RE: Antarvasnasex ट्यूशन का मजा
मैंने तीन चार बार कोशिश की पर सर का मतवाला लौड़ा हलक से नीचे नहीं उतरता था, फ़ंस जाता था. मैंने आंखें उठा कर सर की ओर देखा कि सर, अब क्या करूं? मुझे थोड़ी शरम भी आ रही थी कि मैं वो काम नहीं कर पा रहा था जो दीदी ने कर लिया था.
सर ने मेरे मुंह से लंड निकाला. मेरे कान पकड़कर बोले "क्यों रे नालायक? इतना भी नहीं कर सकता? और डींग मार रहा था कि सर आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं. उधर लीना देख कितनी सेवा कर रही है अपनी मैडम की!"
मैंने देखा तो मैडम ने अपनी टांगों के बीच दीदी का सिर दबा लिया था और दीदी के मूंह पर बैठ कर ऊपर नीचे हो रही थीं. दीदी ने मैडम के चूतड़ हाथों में पकड़ रखे थे और मन लगाकर मैडम की बुर चूस रही थी.
मैं परेशान होकर बोला "सॉरी सर, माफ़ कर दीजिये, बहुत बड़ा है. एक बार और करने दीजिये प्लीज़, अब जरूर ले लूंगा सर"
"नहीं तुझे नहीं जमेगा. शायद तुझे मेरे लेसन अच्छे लहीं लगते. तू जा अपनी मैडम के पास. मैं तेरी दीदी को ही लेसन दूंगा आगे से" सर कड़ाई से बोले.
मेरा दिल बैठ गया. वैसे मैडम के साथ जाने को मैं कभी भी तैयार था, पर ऐसे नहीं, सर नाराज हो जायें तो फ़िर आगे की मस्ती में ब्रेक लगना लाजमी था. और सरके लंड का अब तक मैं आशिक हो चुका था. सर ने देखा तो मुझे भींच कर चूम लिया. मुस्कराते हुए बोले "अरे मैं तो मजाक कर रहा था. सच में सर अच्छे लगते हैं? कसम से?"
मैं कसम खा कर बोला, उनके पैर भी पकड़ लिये. "हां सर, मैं आप को छोड़ कर नहीं जाना चाहता, जो भी लेसन आप सिखायेंगे, मैं सीखूंगा"
"तो आज मैं तुझे दो लेसन दूंगा. दो तीन घंटे लग जायेंगे. बाद में मुकरेगा तो नहीं? पीछे तो नहीं हटेगा? सोच ले" उनके हाथ अब प्यार से मेरे चूतड़ों को सहला रहे थे.
मैंने फ़िर से उनके पैर छू कर कसम खाई "नहीं सर, आप जो कहेंगे वो करूंगा सर. मुझे अपना लंड चूसने दीजिये सर एक बार फ़िर से" सर के पैर भी बड़े गोरे गोरे थे, वे रबड़ की नीली स्लीपर पहने थे, उन्हें छू कर अजीब सी गुदगुदी होती थी मन में. मेरे ध्यान में आया कि मैडम क गोरे नाजुक पैरों से कोई कम नहीं थे सर के पैर.
"ठीक है, वैसे तेरे बस का भी नहीं है मेरा ये मूसल ऐसे ही लेना. लीना की बात और है, वो लड़की है, लड़कियां जनम से इस बात के लिये तैयार होती हैं. ऐसा करते हैं कि अपने इस मूसल को मैं बिठाता हूं. देख, तैयार रह, बस मिनिट भर को बैठेगा ये, तू फ़टाक से ले लेना मुंह में, ठीक है ना?"
मैंने मुंडी हिलाई, फ़िर बोला "पर सर ... बिना झड़े ये कैसे बैठेगा?"
सर ने अपने तन कर खड़े लंड की जड में एक नस को चुटकी में पकड़ा और दबाया. उनका लंड बैठने लगा "दर्द होता है थोड़ा ऐसे करने में इसलिये मैं कभी नहीं करता, बस तेरे लिये कर रहा हूं. देखा तुझपर कितने मेहरबान हैं तेरे सर?"
सर का लंड एक मिनिट में सिकुड़ कर छोटे इलायची केले जैसे हो गया. "इसे क्या कहते हैं जब ये सिकुड़ा होता है?" सर ने पूछा.
"नुन्नी सर"
"नालायक, नुन्नी कहते हैं बच्चों के बैठे लंड को. बड़ों के बैठे लंड को लुल्ली कहते हैं. अब जल्दी दे मेरी लुल्ली मुंह में ले. इसे तो ले लेगा ना या ये भी तेरे बस की बात नहीं है?" सर ने ताना दिया.
मैंने लपककर उनकी लुल्ली मुंह में पूरी भर ली. उनकी बैठी लुल्ली भी करीब करीब मेरे खड़े लंड जितनी थी. मुंह में बड़ी अच्छी लग रही थी, नरम नरम लंबे रसगुल्ले जैसी.
क्रमशः। ...........................
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