एक बार ऊपर आ जाईए न भैया
06-24-2017, 11:00 AM,
#3
RE: एक बार ऊपर आ जाईए न भैया
सुबह जब मेरी नींद खुली तब मुझसे पहले हीं वो मड़वाड़ी दमपत्ति ऊठ चुका था। गुड्डी मेरे साथ हीं उठी, मुझे देख कर मुस्कुराई और मेरे नीचे उतरने से पहले हीं उठ कर बाथरूम की तरफ़ चली गई। उसकी मम्मी अपने बाल कंघी कर रही थी, जबकि उसके पापा हमारे बर्थ के सामने वाले बर्थ पर नीचे बैठे थे और हमारी बर्थ की तरफ़ देख रहे थे। स्वीटी अपने बाँए बाँह को मेरे सीने से लपेते हुए थी। उसके एक पैर मेरे कमर को लपेटे हुए था और वो अभी भी बेसुध सोई थी। इस तरह सोने से उसकी नाईटी उसके आधे जाँघ से भी उपर उठ गई थी और गुड्डी का बाप मेरी बहन की नंगी जाँघों को घुर रहा था। मैंने स्वीटी की पकड़ से अपने को आजाद किया और फ़िर हल्के से उठ कर घड़ी देखा। ६:३० हो चुका था, और डब्बे में हलचल शुरु हो गया था। मुझे जागा देख कर उस माड़वाड़ी ने मुझे "गुड-मार्निंग" कहा, मैंने भी जवाब देते हुए नीचे उतरा। पेशाब जोरों की लगी हुई थी, सो मैं अपना ब्रश-टौवेल ले कर टायलेट के तरफ़ चला गया। लौट कर आया तब तक स्वीटी भी जाग गई थी, और मुझसे नजर भी नहीं मिला रही थी। मेरा भी यही हाल था। रात की सारी चुदाई याद आ रही थी। गुड्डी को इस सब से कोई फ़र्क नहीं पड़ा था। वो मुस्कुराते हुए बोली, "रात अच्छी कटी...है न?" मैं कुछ बोलूँ उसके पहले ही उसके पापा ने कहा, "रात कौन कराह रहा था....हल्के हल्के किसी लड़की की आवाज थी...आआह्ह आअह्ह्ह जैसा कुछ...मुझे लगा कि रीमा (गुड्डी की मम्मी) की आवाज है, सो एक बार उसकी तरफ़ घुम कर देखा भी, पर वो तो नींद की गोली ले कर सोई थी। फ़िर मुझे भी नींद आ गई...."।

गुड्डी मुस्कुराते हुए बोली, "अरे नहीं पापा, मुझे भी लगा था आवाज, देखी कि कम जगह की वजह से स्वीटी, भैया से दब जाती थी... तो वही कराहने जैसा आवाज हो जाता था। फ़िर शायद दोनों को एक साथ सोने आ गया तो फ़िर वो लोग शान्ति से सोए रात भर.।" वो साली छिनाल, स्वीटी मेरे नीचे दब कर कराह रही थी कह रही थी, और अपना नहीं सुना रही थी खुद कैसे कुतिया वन कर चुदी और कैसी-कैसी आवाज निकाल रही थी। रीमा जी भी बोली, "हाँ दो बड़े लोग को एक बर्थ पर सोने में परेशानी तो होती ही है..."। मुझे यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि ये दोनों कैसे माँ-बाप हैं कि बेटी जिस बर्थ पर सोई, उसके सामने वाले बर्थ पर जागी, और वो दोनों हम भाई-बहन की बात कर रहे थे...चूतिये साले।
गुड्डी ने उन सब से नजर बचा कर मुझे आँख मार दी। खैर थोड़ी देर ग्प-शप के बाद हम सब से नाश्ता किया और फ़िर स्वीटी बोली, "सलवार-सूट पहन लेते हैं अब...", पर उसकी बात गुड्डी ने काट दी, "करना है सलवार-सूट पहन कर.. ऐसे आराम से जब मन तब ऊपर जा कर सो रहेंगे, इतना लम्बा सफ़र बाकि है।" इसके बाद मेरे से नजर मिला कर बोली, "रात में तो फ़िर नाईटी हीं पहनना है, इसमें खुब आराम रहता है, जैसे चाहो वैसे हो जाओ...इस तरह का आरामदायक कपड़ा लड़कों के लिए तो सिर्फ़ लूँगी ही है", फ़िर मुझसे पूछी, "आप लूँगी नहीं पहनते?" मुझे लगा कि अगर मैं थोड़ी हिम्मत करूँ तो साली बाप के सामने चूदने को तैयार हो जाएगी। मैंने बस हल्के से अपना सर नहीं में हिला दिया।
फ़िर सब इधर-उधर की बात करने लगे।

स्वीटी और गुड्डी एक सीट पर बैठ कर फ़ुस्फ़ुसाते हुए बातें करने लगी, जैसे दो सहेलियाँ करती हैं। करीब ११ बजे दोनों लड़कियाँ सोने के मूड में आ गई....मैं और प्रीतम जी (गुड्डी के पापा) आमने सामने बैठे आपस में राजनीति की बातें कर रहे थे। गुड्डी मेरे सामने वाले बर्थ के ऊपर चढ़ने लगी और स्वीटी प्रीतम जी के सामने वाले बर्थ पर। नाईटी पहन कर ऊपर की बर्थ पर चढ़ना इतना आसान भी नहीं होता, सो वो जब नाईटी ऊपर चढ़ा कर बर्थ पर चढ़ने लगी तो उसकी पैन्टी साफ़ दिखने लगी। मेरे वीर्य से उसपर एक निशान सा बन गया था। मुझे उसकी पैन्टी को ऐसे घुरते हुए रीमा जी ने देखा तो अपनी बेटी से बोली, "नाईटी नीचे करो ना थोड़ा... बेशर्म की तरह लग रहा है"। मैं समझ गया कि वो क्या कह रही है। मेरा ध्यान अब प्रीतम जी की तरफ़ गया। वो बेचारा मुँह आधा खोले मेरी बहन की तरफ़ देख रहा था। मैंने स्वीटी की तरफ़ सर घुमाया। उसने एक पैर ऊपर की बर्थ पर रख लिया था और एक अभी भी सीढ़ी पर हीं था। पैन्टी तो नहीं पर उसकी जाँघ पूरी दिख रही थी। मुझे थोड़ा संतोष हुआ... साला मेरे घर के माल का सिर्फ़ जाँघ देखा और मैंने उसके घर की माल की पैन्टी तक देखी। फ़िर ख्याल आया, उसकी मेरे से क्या बराबरी... मैंने तो उसकी बेटी की बूर की छेद में अपना माल तक थूका था। साला कहीं मेरे बच्चे का नाना बन गया तो..., मुझे अब अपने ख्याल पर हँसी आ गई। जल्दी हीं दोनों बेसुध सो गईं। करीब ३ घन्टे बाद २ बजे हमने उन दोनों को जगाया, जब खाना खाने की बारी आई। फ़िर सब बैठ कर ताश खेलने लगे।

स्वीटी तो ताश खेलना आता नहीं था सो वो गुड्डी के पास बैठी देख रही थी। उन दोनों लड़कियों के सामने वाले बर्थ पर हम दोनों थे। मैं और रीमा जी पार्टनर थे और गुड्डी और उसके पापा एक साईड थे। मेरे और रीमा जी की टीम घन्टा भर बाद आगे हो गई। अब हम बोर होने लगे थे, सो खेल बन्द करना चाहते थे...पर गुड्डी की जिद थी कि वो जीतते हुए खेल को बन्द करेगी...सो हम खेल रहे थे। थोड़े समय बाद वो भी बोर हो गई, सो अब आखिरी बाजी फ़ेंटी गई। गुड्डी ने जोश से कहा, "पापा यह अंतिम बाजी हम हीं जीतेंगे....अंत भला तो सब भला..."। फ़िर उसने अजीब काम किया। अपने पैर ऐसे मोड़ कर बैठ गई कि घुटने के ऊपर छाती के पास जाने से नाईटी के सामने वाला भाग घुटने के सथ ऊपर चला गया और नाईटी के पीछे का भाग उसकी चुतड़ से दबा हुआ सीट के नीचे लटका रह गया। उसकी जाँघ और उन गोरी जाँघों के बीच फ़ँसी हुई हल्के पीले रंग की पैन्टी अब मेरे और उसके पापा के सामने थी। उसकी पैन्टी पर उसकी बूर के ठीक सामने मेरे वीर्य से बना एक धब्बा साफ़ दिख रहा था। मेरा ध्यान अब बँटने लगा था। प्रीतम जी ने भी देखा सब पर अब जवान बेटी से कहें कैसे कि वो गन्दे और बेशर्म तरीके से एक जवान लड़के के सामने बैठी हुई है। पता नहीं वो कैसा महसूस कर रहे ते...पर वो बार-बार देख जरूर रहे थे अपनी बेटी के उस सबसे प्राईवेट अंग को। रीमा जी को तो यह सब पता हीं नहीं चल रहा था, वो बैठी हीं ऐसे कोण पर थीं। अंतिम दो पत्ते हाथ में थे, और अगर सब ठीक हुआ तो मेरी टीम जीत जाती, पर जब मेरे चाल चलने की बारी आई तो मेरी नजर फ़िर से गुड्डी की पैन्टी की तरफ़ ऊठी और उसने अपने बूर से सटे पैन्टी के एलास्टीक के पास ऐसे खुजाया कि वो एलास्टीक एक तरफ़ हो गया और मुझे (और शायद प्रीतम जी को भी) उसकी चूत के साईड में जमे हुए काले-काले झाँटों के दर्शन हो गए। 

एक जरा सा और कि मुझे उसकी कोमल बूर की फ़ाँक दिख जाती। तभी उसे लग गया कि उसका बाप भी उसकी बूर को इस तरह से खुजाते हुए देख रहा है... वो थोड़ा हड़बड़ाई, सकपकाई और जल्दी से अपने पैर नीचे कर लिए। पर मैंने उसको इस शादार अदा का ईनाम दे दिया, एक गलत पत्त फ़ेंक कर...इस तरह से वो प्यारी लड़की जीत गई। करीब ६ बजे मैं जब एक स्टेशन पर नीचे उतरा तो वो भी साथ में उतरी। स्वीटी फ़िर से ऊपर लेटने चली गई थी। वहाँ स्टेशन पर हम दोनों ने कोल्ड-ड्रीन्क पी। और फ़िर वहीं गुड्डी ने मुझसे सब राज खोला। उसी ने स्वीटी को जब कहा कि आज रात उसके मजे हैं वो पूरी रात जवान मर्द से चिपक कर सोएगी तो स्वीटी उसको बोली थी कि उससे क्या होगा, मेरे भैया हैं वो...कोई और होता तो कितना मजा आता, हिलते हुए ट्रेन में निचले होठ से केला खाते...। तब गुड्डी ने उसको हिम्मत दिया कि वो इशारा करेगी और फ़िर मौका मिलने से स्वीटी न शर्माए...। दोनों लड़कियाँ यह सब पहले हीं तय कर ली थीं और उसी प्लान से दोनों नाईटी पहनी थी। फ़िर मुझे उकसा कर उसने आखिर मुझे गुड्डी के ऊपर चढ़ा दिया। फ़िर वो बोली, "आज रात में मैं आपके साथ सोऊँगी...फ़िर पता नहीं मौका मिले या ना मिले ट्रेन पर चुदाने का। चलती ट्रेन के हिचकोले और साथ में चूत के भीतर लण्ड के धक्के एक साथ कमाल का मजा देते हैं।"


मैंने कहा, "और तुम्हारे मम्मी-पापा...?"
वो बोली, "मैं उन्हें नींद की गोली दे दुँगी एक माईल्ड सी...मम्मी तो वैसे हीं लम्बे सफ़र में खा कर हीं सोती है, पापा को किसी तरह दे दुँगी। वैसे भी उनकी नींद गहरी होती है। आज रात भर में कम से कम तीन बार चुदाना है मुझे...."
मैं बोला, "मेरा तो बैण्ड बज जाएगा..."
वो हँसते हुए बोली, "अब बैण्ड बजे या बारात निकले, पर तीन से कम में मैं सब से कह दुँगी की तुम मुझे और अपनी बहन दोनों को चोदे हैं रात में....सोच लो।" वो अब खुल कर हँस रही थी...हाहाहाहा...
मैं उसको डब्बे के तरफ़ ले जाते हुए कहा, "साली बहुत कमीनी चीज हो तुम...पक्का रंडी हो..." और मैं भी हँस दिया।
वो मेरी गाली का जवाब दी, "और तुम हो पक्के रंडीबाज....साले बहिनचोद..."
हम अब फ़िर से अपने सीट पर आ गए थे। इधर-उधर की बातें करते हुए समय कट गया....और फ़िर से करीब ८ बजे खाने के बाद सोने का मूड बनने लगा। दिन भर बातें वातें करके वैसे भी सब थकने लगे थे और कुछ लोग तो लगभग सो गए थे। अंत में गुड्डी ने बड़ी चालाकी एक आधे बोतल पानी में एक गोली घुला दी, फ़ि
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