RE: Mastram अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
"सो, कैसा रहा सब कुछ." दीप्ति ने सामान्य बनते हुये पूछा. "दीदी, कल शाम को शराब पीने के बाद, इतनी सैक्सी फ़िल्म देख कर हम सब ही थोड़ा थोड़ा बहक गये थे" कहते हुये शोभा के हाथ काँप रहे थे. कल रात की याद करने भर से शोभा की चूत में गीलापन आ गया. "वो सब तो ठीक है, लेकिन तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया. कल रात को मजा आया कि नहीं." दीप्ति तो जैसे जिद पर ही अड़ गयी. "पता नहीं आप को इस सब में क्या मजा आ रहा है, हम लोगों की ये कोई सुहागरात तो थी नहीं" शोभा थोड़ा शरमाते हुए बोली. "उसके लिये तो थी" आखिरकार दीप्ति ने कह ही डाला. अब शक की कोई गुन्जाईश नहीं थी की दीप्ति ने कल रात शोभा को अपने बेटे के कमरे में देख लिया था. "दीदी, ये सब गलती से हुआ" अब शोभा भी टूट गई. दिल जोरो से धड़क रहा था और तेजी से चलती सांसो से सीना भी ऊपर नीचे हो रहा था. शर्म के मारे दोनों गाल लाल हो गये थे बिचारी के. "इतनी देर हो गई थी कि तुम खुद को रोक भी नहीं सकती थीं?" शोभा से किसी जज की तरह सवाल पूछा दीप्ति ने. उसके बेटे को बिगाड़ने का अपराध जो किया था शोभा ने. "नहीं दीदी, जब मुझे पता चला कि....." "क्या पता चला तुम्हें?" दीप्ति का स्वर तेज हो चला. "दीदी, पता नहीं कैसे आपको बताऊँ? लेकिन जैसे ही मैनें उसको महसुस किया मैं समझ गयी कि ये कुमार तो नहीं हैं. किन्तु आपका बेटा तो रुकने को ही तैयार नहीं था." कहते हुये शोभ ने दीप्ति का हाथ पकड़ लिया. डर रही थी कि कहीं दीप्ति घर में महाभारत ना करा दे. दीप्ति ने शोभा के हाथ को दबाते हुये सयंत स्वर में पूछा. "कैसे महसूस किया तुमने उसे?". कम से कम इतना जानने का अधिकार तो उसका था ही कि उसके बेटे के साथ क्या हुआ था. अगर उसकी देवरानी ने जान बूझ कर अजय को उकसाया था तो ये एक अक्षम्य अपराध था. "मैनें तो सिर्फ़ वही किया जो में कुमार के साथ करती हूं". दीप्ति के कन्धे पर सर रखते हुये शोभा बोली. "हां तो ऐसा क्या किया तुमने कि तुमको मालूम पड़ गया कि ये कुमार नहीं अजय है और फ़िर भी तुम खुद को संभाल नहीं पाईं?"."मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा".
शोभा की समझ में आ गया की दीप्ति को रोकना मुश्किल है. उसने सब कुछ बताने का निश्चय कर लिया. वो बोली "दीदी, उसका वो इतना लम्बा और तगड़ा था और इतनी जल्दी खड़ा हो गया था की वो कुमार का तो हो ही नही सकता था. मैनें उसे रोकने की बहुत कोशिश की पर अजय बुरी तरह से उत्तेजित था." "तुमने उसे रोकने की कोशिश की, कैसे?" दीप्ति ने फ़िर से सवाल दाग दिया. "वैल, मैनें उसको अपने मुहं से निकाला और वहां से उठ गई", शोभा के मुहं से तुरन्त ही निकल गया. "ओ गॉड, तुमने अजय के लन्ड को अपने मुहं में लिया?" अब दीप्ति की चूत में पानी बहने लगा. एक औरत, उनकी देवरानी, कल रात उनके ही बेटे का लंड चूस रही थी. "क्यूं? आपने कभी नहीं किया क्या?" "नहीं" दीप्ति ने अविश्वास से शोभा की तरफ़ देखा. "कमरे में अन्धेरा था. मुझे लगा की कुमार सो रहे हैं. तो बाकी दिनों की तरह ही में अजय की चादर में घुस कर जल्दी मचाने लगी. नशे में तो मैं थी ही और आपकी और भाई साहब की चुदाई की आवाजों ने मेरा दिमाग खराब कर दिया था." शोभा ने भी पूरे वाकिये को रसीला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. "एक झटके में ही वो लन्ड फ़ूल कर इतना बड़ा हो गया था कि मैं तुरन्त ही समझ गई कि ये कुमार नहीं हैं." "इतना बड़ा है क्या अजय का लन्ड?" दीप्ति ने पूछा. किन्तु तुरन्त ही उसे अपनी गलती का एहसास हो गया. उसे ऐसा सवाल नहीं पूछना चाहिये था. अजय बचपन से अपने माता पिता के साथ एक ही कमरे में सोता आया था.
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