RE: Mastram अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
दीप्ति ने पास ही पड़े एक कुशन को उठा अपने चुतड़ों के नीचे व्यवस्थित किया. इस प्रकार उसकी टपकती चूत और ज्यादा खुल गय़ी. शोभा भी दीप्ति का इशारा समझ कर वापिस अपने मनपसन्द काम में जुट गई. कुशन उठाते वक्त दीप्ति को अहसास हुआ कि इस समय दोनों कहां और किस अवस्था में हैं. घर के हॉल में बीचों बीच दोनों महिलायें नंगे जिस्मों को लिये वासना और प्यार से भरी हुई एक दूसरे कि बाहों में समाई थीं. किसी भी क्षण घर का कोई भी पुरुष यहां आकर उन दोनों को रंगे हाथों पकड़ सकता था. परंतु जीवन में पहली बार किसी दूसरी औरत के साथ संभोग के लिये इतना खतरा लेना अनुचित नहीं था.दीप्ति की खुली चूत शोभा के मुहं में फ़ुदक रही थी और शोभा की जीभ भी उसकी चूत के अन्दर नई नई गहराईयां नापने के साथ हर बार एक नई सनसनी पैदा कर रही थी. किसी मर्द के या कहे अजय के लन्ड से चुदते वक्त भी सिर्फ़ चूत की दीवारें ही रगड़ती थी. लेकिन शोभा की जीभ तो अन्दर कहीं गहरे में बच्चेदानी तक असर कर रही थी. पूरे शरीर में उठती आनन्ददायक पीड़ा ये सिद्ध करने के लिये काफ़ी थी कि किसी भी औरत के बदन को सिर्फ़ एक छोटे से बिन्दु से कैसे काबू में किया जा सकता है.कुछ ही क्षण में शोभा को अपनी जुबान पर दीप्ति की चूत का पानी महसूस हुआ. देखते ही देखते चूत में से झरना सा बह निकला. निश्चित तौर पर यहां पानी छोड़ने के मामले में दीप्ति उसे मात देती थी. हे भगवान, इस औरत का पानी पीकर तो किसी प्यासे की प्यास बुझ जाये. शोभा को अपनी चूत में आया खालीपन सता रहा था. परन्तु अभी दीप्ति का पूरी तरह से तृप्त होना जरूरी था ताकि वो फ़िर शोभा के साथ भी यही सब दोहरा सके. शायद दीदी को भी चूत में खालीपन महसूस हो रहा होगा. ऐसा सोच शोभा ने तुरन्त ही अपनी दो उन्गलियों को जोड़ कर उस तपती टपकती चूत में पैवस्त कर दिया.सही बात है भाई, एक औरत ही दूसरी औरत की जरुरत को समझ सकती है, दीप्ति शोभा के इस कारनामे से सांतवे आसमान पर पहुंच गई. उसके गले से घुटी घुटी आवाजें निकलने लगी और चूत ने शोभा की उन्गलियों को कसके जकड़ लिया. उधर शोभा के दिमाग में भी एक नई शरारत सूझी और उसने चूत के अन्दर एक उन्गली को हल्के से मोड़ लिया. अब कसी हुय़ चूत की दिवारों को इस उन्गली के नाखून से खुरचने लगी. हालांकि शोभा दीप्ति को और ज्यादा पीड़ा नहीं देना चाहती थी. कहीं ऐसा ना हो कि अत्यधिक आनन्द के मारे जोर से चीख पड़े और उनके पति जाग कर यहां आ जायें. दीप्ति भी होठों को दातों में दबाये ये सुख भरी तकलीफ़ सहन किये जा रही थी.अचानक से दीप्ति छूटी. सैक्स में इतने ऊंचे बिन्दु तक पहुंचने के बाद दीप्ति का शरीर उसके काबू में नहीं रह गया. रह रह कर नितम्ब अपने आप ही उछलने लगे मानो किसी काल्पनिक लन्ड को चोद रहे हो. शोभा पूरे यत्न से दीप्ति की चूत पर अपने मुहं की पकड़ बनाये रख रही थी. लेकिन दीप्ति कुछ क्षणों के लिये पागल हो चुकी थी. एक ही साथ हंसने और रोने लगी."हां शोभा हां. यहीं बस यहीं...और चाट ना प्लीज. उई मां. मैं गईईईई..आई लव यू डार्लिंग.." शोभा के बदन पर हाथ फ़िराते हुये दीप्ति कुछ भी बक रही थी. एक साथ आये कई आर्गेज्मों का नतीजा था ये. "कभी अजय भी मुझे इतना मजा नहीं दे पाया....आह आह.. बस.." दीप्ति ने शोभा को अपने ऊपर खींचा और उसका चेहरा अपने चेहरे के सामने किया. शोभा के गालों और होठों पर उसकी खुद की चूत का रस चुपड़ा हुआ था परन्तु इस सब से दीप्ति को कोई मतलब नहीं था. ये वक्त शोभा को धन्यवाद देने का था. दीप्ति ने शोभा को जोर से भींचा और अपने होठों को उसके होठों पर रख दिया. शोभा भी अपनी दीदी अपनी जेठानी के पहलू में समा गई. दीप्ति के स्तन उसके भारी भरे हुये स्तनों के नीचे दबे पड़े गुदगुदी कर रहे थे.
शोभा को सहलाते हुये दीप्ति पूछ बैठी, "क्या अजय ने ये सब किया था?"शोभा ने ना में सिर हिलाया। "अजय इतना आगे नहीं बढ़ पाया था. पता नहीं उसे ये सब मालूम भी है कि नहीं. उस रात तो हम दोनों पर बस चुदाई करने का भूत सवार था." थोड़ा रुक कर फ़िर से बोली "दीदी, आप ने भी तो नहीं बताया कि उसने आपके साथ क्या क्या किया?"दोनों औरतों के बीच एक नया रिश्ता कायम हो चुका था. दीप्ति थोड़ा सा शरमाई और शोभा के पूरे बदन पर हाथ फ़िराते हुये सोचने लगी कि कहां से शुरु करे."उसने मेरे साथ सैक्स किया या मैनें उसके साथ? पता नहीं. लेकिन मैं उसे वो सब देना चाहती थी जो एक मर्द एक औरत के बदन में ढूंढता है." दीप्ति के हाथों ने शोभा की सारी को पकड़ कर उसकी कमर पर इकट्ठा कर दिया. दोनों हाथों से शोभा की खुली हुई चिकनी गांड सहलाते हुये सोच रही थी कि अब उसे भी शोभा के प्यार का बदला चुकाना चाहिये.शोभा ने सिर उठा कर दीप्ति की आंखों में झांका और शरारती स्वर में पूछा "क्या आपने भी उसके तगड़े लन्ड को अपने भीतर समाया था?"दीप्ति ने धीरे से सिर हिलाया और शोभा को अपने ऊपर से हटने का इशारा दिया. शोभा अचंभित सी जब खड़ी हुई तो दीप्ति ने उसकी अधखुली साड़ी को खींच कर उसके शरीर से अलग कर दिया. उसके सामने खड़ी औरत के चूचें उत्तेजना के मारे पत्थर की तरह कठोर हो गये थे. दोनों निप्पल भी बिचारी तने रह कर दुख रहे होंगे. शोभा ने अपने बाल खोल दिये. उसका ये रुप क्या औरत क्या मर्द, सभी को पागल करने के लिये काफ़ी था. दीप्ति ने पेटीकोट के ऊपर से ही दोनों हथेलियों से शोभा की गांड को दबोचा. थोङा उचक कर उसके होठों को अपने होठों की गिरफ़्त में ले लिया और अपनी जीभ को उसके मुहं मे अन्दर बाहर करने लगी."लेट जाओ, मैं तुम्हारा बदला चुकाना चाहती हूँ. मैं भी तुम्हें जी भर के प्यार करना चाहती हूं." दीप्ति की इच्छा सुनकर शोभा टेबिल और सोफ़े के बीच में अपनी खुली हुई साड़ी को बिछा उसी पर लेट गय़ी. ""पता नहीं जितना तुम जानती हो उतना मैं कर पाऊंगी या नहीं लेकिन मुझे एक बार ट्राई करने दो" दीप्ति उसके ऊपर आती हुई बोली. पहले की भांति दीप्ति ने फ़िर से अपने स्तनों को शोभा के चेहरे के सामने नचाकर उसे सताना शुरु कर दिया. शोभा ने गर्दन उठा उसके स्तनों को होठों से छुने की असफ़ल कोशिश की तो दीप्ति खिलखिला कर हँस पड़ी. पीछे सरकते हुये दीप्ति अब शोभा की जांघों पर बैठ गय़ी और उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया. दोनों हाथों से पकड़ कर पहले पेटिकोट को पैंटी की इलास्टिक तक खींचा और फ़िर पैंटी को भी पेटीकोट के साथ ही उतारने लगी. शोभा ने तुरन्त ही कमर उठा कर दोनों वस्त्रों को अपने भारी नितम्बों से नीचे सरकाने में मदद की. पैन्टी चूत के पास पूरी गीली हो चुकी थी तो उतरते समय चप्प की आवाज के साथ सरकी. अब सिर्फ़ कन्धों पर झूलते खुले हुए ब्रा और ब्लाऊज के अलावा शोभा भी पूरी तरह नन्गी थी. दीप्ति ने प्यार से शोभा की नाभी के नीचे बाल रहित चिकने त्रिकोण को निहारा. अपने घर से निकलने से पहले शोभा ने अजय से पुनर्मिलन की क्षीण सी आस में अपनी झांटे कुमार के रेजर से साफ़ कर दी थीं. दीप्ति के मुहं में ढेर सारी लार आने लगी. हाय राम ये कैसी प्रतिक्रिया है? धीरे से दीप्ति ने शोभा की एक टांग को उठा कर टेबिल पर रख दिया और दूसरी को सोफ़े पर.
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