RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
मैंने उसकी चूत को अपने हाथों की मुट्ठी में कैद कर लिया और उसे स्पंज की
तरह मसलने लगा लेकिन प्यार से। इतने देर से चूमने और चाटने चूसने का खेल
खेलते खेलते उसकी मुनिया रानी अपना काम रस छोड़ चुकी थी और बहुत ही गीली हो
गई थी।
मैं ठहरा चूत चाटने और चूसने का दीवाना। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने झट से उसकी चूची अपने मुँह से बाहर निकाल लिया।
रिंकी ने भी झट से मेरा मुँह पकड़ा और अपनी जीभ मेरे मुँह में ठेल दी। कुछ
देर ऐसे ही जीभ चूसने और चुसवाने के बाद मैंने उसकी स्कर्ट का बटन अपने
हाथों से खोलना चाहा। उसकी स्कर्ट में कहीं भी बटन नहीं मिल रहे थे, मैं
कोशिश किये जा रहा था।
रिंकी को शायद मेरी इस कोशिश में मज़ा आ रहा था। उसने अचानक से मुझे खुद से अलग किया और मुझे धक्का देकर बिस्तर पे लिटा दिया...
मैं अपनी कोहनियों के बल बिस्तर पे आधा लेट गया। मेरे दोनों पैर नीचे लटक
रहे थे और मैं आधा उठा हुआ था अपनी कोहनियों के बल। रिंकी मेरे सामने खड़ी
थी और अपनी लाल हो चुकी चूचियों को प्यार से सहला रही थी।
"जानवर कहीं के.. यह देखो क्या हाल किया है तुमने इनका..." रिंकी मेरी तरफ सेक्सी सी स्माइल देते हुए कहने लगी...
मैं अपने होंथों पर अपनी जीभ फिर रहा था, मेरा गला सूख गया था।
तभी रिंकी ने अपनी चूचियाँ छोड़ कर
अपने हाथ अपनी स्कर्ट के पीछे ले गई और अपनी स्कर्ट का जिप खोला। स्कर्ट
धीरे से उसके पैरों से होता हुआ नीचे फर्श पर गिर गया। कमरे में दिन का
उजाला था और उस उजाले में रिंकी का बदन किसी संगमरमर की मूर्ति की तरह चमक
रहा था। बिल्कुल चिकना बदन...एक रोयाँ तक नहीं था उसके बदन पे...
वो मेरे सामने खड़ी होकर अपना बदन लहरा रही थी। मैं सब्र नहीं रख पा रहा था।
मैं उठ गया और बिस्तर पे बैठे बैठे ही उसे अपनी तरफ खींच लिया। वो लहराती
हुई मेरे सीने से चिपक गई।
रिंकी को तो मैंने बिल्कुल नंगा कर दिया था लेकिन अब तक मेरे बदन पे सारे
कपड़े वैसे ही थे। रिंकी ने मेरे गले में अपनी बाहें डाल दीं और मेरे कानों
के लोम को अपने होंठों से चुभलाने लगी। मुझे बहुत तेज़ गुदगुदी हुई। मैंने
अपने कान छुड़ाने की कोशिश की लेकिन उसने छोड़ा नहीं।
"शैतान, मुझे तो पूरी नंगी कर दिया...सब कुछ देख लिया मेरा और खुद...??" रिंकी ने मेरे कान में धीरे से कहा।
"तुमने भी तो मेरा सब कुछ देख लिया है..." मैंने भी सेक्सी आवाज़ निकलते हुए कहा।
"मैंने कब देखा...?" रिंकी ने चौंकते हुए पूछा।
"तुम ही तो कह रही थी कि तुमने कल रात को सब देख लिया है...फिर बचा क्या !"...मैंने उसे छेड़ते हुए जवाब दिया...
"ओहो...उस वक़्त तो तुम्हारा वो उसके मुँह में कैद था...मैंने ठीक से देखा ही कहाँ !"...रिंकी ने थोड़ा शरमाते हुए कहा।
"क्या किसके मुँह में था...ठीक से बताओ न..."मैंने जानबूझकर ऐसा कहा ताकि
रिंकी पूरी तरह खुलकर मेरे साथ मज़े ले सके। मुझे सेक्स के समय देसी भाषा का
इस्तेमाल करना बहुत पसंद है, और दोस्तों शायद आप सब ने भी इसका तजुर्बा
लिया होगा। अगर किसी ने नहीं किया तो एक बार करके देखना...लंड और भी तन
जायेगा और चूत और भी गीली हो जायेगी।
खैर मैंने रिंकी को अपने गले से लगा रखा था और उससे ठिठोली कर रहा था।जब
मैंने उससे खुलकर बात करने का इशारा किया तो वो जैसे छुई मुई से शरमा गई।
"धत, तुम बड़े शैतान हो...मुझे नहीं पता उसे क्या कहते हैं।" रिंकी ने अपनी आँखें मेरी आँखों में डालकर शरमाते हुए कहा।
"प्लीज रिंकी...ऐसा मत करो...बोलो ना...मैं जनता हूँ, तुम्हें सब पता है।" मैंने आँख मरते हुए उससे विनती करी।
रिंकी धीरे से मेरे कानों के पास आकर फुसफुसा कर बोल पड़ी," तुम्हारा लंड
प्रिया के मुँह में था इसलिए मैं तुम्हारे लण्ड को देख नहीं सकी थी।" यह कह
कर उसने अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया।
मैंने रिंकी को अपनी गोद में बिठा
लिया और अपने हाथों से उसका चेहरा ऊपर उठा दिया। उसने अपनी आँखें बंद कर
लीं। मैंने उसकी चूची को अपने मुँह से फिर से पकड़ लिया और चूसने लगा। उसने
मुझे फिर से धक्का दिया और बिस्तर पे उसी तरह से लिटा दिया। मैं फिर वैसे
ही अपनी कोहनियों पे आधा लेट सा गया। रिंकी ने बिना कुछ कहे फुर्ती से मेरे
निक्कर के ऊपर से मेरे लंड पे हाथ रखा और उसकी लम्बाई-मोटाई का जायजा लेने
लगी।
जैसे जैसे वो मेरे लंड का आकार महसूस कर रही थी, वैसे वैसे उसके मुँह पे
चमक सी आ रही थी। उसने अब मेरा लंड अच्छी तरह से पकड़ लिया और दबा दिया। फिर
उसने निकर के ऊपर से ही मेरे गोलों को भी पकड़ा जो कि उत्तेजना में आकर
सख्त और गोल हो गए थे। उसने मेरे गोलों को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर दबा
दिया।
"उह्ह्हह्ह......रिंकी, जान ही ले लोगी तुम तो !"...मैं दर्द से तड़प उठा और सिसकारते हुए उससे कहने लगा।
रिंकी ने हँसते हुए मेरे गोलों को एक बार फिर दबा दिया और फिर मेरा हाथ
अपनी तरफ माँगा। मैंने अपने दोनों हाथ बढ़ा दिए। उसने मुझे मेरे हाथों से
खींच कर बिठा दिया और फिर एक ही झटके में मेरे बदन से मेरा टी-शर्ट अलग कर
दिया। मेरे सीने पे ढेर सारे बाल थे। रिंकी ने अपनी उंगलियाँ मेरे सीने पे
फिरानी शुरू कर दी और अपना मुँह मेरे सीने के करीब लाकर मेरे निप्पल को चूम
लिया।
मैं सिहर गया और अपने हाथों से उसका सर पकड़ लिया। लेकिन रिंकी ने मेरी
हरकतों को दरकिनार करते हुए मुझे फिर से वापस धकेल कर लिटा दिया और अब उसके
हाथ मेरे निक्कर पर चलने लगे। लंड ने तो पता नहीं कब से टेंट बना रखा था।
उसने एक बार और मेरे लण्ड को अपनी हथेली से पकड़ा और सहला कर उसे अपने
होंठों से चूम लिया।
मैं खुश हो गया, मुझे समझ में आ गया कि इन दोनों बहनों को किसी भी मर्द को
दीवाना बनाना आता है। मैं अपनी किस्मत पर फ़ख्र महसूस कर रहा था। मैं इन्हीं
ख्यालों में खुश था कि तभी रिंकी ने मेरी निक्कर को खींचना शुरू करा। और
फिर वही हुआ जो कल रात प्रिया के साथ हुआ था, यानि मेरा लंड अकड़ कर इतना
टाइट हो गया था कि निक्कर को उसने अटका दिया था। निकर उतरने का नाम ही नहीं
ले रही थी, रिंकी निक्कर को लगातार खींच रही थी लेकिन वो नीचे नहीं सरक
रही थी। वो झुंझला सी उठी लेकिन कोशिश बंद नहीं की।
मुझे उस पर दया आ गई और मैंने अपने हाथों से अपने लंड को नीचे की तरफ झुका
दिया। ऐसा करने से निक्कर सरक कर नीचे आ गई जिसे रिंकी ने बेरहमी से फेंक
दिया मानो वो उसकी सबसे बड़ी दुश्मन हो।
निक्कर फेंकने के बाद अब मैं भी उसकी तरह पूरा नंगा हो गया और मेरा भीमकाय
लंड तनकर छत की तरफ देखते हुए रिंकी को सलामी देने लगा। रिंकी का ध्यान जब
मेरे लंड पर गया तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं...
"हे भगवन...ये तो...लेकिन पप्पू का तो...हाय राम !" रिंकी के चेहरे पर
चिंता के भाव उभर आये थे। मैंने उसकी मनोस्थिति भांप ली और चुपचाप यह देखने
लगा कि अब वो क्या करेगी।
रिंकी थोड़ी देर तक मेरे लंड महाराज को ऐसे ही निहारती रही और अपने मुँह से
हल्की हल्की सिसकारियाँ निकलती रही। फिर उसने धीरे से अपना एक हाथ आगे
बढ़ाया और मेरे लंड को पकड़ लिया। मेरे लंड का घेरा इतना मोटा था कि उसके
हाथों में पूरी तरह समा नहीं पाया। उसने लंड को बड़े प्यार से सहलाया और
अपने होंठों को दाँतों से चबाने लगी। उसकी आँखें ऐसे चमक रही थीं जैसे किसी
बच्चे को कई दिनों के बाद उसकी सबसे मनपसंद चोकलेट मिल गई हो।
रिंकी ने अब मेरे लंड को धीरे धीरे
ऊपर नीचे करना शुरू किया। उसकी हरकत यह बताने के लिए काफी थी कि उसे लंड के
साथ खेलना आता है। मैं इस सोच में डूब गया कि कहीं इसने पहले भी तो ये खेल
नहीं खेल रखा है।
खैर जो भी हो, अभी तो मुझे बस वो काम की देवी रति नज़र आ रही थी जो मुझे
ज़न्नत का मज़ा दे रही थी। उसने मेरे लंड के चमड़े को खींच कर सुपारा बाहर
निकल लिया। सुपारा एकदम लाल होकर चमक रहा था। इतनी देर से यह सब चल रहा था
तो ज़ाहिर है कि लण्ड ने अपना काम रस निकाला था जिसकी वजह से वो और भी चिकना
और चमकीला हो गया था।
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