RE: Antarvasnasex ट्यूशन का मजा
ट्यूशन का मजा-10
गतांक से आगे..............................
सर ने एक मिनिट के लिये चुदाई रोक दी. "इत्ते में खलास हो गयी तू लीना? तेरी मैडम देख, घंटों चुदवाती हैं फ़िर भी मन नहीं भरता उनका, उनके जैसी बनना है कि नहीं?" दीदी लंबी लंबी सांसें लेती हुई संभलने की कोशिश करने लगी. हंसते हुए सर उसके गाल चूमते रहे, फ़िर अचानक फ़िर से दीदी के होंठों को अपने मुंह में पकड़ा और शुरू हो गये. अब वे पूरी ताकत से चोद रहे थे. उनका पूरा लंड दीदी की बुर में अंदर बाहर हो रहा था.
मैडम ने मुझे कस के भींच लिया और मस्ती से अपनी कमर उछालते हुए बोलीं "सर उसे छोड़ेंगे नहीं, शेर के मुंह में खून लग गया है, पूरी मेहनत करेंगे और तेरी दीदी को चुदाई का पूरा सुख देकर ही रुकेंगे, खुद भी पूरा मजा लिये बिना अब नहीं रुकने वाले ये"
दीदी छटपटाने लगी. बहुत छूटने की कोशिश की पर सर के आगे उसकी क्या चलने वाली थी. सर अब कस के धक्के लगा रहे थे, बिना किसी परवाह के कि उनके नीचे कोई चुदैल रंडी नहीं बल्कि मेरी नाजुक बहना थी. यह सीन इतना मस्त था कि मैं झड़ गया और मैडम पर पड़ा पड़ा हांफ़ने लगा. मैडम भी तीसरी बार झड़ चुकी थीं, मुझे चूमने लगीं.
हम दोनों दीदी की होती पिसाई देखने लगे. सर अब ऐसे कसके दीदी की धुनाई कर रहे थे कि देख देख कर मुझे ही डर लग रहा था कि दीदी को कुछ हो न जाये. अचानक दीदी ने आंखें बंद कर लीं और लस्त हो गयी, छटपटाना भी बंद हो गया.
"बेहोश हो गयी शायद, बेचारी की पहली बार है, बुर ने जवाब दे ही दिया आखिर बेचारी की, आखिर ऐसे सोंटे के आगे उसकी क्या चलती, इसने तो बड़ों बड़ों को खलास कर दिया है, ये बच्ची किस खेत की मूली है" मैडम ने बड़े गर्व से कहा. फ़िर सर से बोलीं "अब तो उसपर रहम कीजिये सर, बेचारी ने हथियार डाल दिये हैं आप के आगे"
सर हांफ़ते हुए बोले "अभी नहीं ... अब .. आयेगा मजा .... लगता है कि किसी .... रबड़ की .... गुड़िया को .... चोद रहा हूं ... आप नहीं जानती मैडम ... ऐसे किसी बेहोश बदन को .... कचरने में .... क्या आनंद .... आता .... है ... इसे भी मजा .... आ रहा होगा ....बेहोशी में भी .... नंबर एक की .... चुदैल कन्या .... है ये ..."
दो मिनिट बाद सर भी कस के चिल्लाये और झड़ गये. फ़िर दीदी के बदन पर पड़े पड़े जोर जोर की सांसें भरते हुए लस्त पड़कर आराम करने लगे.
पांच मिनिट बाद मैं और सर दोनों उठ बैठे. सर ने उठकर मेरा लंड चाटा और फ़िर मैडम की बुर में मुंह डाल दिया. लपालप उनकी बुर से बहते वीर्य और पानी का भोग लगाने लगे. बीच में मेरी ओर मुड़कर बोले "बैठा क्यों है रे मूरख? भोग नहीं लगाना है? अरे इस प्रसाद से स्वादिष्ट और कुछ नहीं है इस दुनिया में. चल, घुस जा अपनी बहन की टांगों में"
मैडम ने मुझे इशारा किया कि पहले सर के लंड को चाटूं. मैंने सर का झड़ा लंड मुंह में लिया और चूस डाला. दीदी की बुर के पानी और उनके वीर्य का मिला जुला स्वाद था. फ़िर दीदी की बुर अपनी जीभ से साफ़ करने में लग गया.
दीदी ने पांच मिनिट बाद आंखें खोलीं. पहले वह इधर उधर देखती रही फ़िर मैडम को देखकर सिसकती हुई उनसे लिपट गयी. मैडम उसे बाहों में लेकर चूमने लगीं "क्या हुआ लीना? ठीक है ना? तू तो टें बोल गयी. मुझे लगा था कि पूरा मजा लेगी, ऐसा अपने सर और मैडम से कुछ सीखने का मौका सब को थोड़े मिलता है. और ऐसे क्यों सिसक रही है, दुख रहा है क्या?"
मुझे लगा कि दीदी शायद रोये, अब भी उसकी चूत पूरी खुली थी, लाल लाल छेद दिख रहा था. पर दीदी तो मैडम को चिपटकर बोली "मैडम .... मैडम .... अब मैं यहीं रहूंगी .... आप रख लीजिये ना मुझे यहीं .... इतना अच्छा लग रहा था मैडम ... सर का .... लंड जब अंदर बाहर .... तो ..... सर .... मैं यहीं रहूं आप दोनों के पास?"
सर मुस्कराये और उसके बाल बिखेरते हुए बोले "चलो, मेरा लेसन बहुत पसंद आया लगता है. अरे अभी तो बहुत लेसन हैं. और घबराओ मत, रोज ये लेसन होंगे, रविवार को भी. तुम्हारी नानी को अच्छा थोड़े लगेगा अगर तुम लोग यहां रहो तो, वो जरूर पूछेगी. बस रात को सोने घर जाया करो, बाकी स्कूल के बाद यहीं आकर पढ़ा करो. ठीक है ना?"
दीदी ने मुंडी हिलाई. मैडम बोलीं "चलो बच्चो, अब जाओ, बहुत समय हो गया, कल आना, जल्दी आ जाना, कल सर खास लेसन देने वाले हैं तुम दोनों को बारी बारी से, क्यों सर, ठीक है ना?" और हंसने लगीं. सर बोले "हां, कल शनिवार है ना, खास दिन भर पढ़ाऊंगा तुम दोनों को, सुबह जल्दी खाना खा कर आ जाना."
मैं और दीदी खुशी खुशी घर चल दिये. दीदी थोड़ा धीरे चल रही थी, पैर फ़ुतरा कर. मैंने पूछा "क्यों दीदी, सर ने आज तुम्हारी पूरी खोल दी. दर्द हो रहा है क्या? कल आना है या ना कर दें"
"मैं तो आऊंगी, सर ने क्या चोदा मुझे अनिल .... बहुत दर्द हुआ पर .... अनिल .... चुदवाने में इतना मजा आता होगा मैंने सोचा भी नहीं था. तुझे न आना हो तो मत आ, तू डर गया शायद सर के लंड से, कल तेरी बारी है ना!" दीदी मेरा कान पकड़कर बोली.
"क्या मतलब? सर का लंड तो मस्त है, परसों चूसा था तो बहुत मजा आया था, मैं भी अब रोज आऊंगा, बस चले तो रात को भी सो जाऊं वहां. कल क्या होगा? क्या कह रही है तू? मैं तो तेरे बार में सोच कर बोल रहा था कि सर के लंड ने क्या हालत की थी तेरी!" मैंने पूछा
दीदी हंसने लगी. "खुद देख लेना भोले राम, मैं तो ले लूंगी सर का कभी भी, तू अपनी सोच"
कुछ देर हम चुपचाप चलते रहे. मैंने कहा "दीदी, तुमने देखा? मैडम के पैर कितने खूबसूरत हैं ना? एकदम गोरे गोरे. और मैडम वो चप्पलें पहने थीं, रबर की, कितनी कोमल और मुलायम थीं ना?"
दीदी हंस कर देखने लगी "हां मुझे मालूम है. फ़िकर मत कर, उनके पैर पड़ने के बहाने उन्हें छू लेना. तुझे चप्पलों का शौक है ना? खेलने में मजा आता है ना? मुझे मालूम है. कल रात मैं सो रही थी तो मेरी चप्पल के साथ क्या कर रहा था?"
मैं कुछ बोला नहीं , बस शरम से हंस दिया. लीना दीदी ने देख लिया ये जानकर जरा शरम भी महसूस हुई, पर क्या करूं, सच में लीना दीदी के पैर और वे सफ़ेद रबर की हवाई चप्पलें मेरे को बहुत भाती हैं, खास करके दीदी जब पढ़ते समय एक पैर पर दूसरा पैर रखकर उंगली में चप्पल लटका कर नचाती है तो मेरी हालत खराब हो जाती है. कल रात मन नहीं माना तो लाइट ऑफ़ होने के बाद, ये सोचकर कि दीदी सो गयी है, जरा उसकी चप्पल से चूमा चाटी कर रहा था.
पर दीदी ने ज्यादा नहीं चिढ़ाया. शायद उसको मेरी दीवानगी का अंदाजा था.
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