RE: एक बार ऊपर आ जाईए न भैया
नीचे की बर्थ पर एक तरफ़ उसकी माँ सोई थी और दूसरी तरफ़ उसका बाप और वो बेशर्म अपनी बूर में मेरा सफ़ेदा लिए बीच में खड़ी थी. उसकी झाँटों पर मेरा सफ़ेदा लिसड़ा हुआ साफ़ दिख रहा था और उसकी बूर से पानी उसकी भीतरी जाँघों पर बह रहा था।
उसने आराम से अपनी मम्मी के रुमाल से अपनी बूर पोछी और मुझे नीचे आने का इशारा किया। मेरा दिल धक से किया, क्या फ़िर इसको नीचे चुदाने का भूत सवार हो गया। मेरे ना में सिर हिलाने पर उसने गुस्से से मुझे जोर से डाँटते हुए कहा, "नीचे और नहीं तो मैं जोर-जोर से चिल्लाने लगुँगी" और उसने एक बार पुकारा भी "मम्मी,,,मम्मी..."। मेरा तो अब उसका यह ड्रामा देख फ़टने लगा। मैं तोलिया लपेट झट से नीचे आया। स्वीटी यह सब देख कर हँस पड़ी। गुड्डी वहीं नीचे खिड़्की पकड़ कर झुक गई और अपना एक हाथ अपने जाँघों के बीच से निकाल कर अपने बूर की फ़ाँक खोल दी। किसी बछिया की बूर जैसी दिख रही थी उसके बूर की अधखुली फ़ाँक। मेरे पास अब कोई चारा नहीं था। मेरा लन्ड एक बार हीं झड़ा था और उसमें अभी भी पूरा कसाव था। मैंने एक नजर उसके खर्राटे लेते बाप के चहरे पर डाली और फ़िर बिना कुछ सोचें उसकी बूर में लन्ड घुसा दिया। एक मीठी आआअह्ह्ह्ह्ह के साथ गुड्डी अपने बूर में मेरे लन्ड को महसूस करके शान्त हो गई। मैं अब हल्के-हल्के उसको चोदने लगा था, कि आवाज कम से कम हो। गुड्डी भी शान्त हो कर चुद रही थी, हाँ बीच-बीच में वो अपने माँ-बाप की तरफ़ भी देख लेती थी। जल्दी हीं मेरा खून गर्म हो गया और मैंने सही वाले धक्के लगाने शुरु कर दिए। आअह्ह्ह्ह्ह आआह्ह्ह्ह ओह ओह से शमां बंधने लगा था। जल्द हीं मैं उसकी बूर में फ़िर से झड़ गया। वैसे भी किसी लड़की को ऐसे कुतिया के तरह चोदने में मैं जल्दी स्खलित हो जाता हूँ, मुझे ऐसा लगता है। वो यह समझ गई पर मुझे नहीं रुकने को कहा और फ़िर १५-२० सेकेण्ड बाद वो भी शान्त हो गई। हमदोंनो अलग हुए। गुड्डी ने फ़िर से अपनी मम्मी के रुमाल में अपना बूर पोछा और फ़िर उस लिसड़े हुए रुमाल को अपनी मम्मी के पास रख दिया। इसके बाद वो वैसे हीं नंग-धड़ंग टायलेट की तरफ़ बढ़ गई। मुझे भी पेशाब लग गया था, तो मैं भी हिम्मत करके उसके पीछे चल दिया। वैसे भी उस तरफ़ हीं वो जवान जोड़ा था जिसकी चुदाई हमने देखी थी।
मैंने देखा कि वो दोनों अभी भी जगे हुए हैं और मोबाईल पर कोई फ़िल्म देख रहे थे शायद। हम दोनों को ऐसे नंगे देख कर दोनों मुस्कुराए, तो मैं भी मुस्कुराया। टायलेट में पहले गुड्डी हीं गई, पर उसने दरवाजा बन्द नहीं किया और आज पहली बार मैंने एक जवान लड़की को पेशाब करते देखा। छॊटी बच्चियों को मैं अक्सर देखता था जब भी मौका मिला। बिना नजर हटाए मुझे बूर की उस फ़ाँक से निकलती पेशाब की धार को देखते हुए अपने लन्ड में हमेशा से कसाव्व महसूस होता था। आज मेरे सामने एक जवान लड़की जिसकी बूर पर झाँट भी थे, मेरे सामने बैठ कर मूत रही थी, मेरे से नजर मिलाए। मेरा लन्ड तो जैसे अब फ़ट जाता, कि तभी वो उठी और अपने बूर पर हाथ फ़िराया। उसकी हथेली पर उसके पेशाब के बूँद लग गए थे और उसने अपनी हथेली मेरी तरफ़ बढ़ाया। मैंने भी बिना कुछ सोंचे, उसकी पेशाब की बूँद को उसकी हथेली पर से चाट लिया। उसने मेरे होठ चूम लिए और फ़िर एक तरफ़ हट गई। उसके दिखाते हुए मैंने भी पेशाब किया और फ़िर जब मैं लन्ड हिला कर पेशाब की आखिरी कुछ बूँद निकाल रहा था गुड्डी झुकी और मेरे लन्ड को चाट ली। मेरा लन्ड अब कुछ ढ़ीला हो गया था और गुड्डी के पीछे-पीछे मैं भी अब वापस अपनी बर्थ की तरफ़ चल पड़ा। जाते हुए जब हमने फ़िर से उस दक्षिण-भारतीय जोड़े को देखा तो हम दंग रह गए। मेरे और गुड्डी को ऐसे डब्बे में घुमते देख उनको भी शायद जोश आ गया था और अब उस मर्द के लन्ड को चूस कर उसके साथ की लड़की कड़ा कर रही थी। गुड्डी ने एक बार उनको देखा फ़िर मुझे देखा और फ़िर वो नंगे हीं उस जोड़े की तरफ़ बढ़ गई। उसको पास आता देख वो लड़की सकपकाई और लन्ड को अपने मुँह से बाहर करके एक तरफ़ हट गई।
गुड्डी वहीं सीट के पास अपने घुटनों पर बैठी और उस अनजाने मर्द के काले-कलुटे लन्ड अपने मुँह में ले कर चुसने लगी। मेरी अब फ़िर से फ़तणे लगी थी, ये रंडी साली अब क्या करने लगी। मैं अब वहाँ से जल्दी से जल्दी भागना चाहता था। पर गुड्डी ने उस लड़की को मेरी तरफ़ इशारा कर दिया और मुझसे बोली, "अपना लन्ड भी इस लड़की से चुसवाओ और कड़ा करो, फ़िर एक आखिरी बार मुझे चोद देना"। मेरे पास कोई चारा था नहीं सो मैं भी अब उनकी तरफ़ बढ़ा और वो लड़की सब समझ कर मेरे लन्ड को अपने मुँह में ले ली। यह लड़की अभी तक ब्लाऊज पहने हुए थी, और साया भी ठीक से बदन पर था। दो मिनट के बाद हीं गुड्डी वहीँ नीचे पीठ के बल लेट गई और मुझे अपने ऊपर आने का इशारा किया। उस मर्द ने भी अपनी वाली लड़की के सर पर चपत लगा कर अपनी तरफ़ बुलाया और फ़िर उसके साया के डोरी को खींच कर खोल दिया। अब बर्थ पर वो लड़की और नीचे गुड्डी दोनों साथ-साथ चुद रहीं थीं। भाषा में फ़र्क के बाद भी दोनों चुद रहीं उत्तर और दक्षिण भारतीय लड़कियों में मुँह से एक हीं किस्म की सिसकी निकल रही थी। आह्ह्ह आअह्ह्ह की दो आवाजों ने सामने की बर्थ पर सोए एक अंकल जी की नींद खोल दी। उस बुढ़े ने जब देखा कि जो जवान जोड़ा चुदाई में मस्त है तो तमिल मिले अंग्रेजी में बड़बड़ाया, "३-४ दिन सब्र नहीं होता है, इतनी गर्मी अब के जवानों को चढ़ती है कि बिना जगह समय देखे शुरु हो जाते हैं", फ़िर उठ कर पेशाब करने चला गया।
हम सब को अब इस सब बात से कोई फ़र्क तो पड़ना नहीं था। हमारा चुदाई का कार्यक्रम चलता रहा। उसके वापस आने तक हम दोनों मर्द अपनी-अपनी लड़की की बूर में खलास हो गए। पहले उस जोड़े का खेल खत्म हुआ और जब तक वो सब अपना कपड़ा ठीक करते मैं भी गुड्डी मी बूर में झड़ गया था, आज तीसरी बार झड़ने के बाद अब मेरे में दम नहीं बचा था अभी। मैं गुड्डी के ऊअप्र से हटा तो वो भी उठी और फ़िर उस लड़की का मुँह चूम कर बाए बोली और फ़िर अपने चूत में मेरे माल को भर कर फ़िर अपने सीट पर आई और फ़िर मम्मी वाले रुमाल में हीं अपना बूर पोछी। उस रुमाल का बूरा हाल था। फ़िर वहीं नीचे ही अपने कपड़े पहने, अपने मम्मी-पापा के बीच में खड़ा हो कर। रात के २:३० बज चूके थे। सो मैंने कहा कि अब कुछ समय सो लिया जाए। ट्रेन थोड़ा लेट है तो हम लोग को कुछ आराम का मौका मिल जाएगा। फ़िर मैं अपनी बहन स्वीटी के साथ लिपट कर सो गया और वो सामने के बर्थ पर करवट बदल कर लेट गई। ट्रेन पहले हीं लेट थी अब शायद रात में और लेट हो गई और करीब ६ बजे जब मैं जागा तो देखा कि गुड्डी के मम्मी-पापा उठे हुए हैं और अपना कपड़ा वगैरह भी ठीक कर चुके हैं। मैं भी ऊठा तो प्रीतम जी बोले, "अभी करीब दो घन्टे और लगेगा। आप आराम से तैयार हो लीजिए।" मैं टायलेट से हो कर आया तो स्वीटी आराम से जगह मिलने पर पसर कर सो गई थी और स्वीटी की नंगी गोरी जाँघ पर प्रीतम जी की नजर जमी हुई थी और उनकी बीबी टायलेट के बाहर के आईने में अपना बाल ठीक कर रही थी कंघी ले कर। मुझे यह देख कर मजा आया। मैंने स्वीटी की उसी नंगी जाँघ को प्रीतम जी के देखते-देखते पकड़ा को जोर से हिलाया, "स्वीटी, उठो अब देर हो जाएगा।"
स्वीटी भी हड़बड़ा कर उठी और और मैंने इशारा किया कि वो साईड वाले रास्ते की तर्ह बनी सीढ़ी के बजाए दोनों सीट के बीच में मेरे सहारे उतर जाए। मैंने अपने बाँह को ऐसे फ़ैला दिया जैसे मैं उसको सहारा दे रहा होऊँ। उसने भी आराम से अपने पैर पहले नीचे लटकाए। प्रीतम जी सामने की सीट पर बैठे थे और सब दे ख रहे थे। स्वीटी के ऐसे पैर लटकाने से उसकी नाईटी पूरा उपर उठ गई और अब उसकी दोनों जाँघ खुब उपर तक प्रीतम जी को दिख रही थी। मैंनें स्वीटी को इशारा किया और वो धप्प से मेरे गोदी में कुद गई। उसकी चुतड़ को मैंने अपने बाहों में जकड़ लिया था और धीरे से उसको नीचे उतार दिया। मेरे बदन से उसकी नाईटी दबी और उसके पूरे सपाट पेट तक का भी दर्शन प्रीतम जी को हो गए। स्वीटी तो पहले ही दिन बिना ब्रा-पैन्टी सोई थी तो आज की रात क्यों अपने अंडर्गार्मेन्ट्स पहनती। मैंने देखा कि प्रीतम जी की गोल-गोल आँख मेरी बहन की मक्खन जैसी नंगी बूर से चिपक गई थी एक क्षण के लिए, तो मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "स्वीटी, अब जल्दी से आओ और अपना कपड़ा सब ठीक से पहनो अब दिन हो गया है और मैंने प्रीतम जी से नजर मिलाया।" बेचारा शर्म से झेंप गया। स्वीती भी अब अपने बालों को संभालते हुए टायलेट चली गई और मैं प्रीतम जी से बोला, "देख रहे हैं, इतने बड़ी हो गई है और बचपना नहीं गया है इसका, पता नहीं यहाँ अकेले कैसे रहेगी।" प्रीतम जी हीं झेंपते हुए बोले, "हाँ सो तो है, गुड्डी भी ऐसी ही है... नहा लेगी और सिर्फ़ पैन्ट पहन कर ऐसे ही खुले बदन घुमने लगेगी कि अपने घर में क्या शर्म..., अब बताईए जरा इस सब को... खैर सब सीख जाएगी अब जब अकेले रहना होगा।" हमारी बात-चीत से गुड्डी भी उठ गई और वो भी देखी कि अब रोशनी हो गया है तो नीचे आ गई। आधे घन्टे में हम सब उतरने को तैयार हो गए और करीब ७ बजे ट्रेन स्टेशन पर आ गई। हम सब साथ हीं स्टेशन के पास के एक होटल में रूम लिए, दोनों परिवार ने एक-एक रूम बुक किया। प्रीतम जी का वापसी का टिकट दो दिन बाद का था और मेरा तीन दिन बाद का। खैर करीब दो घन्टे बाद ९.३० बजे हम सब कौलेज के लिए निकल गए।
उस दिन हम सब खुब बीजी रहे, दोनों बच्चियों का नाम लिखवाया गया फ़िर करीब ४ बजे उन दोनों को एक हीं होस्टल रुम दिलवा कर हम सब चैन में आए। इसके बाद हमने साथ हीं एक जगह खाना खाया और फ़िर शाम में एक मौल में घुमे, और करीब ९ बजे थक कर चूर होटल में आए। सब थके हुए थे सो अपने-अपने कमरे में सो रहे। हालाँकि मैं स्वीटी के साथ हीं बिस्तर पर था बन्द कमरे में पर थकान ऐसी थी कि उसको छूने तक का मन नहीं था। वही हाल उसका था सो आराम से सोए। रात १० बजे से करीब ६ बजे सुबह तक एक लगातार सोने के बाद मेरी नींद खुली, देखा स्वीटी बाथरूम से निकल कर आ रही हैं। मुझे जागे हुए देखा तो वो सीधे मेरे बदन पर हीं गिरी और मुझसे लिपट गई। मुझे भी पेशाब लग रही थी तो मैंने उसको एक तरफ़ हटाया और बोला, "रूको, पेशाब करके आने दो..."। मुझे बाथरूम में ही लगा कि स्वीटी ने कमरे की बत्ती जला दी है। मैं जब लौटा तो देखा कि मेरी १८ साल की जवान बहन स्वीटी पूरी तरह से नंगी हो कर अपने पैर और हाथ दोनों को फ़ैला कर बिस्तर पर सेक्सी अंदाज में बिछी हुई है। अब कुछ न समझना था और ना हीं सोचना। सब समझ में आ रहा था सो मैं भी अपने गंजी और पैन्ट को खोल कर पूरी तरह से नंगा हो कर बिस्तर की ओर बढ़ा। मेरी बहन अब अपने केहुनी के सहारे थोड़ा उठ कर मेरे नंगे बदन को निहार रही थी। ५’१० का मेरा साँवला बदन दो ट्युब-लाईट की रोशनी में दमक रहा था। मैं बोला, "क्या देख रही हो ऐसे, बेशर्म की तरह..." स्वीटी बोली, "बहुत हैंडसम हैं भैया आप, भाभी की तो चाँदी हो जाएगी"। मैं भी उसको अपने बाहों में समेटते हुए बोला, "भाभी जब आएगी तब देखा जाएगा, अभी तो तुम्हारी चाँदी हो गई है... बेशर्म कहीं की।" स्वीटी ने मेरे छाती में अपना मुँह घुसाते हुए कहा, "सब आपके कारण हीं हुआ है... आपके लिए तो बचपन से हम रंडी बनने के लिए बेचैन थे, अब रहा नहीं जा रहा था। सो ट्रेन में साथ सटने का मौका मिला तो हम भी रिस्क उठा लिए।"
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