RE: Chudai Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुमन की बातों से जहाँ सुनील के दिल में उसकी और भी इज़्ज़त बढ़ रही थी वहीं उसके कानो से धुएँ निकलने लगे थे - एक तो जगह ऐसी खजुराहो - उपर से सेक्स ज्ञान वो भी माँ से. आख़िर था तो मर्द ही असर कैसे नही होता.
सुमन - सुनील के पास और उससे चिपक गयी और उसके होंठों को अपने होंठों से छू के हटा लिया
दिस ईज़ दा सेकेंड लेसन ऑफ सेक्स.
सुनील की हालत वो हो गयी जैसे किसी कैदी के सामने उसकी रिहाई का वारंट हो पर वो उस तक पहुँच ना सकता हो.
' एक बार की बात होती तो जैसे लोग खाने का जाएका कुछ दिनो में भूल जाते हैं मैं भी भूल जाती - लेकिन जाने क्यूँ समर मुझे भोगना चाहता था और तेरे डॅड सविता को - ये स्वापिंग हर हफ्ते हर सनडे को होने लगी'
सुनील के बस का नही था और सुनील जब से उसकी माँ के होंठों ने उसके होंठों को छुआ था - सेक्स का वो दूसरा लेसन उसे किसी और दुनिया में ले गया था - वो अब भी लड़ रहा था खुद से - उसमे संस्कार इतने कूट कूट कर भरे गये थे जिन्हें तोड़ना बहुत मुश्किल था पर उसका जिस्म उसका साथ छोड़ता जा रहा था - सुमन के रस भरे होंठ उसे बुला रहे थे पर उसमे हिम्मत नही थी अपनी माँ के साथ कुछ भी करने की - दर्द और आकांक्षा की लहर उसके जिस्म में दौड़ गयी - आँखों से दर्द भरे आँसू टपक पड़े . उसने खुद को सुमन से अलग किया और अपना ध्यान वाइन की बॉटल पे लगा दिया - गटा गट एक पेग पी गया और जानवर की तरहा चिकन खाने लगा.
उसकी ये हालत देख सुमन को दुख हुआ पर क्या करती मजबूर हो गयी थी - उसे अपना बेटा वापस चाहिए था - गमो के बादल से बाहर निकला जीवन में आने वाले सुखों को भोगने के लिए तयार.
समर की बातें उसे याद आने लगी - उसके डगमगाते कदम मजबूत होने लगे - हां उसे इस रास्ते पे चलना ही पड़ेगा - चाहे कितनी तकलीफ़ हो - सुनील को एक मजबूत मर्द बनाना ही पड़ेगा - तभी जा के दिल को कुछ शांति मिलेगी --- जब वो संसार की वस्तुओं को दिल से भोगने लगेगा - अपने जनम के कड़वे सच को भुला कर - तब कहीं जा के ये साधना पूरी होगी - तब ये सफ़र पूरा होगा - सुमन का रोता तड़प्ता दिल थोड़ा शत हो गया.
भूख लगने लगी थी - सिर्फ़ वाइन और चिकन से पेट तो नही भरता. बातों बातों में कब रात हो गयी पता ही ना चला.
'सुनील रूम सर्विस से खाना मंगवा ले जो भी तुझे अच्छा लगे - रेस्टोरेंट में जाने की हिम्मत नही - अब मैं दुबारा कपड़े नही बदलना चाहती - कहती हुई सुमन बिस्तर पे लेट गयी '
सुनील ने खाने का ऑर्डर दे दिया और सोफे पे बैठ फिर से वाइन का पेग बना लिया . सुमन उसे ही देख रही थी - अब भी वो खुद से लड़ रहा था उसके चेहरे पे अब भी दर्द के निशान थे और सुमन का फ़ैसला उसे दर्द से बाहर निकालने का और भी ज़ोर पकड़ता गया.
'इधर आ मेरे पास' बिस्तर पे लेटी सुमन ने अपनी बाहें फैला दी.
माँ के आलिंगन को कॉन बेटा इनकार कर सकता है सुनील भी उन बाहों में समा गया - माँ और बेटा दोनो ही बहुत भावुक हो गये दोनो की आँखें नाम पड़ गयी.
आधा घंटा कैसे गुजरा पता ही ना चला रूम सर्विस ने खाना डेलिवर कर दिया.
दोनो माँ बेटा खाना खाने लगे.
ख़तम हो गया पर सुनील के होंठों पे कुछ बटर चिकन की तरी लगी रह गयी.
सुमन उठ के उसके पास आई उसके चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया बड़े प्यार से उसे देखने लगी और फिर अपनी ज़ुबान से उसके होंठों पे लगी तरी को चाट लिया . कुछ देर और ऐसे ही अपनी ज़ुबान उसके होंठों पे फिराती रही.
'ये था सेक्स का तीसरा लेसन' और मुस्काती हुई बिस्तर पे लेट गयी .
सुनील बुत बना बैठा रहा उसे समझ ही नही आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है वो सुमन को अपनी बाँहों में कस के भींचना चाहता था - पर उसकी मर्यादा की दीवार बहुत गहरी और बहुत मजबूत थी - उसके दोनो हाथों की मुठियाँ बहुत सख़्त हो गयी जैसे वो खुद को कुछ करने से रोक रहा हो.
सुनील को अब भी सुमन की ज़ुबान का अहसास हो रहा था - उसका मन मचल रहा था और दिमाग़ वॉर्निंग दे रहा था. उठ के वो बाहर बाल्कनी में जा के खड़ा हो गया. उसके अंदर छुपा जानवर जाग रहा था जिसे वो जागने नही देना चाहता था. फिर से एक जंग छिड़ गयी थी उसके दिमाग़ और जिस्म के बीच. उसने रजनी को एक दो बार चूमा था पर जो अहसास उसे अब हो रहा था पहले कभी नही हुआ था.
बिस्तर पे लेटी सुमन उसे देख रही थी - उसकी आँखों से आँसू टपक पड़े और खुद से बात करने लगी 'सॉरी सन टू मेक यू गो थ्रू दिस पेनफुल ऑर्डील' वाइन कुछ ज़यादा हो गयी थी और सुमन की आँखें कब बंद हुई उसे पता भी ना चला.
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