RE: Mastram अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
शोभा की आंखें थकान और नींद से बोझिल हो चली थी और दिमाग अब भी पिछले २-३ महीनों के घटनाक्रम को याद कर रहा था. अचानक ही कितना कुछ बदल गया था उसके सैक्स जीवन में. पहले अपने ही भतीजे अजय से अकस्मात ही बना उसका अवैध संबंध फ़िर पति द्वारा संभोग के दौरान नये नये प्रयोग और अब बहन जैसी जेठानी से समलैंगिक सैक्स. किसी मादा शरीर से मिला अनुभव नितांत अनूठा था पर रात में इस समय बिस्तर में किसी पुरुष के भारी कठोर शरीर से दबने और कुचले जाने का अपना अलग ही आनन्द है. काश अजय इस समय उसके पास होता. किस्मत से एक ही बार मौका मिला था उसे परन्तु दीप्ति तो हर रात ही अजय से चुदने का लुत्फ़ लेती होगी. आज अजय मिल जाये तो उसे काफ़ी कुछ नया सिखा सकती है. अजय अभी नौजवान है और उसे बड़ी आसानी प्रलोभन देकर अपनी चूत चटवाई जा सकती है. फ़िर वो दीप्ति के मुहं की तरह ही उसके मुहं पर भी वैसे ही पानी बरसायेगी. मजा आ जायेगा.
पता नहीं कब इन विचारों में खोई हुई उसकी आंख लग गयी. देर रात्रि में जब प्यास लगने पर उठी तो पूरा घर गहन अन्धेरे में डूबा हुआ था. बिस्तर के दूसरी तरफ़ कुमार खर्राटे भर रहे थे. पानी पीने के लिये उसे रसोई में जाना पड़ेगा सोच कर बहुत आहिस्ते से अपने कमरे से बाहर निकली. सामने ही अजय का कमरा था. हे भगवान अब क्या करे. दीप्ति को वचन दिया है कि कभी अजय की तरफ़ गलत निगाह से नहीं देखेगी. पर सिर्फ़ एक बार दूर से निहार लेने से तो कुछ गलत नहीं होगा. दिल में उठते जज्बातों को काबू करना जरा मुश्किल था. सिर्फ़ एक बार जी भर के देखेगी और वापिस आ जायेगी. यही सोच कर चुपके से अजय के कमरे का दरवाजा खोला और दबे पांव भीतर दाखिल हो गई. कमरे में घुसते ही उसने किसी मादा शरीर को अजय के शरीर पर धीरे धीरे उछलते देखा. दीप्ति के अलावा और कौन हो सकता है इस वक्त इस घर में जो अजय के इतना करीब हो. अजय की कमर पर सवार उसके लन्ड को अपनी चूत में समाये दीप्ति तालबद्ध तरीके से चुद रही थी. खिड़की से आती स्ट्रीट लाईट की मन्द रोशनी में उसके उछलते चूंचे और मुहं से निकलती धीमी कराहो से दीप्ति की मनोस्थिति का आंकलन करना मुश्किल नहीं था.
"रंडी, कुतिया, अभी अभी मुझसे से चुदी है और फ़िर से अपने बेटे के ऊपर चढ़ गई" मन ही मन दीप्ति को गन्दी गन्दी गालियां बक रही थी शोभा. खुद के तन भी वही आग लगी हुई थी पर मन तो इस जलन से भर उठा कि दीप्ति ने उसे अजय के मामले में पछाड़ दिया है. उधर दीप्ति पूरे जोशोखरोश के साथ अजय से चुदने में लगी हुई थी. रह रहकर उसके हाथों की चूड़ियां खनक रही थी. गले में पड़ा मंगल्सूत्र भी दोनों स्तनों के बीच उछल कर थपथपा कर उत्तेजक संगीत पैदा कर रहा था और ये सब शोभा की चूत में फ़िर से पानी बहाने के लिये पर्याप्त था. पहले से नम चूत की दीवारों ने अब रिसना चालू कर दिया था. आभूषणों से लदी अजय के ऊपर उछलती दीप्ति काम की देवी ही लग रही थी. शोभा को अजय का लन्ड चाहिये था. सिर्फ़ पत्थर की तरह सख्त अजय का मासपिण्ड ही उसे तसल्ली दे पायेगा. अब ्यहां खड़े रह कर मां पुत्र की काम क्रीड़ा देखने भर से काम नहीं चलने वाला था.
शोभा मजबूत कदमों के साथ दीप्ति की और बढ़ी और पीछे से उसका कन्धा थाम कर अपनी और खींचा. हाथ आगे बढ़ा शोभा ने दीप्ति के उछलते कूदते स्तनों को भी हथेलियों में भर लिया. कोई और समय होता तो दीप्ति शायद उसे रोक पाती पर इस क्षण तो वो एक ऑर्गैज्म से गुजर रही थी. अजय नीचे से आंख बन्द किये धक्के पर धक्के लगा रहा था. उसे मां के दुख रहे मुम्मों का कोई गुमान नहीं था. इधर दीप्ति को झटका तो लगा पर इस समय स्तनों को सहलाते दबाते शोभा के मुलायम हाथ उसे भा रहे थे. कुछ ही क्षण में आने वाली नई स्थिति को सोचने का समय नहीं था अभी उसके पास. शोभा को बाहों में भर दीप्ति उसके सहारे से अजय के तने हथौड़े पर कुछ ज्यादा ही जोश से कूदने लगी.
"शोभा--आह--आआह", दीप्ति अपनी चूत में उठती ऑर्गैज्म की लहरों से जोरो से सिसक पड़ी। वो भी थोड़ी देर पहले ही अजय के कमरे में आई थी. शोभा की तरह उसकी चूत की आग भी एक बार में ठंडी नहीं हुई थी और आज अजय की बजाय अपनी प्यास बुझाने के उद्देश्य से चुदाई कर रही थी. अजय की जब नींद खुली तो मां बेदर्दी से उसके फ़ूले हुये लंड को अपनी चूत में समाये उठक बैठक लगा रही थी. कुछ ना कर पाया लाचार अजय. आज रात अपनी मां की इस हिंसक करतूत से संभल भी नहीं पाया था कि दरवाजे से किसी और को भी कमरे में चुपचाप आते देख कर हैरान रह गया. पर किसी भी तरह के विरोद्ध की अवस्था में नहीं छोड़ था आज तो मां ने.
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