RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
गाँव का राजा पार्ट -3 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
अचानक राजू की नज़र अपनी मामी उर्मिला देवी पर पड़ी वो बड़े गौर से उसके पेरॉं की तरफ देख रहीं थी तब राजू को अहसास हुआ मामी उसके लॅंड को ही देख रही है राजू ने अपने पैर को मोड़ लिया ओर मामी की तरफ देखा उर्मिला देवी राजू को अपनी ओर देखते पाकर हॅडबड़ा गई और अपनी नज़रें मेग्ज़ीन पर लगा ली
कुच्छ देर तक दोनो ऐसे ही शर्मिंदगी के अहसास में डूबे हुए बैठे रहे फिर उर्मिला देवी वाहा से उठ कर चली गई.
उस दिन की घटना ने दोनो के बीच एक हिचक की दीवार खड़ी कर दी. दोनो अब जब बाते करते तो थोड़ा नज़रे चुरा कर करते थे. उर्मिला देवी अब राजू को बड़े गौर से देखती थी. पाजामे में उसके हिलते डुलते लंड और हाफ पॅंट से झाँकते हुए लंड को देखने की फिराक में रहती थी. राजू भी सोच में डूबा रहता था कि मामी उसके लंड को क्यों देख रही थी. ऐसा वो क्यों कर रही थी. बड़ा परेशान था बेचारा. मामी जी भी अलग फिराक में लग गई थी. वो सोच रही थी क्या ऐसा हो सकता है कि मैं राजू के इस मस्ताने हथियार का मज़ा चख सकु. कैसे क्या करे ये उनकी समझ में नही आ रहा था. फिर उन्होने एक रास्ता खोज़ा.
अब उर्मिला देवी ने अब नज़रे चुराने की जगह राजू से आँखे मिलाने का फ़ैसला कर लिया था. वो अब राजू की आँखो में अपने रूप की मस्ती घोलना चाहती थी. देखने में तो वो माशा अल्लाह शुरू से खूबसूरत थी. राजू के सामने अब वो खुल कर अंग प्रदर्शन करने लगी थी. जैसे जब भी वो राजू के सामने बैठती थी तो अपनी साड़ी को घुटनो तक उपर उठा कर बैठती, साडी का आँचल तो दिन में ना जाने कितनी बार ढूलक जाता था (जबकि पहले ऐसा नही होता था), झाड़ू लगाते समय तो ब्लाउस के दोनो बटन खुले होते थे और उनमे से उनकी मस्तानी चुचिया झलकती रहती थी. बाथरूम से कई बार केवल पेटिकोट और ब्लाउस या ब्रा में बाहर निकल कर अपने बेडरूम में समान लाने जाती फिर वापस आती फिर जाती फिर वापस आती. नहाने के बाद बाथरूम से केवल एक लंबा वाला तौलिया लपेट कर बाहर निकल जाती थी. बेचारा राजू बीच ड्रॉयिंग रूम में बैठ ये सारा नज़ारा देखता रहता था. लरकियों को देख कर उसका लंड खड़ा तो होने लगा था मगर कभी सोचा नही था की मामी को देख के भी लंड खड़ा होगा. लंड तो लंड है वो कहा कुच्छ देखता है. उसको अगर चिकनी चमड़ी वाला खूबसूरत बदन दिखेगा तो खड़ा तो होगा ही. मामी जी उसको ये दिखा रही थी और वो खड़ा हो रहा था.
राजू को उसी दौरान राज शर्मा की सेक्सी कहानियो की एक किताब हाथ लग गई. किताब पढ़ कर जब लंड खड़ा हुआ और उसको मुठिया कर जब अपना पानी निकाला तो उसकी तीसरी आँख खुल गई. उसकी स्मझ में आ गया की चुदाई क्या होती है और उसमे कितना मज़ा आ सकता है. जब किताब पढ़ के कल्पना करने और मुठियाने में इतना मज़ा है तो फिर सच में अगर चूत में लंड डालने को मिले तो कितना मज़ा आएगा. राज शर्मा की कहानियों में तो रिश्तो में चुदाई की कहानिया भी होती है और एक बार जो वो किताब पढ़ लेता है फिर रिश्ते की औरतो के बारे में उल्टी सीधी बाते सोच ही लेता है चाहे वो ऐसा ना सोचने के लिए कितनी भी कोशिश करे. वही हाल अपने राजू बाबा का भी था. वो चाह रहे थे कि अपनी मामी के बारे में ऐसा ना सोचे मगर जब भी वो अपनी मामी के चिकने बदन को देखते तो ऐसा हो जाता था. मामी भी यही चाह रही थी. खूब छल्का छल्का के अपना बदन दिखा रही थी.
बाथरूम से पेशाब करने के बाद साडी को जाँघो तक उठाए बाहर निकल जाती थी. राजू की ओर देखे बिना साडी और पेटिकोट को वैसे ही उठाए हुए अपने कमरे में जाती और फिर चूकने की आक्टिंग करते हुए हल्के से मुस्कुराते हुए साडी को नीचे गिरा देती थी. राजू भी अब हर रोज इंतेज़ार करता था की कब मामी झाड़ू लगाएँगी और अपनी गुदाज़ चुचियों के दर्शन कराएँगी या फिर कब वो अपनी साडी उठा के उसे अपनी मोटी-मोटी जाँघो के दर्शन कराएँगी. राज शर्मा की कहानियाँ तो अब वो हर रोज पढ़ता था. ज्ञान बढ़ाने के साथ अब उसके दिमाग़ में हर रोज़ नई नई तरकीब सूझने लगी कि कैसे मामी को पटाया जाए. साड़ी उठा के उनकी चूत के दर्शन किए जाए और हो सके तो उसमें अपने हलब्बी लंड को प्रविष्ट कराया जाए और एक बार ही सही मगर चुदाई का मज़ा लिया जाए. सभी तरह के तरकीबो को सोचने के बाद उनकी छ्होटी बुद्धि ने या फिर ये कहे की उनके लंड ने क्योंकि चुदाई की आग में जलता हुआ छ्होकरा लंड से सोचने लगता है, एक तरकीब खोज ली.................
|