RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
मैं भाग कर अपने कमरे में घुस गया और दरवाज़ा बंद कर लिया। मैं उसी हालत में
अपने बिस्तर पर लेट गया और छत को निहारने लगा। मेरे मन में अजीब सी
उथल-पुथल चल रही थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या करना
चाहिए। आज जो हुआ उसका परिणाम पता नहीं क्या होगा। कहीं प्रिया इस बात को
सबसे कह देगी या फिर मेरी बात मानकर चुप रहेगी...
यह सोचते सोचते मैंने अपनी आँखें बंद कर ली... तभी मेरी आँखों के सामने
प्रिया की ऊपर नीचे होती चूचियाँ आ गईं...और मेरा हाथ अपने आप मेरे खड़े
लण्ड पर चला गया।
और यह क्या, मेरा पप्पू तो पहले से ज्यादा अकड़ गया था। मेरे होठों पर एक
मुस्कान आ गई और मैं अपने आप को एक गाली दी," साले चोदू...तू नहीं सुधरेगा
!"
और मैंने अपना अधूरा काम पूरा करने में ही भलाई समझी क्यूंकि इस खड़े लण्ड
को चुप करना जरूरी था। मैंने अपने लण्ड को प्यार से सहलाया और मुठ मारने
लगा। मज़े की बात यह थी कि अब मेरी आँखों में दो दो दृश्य आ रहे थे, एक
रिंकी की हसीन झांटों भरी चूत और दूसरा प्रिया की चूचियाँ...मेरा जोश
दोगुना हो गया और मेरे लण्ड ने एक जोरदार पिचकारी मार कर अपना लावा बाहर
निकाल दिया।
मैं बिल्कुल थक सा गया था मानो कोई लम्बी सी रेस दौड़ कर आया हूँ। और यूँ ही मेरी आँख लग गई।
"सोनू...सोनू... दरवाज़ा खोलो, कब तक सोते रहोगे??" अचानक किसी की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी और मेरी नींद टूट गई।
घड़ी पर नज़र गई तो पाया कि 7 बज चुके थे, मतलब कि मैं 2 घंटे सोता रहा।
मैंने जल्दी से उठकर दरवाज़ा खोलना चाहा तभी मेरी नज़र अपने पैंट पर गई और
मैंने अपने पप्पू को मुरझाये हुए बाहर लटकते हुए पाया। मैंने जल्दी से उसे
अन्दर किया और दरवाज़ा खोला।
बाहर मेरी दीदी हाथों में ढेर सारे बैग लिए खड़ी थी। उसे देखकर मुझे याद आया
कि वो सिन्हा आंटी के साथ बाज़ार गई थी। मैंने मुस्कुरा कर उनके हाथों से
सामान लिया और उनसे कहा," वो, मेरी तबियत ठीक नहीं थी न इसलिए बिस्तर पर
पड़े पड़े नींद आ गई। आप लोगों की शॉपिंग कैसी हुई?"
"बस पूछो मत, सिन्हा आंटी ने पूरे साल भर का सामान खरीदवा दिया है।" दीदी ने अन्दर आते हुए कहा।
"चलो अच्छा है, अब कुछ दिनों तक आपको बाज़ार जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी।" मैंने हंसते हुए कहा।
"ज्यादा खुश मत हो, हमें कल भी बाज़ार जाना है, कुछ चीज़ें आज मिली नहीं
इसलिए मैं और आंटी कल फिर से सुबह सुबह बाज़ार चले जायेंगे और शायद आने में
लेट भी हो जाएँ। आंटी की तो शॉपिंग ही ख़त्म नहीं होने वाली !" दीदी ने
कुर्सी पर बैठते हुए कहा और हम दोनों भाई बहन उसकी बात पर हंसने लगे।
शाम हो चली थी और हमारे यानि मेरे और पप्पू के घूमने का वक़्त हो गया था। मैंने अपने कपड़े बदले और बाहर जाने लगा।
"अरे, तुम्हारी तो तबीयत ठीक नहीं थी न? फिर कहाँ जा रहे हो?" यह सिन्हा आंटी की आवाज़ थी जो सीढ़ियों से नीचे आ रही थी।
मैंने पीछे मुड़ कर देखा और एक हल्की सी स्माइल दी,"कहीं नहीं आंटी, बस घर
में बैठे बैठे बोर हो गया हूँ इसलिए बाहर टहलने जा रहा हूँ।"
आंटी तब तक मेरे पास आ चुकी थी। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर बुखार देखने की तरह किया और मेरी आँखों में देखा।
"बुखार तो नहीं है, लेकिन प्रिया बता रही थी कि तुम अच्छा महसूस नहीं कर
रहे थे थोड़ी देर पहले। इसीलिए मैं तुमसे तुम्हारा हाल चाल पूछने आ गई।"
आंटी ने चिंता भरी आवाज़ में कहा।
पर दोस्तो, मैंने जैसे ही प्रिया का नाम सुना तो कसम से मेरी गांड फटने
लगी। मुझे लगा जैसे प्रिया ने वो सब कुछ अपनी माँ को बता दिया होगा। मेरा
सर शर्म और डर की वजह से झुक गया और मैं कुछ बोल ही नहीं पाया। आंटी ने
मेरा सर एक बार फिर से अपनी हथेली से छुआ किया और एक गहरी सांस ली।
"अगर तुम्हारा दिल कर रहा है तो जाओ जाकर टहल आओ, लेकिन जल्दी से वापस आ जाना।" आंटी ने अपनी वही कातिल मुस्कान के साथ मुझसे कहा।
मैं बिना कुछ बोले बाहर निकल गया और अपने अड्डे पर पहुँच गया। मेरा यार
पप्पू वहाँ पहले से ही खड़ा था। मुझे देखकर वो दौड़ कर मेरे पास आया।
"भोसड़ी के, कहाँ था अभी तक? मैं कब से तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ।" पप्पू ने थोड़ी नाराज़गी के साथ मुझसे पूछा।
उसका नाराज़ होना जायज था, हम हमेशा 6 बजे तक अपने चौराहे पर मिलते थे और
फिर घूमने जाया करते थे। पर उसे क्या पता था कि उसके जाने के बाद मेरे साथ
क्या हुआ और मैं किस स्थिति से गुजरा था।
"कुछ नहीं यार, बस थोड़ी आँख लग गई थी इसलिए देर हो गई।" मैंने मुस्कुरा कर
उसकी तरफ देखा और फिर हम दोनों पप्पू की बाइक पर बैठ कर निकल पड़े।
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