RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
15 से 20 मिनट के अन्दर ही मैं गहरी नींद में सो गया। बस की खिड़की से आती हुई ठंडी ठंडी हवा मुझे और भी सुकून दे रही थी।
“चलो अब उठ भी जाओ… सोनू… ओ सोनू… उठा जाओ, हम पहुँच गए हैं..” सिन्हा आंटी ने धीरे धीरे मेरे कन्धों को हिलाकर मुझे उठाया तो मैंने अपनी आँखें खोलीं।
दिन पूरी तरह चढ़ आया था और सूरज की रोशनी में मेरी आँखें चुन्धियाँ सी गईं। करीब 12 बज चुके थे.. पता ही नहीं चला… मैं पूरे रास्ते सोता रहा !!
मैं खुश हुआ कि हम आखिरकार पहुँच ही गए… लेकिन मैं थोड़ा हैरान भी था, यह सोच कर कि पूरे रास्ते आंटी ने कुछ भी नहीं किया… या शायद कुछ किया हो और मैं नींद में समझ नहीं पाया… क्या आंटी ने कल रात जैसी उत्तेजना दिखाई थी, वैसी उत्तेजना उन्होंने बस में भी महसूस नहीं करी… या फिर वो जानबूझ कर शांत रहीं…?
मन में हजारों सवाल लिए मैं बस से नीचे उतरा। उतर कर देखा तो प्रिया के छोटे वाले मामा अपनी बेटी के साथ हमें लेने बस अड्डे आये हुए थे। प्रिया भाग कर अपने छोटे मामा की बेटी यानी अपनी ममेरी बहन के गले लग गई और वो दोनों उछल उछल कर एक दूसरे से मिलने लगे… मुझे उन्हें देख कर हंसी आ गई… बिल्कुल बच्चों की तरह मिल रही थीं दोनों।
हम सबने एक दूसरे को राम सलाम किया और उनके जीप में बैठ कर लगभग आधे घंटे के अन्दर प्रिया के नाना जी के घर पहुँच गए। मैंने चैन की सांस ली।
सिन्हा आंटी का मायका मेरी सोच से काफी बड़ा था। जब हम वहां पहुँचे तो ढेर सारे लोग एक बड़े से गेट के बाहर खड़े हमारा इंतज़ार कर रहे थे। हमारे पहुँचते ही सबने आगे बढ़ कर हमारा भव्य तरीके से स्वागत किया और हम इतने सारे लोगों के बीच मानो खो ही गए। घर के अन्दर दाखिल हुए तो लगा घर नहीं, कोई पुराने ज़माने की हवेली हो। बड़ा सा आँगन और तीन मालों में ढेर सारे कमरे। खैर हम सबको अपना अपना कमरा दिखा दिया गया। मुझे सबसे ऊपरी माले पर बिल्कुल कोने में एक कमरा मिला था। मैं वैसे ही सफ़र की थकान से परेशान था और ऊपर से इतनी सीढियाँ चढ़ कर कमरे में पहुँचते ही वहाँ बिछे बड़े से पलंग पे धड़ाम से गिर पड़ा।
घर में इतने लोग थे लेकिन फिर भी एक अजीब सी शांति थी, शहरों वाला शोरगुल बिल्कुल भी नहीं था। इस शांति ने मेरी पलकों को और भी बोझिल कर दिया और मैं लगभग सो ही गया।
“ये ले… जनाब सो रहे हैं और हम कब से उनकी राह देख रहे हैं !” एक मधुर आवाज़ ने मुझे नींद से जगा दिया और जब आँखें खुलीं तो मेरे सामने मेरे सपनों की मल्लिका प्रिया अपने कमर पर हाथ रख कर खड़ी मिली।
“अजी राह तो हम कब से आपकी देख रहे हैं… इतना थक गया हूँ कि उठा भी नहीं जा रहा है, सोचा कि आप आएँगी और मुझे उठा कर अपने हाथों से नहलायेंगी !” मैंने शरारत भरी नज़रों से उसकी तरफ देखते हुए कहा।
“ओहो…कुछ ज्यादा ही सपने देखने लगे हैं जनाब… उठिए और जल्दी से फ्रेश हो जाइये। नीचे सब खाने के लिए आपका इंतज़ार कर रहे हैं… फिर आपको बागों की सैर भी तो करनी है।” प्रिया ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठाने की कोशिश की और खींचने लगी।
मैंने अचानक से उसे पकड़ कर अपनी बाँहों में दबा लिया और उसके गर्दन पे अपने होंठ फिराने लगा। उसके बालों से अच्छी सी खुशबू आ रही थी। मैंने अपने हाथ पीछे से उसके नितम्बों पे ले जा कर उसके उभरे हुए नर्म कूल्हों को दबाना शुरू किया और अपने लंड की तरफ दबाना शुरू किया। प्रिया ने एक जोर की सांस ली और अपना एक हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे जोर से मरोड़ दिया।
“उफ्फ्फ….लगता है न बाबा..” मैंने उसे अलग करते हुए उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
वो जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी और मेरे होंठों पे एक पप्पी देते हुए कहने लगी, “बस इतना ही दम है आपके शेर में… लगता है आज बाग़ की सैर का प्रोग्राम कैंसल कर देना चाहिए !”
उसकी बातों ने मेरे अन्दर के मर्द को एकदम से जगा दिया और मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर जोर से मसल दिया…
“आउच… बदमाश कहीं के… इतनी जोर से कोई मसलता है क्या। अभी भी इनका दर्द ठीक नहीं हुआ है। अगर ऐसे करोगे तो फिर इन्हें छूने भी नहीं दूंगी… ज़ालिम !” प्रिया की यह शिकायत बिल्कुल वैसी थी जैसी एक बीवी अपने पति से करती है बिल्कुल अधिकारपूर्ण… उसकी इन्ही अदाओं का तो दीवाना था मैं !
मैंने नीचे झुक कर उसकी चूचियों को चूम लिया और अपने कान पकड़ कर सॉरी बोला और प्रिया से माफ़ी मांगने लगा।
मेरी भोली सी सूरत देखकर प्रिया को हंसी आ गई और उसने बढ़कर मुझे चूम लिया। प्रिया ने मुझे धक्का देकर बाथरूम में भेज दिया और नीचे चली गई।
बाथरूम में ठंडे पानी से नहाकर मेरी सारी थकान दूर हो गई। मेरे नवाब साहब भी नहाकर बिल्कुल चमक से रहे थे लेकिन एक अजीब सी बात मैंने नोटिस की थी और वो यह कि मेरा लंड कल रात में रिंकी के मुख चोदन के बाद भी अर्ध जागृत अवस्था में ही था… न तो पूरी तरह सोया था न ही पूरी तरह जगा हुआ था। अब यह रिंकी की वजह से था, प्रिया की वजह से या फिर आंटी के कारनामों की वजह से… यह कहना मुश्किल था।
खैर, मैं नीचे पहुँचा तो वहाँ एक हॉल में ढेर सारे लोग बैठ कर खाना खा रहे थे। मैं इधर उधर देखने लगा और प्रिया को ढूँढने लगा ताकि बैठ सकूँ और खाना खा सकूँ। भूख ज़ोरों की लगी थी।
“इधर आ जाओ… हम कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। चलो जल्दी से खा लो।” सिन्हा आंटी की आवाज़ मेरे कानों में गई और मैं उन्हें ढूँढने लगा।
सामने बिल्कुल कोने में सिन्हा आंटी थालियों के साथ बैठी थीं और अपने पास की खाली जगह की तरफ इशारा करते हुए मुझे बुला रही थीं। कमाल की लग रही थीं, लाल साड़ी और वो भी गाँव के स्टाइल में सर पे घूंघट किये हुए… सच कहूँ तो आंटी को पहली बार घूंघट में देखकर एक बार मन किया कि उन्हें बस देखता ही रहूँ.. बड़ी बड़ी आँखें, गाल प्राकृतिक रूप से लाल, हाथों में ढेर साड़ी लाल चूड़ियाँ… दुल्हन से कम नहीं लग रही थीं वो।
उन्हें घूरता हुआ मैं उनकी तरफ बढ़ा और उनके पास जाकर बैठ गया। उनके बदन से आ रही खुशबू ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया और मैं उन्हें फिर से घूरने लगा। आंटी ने मेरी निगाहों को अपने चेहरे पे महसूस किया और कनखियों से मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगीं। उनकी आँखों में मैं साफ साफ देख सकता था… एक चमक, एक शरारत, एक प्यास…
आने वाला वक़्त पता नहीं क्या दिखाने वाला था लेकिन अब तो मेरे दिल ने भी समर्पण करने का मन बना लिया था… मैंने सबकुछ ऊपर वाले के ऊपर छोड़ा और अपने घुटने से उनकी जांघों को सहलाते हुए खाना खाने लगा।
खाना खाकर हम सब उठे और बाहर आँगन में चारपाइयों पर बैठ गए। थोड़ी ही देर में प्रिया लड़कियों के एक झुण्ड के साथ आँगन में आई और मेरी चारपाई के पास आकर उन सबसे मेरा परिचय करवाने लगी.. करीब 7-8 लड़कियाँ.. सब लगभग प्रिया की उम्र की या उससे थोड़ी छोटी रही होंगी। कसम से यार, सब एक से बढ़ कर एक थीं। अगर प्रिया सामने नहीं होती तो शायद मैं जी भरकर उनके गोल गोल टमाटरों को देख लेता और उन सबके साइज़ का अनुमान लगा लेता… लेकिन मेरी जानम सामने खड़ी थीं और मैं उन्हें नाराज़ नहीं करना चाहता था। इसलिए एक शरीफ बच्चे की तरह उनसे मिला और फिर सबके साथ हंसी ठिठोली होने लगी।
“क्यूँ बेचारे को परेशान कर रहे हो तुम लोग… इसे थोड़ा आराम कर लेने दो फिर उसे मामा जी के साथ बाज़ार जाना है।” सिन्हा आंटी अपने हाथों में एक प्लेट लेकर हमारी तरफ बढ़ रही थीं।
‘चल प्रिया, तू भी थक गई होगी न, थोड़ा सा आराम कर ले फिर शाम को जितना मर्ज़ी हंसी ठिठोली करते रहना !” आंटी ने प्रिया को डांटते हुए कहा और सब लड़कियाँ वहाँ से ही ही ही ही करती हुई घर के दूसरे माले पे चली गईं।
“ये लो सोनू बेटा, तुम्हारी मनपसंद गुलाब जामुन !” आंटी ने एक प्लेट में करीब 4-5 गुलाब जामुन मुझे दिए।
“अरे आंटी, अभी तो इतना सारा खाना खाया है… इतनी मिठाइयाँ नहीं खा सकूँगा।” मैं उनके हाथों से प्लेट ले ली और उनसे मिठाइयाँ कम करने के लिए कहने लगा।
आंटी ने मेरी एक न सुनी और मुझे आँखें बड़ी बड़ी करके लगभग धमका सा दिया और चुपचाप खाने का इशारा किया। गुलाबजामुन देखकर मुझे दो दिन पहले गुज़रे वो लम्हे याद आ गये जब प्रिया को…..
खैर मैं प्लेट लेकर उठा और सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा। मैंने सोचा कि अभी अपने कमरे में जाकर थोड़ा रुक कर खा लूँगा और फिर थोड़ा सो भी लूँगा क्यूंकि शाम को प्रिया ने बाग़ दिखाने का वादा किया था। बाग़ तो सिर्फ एक बहाना था, असल में हम एक बार फिर से एक दूसरे में समां जाना चाहते थे। और इस बात से मैं खुश था और उत्तेजित भी होता जा रहा था।
तभी मुझे याद आया कि अभी अभी आंटी ने कहा था कि मामा जी के साथ बाज़ार जाना है। जैसे ही मुझे ये याद आया मेरा मन उदास हो गया। प्रिया से मिलन की बेकरारी मैं अपने लंड पे महसूस कर सकता था जो कि अर्ध जागृत अवस्था में प्रिया की चूत को याद करते हुए अकड़ रहा था। मैं दुखी मन से सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा।
“ऊपर जाकर इन्हें यूँ ही रख मत देना। मैं आकर चेक करुँगी तुमने खाया है या नहीं !” आंटी की आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा और मैं उनकी तरफ देखने लगा।
आंटी मुस्कुराते हुए मुझे देख रही थीं और बाकी लोगों को भी मिठाइयाँ खिला रही थीं। मैंने एक बार उन्हें एक मुस्कान दी और सीढ़ियों से चढ़ कर ऊपर बढ़ गया।
तभी मुझे याद आया कि अभी अभी आंटी ने कहा था कि मामा जी के साथ बाज़ार जाना है। जैसे ही मुझे ये याद आया मेरा मन उदास हो गया। प्रिया से मिलन की बेकरारी मैं अपने लंड पे महसूस कर सकता था जो कि अर्ध जागृत अवस्था में प्रिया की चूत को याद करते हुए अकड़ रहा था। मैं दुखी मन से सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा।
“ऊपर जाकर इन्हें यूँ ही रख मत देना। मैं आकर चेक करुँगी तुमने खाया है या नहीं !” आंटी की आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा और मैं उनकी तरफ देखने लगा।
आंटी मुस्कुराते हुए मुझे देख रही थीं और बाकी लोगों को भी मिठाइयाँ खिला रही थीं। मैंने एक बार उन्हें एक मुस्कान दी और सीढ़ियों से चढ़ कर ऊपर बढ़ गया।
अभी आधी सीढ़ियाँ ही चढ़ा था कि प्रिया एकदम से मेरे सामने आ गई।
“लगता है जनाब का मूड ख़राब हो गया है… अब तो आपको बाग़ की जगह बाज़ार जाना पड़ेगा बच्चू ! अब ये बेचारे गुलाबजामुन अकेले ही खाना पड़ेंगे आपको !” प्रिया ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा।
“लगता है आपको बड़ी ख़ुशी हुई है इस बात से?” मैंने उसे ताना मारते हुए कहा।
“हाँ भाई यह तो सही कहा आपने ! दरअसल मैं खुद तुमसे यह कहने वाली थी कि आज हम बाग़ नहीं जा पाएँगे क्यूंकि आज शाम को घर पे सुनार और कपड़ों के व्यापारी आने वाले हैं और हम सबको उनसे ढेर सारी चीजें खरीदनी हैं। तो आप बाज़ार होकर आ जाओ और हम अपनी खरीदारी कर लेते हैं।”
बाप रे बाप… एक ही सांस में प्रिया ने सबकुछ बोल दिया और मुझे बोलने या कुछ पूछने का मौका भी नहीं दिया।
मैंने अपने हाथों की प्लेट नीचे सीढ़ियों पे रखी और बिना कुछ कहे प्रिया का हाथ एकदम से पकड़ा और अपने लंड पे रख कर कहा, “इसका क्या करूँ?”
प्रिया के हाथ रखते ही लंड एकदम से खड़ा हो गया जो कि उसकी हथेली में फिट बैठ गया। प्रिया ने इधर उधर देखा और झुक कर मेरे लंड पे एक पप्पी ले ली और फिर उसे सहलाते हुए मुझसे एकदम से चिपक गई।
“चिंता मत करो मेरे पतिदेव, आपसे ज्यादा आपकी ये बीवी तड़प रही है इसे अपने अन्दर लेने के लिए। मैं वादा करती हूँ कि रात को सबके सोने के बाद इसका सारा दर्द दूर कर दूँगी।” प्रिया ने मेरे कान में धीरे से कहा।
मैंने अपना एक हाथ उसके चूत पे कपड़ों के ऊपर से ही रख दिया और धीरे से सहलाने लगा। प्रिया ने अपने मुँह को मेरे मुँह से सटा कर अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मेरी जीभ से खेलने लगी। मेरा एक हाथ उसकी टॉप के अन्दर चला गया और ब्रा के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलने लगा।
बड़ा ही कामुक सा दृश्य था, उसके हाथों में मेरा लंड, उसकी चूत पे मेरा एक हाथ और अब उसकी एक चूची ब्रा से आजाद होकर मेरे हाथों में। अगर थोड़ी देर और ऐसे रहते तो शायद वहीं सीढ़ियों पे ही चुदाई शुरू हो जाती। लेकिन किसी के क़दमों की आहट ने हमें चौंका दिया और हम झट से अलग हो गए।
प्रिया जल्दी से मेरे गालों पे एक पप्पी लेकर अपने कमरे में भाग गई और मैंने इधर उधर देखकर अपने कदम तीसरे माले की ओर बढ़ा दिए।
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