया.

"हाआँ. तुम दोबारा पहले वाले कपड़े पहेन लो" मैने कहा और फिर से दूसरी तरफ पलट गया ताकि वो चेंज कर सके. पलटने से पहले मैने एक आखरी नज़र उसके कपड़ो पर डाली. मुझे वहाँ कोई ब्रा नज़र नही आया. प्रिया ने ब्रा पहेन भी नही रखा था. इसका मतलब सॉफ था के वो ब्रा पेहेन्ति ही नही थी जिसपर मुझे बहुत हैरत हुई. इतनी बढ़ी चूचिया और ब्रा नही पेहेन्ति?

नाम लिया और शैतान हाज़िर. ये कहवात मैने कई बार सुनी थी पर उस दिन सच होते भी देखी. मैने प्रिया से मिश्रा के बारे में झूठ कहा था पर वो सच में 15 मिनट बाद ही आ गया.

"क्या कर रहा है?" उसने ऑफीस में आते हुए पुचछा

"कुच्छ ख़ास नही" मैने कहा

"मेरे साथ चल रहा है? तेरी कॉलोनी ही जा रहे हैं. वो बंगलो नो 13 जाना है इन्वेस्टिगेशन के लिए तो मैने सोचा के तुझे साथ लेता चलूं. पहले सोच रहा था के फोन करूँ पर फिर चला ही आया" मिश्रा बिना मुझे बोलने का मौका दिए बोलता ही चला गया

मैने प्रिया की तरफ देखा. वो गुस्से से मुझे घूर रही थी. मेरा झूठ पकड़ा गया था. वो समझ गयी थी के मैने उसे झूठ कहा था के मिश्रा आ रहा है.

मैं मिश्रा के साथ हो लिया और थोड़ी ही देर बाद हम दोनो फिर से बंगलो नो 13 के अंदर आ खड़े हुए. आखरी बार जब मैं इस घर में आया था तो ये घर था पर अब एक पोलीस इन्वेस्टिगेशन सीन. मिश्रा ने मुझे इशारे से कमरे का वो कोना दिखाया जहाँ मनचंदा की लाश मिली थी. देखकर ही मेरे जिस्म में एक अजीब सी ख़ौफ्फ की लेहायर दौड़ गयी.

अगले 2 घंटे तक मैं, मिश्रा और 2 कॉन्स्टेबल्स बंगलो की तलाशी लेते रहे इस उम्मीद में के हमें कुच्छ ऐसा मिल जाए जो इस बात की तरफ इशारा करे के मनचंदा कौन था पर हमें कामयाभी हासिल नही हुई. कोई लेटर, टेलिग्रॅम तो दूर की बात, हमें पूरे घर में कहीं कुच्छ ऐसा नही मिला जो मनचंदा ने लिखा हो. उसके ड्रॉयर में एक डाइयरी थी जो खाली थी. उसके पर्स से भी हमें किसी तरह का कोई पेपर नही मिला. मोबाइल वो रखता नही था इसलिए वहाँ से किसी का कोई फोन नंबर मिलने का ऑप्षन तो कभी था ही नही. उसके किसी कपड़े पर भी ऐसा कोई निशान नही था जिसे देखके ये अंदाज़ा लगाया जा सके के वो कपड़े कहाँ से खरीदे गये थे. वो आदमी तो जैसे खुद एक भूत था.

ये बंगलो एक लंबे अरसे से खाली पड़ा था. मकान मलिक कहीं और रहता था और कोई भूत बंगलो को किराए पर लेने को तैय्यार नही था. इसलिए जब मनचंदा ने घर किराए पर माँगा तो मकान मलिक ने बिना कुच्छ पुच्छे फ़ौरन हाँ कर दी. हमने उससे बात की तो पता चला के उसके पास भी मनचंदा के नाम की सिवा कोई और जानकारी नही थी. मनचंदा ने जब बंगलो लिया था तो 2 महीने का किराया अड्वान्स में दिया था और उसके बाद हर महीने किराया कॅश में ही दिया. कभी किसी किस्म का कोई चेक़ मनचंदा ने नही दिया था.

कमरे में रखा सारा फर्निचर नया था. उसपर लगे स्टिकर्स से हमने दुकान का नंबर हासिल किया और फोन मिलाया. पता चला के मनचंदा ने खुद सारा फर्निचर खरीदा था और कॅश में पे किया था. तो वहाँ भी कोई स्चेक या क्रेडिट कार्ड की उम्मीद ख़तम हो गयी. पूरे घर में 2 घंटे भटकने के बाद ना तो हमें मनचंदा के बारे में कुच्छ पता चला और ना ही घर में आने का मैं दरवाज़े के साइवा कोई और रास्ता मिला. तक हार कर हम दोनो वहीं पड़े एक सोफे पर बैठ गये.

"कौन था ये आदमी यार" मिश्रा बोला "नाक का दम बन गया साला. आज का पेपर देखा तूने. हर तरफ यही छपा हुआ है के भूत बंगलो में खून हुआ है"

मैने हाँ में सर हिलाया

"समझ नही आ रहा के क्या करूँ" मिश्रा बोला "कहाँ से पता लगाऊं के ये कम्बख़्त कौन था और यहाँ क्या करने आया था. मर्डर वेपन तक नही मिला है अब तक. मैने पिच्छले एक साल की रिपोर्ट्स देख डाली पर किसी मनचंदा के गायब होने की कोई रिपोर्ट नही है"

"और ना ही ये समझ आया के खून जिसने किया था वो घर से निकला कैसे" मैने आगे से एक बात और जोड़ दी.

"हां" मिश्रा ने हाँ में सर हिलाया "वो खूनी भी और वो 2 लोग भी जिन्हे तूने घर में देखा था"

"क्या लगता है?" मैने मिश्रा की और देखा "बदले के लिए मारा है किसी ने उसको?"

"लगता तो यही है. घर से कुच्छ भी गायब नही है इसलिए चोरी तो मान ही नही सकते. और जिस हिसाब से तू कह रहा था के खुद मनचंदा ने ये कहा था के कुच्छ लोग उसको नुकसान पहकूंचना चाहते हैं तो उससे तो यही लगता है के किसी ने पुरानी दुश्मनी के चलते मारा है. पर उस दुश्मनी का पता करने के लिए पहले ये तो पता लगा के ये आदमी था कौन"

"एक काम हो सकता है" मैने कहा

"क्या?" मिश्रा ने फुरण मेरी तरफ देखा

"पेपर्स में छप्वा दे उसके बारे में" मैने कहा तो मिश्रा ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगा

"मैं छप्वा दूँ? अबे आज के पेपर्स भरे पड़े हैं इस खून के बारे में" उसने मेरा मज़ाक उड़ाते हुए कहा

"हां पर सिर्फ़ खून हुआ है ये लिखा है पेपर्स में. तू ये छप्वा दे के पोलीस नही जानती के मरने वाला कौन है और अगर कोई इस आदमी को पहचानता है तो सामने आए" मैने कहा

"बात तो तेरी ठीक लग रही है पर यार जाने कितने लोग मरते हैं रोज़ारा हमारे देश में. किसी कोई कैसे पता चलेगा के ये आदमी उनका ही रिश्तेदार था?" वो बोला

"2 बातें. उसके चेहरे पर एक अजीब सा निशान था जैसे किसी ने चाकू मारा हो और दूसरा उसके हाथ की छ्होटी अंगुली आधी गायब थी. ये बात छप्वा दे. कोई ना कोई तो आ ही जाएगा अगर इसका कोई रिश्तेदार था तो" मैने कहा तो मिश्रा मुस्कुराने लगा
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RE: Bhoot bangla-भूत बंगला - by sexstories - 06-29-2017, 11:13 AM

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