RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
मैं थोड़ी देर रुका और फिर दबे पाँव बाथरूम की तरफ बढ़ा। बाथरूम के दरवाज़े पर
पहुँचते ही मेरे कानों में पप्पू और रिंकी की आवाजें सुनाई दी।
"नहीं पप्पू, प्लीज़ अब तुम चले जाओ। शायद सोनू हमें छुप कर देख रहा था।
मुझे बहुत शर्म आ रही है। हाय राम, वो क्या सोच रहा होगा मेरे बारे में !
ऊईईई... छोड़ो ना... !!"
‘अरे मेरी जान, मैंने तो पहले ही तुम्हे बताया था कि हमारे मिलन का
इन्तेजाम सोनू ने ही किया है, लेकिन वो नीचे अपने कमरे में है...। अब तुम
मुझे और मत तड़पाओ वरना मैं सच में मर जाऊंगा." पप्पू कि विनती भरी आवाज़
मेरे कानो में साफ़-साफ़ सुनाई दे रही थी.
"ओह्ह्ह्ह...पप्पू, अब तुम्हे जाना चाहिए...उम्म्मम...बस करो...आऐईई !!!!"
रिंकी कि एक मदहोश करने वाली सिसकारी सुनाई दी और मैं अपने आपको दरवाज़े के
छेद से देखने से रोक नहीं सका। मेरा एक हाथ लंड पर ही था। मैंने अंदर झाँका
तो देखा कि पप्पू ने फिर से रिंकी की चूचियों को बाहर निकाल रखा था और
उन्हें अपने मुँह में भर कर चूस रहा था।
इधर रिंकी का हाथ पप्पू के सर को जोर से पकड़ कर अपनी चूचियों की तरफ खींचे
जा रहा था। पप्पू ने अपना एक हाथ रिंकी की चूचियों से हटाया और अपने पैंट
के बटन खोलने लगा। उसने अपने पैंट को ढीला कर के अपने लंड को बाहर निकाल
लिया। बाथरूम की हल्की रोशनी में उसका काल लंड बहुत ही खूंखार लग रहा था।
पप्पू ने अपने हाथों से रिंकी का एक हाथ पकड़ा और उसे सीधा अपना लंड पर रख
दिया। जैसे ही रिंकी का हाथ पप्पू के लंड पर पड़ा उसकी आँखें खुल गईं और
उसने अपनी गर्दन नीचे करके यह देखने की कोशिश की कि आखिर वो चीज़ थी क्या।
"हाय राम..." बस इतना ही कह पाई वो और आँखों को और फैला कर लंड को अपने
हाथों से पकड़ कर देखने लगी। पप्पू पिछले एक घंटे से उसके खूबसूरत बदन को
भोग रहा था इस वजह से उसका लंड अपनी चरम सीमा पर था और अकड़ कर लोहे की सलाख
के जैसा हो गया था।
पप्पू ने रिंकी की तरफ देखा और उसकी आँखों में देखकर उसे कुछ इशारों में
कहा और उसका हाथ पकड़ कर अपना लंड पर आगे पीछे करने लगा। रिंकी को जैसे उसने
अपने लंड को सहलाने का तरीका बताया और वापस अपने हाथों को उसकी चूचियों पर
ले जाकर उनसे खेलने लगा।
रिंकी के लिए यह बिल्कुल नया अनुभव था, उसने पप्पू के लंड को ऐसे पकड़ रखा
था जैसे उसे कोई बिलकुल अजूबा सी चीज़ मिल गई हो और उसके हाथ अब तेजी से
आगे-पीछे होने लगे। पप्पू ने अब रिंकी की चूचियों को छोड़ दिया और उत्तेजना
में अपने मुँह से आवाजें निकलने लगा,"हाँ मेरी जान, ऐसे ही करती रहो...आज
मेरा लंड खुशी से पागल हो गया है...और हिलाओ... और हिलाओ...
हम्मम...ऊम्म्म्म.."
रिंकी ने अचानक अपने घुटनों को मोड़ा और नीचे बैठ गई। नीचे बैठने से पप्पू
का लंड अब रिंकी के मुँह के बिलकुल सामने था और उसने लण्ड को हिलाना छोड़ कर
उसे ठीक तरीके से देखने लगी। शायद रिंकी का पहला मौका था किसी जवान लंड को
देखने का।
रिंकी ने अपने दोनों हाथों का इस्तेमाल करना शुरू किया और एक हाथ से पप्पू
के लटक रहे दोनों अण्डों को पकड़ लिया। अण्डों को अपने हाथों में लेकर दबा
दबा कर देखने लगी।
इधर रिंकी का वो हाथ पप्पू के लंड को जन्नत का मज़ा दे रहा था, उसने अपनी रफ़्तार और तेज कर दी।
"हाँ रिंकी...मेरी जान...उम्म्मम...ऐसे ही, ऐसे ही...बस अब मैं आने वाला
हूँ...उम्म्म." पप्पू अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था और किसी भी वक्त अपने
लंड की धार छोड़ने वाला था। पप्पू ने अपने बदन को पूरी तरह से तान लिया था।
"ओह्ह्ह्ह...ह्हान्न्न...बस...मैं आयाआआ..."
रिंकी अपने नशे में थी और मज़े से उसका लंड पूरी रफ़्तार से हिला रही थी।
रिंकी की साँसें बहुत तेज़ थीं और उसकी खुली हुई चूचियाँ हाथों की थिरकन के
साथ-साथ हिल रही थीं।
मेरा हाल फिर से वैसा ही हो चुका था जैसा थोड़ी देर पहले बाहर हुआ था। मेरा
लंड भी अपनी चरमसीमा पर था और कभी भी अपनी प्रेम रस की धार छोड़ सकता था।
मैं इस बार के लिए पहले से तैयार था और अपने मुँह को अच्छी तरह से बंद कर
रखा था ताकि फिर से मेरी आवाज़ न निकल जाए।
"आआअह्ह्ह...हाँऽऽऽऽ ऊउम्म्म्म... हाँऽऽऽ..." इतना कहते ही पप्पू ने अपने
लंड से एक गाढ़ा और ढेर सारा लावा सीधा रिंकी के मुँह पर छोड़ दिया। रिंकी इस
अप्रत्याशित पल से बिल्कुल अनजान थी और जब उसके मुँह के ऊपर पप्पू का माल
गिरा, उसने अपनी आँखें बंद कर लीं लेकिन उसने लंड को नहीं छोड़ा और उसे
हिलाती रही।
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