RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
मैंने प्रिया का हाथ पकड़कर उठाया और उसे अपनी बाँहों में लेकर एक पप्पी दी
और कहा,"अब तुम्हें जाना चाहिए, बहुत रात हो गई है कहीं आंटी न आ जाएँ।"
प्रिया ने भी मेरे होठों पर अपने होठ रख दिए और चूमते हुए कहा,"ठीक है मेरे
स्वामी, अब मैं जाती हूँ। लेकिन कल हम अपना अधूरा काम पूरा करेंगे।" और
मुझे आँख मार दी।
उसने अपनी किताबें और नोट्स उठा लीं और जाने लगी। जाते जाते वो मुड़ कर मेरे
पास वापस आई और बिना कुछ बोले झुक कर मेरे लण्ड पर पैंट के ऊपर से एक
पप्पी ली और हंसते हुए भाग गई।
उसकी इस हरकत पर मैं हस पड़ा और अपन दरवाज़ा बंद कर लिया। इस जोश भरे खेल के
बाद मैं थक चुका था और आंटी के देखने वाली बात से डर गया था।
मैंने लाइट बंद की और कंप्यूटर भी बंद करके अपने बिस्तर पर गिर पड़ा। डर की
वजह से नींद तो आ नहीं रही थी लेकिन फिर भी मैंने अपनी आँखें बंद की और
सुबह होने वाले ड्रामे के बारे में सोचते सोचते सो गया...।
प्रिया ने भी मेरे होंठों पर अपने
होंठ रख दिए और चूमते हुए कहा,"ठीक है मेरे स्वामी, अब मैं जाती हूँ। लेकिन
कल हम अपना अधूरा काम पूरा करेंगे।" और मुझे आँख मार दी।
उसने अपनी किताबें और नोट्स उठा लीं और जाने लगी। जाते जाते वो मुड़ कर मेरे
पास वापस आई और बिना कुछ बोले झुक कर मेरे लण्ड पर पैंट के ऊपर से एक
पप्पी ली और हंसते हुए भाग गई।
उसकी इस हरकत पर मैं हस पड़ा और अपन दरवाज़ा बंद कर लिया। इस जोश भरे खेल के
बाद मैं थक चुका था और आंटी के देखने वाली बात से डर गया था।
मैंने लाइट बंद की और कंप्यूटर भी बंद करके अपने बिस्तर पर गिर पड़ा। डर की
वजह से नींद तो आ नहीं रही थी लेकिन फिर भी मैंने अपनी आँखें बंद की और
सुबह होने वाले ड्रामे के बारे में सोचते सोचते सो गया...
सुबह जल्दी ही मेरी आँख खुल गई। बहुत फ्रेश फील कर रहा था मैं। शायद कल रात
के हुए उस हसीं खेल का असर था। बिस्तर पे लेटे-लेटे ही मेरी आँखों के
सामने वो हर एक पल नज़र आने लगा।
मैं मुस्कुरा उठा और फिर अपने बाथरूम की तरफ चल पड़ा।
घर में सब कुछ सामान्य था। सब लोग अपने अपने काम में लगे हुए थे। मैं नहा
धोकर अपने रूटीन के अनुसार छत पर पूजा करने और सूरज देवता को जल अर्पित
करने गया। यह मेरा रोज़ का काम था। छत पर सिन्हा आंटी कपड़े डालने आई हुईं
थीं। उन्हें देखते ही मेरी हवा निकल गई और मुझे वो दृश्य याद आ गया जब मेरे
और प्रिया के खेल को किसी ने खिड़की से देखा था।
मुझे पूरी पूरी आशंका इसी बात की थी कि वो आंटी ही थीं क्यूंकि मुझे पायल
की आवाज़ सुनाई दी थी और सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने की आवाज़ भी सुनी थी मैंने।
मेरे अन्दर का डर जो अब तक कहीं गुम था अचानक से सामने आ गया और मेरा दिल
जोर जोर से धड़कने लगा, मुझे लगा कि अब तो मैं गया और आंटी मेरी अच्छी खबर
लेंगी।
मैं डरते डरते आगे बढ़ा और अपने हाथ के लोटे से सूरज को जल अर्पित करने लगा,
यकीन मानिए कि मेरे हाथ इतने काँप रहे थे कि मेरे लोटे से जल गिर ही नहीं
रहा था। जैसे तैसे मैंने पूजा की और वापस मुड़ कर जाने लगा। तब तक आंटी ने
सारे कपड़े सूखने के लिए डाल दिए थे।
कपड़े धोने और सुखाने के क्रम में सिन्हा आंटी की साड़ी नीचे से थोड़ी गीली हो
गई थी जिसे उन्होंने अपने हाथों से निचोड़ने के लिए हल्का सा ऊपर उठाया और
अपने हाथों में लेकर निचोड़ने लगी। मेरा ध्यान सीधे उनके पैरों पर गया और यह
क्या?
मैं तो जैसे स्तब्ध रह गया।
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सिन्हा आंटी के पैर तो बिल्कुल खाली पड़े थे। मतलब उनके पैरों में तो पायल थी ही नहीं।
मैं चौंक कर एकटक उनकी तरफ देखने लगा। मेरा दिमाग जल्दी जल्दी न जाने क्या क्या कयास लगाने लगा। मैं कुछ भी नहीं समझ पा रहा था।
तभी आंटी ने मेरी ओर देख कर एक हल्की सी स्माइल दी जैसा कि वो हमेशा करती थीं और अपनी साड़ी ठीक करके नीचे उतर गईं।
मैं उसी अवस्था में छत की रेलिंग पर बैठ गया और सोचने लगा कि अगर रात को आंटी नहीं थीं तो और कौन हो सकता है? वो भी पायल पहने हुए !
मैं चाह कर भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहा था। हार कर मैं नीचे उतर
गया और अपने कमरे में जाकर थोड़ी देर के लिए टेबल पे बैठकर अनमने ढंग से
कंप्यूटर ऑन करके सोच में पड़ गया।
एक तरफ मैं खुश था कि चलो आंटी से बच गया पर आखिर वो कौन हो सकती थी।
तभी मेरी नेहा दीदी ने मुझे आवाज़ लगाई और सुबह के नाश्ते के लिए ऊपर चलने को कहा।
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