RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
मैंने अपना कंप्यूटर बंद किया और उनके साथ ऊपर चला गया। आंटी किचन में थीं
और रिंकी उनके साथ उनकी मदद में लगी हुई थी। मैं और नेहा दीदी खाने की मेज
पर बैठ गए। मेरी नज़रें प्रिया को ढूंढ रही थीं। पता चला कि वो बाथरूम में
है और नहा रही है।
मैं वापस अपनी उलझन में खो गया और उसी बात के बारे में सोचने लगा।
अचानक से मेरे कानों में वही आवाज़ पड़ी... वही पायल की आवाज़ जो कल रात सुनी
थी। मैंने हड़बड़ा कर अपना ध्यान उस आवाज़ की तरफ लगाया और मेरे आश्चर्य का
ठिकाना नहीं रहा।
रिंकी अपने हाथों में नाश्ते का प्लेट लेकर हमारी तरफ आ रही थी और उसके
कदमों की हर आहट के साथ उसी पायल की आवाज़ आ रही थी। मेरी नज़र सीधे उसके
पैरों की तरफ चली गई और मेरी आँखों के सामने उसके पैरों में बल खाते पायल
नज़र आई।
थोड़ी देर के लिए तो मैं बिल्कुल जम सा गया...तो वो आंटी नहीं रिंकी थी जिसने कल हमारा खेल देखा था।
हे भगवन...यह क्या खेल खेल रहा था ऊपर वाला मेरे साथ..!!!
रिंकी की आँखें मेरी आँखों में ही थीं और उसकी आँखों में एक चमक थी और
चुहलपन भी था। कुछ न कहते हुए भी उसकी आँखों ने मुझसे सब कुछ कह दिया था।
मैंने अपनी आँखें झुका लीं और सहसा मेरे अधरों पे एक मुस्कान उभर आई। मैंने
फिर से अपनी नज़र उठाई तो पाया कि रिंकी नेहा दीदी के बगल में बैठ कर मुझे
देखकर मुस्कुराये जा रही थी।
मैंने राहत भरी सांस ली, मेरी उलझन दूर हो गई थी। मैं इस बात से खुश था कि
मुझे डरने की कोई जरुरत नहीं है क्यूंकि अब हम दोनों एक दूसरे का राज़ जान
गए थे।
तभी प्रिया अपने कमरे से नहाकर बाहर आई और दरवाज़े के पास से ही मुझे आँख
मार दी। आज उसके चेहरे पे एक अलग ही ख़ुशी झलक रही थी और आँखे चमक रही थीं।
उसके बाल गीले थे और उनसे पानी की बूँदें टपक टपक कर उसके टॉप को भिगो रही
थी।
क़यामत लग रही थी वो लाल रंग के टॉप और काले रंग की शलवार में ! दिल में आया
कि अभी जाकर उसको अपनी बाहों में ले लूँ और उसके होंठों को चूम लूँ। पर
मैंने अपने जज्बातों पे काबू किया और चुपचाप उसे एक प्यारी सी स्माइल देकर
नाश्ता करने लगा।
अब तक सारे जने खाने की मेज पे आ गए थे और हम सब एक दूसरे से बातें करते हुए अपना अपना नाश्ता ख़त्म करने लगे।
नाश्ते के बीच में हम सबने अपन अपना प्रोग्राम शेयर किया। नेहा दीदी और
आंटी अपने पहले से बनाये हुए प्लान के अनुसार थोड़ी देर में बाज़ार जा रही
थीं, प्रिया अपने कॉलेज और रिंकी ने कहा कि वो अपनी सहेली के घर जाएगी कुछ
काम से और थोड़ी देर में वापस आ जाएगी।
मैंने यह बताया कि पप्पू अभी थोड़ी देर में आएगा और हम दोनों को साक्ची (जमशेदपुर का एक बाज़ार) जाना है कुछ किताबें खरीदने के लिए।
हम सब अपने अपने प्रोग्राम की तैयारी
में लग गए। नेहा दीदी और आंटी सबसे पहले तैयार होकर बाज़ार के लिए निकलने
लगीं। उनके जाने के बाद प्रिया नीचे उतर आई और मेरे कमरे में आकर मुझसे
पीछे से लिपट गई। मैं अचानक से इस तरह से लिपटने से चौंक पड़ा पर जब प्रिया
ने पीछे से मेरे गालों को चूमा तो मैं खुश हो गया और उसे अपनी तरफ मुड़ा कर
उसको जोर से अपनी बाहों में भर लिया।
उसने वही लाल टॉप पहना हुआ था, लेकिन नीचे शलवार की जगह डेनिम की एक स्कर्ट
पहन ली थी। बालों को खुला छोड़ रखा था और होंठों पे सुर्ख लाल लिपस्टिक लगा
ली थी। चेहरे पे हल्का सा मेकअप।
कुल मिलकर पूरी माल लग रही थी। चूचियों को ब्रा में कैद किया था उसने जिसकी
वजह से उसकी चूचियाँ हिमालय की तरह खड़ी हो गईं थीं। जब उसे मैंने अपने
सीने से लगाया तो उसकी प्यारी चूचियों ने मेरे सीने को प्यार भरा चुम्बन
दिया और मुझे अन्दर तक सिहरन से भर दिया।
मैंने अपने हाथ बढ़ाकर उसकी चूचियों पे रखा और प्यार से सहला दिया। उसने
मस्ती में आकर अपनी आँखें बंद कर लीं और लम्बी लम्बी साँसें लेने लगी।
मेरे दिमाग में यह ख्याल था कि उसे कॉलेज जाना है इसलिए मैंने उसकी चूचियों
को दबाया नहीं वरना उसके टॉप पे निशान पड़ जाते और उसे शर्मिंदगी उठानी
पड़ती। इस बात का एहसास उसे भी था और मेरी इस बात पे उसे प्यार आ गया और
उसने एक बार फिर से अपने होंठों को मेरे होंठों पे रख दिया और लम्बा सा
चुम्बन देकर मुझसे विदा लेकर चली गई।
मैं उसे बाहर तक जाते हुए देखता रहा और हाथ हिलाकर उसे टाटा किया। मेरा मन
बहुत खुश था, मैं अपनी किस्मत पे फख्र महसूस कर रहा था कि प्रिया जैसी चंचल
और शोख हसीना मेरी बाहों में आ चुकी थी और वो मेरी छोटी छोटी बातों से
मुझसे बहुत प्रभावित रहती थी।
प्रिया के जाने के बाद मैं अपने कमरे में बैठ कर अपने दोस्त पप्पू का
इंतज़ार करने लगा। मैं जानता था कि आज तो वो दुनिया की हर दीवार तोड़ कर
जल्दी से जल्दी मेरे घर पहुँचेगा और अपनी अधूरी प्यास पूरी करेगा।
मैं मन ही मन कभी प्रिया कभी रिंकी के बारे में सोच सोचकर मुस्कुरा रहा था और कंप्यूटर पे अपनी मनपसंद साइट्स चेक कर रहा था।
थोड़ी देर ही बीती थी कि मेरे घर के फ़ोन पे एक कॉल आई। मैंने उठाकर हेलो किया तो दूसरी तरफ से पप्पू की आवाज़ आई।
"सोनू, मेरे भाई...एक हादसा हो गया है।"...पप्पू ने हड़बड़ाते हुए कहा।
"क्या हुआ पप्पू ?"...मैंने भी हड़बड़ा कर पूछा।
"यार, मेरे मामा जी का एक्सीडेंट हो गया है और मुझे अभी तुरंत अपने मम्मी
पापा के साथ रांची जाना पड़ेगा। मैं आज नहीं आ सकूँगा। तू अकेले ही किताबें
लेने चले जाना।" पप्पू ने एक सांस में ही सब कुछ कह दिया।
उसकी आवाज़ में मुझे एक दर्द और चिंता का आभास हुआ। मैंने उसे हिम्मत देते
हुए कहा,"कोई बात नहीं मेरे दोस्त, तू घबरा मत, मामा जी को कुछ नहीं होगा।
तू आराम से जा और वहाँ पहुँच कर मुझे बताना।"
मैंने इतना कहा और पप्पू ने फ़ोन रख दिया।
मैं थोड़ी देर के लिए उसके मामा जी के बारे में सोचने लगा और भगवान् से प्रार्थना करने लगा की सब कुछ अच्छा हो।
अपनी इसी सोच में बैठे बैठे थोड़ी देर के बाद मुझे एक आहट सुनाई दी। मैंने
देखा तो रिंकी हस्ते हुए मेरी तरफ देख रही थी। वो अभी अभी सीढ़ियों से उतर
कर मेरे कमरे के सामने पहुँची थी। उसने सफ़ेद रंग का शलवार सूट पहना हुआ था
और लाल रंग का दुपट्टा लिया हुआ था। बिल्कुल पंजाबी माल लग रही थी। मैंने
नज़र भर कर उसकी ओर देखा और एक ठण्डी आह भरी।
वो मेरे कमरे के दरवाज़े पे आई और धीरे से मुझसे कहा, "मैं थोड़ी देर में चली आऊँगी। तुम कब तक वापस आओगे?"
मुझे पता था कि वो मेरे बारे में नहीं बल्कि पप्पू के बारे में जानना चाहती
थी। उसे पता था कि मैं पप्पू के साथ बाज़ार जा रहा हूँ और फिर उसके साथ ही
वापस आऊँगा...और फिर उन दोनों की अधूरी प्यास पूरी हो जायेगी।
पता नहीं मुझे क्या हुआ लेकिन मैंने उसे यह नहीं बताया कि पप्पू के मामा जी
का एक्सीडेंट हुआ है और वो रांची चला गया है। मैंने बस मुस्कुरा कर उसकी
तरफ देखा और अपनी एक आँख मार कर कहा,"हम भी जल्दी ही वापस आ जायेंगे।"
मेरे आँख मरने पर उसने एक स्माइल दी और अपना सर झुका कर तेज़ क़दमों से चल कर बाहर निकल गई।
|