RE: Antarvasnasex सास हो तो ऐसी
रवि का लंड चूसनेके लिए कहना और बेटीका उससे मुकराना मुझे हमारे फिरसे बीते दिनों की याद दिला रहा था। हम लोग उस समय नागपुरमें थे। मेरे पति ऑफिसर थे। उन्हें बार-बार टूरपे जाना होता था। तब हम शर्माजी के मकानमें किरायेदार थे। शर्माजी ट्यूशन लेते थे और उनकी पत्नी स्टेट बैंक में थी। उनके भी दो बच्चे थे, हमारे बच्चोंके उमरके। बच्चे साथ-साथ खेलते थे और शर्माजीके क्लासमें पढ़ते थे। अच्छी फॅमिली मिलनेसे हम काफी खुश थे। वहीपर मेरा शर्माजीके साथ अफेअर हुआ।
शर्माजी का साथ मिलना मेरे लिए सौभाग्यकी बात थी।उस समय उन्होंने मुझे इतनी मदद की जिसका मुझे आजभी एहसास है। नागपुर हमारे लिए बिलकुल नया था। वहां जब हमलोग आये तब हमारी वहांपे कोई पहचान नहीं थी।ऐसेमे मेरे पतीकी मुलाकात शर्माजिसे हुई। अपने घरमे किरायेपर जगह दी। हमारे बच्चोको अपने बच्चोंके साथ स्कूलमे एडमिशन दिलवाया।हमारे बच्चे भी उनके साथही आते-जाते थे। बच्चोंके स्कूलके पेरेंट्स मिट में मुझे जाना पड़ता था। शुरुमे मै अकेली बससे जाती थी। मगर एक दिन स्कूल में पेरेंट्स मिट ख़तम होनेके बाद उन्होंने मुझसे कहा- भाभीजी दोनोंका मुकाम एक ही है , वैसेभी मै अकेला मोटर-साइकलपे जा रहा हूँ। आप भी आएँगी तो ज्यादा पेट्रोल जानेवाला नहीं है। जब मैंने लोग देखनेकी बात आगेकी तो उन्होंने कहा- जमाना बदल गया है , किसको फुर्सत है जो बाकी लोगोंको देखेगा। और वैसेभी मुझे यहाँ कौन जानता था। रही बात पति की ,तो वोतो टूर पे गए थे। मै उनके साथ गाडीपे पीछे बैठी।रस्तेमे मेरी कोशिश उनका स्पर्श टालनेकी थी। शायद ये बात उनके भी समझ में आई थी। वो थोडा संभलके बैठे। ट्राफिक और गड्ढे अपना काम कर रहे थे। जाने-अनजाने उनके पीठपर मेरी छाती रगड़ जाती थी। शर्माजी रंगमें आ रहे थे।थोडा सा चांस मिलनेपर ब्रेक लगते थे। दो मिनट के बाद मै भी फ्री हो गयी। खुद उनके पीठ पर मेरे बूब्स रगदने लगी।
रास्तेमे शर्माजी मुझपे बहोत मेहरबान थे। मेरे ना-ना बोलनेपरभी उन्होंने मुझे ज्यूस पिलाया। कहने लगे- भाभीजी नागपुर जैसा संत्रेका ज्युसे आपको पुरे भारतमे और कहीं मिलनेवाला नहीं। थोडा खट्टा- थोडा मिठा, एक बार चखोगी तो जिंदगीभर मांगोगी। मगर ये कहते समय वो मंद-मंद क्यों मुस्कुरा रहे थे यह मेरी समझ में तब नहीं आया।
हम वापस घर आये। शर्माजीकी ट्यूशन सिर्फ सुबह ६ से १ ० तक होती थी। इसीलिए वो दिनभर खाली रहते थे। मै भी दोनों बच्चोके स्कूल जानेके बाद खाली रहती थी। उन्होंने मुझे सुझाव दिया क्यों न मै उनके ट्यूशन का कुछ काम करू। मेरा भी टाइमपास हो जायेगा। मैंने भी उचित समझा और उनका काम बटाने लगी। ये सभी हमारे बीच नजदीकीया बढ़ाने में सहायक हुई। ऐसेमें एक दिन मिसेस शर्माजी बहोत खुशीसे नाचते हुई बैंक से घर आई। वो ऑफिसर का प्रमोशन पाने में कामयाब हुई थी। उसी शाम एक छोतीसी पार्टी उन्होंने घर पे दी। उनके ऑफिसके करीब बीस लोग आनेवाले थे। पार्टी अर्रंज करनेमें मैंने बहोत मदद की। रातको करीब दस बजे सभी गेस्ट गए। उसके बाद सब बाकि काम निपटाते हमें ग्यारह बज गए। सभी बच्चे सो गए थे। दोनों बच्चोको एक साथ ऊपर मेरे घर ले जाना मुझे कठिन था इस लिए शर्माजी मेरे साथ आये। बच्चोको बेडपर सुलाने के बाद वो निकल गए। जाते-जाते कह गए- भाभीजी आप की वजह से ये सभी इतना आसान हुआ वर्ना मेरी पत्नी को ये सब मुश्किल था। मैंने हसके हसीमेही इसका स्वीकार किया और उनसे पूछा- भैय्याजी, ऑफिसके लोगोमें एक नीला शर्ट पहना हुआ जो आदमी था वो कौन था। शर्माजी हसके बोले- यानेकी आपके भी समझमें आया। वो मिसेस शर्मा के पुराने और खास दोस्त है। इतना कहके वो चले गए। दुसरे दिन मैंने दोपहरमें फिरसे यही पूछा तब उन्होंने कहा मिसेस शर्मा और वो आदमी- कुमार बचपनके दोस्त है और शायद उन दोनोमे कुछ संबध भी है। मैंने सवाल किया आप ऐसे कैसे कह सकते है? तब उन्होंने बताया पिछले ६-७ सालोंसे शर्मा पति-पत्नी में सिर्फ समाजको दिखनेके संबध है। ये बात मेरे लिए एक धक्का था। पति -पत्नी एक घरमें रहकर भी अलग-अलग सोना कैसे मुमकिन है? खैर छोडो, वैसेभी हम मिया -बीबीमें भी कहा इतना शारीरिक प्रेम बचा था। मेरे पति तो महीने में एक-दो बारही मेरे करीब आते थे। दोनों, मै और शर्माजी एक ही दवाई के मरीज थे। लेकिन हमारे बीच शारीरिक संबध शुरू होने के लिए कारन बना नागपुर की ट्राफिक . हुआ ऐसे, एक दिन मै और शर्माजी उनके गाडीपे डबलसीट आ रहे थे। नागपुर के सीताबर्डी इलाकेमें ओवरब्रिज का निर्माण हो रहा था। रास्तेमे भीड़ बहोत थी,अचानक एक स्कूली बच्चा अपनी साईंकिल लेके पिछेसे आया और मेरे पैरसे टकराया। मुझे जोरसे लगा। मै चिल्लाई। शर्माजी तुरंत मुझे डॉक्टरके पास लेके गए। डॉक्टरने पेन किलर और तेल दिया। हम वापस घर आये।
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