RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
आज पप्पू की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। इतना खुश मैंने उसे पहले कभी नहीं
देखा था। हो भी क्यूँ ना, इतनी मस्त माल जो हाथ लगी थी उसे। हम दोनों
बिष्टुपुर (जमशेदपुर का एक मशहूर बाज़ार) पहुँचे और अपने पसंद की दूकान पर
जाकर चाय और सिगरेट का मज़ा लेने लगे। पप्पू बार बार मुझे थैंक्स कह रहा था
और मेरी खातिरदारी में लगा हुआ था। उसकी आँखों में एक अजीब सी विनती थी
मानो वो कह रहा हो कि आगे का कार्यक्रम भी तय करवा दो।
मैंने उसकी आँखों में वो सब पढ़ लिया था, आखिर दोस्त हूँ उसका और उसके बोले बिना भी उसके दिल की बात जान सकता हूँ।
हम काफी देर तक वहीं घूमते रहे और फिर वापस अपने अपने घर की तरफ चल पड़े।
रास्ते में मैंने पप्पू को यह खुशखबरी दी कि कल फिर से घर पर कोई नहीं होगा
और वो अपन अधूरा काम पूरा कर सकता है।
पप्पू ने जब यह सुना तो जोर से ब्रेक मार दी और बाइक खड़ी करके मुझसे लिपट
गया,"सोनू मेरे भाई, मैं तेरा एहसान ज़िन्दगी भर नहीं भूलूँगा। तू मेरा
सच्चा यार है।"
पप्पू मानो बावला हो गया था।
"रहने दे साले, चूत मिल रही है तो दोस्त बहुत प्यारा लग रहा है न !" मैंने मस्ती के मूड में पप्पू से कहा।
हम दोनों जोर जोर से हंस पड़े और बाइक स्टार्ट करके फिर से चल पड़े और अपने
अपने घर पहुँच गए। अपने कमरे में पहुँचा और कपड़े बदलकर एक हल्की सी टीशर्ट
और शॉर्ट्स पहन लिया। घड़ी पर नज़र गई तो देखा 9 बज रहे थे। दीदी कहीं दिखाई
नहीं दे रही थी। तभी किसी के चलने की आहट सुनाई दी। मैंने पीछे मुड़ कर देखा
तो रोज़ की तरह प्रिया मुझे खाने के लिए बुलाने आई थी।
"चलो भैया, खाना तैयार है। सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।" प्रिया ने मेरी तरफ देख कर कहा।
मैं उससे नज़रें मिलाना नहीं चाहता था लेकिन जब उसकी तरफ देखा तो मेरी नज़र अटक गई।
अपने कमरे में पहुँचा और कपड़े
बदलकर एक हल्की सी टीशर्ट और शॉर्ट्स पहन लिया। घड़ी पर नज़र गई तो देखा 9 बज
रहे थे। दीदी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। तभी किसी के चलने की आहट सुनाई
दी। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो रोज़ की तरह प्रिया मुझे खाने के लिए बुलाने
आई थी।
"चलो भैया, खाना तैयार है। सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।" प्रिया ने मेरी तरफ देख कर कहा।
मैं उससे नज़रें मिलाना नहीं चाहता था लेकिन जब उसकी तरफ देखा तो मेरी नज़र अटक गई।
प्रिया ने आज एक बड़े गले का टॉप और एक छोटी सी स्कर्ट पहन रखी थी। उसकी
चिकनी जांघें कमरे की रोशनी में चमक रही थी। मेरा मन डोल गया। उसके सीने की
तरफ मेरी नज़र गई तो मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा। बड़े से गले वाले टॉप में
उसकी चूचियों की घाटी का हल्का सा नज़ारा दिख रहा था। सच कहूँ तो ऐसा महसूस
हो रहा था जैसे उसकी चूचियाँ अचानक से दो इन्च और बड़ी हो गई हों।मेरी तो
आँखें ही अटक गई थीं उन पर। मैंने सोचा था कि जब प्रिया मेरे सामने आएगी तो
मैं उससे पूछूँगा कि उसने कहीं दोपहर वाली बात अपनी माँ से तो नहीं बता
दी। लेकिन मैं तो किसी और ही दुनिया में था।
"क्या हुआ, खाना नहीं खाना है क्या? तबीयत तो ठीक है ना?"
प्रिया की खनकती आवाज़ ने मेरा ध्यान तोड़ा और मैंने उसे अन्दर आने को कहा।
प्रिया ने मेरी तरफ प्रश्नवाचक नज़रों से देखा, शायद उसे मेरा अन्दर बुलाना
अजीब सा लगा हो या फिर हो सकता है उसे दोपहर वाली घटना याद आ गई हो।
वो दरवाज़े ही खड़ी रही। मैंने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ा और उसे अन्दर खींचा। उसका हाथ बिल्कुल ठंडा था, शायद डर की वजह से।
उसने डरते डरते पूछा, "क.. क.. क्या बात है सोनू भैया??"
"एक बात बताओ, जब मैंने तुम्हें मना किया था तो फिर भी तुमने आंटी को सब कुछ बता क्यूँ दिया?" मैंने रोनी सी सूरत बनाकर पूछा।
"आपको ऐसा लगता है कि मैंने माँ से कुछ कहा होगा?" प्रिया ने एक चिढ़ाने
वाली हंसी के साथ मेरी आँखों में देखते हुए मुझसे ही सवाल कर दिया।
"मुझे नहीं पता, लेकिन जिस तरह से आंटी ने मुझसे मेरी तबीयत के बारे में
पूछा तो मुझे लगा जैसे तुमने सब बता दिया है।"...मैंने असमंजस की स्थिति
व्यक्त करते हुए कहा।
"ये सब बातें सबसे नहीं की जातीं मेरे बुद्धू भैया...और हाँ, आगे से जब
तुम्हें ऐसा कुछ करना हो तो कम से कम दरवाज़ा बंद कर लिया करो।"
प्रिया की बात सुनकर मेरे कान खड़े हो गए और आश्चर्य से मेरी आँखें बड़ी हो
गई। यह क्या कह रही है...इसका मतलब इसे सब पता है इन सबके बारे में...हे
भगवन !!
मैं एकटक उसकी तरफ देखता रह गया...
"अब उठो और चलो, वरना खाना ठंडा
हो जायेगा। खाना गर्म हो तो ही खाने का मज़ा है।" प्रिया ने मेरा हाथ पकड़कर
मुझे उठाने की कोशिश की और मेरी आँखों में देख कर आँख मार दी।
मैं आश्चर्यचकित हो गया था उसकी बातें सुनकर। मैंने सोचा भी नहीं था कि जिसे मैं छोटी बच्ची समझता था वो तो पूरी गुरु है।
"वैसे आपका राज छुपाने के लिए आपको मुझे थोड़ी रिश्वत देनी पड़ेगी।" प्रिया ने चहकते हुए धीरे से मुझसे कहा।
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