RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
गाँव का राजा पार्ट -11
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी गाँव का राजा पार्ट -11 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
"अरे मा उसकी कोई ज़रूरत नही है….मैं अभी निकलता हू…" कहते हुए मुन्ना उठ कर लूँगी पहन ने लगा. शीला देवी अपने बेटे के मजबूत बदन को घूरती हुई बोली "ना..ना अकेले तो जाना ही नही है….किसी नौकर को नही ले जाना तो मैं चलती हूँ…" इस धमाके ने मुन्ना के लूँगी की ओर बढ़ते हाथो को रोक दिया. कुच्छ देर तक तो वो शीला देवी का चेहरा असचर्या से देखता रह गया. फिर अपने आप को संभालते हुए बोला "ओह मा तुम वाहा क्या करने जाओगी…मैं अकेला ही…"
"नही मैं भी चलती हू…बहुत टाइम हो गया…बहुत पहले गर्मियों में कई बार चौधरी शहिब के साथ वाहा पर सोई हू….कई बार तो रात में ही हमने आम तोड़ के खाए है…चल मैं चलती हू...". मुन्ना विरोध नही कर पाया.
"ठहर जा ज़रा टॉर्च तो ले लू…."
फिर शीला देवी टॉर्च लेकर मुन्ना के साथ निकल पड़ी. शीला देवी ने अपनी साड़ी बदल ली थी और अपने आप को सवार लिया था. मुन्ना ने अपनी मा को नज़र भर कर देखा एक दम बनी ठनी, बहुत खूबसूरत लग रही थी. मुन्ना की नज़रो को भापते हुए वो हस्ते हुए बोली "क्या देख रहा है…" हस्ते समय शीला देवी की गालो में गड्ढे पड़ते थे.
" कुच्छ नही मैं सोच रहा था तुम्हे कही और तो नही जाना…" शीला देवी के होंठो पर मुस्कुराहट फैल गई. हस्ते हुए बोली "ऐसा क्यों…मैं तो तेरे साथ बगीचे पर चल..."
"नही तुमने साड़ी बदली हुई है तो…"
"वो तो ऐसे ही बदल लिया…क्यों अच्छा नही लग रहा…"
"नही बहुत अच्छा लग….तुम बहुत सुंदर…" बोलते हुए मुन्ना थोड़ासा सरमाया तो शीला देवी हल्के हँस दी. शीला देवी के गालो में पड़ते गड्ढे देख मुन्ना के बदन में सिहरन हो गई. मुन्ना थोड़ा धीरे चल रहा था. मा के पीछे चलते हुए उसके मस्ताने मटकते चूतरो पर नज़र पड़ी तो उसका मन किया की धीरे से पिछे से शीला देवी को पकड़ ले और लंड को गांद की दरार में लगा कर प्यार से उसके गालो को चूसे. उसके गालो के गड्ढे में अपनी जीभ डाल कर चाट ले. पीछे से साड़ी उठा कर उसके अंदर अपना सिर घुसा दे और दोनो चूतरों को मुट्ठी में भर कर मसल्ते हुए गांद की दरार में अपना मुँह घुसा दे. बहुत दिन हो गये थे किसी की गांद चाटे, पर इसके लिए उर्मिला देवी जैसी खूबसूरत गदराई जवानी भी तो चाहिए. मामी के साथ बिताए पल याद आ गये जब वो किचन में काम करती मुन्ना पिछे से गाउन उठा उसके अंदर घुस कर चूत और गांद चाट ता था. मा की तो मामी से भी दो कदम आगे होगी. कितनी गतीली और सुंदर लग रही है. लूँगी के अंदर लंड तो फरफदा रहा था मगर कुच्छ कर नही सकता था. आज तो लाजवंती का भी कोई चान्स नही था. तभी ध्यान आया कि लाजवंती को तो बताया ही नही. डर हुआ कि कही वो मा के सामने आ गई तो क्या करूँगा. और वही हुआ बगीचे पर पहुच कर खलिहान या मकान जो भी कहिए उसका दरवाजा ही खोला था कि बगीचे की बाउंड्री का गेट खोलती हुई लाजवंती और एक और औरत घुसी. अंधेरा तो बहुत ज़यादा था मगर फिर भी किसी बिजली के खंभे की रोशनी बगीचे में आ रही थी. शीला देवी ने देख लिया और बोली "कौन घुस रहा है बगीचे में…" मुन्ना ने भी पलट कर देखा, तुरंत समझ गया की लाजवंती होगी. इस से पहले की कुच्छ बोल पाता शीला देवी की कॅड्क आवाज़ पूरे बगीचे में गूँज गई "कौन है रे….ठहर अभी बताती हू.." इसके साथ ही शीला देवी ने दौड़ लगा दी " साली आम चोर कुतिया….ठहर वही पर…." भागते भागते एक डंडा भी हाथ में उठा लिया था. शीला देवी की कदकती आवाज़ जैसे ही लाजवंती के कानो में पड़ी उसकी तो गांद का पाखाना तक सुख गया. अपने साथ लाई औरत का हाथ पकड़ घसीटती हुई बोली "ये तो चौधरैयन…है….चल भाग…" दोनो औरते बेतहाशा भागी. पीछे शीला देवी हाथ में डंडा लिया गालियो की बौच्हर कर रही थी. दोनो जब बाउंड्री के गेट के बाहर भाग गई तो शीला देवी रुक गई. गेट को ठीक से बंद किया और वापस लौटी. मुन्ना खलिहान के बाहर ही खड़ा था. शीला देवी की साँसे फूल रही थी. डंडे को एक तरफ फेंक कर अंदर जा कर धम से बिस्तर पर बैठ गई और लंबी लंबी साँसे लेते हुए बोली "साली हरमज़ड़िया…देखो तो कितनी हिम्मत है शाम होते ही आ गई चोरी करने…अगर हाथ आ जाती तो सुअरनियों की गांद में डंडा पेल देती…हरम्खोर साली तभी तो इस बगीचे से उतनी कमाई नही होती जितनी पहले होती थी….मदर्चोदिया अपनी चूत में आम भर भर के ले जाती है…रंडियों का चेहरा नही देख पाई…" मुन्ना शीला देवी के मुँह से ऐसी मोटी मोटी भद्दी गालियों को सुन कर सन्न रह गया. हालाँकि वो जानता था की उसकी मा करक स्वाभाव की है और नौकर चाकरो को गालियाँ देती रहती है मगर ऐसी गंदी-गंदी गलियाँ उसके मुँह से पहली बार सुनी थी, हिम्मत करके बोला
"अरे मा छोड़ो ना तुम भी…भगा तो दिया…अब मैं यहा आ रहा हू ना देखना इस बार अच्छी कमाई…"
"ना ना…ऐसे इनकी आदत नही छूटने वाली…जब तक पकड़ के इनकी चूत में मिर्ची नही डालोगे ना बेटा तब तक ये सब भोशर्चोदिया ऐसे ही चोरी करने आती रहेंगी….माल किसी का खा कोई और रहा है…"
मुन्ना ने कभी मा को ऐसे गलियाँ देते नही सुना था. बोल तो कुच्छ सकता नही था मगर उसे उर्मिला देवी यानी अपनी प्यारी छिनाल, चुदक्कर मामी की याद आ गई, जो चुदवाते समय अपने सुंदर मुखरे से जब गंदी गंदी बाते करती थी तब उसका लंड लोहा हो जाता था. शीला देवी के खूबसूरत चेहरे को वो एकटक देखने लगा भरे हुए कमनिदार होंठो को बिचकती हुई जब शीला देवी ने दो चार और मोटी गलियाँ निकाली तो उसके इस छिनल्पन को देख मुन्ना का लंड खड़ा होने लगा. मन में आया उसके उन भरे हुए होंठो को अपने होंठो में कस ले और ऐसा चुम्मा ले की होंठो का सारा रस चूस ले. खड़े होते लंड को छुपाने के लिए जल्दी से बिस्तर पर अपनी मा के सामने बैठ गया. शीला देवी की साँसे अभी काफ़ी तेज चल रही थी और उसका आँचल नीचे उसकी गोद में गिरा हुआ था. मोटी-मोटी चुचियाँ हर साँस के साथ उपर नीचे हो रही थी. गोरा चिकना मांसल पेट. मुन्ना का लंड पूरा खड़ा हो चुका था. तभी शीला देवी ने पैर पसारे और अपनी साड़ी को खींचते हुए घुटनो से थोड़ा उपर तक चढ़ा एक पैर मोड़ कर एक पैर पसार कर अपने आँचल से माथे का पसीना पोछती हुई बोली "हरम्खोरो के कारण दौड़ना पद गया…बड़ी गर्मी लग रही है खिड़की खोल दे बेटा". जल्दी से उठ कर खिड़की खोलने गया. लंड ने लूँगी के कपड़े को उपर उठा रखा था और मुन्ना के चलने के साथ हिल रहा था. शीला देवी की आँखो में अज़ीब सी चमक उभर आई थी वो एकदम खा जाने वाली निगाहों से लूँगी के अंदर के डोलते हुए हथियार को देख रही थी. मुन्ना जल्दी से खिड़की खोल कर बिस्तर पर बैठ गया, बाहर से सुहानी हवा आने लगी. उठी हुई साड़ी से शीला देवी गोरी मखमली टाँगे दीख रही थी. शीला देवी ने अपने गर्दन के पसीने को पोछ्ते हुए अपनी ब्लाउस के सबसे उपर वाले बटन को खोल दिया और साड़ी के पल्लू को ब्लाउस के भीतर घुसा पसीना पोच्छने लगी. पसीने के कारण ब्लाउस का उपरी भाग भीग चुका था. ब्लाउस के अंदर हाथ घुमाती बोली "बहुत गर्मी है..बहुत पसीना आ गया". मुन्ना मुँह फाडे ब्लाउस में घूमते हाथ को देखता हुआ भौचक्का सा बोल पड़ा "हा..आह पूरा ब्लाउस भीग..गया.."
"तू शर्ट खोल दे…बनियान तो पहन ही रखी होगी…".
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