Bhoot bangla-भूत बंगला
06-29-2017, 11:13 AM,
#4
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--3

गतान्क से आगे.......................

मुझे उसकी बात पर जैसे यकीन ही नही हो रहा था. कुच्छ देर तक मैं खामोशी से खाना ख़ाता रहा. समझ नही आ रहा था के क्या कहूँ. कल रात ही तो मैं मनचंदा को अच्छा भला छ्चोड़के आया था.

"कब हुआ ये?" मैने खाना खाते हुए पुचछा

"कल रात किसी वक़्त. एग्ज़ॅक्ट टाइम तो पोस्ट-मॉर्टेम के बाद ही पता चलेगा." मिश्रा ने मेरी तरफ बड़ी गौर से देखते हुए कहा

"ऐसे क्या देख रहा है?" मैने पुचछा

"तू कल था ना उसके साथ. मनचंदा के? रात को?" उसने कहा तो मैं चौंक पड़ा.

"तुझे कैसे पता?" मैं पुचछा

"सामने ही पोलीस चोवकी है. पोलिसेवाले ने बताया के कल रात उसने तुम दोनो को एक साथ बंगलो के अंदर जाते देखा था" मिश्रा बोला.

"तुझे क्या लगता है?" मैने मुस्कुराते हुए कहा "मैने मारा है उसको?"

मिश्रा खाना खा चुका था. वो हाथ धोने के लिए उठ खड़ा हुआ

"चान्सस कम ही हैं. तेरे पास उसको मारने की कोई वजह नही थी और घर से कुच्छ भी गायब नही है तो नही, मुझे नही लगता के तूने उसको मारा है" वो हाथ धोते हुए बोला

हम दोनो पोलीस स्टेशन में बैठे खाना खा रहे थे. जब मैने भी ख़तम कर लिया तो मैं भी हाथ धोने के लिए उठ गया. एक कॉन्स्टेबल आकर टेबल से प्लेट्स उठाने लगा

"शुक्रिया" मैने मिश्रा से कहा "के आपने मुझे सस्पेक्ट्स की लिस्ट से निकाल दिया"

"वो छ्चोड़" मिश्रा वापिस अपनी सीट पर आकर बैठते हुए बोला "तुझे कुच्छ अजीब लगा था कल रात को जब तू मनचंदा से मिला था?"

"मुझे तो वो आदमी और उससे जुड़ी हर चीज़ अजीब लगती थी. पर हां कुच्छ ऐसा था जो बहुत ज़्यादा अजीब था" मैने कहा और कल रात की मनचंदा के साथ अपनी मुलाक़ात उसको बताने लगा.

"अजीब बात ये थी यार के मुझे पूरा यकीन है के मैने खिड़की पर 2 लोगों को खड़े देखा था पर जब मैं उसके साथ अंदर गया तो वहाँ कोई नही था" मैने अपनी बात ख़तम करते हुए कहा

"हो सकता है वो लोग छुप गये हों" मिश्रा बोला तो मैं इनकार में सर हिलने लगा

"मनचंदा जाने क्यूँ मुझे इस बात का यकीन दिलाना चाहता था के घर में कोई नही है इसलिए उसने मुझे घर का एक एक कोना दिखाया था. यकीन मान मिश्रा घर में कोई नही था. जिसे मैने खिड़की पर देखा था वो लोग जैसे हवा में गायब हो गये थे." मैने कहा

"तूने कहा के तू दरवाज़ा खटखटने के बाद जब किसी ने नही खोला तो पोलीस चोवकी की तरफ गया था. हो सकता है उस दौरान वो निकलकर भाग गये हों" उसने अपना शक जताया

"नही. मैं बंगलो से मुश्किल से 5 कदम की दूरी पर गया था और जहाँ मैं और मनचंदा खड़े बात कर रहे थे वहाँ से हमें बंगलो का दरवाज़ा सॉफ नज़र आ रहा था. बल्कि हम दोनो तो ख़ास तौर से बंगलो की तरफ ही देख रहे थे. अगर कोई बाहर निकलता तो हमें ज़रूर पता चलता." मैने कहा

"अजीब कहानी है यार." मिश्रा बोला "इस छ्होटे से शहर में जितना मश-हूर वो बंगलो है उतना ही ये केस भी होगा. भूत बंगलो में अजीब हालत में मर्डर हुआ, ये हेडलाइन होगी का न्यूसपेपर की. मीडीया वाले मरे जा रहे हैं मुझसे बात करने के लिए. कहानी ही अजीब है"

"पूरी बात बता" मैने सिगेरेत्टे जलाते हुए कहा

"सुबह घर की नौकरानी ने दरवाज़ा खोला और अंदर मनचंदा को मरा हुआ पाया. वो उसी वक़्त चिल्लती हुई बाहर निकली और चोवकी से पोलिसेवाले को बुलाके लाई जिसने फिर मुझे फोन किया. जब मैं वहाँ पहुँचा तो घर का सिर्फ़ वो दरवाज़ा खुला था जो नौकरानी ने खोला था. उसके अलावा घर पूरी तरह से अंदर से बंद था और नौकरानी के खोलने से पहले वो दरवाज़ा भी अंदर से ही बंद था. तो मतलब ये है के मनचंदा का खून उस घर में हुआ जो अंदर से पूरी तरह से बंद था" मिश्रा बोला

"कम ओन मिश्रा. घर के मेन डोर की और भी चाबियाँ हो सकती हैं यार या फिर हो सकता हो किसी ने बिना चाबी के लॉक खोला हो" मैने कहा

"नही" मिश्रा ने फिर इनकार में गर्दन हिलाई " घर के अंदर लॉक के सिवा एक चैन लॉक भी है. वो नौकरानी काफ़ी वक़्त से उस घर में काम कर रही है इसलिए जानती है के चैन लॉक के हुक दरवाज़े के पास किस तरफ है इसलिए वो अपने साथ हमेशा एक लकड़ी लेके जाती है. दरवाज़े का लॉक खोलने के बाद हल्का सा गॅप बन जाता है जिसमें से वो लड़की अंदर घुसकर चैन लॉक को हुक से निकाल देती थी. मैं खुद वो चैन लॉक देखा. ये मुमकिन है के उसे बाहर से किसी चीज़ की मदद से हुक से निकाला जा सके पर ऐसा बिल्कुल भी मुमकिन नही है के बाहर खड़े होके वो चैन वापिस हुक में फसाई जा सके" मिश्रा बोला

"और सुबह वो चैन अपने हुक में थी. याकि के चैन लॉक लगा हुआ था" मैने कहा तो मिश्रा ने हां में सर हिलाया

"तो इसलिए उसका खून घर में उस वक़्त हुआ जब वो घर में बिल्कुल अकेला था." मिश्रा बोला "और फिर सामने चोवकी पर जो पोलिसेवला था उसने मुझे बताया के बंगलो में तेरे निकालने के बाद ना तो कोई अंदर गया और ना ही कोई बाहर आया"

"स्यूयिसाइड?" मैने फिर शक जताया

"नही. जिस अंदाज़ में उसपर सामने से वार किया गया था, ऐसा हो ही नही सकता के उसने खुद अपने दिल में कुच्छ घुसा लिया हो. और फिर हमें वो हत्यार भी नही मिला जिससे उसका खून हुआ था. तो ऐसा नही हो सकता के उसने स्यूयिसाइड की हो और मरने से पहले हत्यार च्छूपा दिया हो" मिश्रा बोला

"रिश्तेदारों को खबर की तूने?" मैने पुचछा

"ये दूसरी मुसीबत है" मिश्रा बोला "सला पता ही नही के वो कौन था कहाँ से आया था. मैने बंगलो के मलिक से बात की पर उसको भी नही पता. उसने तो मनचंदा को बिना सवाल किए ही बंगलो किराए पर दे दिया था क्यूंकी उस घर में वैसे भी कोई रहने को तैय्यर नही था."

"तो अब क्या इरादा है?" मैने मिश्रा से पुचछा

"ये केस बहुत बड़ा बनेगा यार क्यूंकी वो साला बंगलो बहुत बदनाम है. मीडीया वाले इस केस को खूब मिर्च मसाला लगाके पेश करेंगे. अब मुसीबत ये है के पहले ये पता करो के मरने वाला था कौन, फिर ये पता करो के किसने मारा और क्यूँ मारा" मिश्रा गुस्से में बोला

मिश्रा के पास से मैं जब वापिस आया तो शाम हो चुकी थी. मैं ऑफीस पहुँचा तो प्रिया वहाँ से जा चुकी थी. मैं ऑफीस से कुच्छ फाइल्स उठाई और उन्हें लेकर वापिस घर आया. घर पहुँचा तो रुक्मणी जैसे मुझे मनचंदा के खून के बारे में बताने को मरी जा रही थी. मैं उसका एग्ज़ाइट्मेंट खराब नही करना चाहता था इसलिए मैने उसकी पूरी बात ऐसे सुनी जैसे मुझे पता ही नही के मनचंदा का खून हो चुका था.

मुझे अपनी ज़रूरत का कुच्छ समान खरीदना था इसलिए शाम को तकरीबन 8 बजे मैं घर से मार्केट के लिए निकला. जाते हुए मैं बंगलो 13 के सामने से निकलत तो दिल में एक अंजना सा ख़ौफ्फ उतर गया. पहली बार उस घर को देखकर मैं तेज़ कदमों से उसके सामने से निकल गया. सिर्फ़ एक यही ख्याल मेरे दिमाग़ में आ रहा था के कल तक इस घर में एक ज़िंदा आदमी रहता था और जो आज नही है. क्या सच में ये घर मनहूस है? समान खरीदते हुए भी पूरा वक़्त यही ख्याल मेरे दिमाग़ में चलता रहा के उसको किसने मारा और क्यूँ मारा?

रात को करीब 10 बजे मैं घर लौटा. रुक्मणी मुझे कहीं दिखाई नही दी. अपने कमरे में समान रखकर मैं किचन में पहुँचा. मुझे बहुत ज़ोर से भूख लगी थी और मैं जल्द से जल्द कुच्छ खाना चाहता था. किचन में पहुँचा तो वहाँ रुक्मणी खड़ी हुई कुच्छ फ्राइ कर रही थी.

उसे पिछे से देखते ही जैसे मेरी भूख फ़ौरन ख़तम हो गयी. रुक्मणी के जिस्म का जो हिस्सा मुझे सबसे ज़्यादा पसंद था वो उसकी गांद थी. लगता था जैसे बनानेवाले ने उसको बनाते हुए सबसे ज़्यादा ध्यान उसके जिस्म के इसी हिस्से पर दिया था और बड़ी फ़ुर्सत में बनाया था. उसकी गांद जिस अंदाज़ में उठी हुई थी और चलते हुए जैसे हिलती थी उसे देखकर अच्छे अच्छे का दिल मुँह में आ जाए. वो उस वक़्त वही नाइटी पहने खड़ी थी जो उसने कल रात पहेन रखी थी. वो ढीली सी नाइटी उसके घुटनो तक आती थी और जिस तरह से उसकी गांद उस नाइटी में दिखाई देती थी, वो देखकर ही मैं दीवाना हो जाता था. इस उमर में भी उसका जिस्म बिल्कुल कसा हुआ था. कई बार मैने बिस्तर पर उसकी गांद मारने की भी कोशिश की थी पर उसने करने नही दिया. एक बार जब मैने लंड घुसाने की कोशिश की तो वो दर्द से चिल्ला उठी थी और उसके बाद उसने मुझे कभी कोशिश करने नही दी.

उसको किचन में पिछे से देखकर मेरा लंड फिर से ज़ोर मारने लगा. मैं धीरे से चलता हुआ उसके करीब पहुँचा और पिछे से दोनो हाथ उसकी बगल से लाकर उसकी दोनो चूचियो पर रख दिए और लंड उसकी गांद से सटा दिया.

"ओह रुक्मणी" मैने उसके कान में बोला " खाना बाद में. फिलहाल थोड़ा सा झुक जाओ ताकि मैं पहले तुम्हें खा सकूँ"

मेरे यूँ करीब आते ही वो ऐसे चोन्कि जैसे 1000 वॉट का करेंट लगा हो और मुझसे फ़ौरन अलग हुई. उसकी इस अचानक हरकत से मैं लड़खदाया और गिरते गिरते बचा. वो मुझसे थोड़ी दूर हो पलटी और उसको देखकर मेरी आधी साँस उपेर और आधी नीचे रह गयी. जो औरत मेरे सामने खड़ी थी वो रुक्मणी नही कोई और थी.

वो आँखें खोले हैरत से मेरी तरफ देख रही थी और मैं उसकी तरफ. हम दोनो में से कोई कुच्छ नही बोला. उसका चेहरा रुक्मणी से बहुत मिलता था और कद काठी भी बिल्लुल रुक्मणी जैसी ही थी. तभी किचन के बाहर कदमों की आहट से हम दोनो संभाल गये. रुक्मणी किचन में आई और मुझे वहाँ देखकर मुस्कुराइ.

"आ गये" उसने कहा और फिर सामने खड़ी औरत की और देखा "देवयानी ये इशान है. मैने बताया था ना. और इशान ये मेरी बहेन देवयानी है. अभी 1 घंटा पहले ही आई है."

मुझे ध्यान आया के कई बार रुक्मणी ने मुझे अपनी छ्होटी बहेन के बारे में बताया था जो लंडन में रहती थी और रुक्मणी से 2 साल छ्होटी थी. वो किसी कॉलेज में प्रोफेसर थी और कभी शादी नही की थी. तभी ये कम्बख़्त रुक्मणी से इतनी मिलती है, बहेन जो है, मैने दिल ही दिल में सोचा और उसको देखकर मुस्कुराया. वो भी जवाब में मुस्कुराइ तो मेरी जान में जान आई के ये रुक्मणी से कुच्छ नही कहेगी. "मैं सोच रही थी के तुम्हें बताऊंगी के देवयानी आने वाली है पर भूल गयी." रुक्मणी ने कहा . मैने हां में सर हिलाया और फ़ौरन किचन से बाहर निकल गया.

उस रात मैं बिस्तर पर अकेला ही था. देवयानी के आने से रूमानी आज रात अपने कमरे में ही सो रही थी ताकि अपनी बहेन से बात कर सके. बिस्तर पर लेते हुए मैं जाने कब तक बस करवट ही बदलता रहा. नींद आँखों से कोसो दूर थी. बस एक ही ख्याल दिमाग़ में चल रहा था के मनचंदा को किसने मारा. और जो बात मुझे सबसे ज़्यादा परेशान कर रही थी के घर में कोई होते हुई भी मुझे कल रात अंदर कोई क्यूँ नही मिला? ऐसा कैसे हो सकता है के 2 लोग खड़े खड़े हवा में गायब हो गये. और बंद घर में मनचंदा का खून हुआ कैसे?
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