RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
रिंकी या प्रिया के बारे में कभी कोई बुरा ख्याल नहीं आया था, या यूँ
कहो कि मैंने कभी उनको ठीक से देखा ही नहीं था। मैं तो बस अपनी ही धुन में
मस्त रहता था। वैसे कई बार मैंने रिंकी को अपनी तरफ घूरते हुए पाया था
लेकिन बात आई गई हो जाती थी।
जमशेदपुर आये कुछ वक्त हो गया था और मेरी दोस्ती अपनी कॉलोनी के कुछ
लड़कों के साथ हो गई थी। उनमें से एक लड़का था पप्पू जो एक अच्छे परिवार से
था और पढ़ने लिखने में भी अच्छा था। उससे मेरी दोस्ती थोड़ी ज्यादा हो गई और
वो मेरे घर आने जाने लगा। मुझे तो बाद में पता चला कि वो रिंकी के लिए मेरे
घर आता जाता था लेकिन उसने कभी मुझसे इस बारे में कोई ज़िक्र नहीं किया था।
वो तो एक दिन मैंने गलती से उन दोनों को शाम को छत पर एक दूसरे की तरफ
इशारे करते हुए पाया और तब जाकर मुझे दाल में कुछ काला नज़र आया।
उसी दिन शाम को जब मैं और पप्पू घूमने निकले तो मैंने उससे पूछ ही लिया-
क्या बात है बेटा, आजकल तू छत पर कुछ ज्यादा ही घूमने लगा है?
मेरी बात सुनकर पप्पू अचानक चोंक गया और अपनी आँखें नीचे करके इधर उधर
देखने लगा। मैं जोर से हंसने लगा और उसकी पीठ पर एक जोर का धौल मारा- साले,
तुझे क्या लगा, तू चोरी चोरी अपने मस्ती का इन्तजाम करेगा और मुझे पता भी
नहीं चलेगा?
“अरे यार, ऐसी कोई बात नहीं है।” पप्पू मुस्कुराते हुए बोला।
“अबे चूतिये, इसमें डरने की क्या बात है। अगर आग दोनों तरफ लगी है तो हर्ज क्या है?” मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
पप्पू की जान में जान आ गई और वो मुझसे लिपट गया, पप्पू की हालत ऐसी थी
जैसे मानो उसे कोई खज़ाना मिल गया हो- यार सोनू, मैं खुद ही तुझे सब कुछ
बताने वाला था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था कि पता
नहीं तू क्या समझेगा।
“बात कहाँ तक पहुँची?”
“कुछ नहीं यार, बस अभी तक इशारों इशारों में ही बातें हो रही हैं। आगे कैसे बढ़ूँ समझ में नहीं आ रहा है।”
“हम्म्म्म ..., अगर तू चाहे तो मैं तेरी मदद कर सकता हूँ।” मैंने एक मुस्कान के साथ कहा।
“सोनू मेरे यार, अगर तूने ऐसा कर दिया तो मैं तेरा एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूँगा।” पप्पू मुझसे लिपट कर कहने लगा- यार कुछ कर न !
“अबे गधे, दोस्ती में एहसान नहीं होता। रुक, मुझे कुछ सोचने दे शायद कोई
सूरत निकल निकल आये।” इतना कह कर मैं थोड़ी गंभीर मुद्रा में कुछ सोचने लगा
और फिर अचानक मैंने उसकी तरफ देखकर मुस्कान दी।
पप्पू ने मेरी आँखों में देखा और उसकी खुद की आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई।
मैंने पप्पू की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए पूछा- बेटा, मेरे दिमाग में
एक प्लान तो है लेकिन थोड़ा खतरा है, अगर तू चाहे तो मेरे कमरे में तुम
दोनों को मौका मिल सकता है और तुम अपनी बात आगे बढ़ा सकते हो।
"पर यार तेरे घर पर सबके सामने कैसे मिलेंगे हम?” पप्पू थोड़ा घबराते हुए बोला।
"तू उसकी चिंता मत कर, मैं सब सम्हाल लूंगा ! तू बस कल दोपहर को मेरे घर आ जाना।"
"ठीक है, लेकिन ख्याल रखना कि तू किसी मुसीबत में न पड़ जाये।” पप्पू ने चिंतित होकर कहा।
इतनी सारी बातें करने के बाद हम अपने अपने घर लौट आये। घर आकर मैं अपने कमरे में गया और बिस्तर पर लेट गया।
थोड़ी देर में प्रिया आई और मुझे उठाया- सोनू भैया, चलो माँ बुला रही है खाने के लिए !
मैंने अपनी आँखें खोली और सामने प्रिया को अपने घर के छोटे छोटे कपड़ों में देखकर अचानक से हड़बड़ा गया और फिर से बिस्तर पर गिर पड़ा।
“सम्भल कर भैया, आप तो ऐसे कर रहे हो जैसे कोई भूत देख लिया हो। जल्दी
चलो, सब लोग आपका इंतज़ार कर रहे हैं खाने पर !” इतना बोलकर प्रिया दौड़कर
वापिस चली गई।
यूँ तो प्रिया को मैं रोज ही देखता था लेकिन आज अचानक मेरी नज़र उसके
छोटे छोटे अनारों पर पड़ी और झीने से टॉप के अंदर से मुस्कुराते हुए उसके
अनारों को देखकर मैं बेकाबू हो गया और मेरे रामलाल ने सलामी दे दी, यानि
मेरा लंड एकदम से खड़ा हो गया।मुझे अजीब सा लगा, लेकिन फिर यह सोचने लगा कि
शायद रिंकी और पप्पू के बारे में सोच कर मेरी हालत ऐसी हो रही थी कि मैं
प्रिया को देखकर भी उत्तेजित हो रहा था।
खैर, मैंने अपने लंड को अपने हाथ से मसला और उसे शांत रहने को कहा। फिर
मैंने हाथ-मुँह धोए और सिन्हा अंकल के घर पहुँच गया यानि ऊपर जहाँ सब लोग
खाने की मेज पर मेरा इन्तजार कर रहे थे।
सब लोग बैठे थे और मैं भी जाकर प्रिया की बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया,
मेरे ठीक सामने वाली कुर्सी पर रिंकी बैठी थी। आज पहली बार मैंने उसे गौर
से देखा और उसके बदन का मुआयना करने लगा। उसने लाल रंग का एक पतला सा टॉप
पहना था और अपने बालों का जूड़ा बना रखा था। सच कहूँ तो उसकी तरफ देखता ही
रहा मैं। उसके सुन्दर से चेहरे से मेरी नज़र ही नहीं हट रही थी। उसकी तनी
हुई चूचियों की तरफ जब मेरी नज़र गई तो मेरे गले से खाना नीचे ही नहीं उतर
रहा था।
इन सबके बीच मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे दो आँखें मुझे बहुत गौर से घूर रही
हैं और यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि मैं क्या और किसे देख रहा हूँ।
मैंने अपनी गर्दन थोड़ी मोड़ी तो देखा कि रिंकी की मम्मी यानी सिन्हा आंटी मुझे घूर रही थीं।
मैंने अपनी गर्दन नीचे की और चुपचाप खाकर नीचे चला आया।
मैंने अपने कपड़े बदले और एक छोटा सा पैंट पहन लिया जिसके नीचे कुछ भी
नहीं था। मैं अपना दरवाज़ा बंद ही कर रहा था कि फिर से प्रिया अपने हाथों
में एक बर्तन लेकर आई- सोनू भैया, यह लो मम्मी ने आपके लिए मिठाई भेजी है।
मैं सोच में पड़ गया कि आज अचानक आंटी ने मुझे मिठाई क्यूँ भेजी। खैर
मैंने प्रिया के हाथों से मिठाई ले ली और अपने कंप्यूटर टेबल पर बैठ गया।
मेरे दिमाग में अभी तक उथल पुथल चल रही थी। कभी प्रिया की छोटी छोटी
चूचियाँ तो कभी रिंकी की बड़ी और गोलगोल चूचियाँ मेरी आँखों के सामने घूम
रही थी। मैंने कंप्यूटर चालू किया और इन्टरनेट पर एक पोर्न साईट खोलकर
देखने लगा।
अचानक मेरे कमरे का दरवाज़ा खुला और कोई मेरे पीछे आकार खड़ा हो गया। मेरी
तो जान ही सूख गई, ये सिन्हा आंटी थीं। मैंने झट से अपना मॉनीटर बंद कर
दिया। आंटी ने मेरी तरफ देखा और अपने चेहरे पर ऐसे भाव ले आई जैसे उन्होंने
मेरा बहुत बड़ा अपराध पकड़ लिया हो। मेरी तो गर्दन ही नीचे हो गई और मैं
पसीने से नहा गया।
आंटी ने कुछ कहा नहीं और मिठाई की खाली प्लेट लेकर चली गईं।
मेरी तो गांड ही फट गई, मैं चुपचाप उठा और अपने बिस्तर पर जाकर सो गया।
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