RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
"मालिक नारियल तेल लगा लो.." लाजवंती बोली
"चूत तो पानी फेंक रही है…इसी से काम चला लूँगा.."
"अर्रे नही मालिक आप नही जानते…आपका सुपरा बहुत मोटा है…नही घुसेगा…लगा लो"
मुन्ना उठ कर गया और टेबल से नारियल तेल का डिब्बा उठा लाया. फिर बसंती की जाँघो के बीच बैठ कर तेल हाथ में ले उसकी चूत उपर मल दिया. फांको को थोड़ा फैला कर उसके अंदर तेल टपका दिया.
"अपने सुपरे और लंड पर भी लगा लो मलिक" लाजवंती ने कहा. मुन्ना ने थोडा तेल अपने लंड पर भी लगा दिया.
"बहुत नाटक हो गया भौजी अब डाल देता हू.."
"हा मालिक डालो" कहते हुए लाजवंती ने बसंती की अनचुड़ी बुर के छेद की दोनो फांको को दोनो हाथो की उंगलियों से चौड़ा दिया. मुन्ना ने चौड़े हुए छेद पर सुपरे को रख कर हल्का सा धक्का दिया. कच से सुपरा कच्ची बुर को चीरता अंदर घुसा. बसंती तड़प कर मछली की तरह उछली पर तब तक लाजवंती ने अपना हाथ चूत पर से हटा उसके कंधो को मजबूती से पकड़ लिया था. मुन्ना ने भी उसकी जाँघो को मजबूती से पकड़ कर फैलाए रखा और अपनी कमर को एक और झटका दिया. लंड सुपरा सहित चार इंच अंदर धस गया. बसंती को लगा बुर में कोई गरम डंडा डाल रहा है मुँह से चीख निकल गई "आआआ मार..माररर्र्ररर गेयीयियीयियी". आह्ह्ह्ह्ह्ह भाभी बचाऊऊऊलाजवंती उसके उपर झुक कर उसके होंठो और गालो को चूमते हुए चूची दबाते हुए बोली "कुच्छ नही हुआ बित्तो कुच्छ नही…बस दो सेकेंड की बात है". मुन्ना रुक गया उसको नज़र उठा इशारा किया काम चालू रखो. मुन्ना समझ गया और लंड खींच कर धक्का मारा और आधे से अधिक लंड को धंसा दिया. बसंती का पूरा बदन अकड़ गया था. खुद मुन्ना को लग रहा था जैसे किसी जलती हुए लकड़ी के गोले के अंदर लंड घुसा रहा है लंड की चमड़ी पूरी उलट गई. आज के पहले उसने किसी अनचुड़ी चूत में लंड नही डाला था. जिसे भी चोदा था वो चुदा हुआ भोसड़ा ही था. बसंती के होंठो को लाजवंती ने अपने होंठो के नीचे कस कर दबा रखा था इसलिए वो घुटि घुटे आवाज़ में चीख रही थी और छटपटा रही थी. मुन्ना उसकी इन चीखो को सुन रुका मगर लाजवंती ने तुरंत मुँह हटा कर कहा "मालिक झटके से पूरा डाल दो एक बार में….ऐसे धीरे धीरे हलाल करोगे तो और दर्द होगा साली को…डालो" मुन्ना ने फिर कमर उठा कर गांद तक का ज़ोर लगा कर धक्का मारा. कच से नारियल तेल में डूबा लंड बसंती की अनचुड़ी चूत की दीवारों को कुचालता हुआ अंदर घुसता चला गया. बसंती ने पूरा ज़ोर लगा कर लाजवंती को धकेला और चिल्लाई "ओह…..मार दियाआआअ….आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हहरामी ने मार दिया….कुट्टी साली भौजी हरम्जदि……बचा लूऊऊऊ…आआ फाड़ दीयाआआआआअ…खून भीईीईईईईईईई…" अरीईईईई कोइईईईईई तूऊऊऊओ बचाऊऊऊऊलाजवंती ने जल्दी से उसका मुँह बंद करने की कोशिश की मगर उसने हाथ झटक दिया. मुन्ना अभी भी चूत में लंड डाले उसके उपर झुका था.
"लंड बाहर निकालो,आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह मुझे नही चुदाआआआआआनाआआआआअ ... भौजिइइईईईईईईई को चोदूऊऊओ... मलिक उतर जाओ... तुम्हरीईईईईए पाओ पड़ती हू... मररर्र्र्र्र्ररर जाउन्गीईईईई.." तब लाजवंती बोली "मालिक रूको मत…जल्दी जल्दी धक्का मारो मैं इसकी चुचि दबाती हू ठीक हो जाएगा.." बस मुन्ना ने बसंती की कलाईयों को पकड़ नीचे दबा दिया और कमर उठा-उठा कर आधा लंड खींच-खींच कर धक्के लगाना शुरू कर दिया. कुच्छ देर में सब ठीक हो गया. बसंती गांद उचकाने लगी. चेहरे पर मुस्कान फैल गई. लॉरा आराम से चूत के पानी में फिसलता हुआ सटा-सॅट अंदर बाहर होने लगा…..
उस रात भर खूब रासलीला हुई. बसंती कीदो बार चुदाइ हुई. चूत सूज गई मगर दूसरी बार में उसको खूब मज़ा आया. बुर से निकले खून को देख पहले थोड़ा सहम गई पर बाद में फिर खुल कर चुदवाया. सुबह चार बजे जब अगली रात फिर आने का वादा कर दोनो विदा हुई तो बसंती थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी मगर उसके आँखो में अगली रात के इंतेज़ार का नशा झलक रहा था. मुन्ना भी अपने आप को फिर से तरो ताज़ा कर लेना चाहता था इसलिए घोड़े बेच कर सो गया.
आम के बगीचे में मुन्ना की कारस्तानिया एक हफ्ते तक चलती रही. मुन्ना के लिए जैसे मौज मज़े की बाहर आ गई थी. तरह तरह के कुतेव और करतूतो के साथ उसने लाजवंती और बसंती का खूब जम के भोग लगाया. पर एक ना एक दिन तो कुच्छ गड़बड़ होनी ही थी और वो हो गई. एक रात जब बसंती और लाजवंती अपनी चूतो की कुटाई करवा कर अपने घर में घुस रही थी कि आया की नज़र पर गई. वो उन्दोनो के घर के पास ही रहती थी. उसके शैतानी दिमाग़ को झटका लगा की कहा से आ रही है ये दोनो. लाजवंती के बारे में तो पहले से पता था की गाओं भर की रंडी है. ज़रूर कही से चुदवा कर आ रही होगी. मगर जब उसके साथ बसंती को देखा तो सोचने लगी की ये छ्छोकरी उसके साथ कहाँ गई थी.
दूसरे दिन जब नदी पर नहाने गई तो संयोग से लाजवंती भी आ गई. लाजवंती ने अपनी साड़ी ब्लाउस उतारा और पेटिकोट खींच कर छाती पर बाँध लिया. पेटिकोट उँचा होते ही आया की नज़र लाजवंती के पैरो पर पड़ी. देखा पैरो में नये चमचमाते हुए पायल. और लाजवंती भी ठुमक ठुमक चलती हुई नदी में उतर कर नहाने लगी.
"अर्रे बहुरिया मरद का क्या हाल चाल है…"
"ठीक ठाक है चाची….परसो चिट्ठी आई थी"
"बहुत प्यार करता है…और लगता है खूब पैसे भी कमा रहा है"
"का मतलब चाची ….."
"वाह बड़ी अंजान बन रही हो बहुरिया….अर्रे इतना सुंदर पायल कहा से मिला ये तो…"
"कहा से का क्या मतलब चाची….जब आए थे तब दे गये थे"
"अर्रे तो जो चीज़ दो महीने पहले दे गया उसको अब पहन रही है"
लाजवंती थोड़ा घबरा गई फिर अपने को सम्भालते हुए बोली "ऐसे ही रखा हुआ था….कल पहन ने का मन किया तो…"
आया के चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैल गई
"किसको उल्लू बना….सब पता है तू क्या-क्या गुल खिला रही है….हमको भी सिखा दे लोगो से माल एंठाने के गुण"
इतना सुनते ही लाजवंती के तन बदन में आग लग गई.
"चुप साली तू क्या बोलेगी …हराम्जादी कुतिया खाली इधर का बात उधर करती रहती है…."
आया का माथा भी इतना सुनते घूम गया और अपने बाए हाथ से लाजवंती के कंधे को पकड़ धकेलते हुए बोली "हरम्खोर रंडी…चूत को टकसाल बना रखा है…..मरवा के पायल मिला होगा तभी इतना आग लग रहा है".
"हा हा मरवा के पायल लिया है..और भी बहुत कुच्छ लिया है…तेरी गांद में क्यों दर्द हो रहा है चुगलखोर…" जो चुगली करे उसे चुगलखोर बोल दो तो फिर आग लगना तो स्वाभाभिक है.
"साली भोसर्चोदि मुझे चुगलखोर बोलती है सारे गाओं को बता दूँगी बेटाचोदी तू किस किस से मरवाती फिरती है" इतनी देर में आस पास की नहाने आई बहुत सारी औरते जमा हो गई. ये कोई नई बात तो थी नही रोज तालाब पर नहाते समय किसी ना किसी का पंगा होता ही था और अधनंगी औरते एक दूसरे के साथ भिड़ जाती थी, दोनो एक दूसरे को नोच ही डालती मगर तभी एक बुढ़िया बीच में आ गई. फिर और भी औरते आ गई और बात सम्भाल गई. दोनो को एक दूसरे से दूर हटा दिया गया.
नहाना ख़तम कर दोनो वापस अपने घर को लौट गई मगर आया के दिल में तो काँटा घुस गया था. इश्स गाओं में और कोई इतने बड़ा दिलवाला है नही जो उस रंडी को पायल दे. तभी ध्यान आया की चौधरैयन का बेटा मुन्ना उस दिन खेत में पटक के जब लाजवंती की ले रहा था तब उसने पायल देने की बात कही थी, कही उसी ने तो नही दिया. फिर रात में लाजवंती और बसंती जिस तरफ से आ रही थी उसी तरफ तो चौधरी का आम का बगीचा है. बस फिर क्या था अपने भारी भरकम पिच्छवाड़े को मॅटकाते हुए सीधा चौधरैयन के घर की ओर दौड़ पड़ी.
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