RE: hindi kahani तरक्की का सफ़र
मैंने प्रीती से पूछा कि उसने ऐसा मेरी बहनों के साथ क्यों किया? तो उसने अपनी ज़ुबानी ये दास्तान सुनाई।
प्रीती की कहानी:
“मेरी कहानी उस समय शुरू हुई जब तुमने मेरे जिस्म का सौदा अपने बॉस के साथ, पैसे और तरक्की के लिये किया।”
“पूरी रात मैं सो नहीं सकी। अब मैं क्या करूँ, ये सवाल मुझे खाये जा रहा था। आत्महत्या कर लूँ ये भी ख्याल आया, किंतु आत्महत्या समस्या का समाधान नहीं है। ये डरपोक लोगों का काम है और मैं डरपोक नहीं थी।”
“फिर ख्याल आया कि तुम्हें छोड़ कर तुमसे तलाक ले लूँ, पर ये तुम्हारी सज़ा नहीं थी। तुम मुझे बदनाम कर दोगे कि मैं गंदे कैरैक्टर की औरत हूँ और तुम दूसरी शादी कर लोगे। और शायद अपनी नयी बीवी के साथ भी वही सब करोगे जो मेरे साथ किया।”
“फिर मुझे ख्याल आया कि मुझे तुमसे बदला लेना है। मैं तुम्हें इतना जलील करना चाहती थी, जितना तुमने मुझे किया है। उस समय मेरे पास कोई उपाय नहीं थी इसलिये सोचा कि हालात को देखते हुए मैं नॉर्मल रहूँ और वक्त का इंतज़ार करूँ।”
“मगर प्रीती! वो तो सिर्फ़ एक समय के लिये था, मैं नहीं चाहता था कि तुम वेश्याओं की तरह अपनी लाइफ गुज़ारो”, मैंने दुख भरे शब्दों में कहा।
“कुछ भी हो, मैं वेश्या बन गयी, तुम चाहो या ना चाहो। राज या तो तुम भोले हो या नदान”, प्रीती ने जवाब दिया, “मैं जानती थी कि तुम्हारे बॉस एम-डी और महेश मुझे एक बार चोद कर छोड़ने वाले नहीं थे, वो फिर मुझे चोदना चाहेंगे और तुम्हें लालच या ब्लैक मेल कर मुझे चुदवाने पर मजबूर कर देंगे।”
“तुम्हें याद है जब एम-डी ने मुझे क्लब पर अकेले बुलाया था? उसने अपने लिये नहीं, बल्कि अपने दोस्तों के लिये बुलाया था। मैं वहाँ पहुँची तो एम-डी ने मुझसे कहा कि प्रीती तुम अभी उम्र में छोटी हो और समझदार भी, मेरे कई दोस्त तुम्हें पाना चाहते हैं। तुम सहयोग दो तो तुम काफी अमीर बन सकती हो। मैं मान गयी, दो चार लंड और चूत में लेने से मुझे कोई फ़रक नहीं पड़ने वाला था और बाकी की कहानी तुम्हें मालूम है।”
“फिर एक दिन मुझे अंजू और मंजू का खत मिला। उसी समय मुझे अपनी मंज़िल दिखायी देने लगी। तुम अपनी बहनों से बहुत प्यार करते हो, इसलिये मैं इन दोनों को भी अपनी तरह रंडी बनाकर तुम्हें जलील करना चाहती थी। मुझे आगे क्या और कैसे करना है, इसपर सोचना शुरू कर दिया।”
“पर तुम्हें कैसे यकीन था कि तुम अंजू और मंजू को इन सब के लिये तैयार कर लोगी?” मैंने पूछा।
“यकीन तो मौत के सिवा किसी चीज़ का नहीं है राज, पर मैं जानती थी कि मैं कामयाब हो जाऊँगी।”
“तुम्हें इतना यकीन क्यों था?” मैंने वापस पूछा।
“राज! तुम्हें याद है? हमारी सुहागरात के दूसरे दिन सुबह मैंने तुम्हें बताया था कि अंजू और मंजू मुझे तंग कर रही थी.... जब मैं सुबह किचन में चाय बना रही थी।”
“हाँ मुझे याद है”, मैंने जवाब दिया।
“उस दिन सुबह अंजू ने मुझसे पूछा, क्यों भाभी! आपको हमारे भैया का लौड़ा कैसा लगा?”
“मैं शरमा गयी थी पर कुछ जवाब नहीं दिया।”
“फिर मंजू ने कहा, भाभी! भैया ने आपको रात को सोने भी दिया या फिर सारी रात आपको चोदते रहे। ”
“मैं उन दोनों को डाँट कर वापस आ गयी।”
“फिर जब भी हम तीनों अकेले होते तो ये दोनों सवाल करने लगती, कि चुदाई कैसे की जाती है, लंड कैसा होता है। लंड जब चूत में घुसता है तो दर्द होता है क्या। एक दिन मैंने हँसते हुआ कहा, लगता है तुम दोनों को चुदवाने का बहुत मन कर रहा है?”
“पर उनके जवाब ने मुझे हैरान कर दिया, हाँ भाभी! बहुत मन करता है, अगर हमें बच्चा होने का डर ना होता तो कभी का हम लोग चुदवा चुकी होती।”
“राज इससे तुम्हें तुम्हारा जवाब मिल गया होगा। मुझे सिर्फ़ इन्हें चुदवाने के लिये उक्साना था और ये दोनों तो तैयार ही बैठी थी इसके लिये। फिर मैंने प्लैन बनाया कि इन दोनों की कुँवारी चूत मैं अपने दोनों भाई राम और श्याम से चुदवाऊँगी। जब इन दोनों के भाई यानी तुमने मेरी कुँवारी चूत ली है तो मैं भी अपने भाइयों से तुम्हारी कुँवारी बहनों की चूत चुदवाऊँगी। ये एक प्रकार से जैसे को तैसा था।”
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