Bahu ki Chudai बहू की चूत ससुर का लौडा
06-26-2017, 12:31 PM,
#34
RE: बहू की चूत ससुर का लौडा
अब रचना से रहा नहीं गया और वह फिर से खिड़की से झाँकने लगी। अंदर का दृश्य देखकर उसकी बुर गीली होने लगी। शशी की जीभ अभी भी उसके सुपाडे पर थी। फिर वह उसके बॉल्ज़ को सूँघने लगी और फिर चाटी। रचना को लगा कि वह अभी झड़ जाएगी। फिर शशी ने ज़ोर ज़ोर से उसके लौड़े को चूसना शुरू किया। रचना ने देखा कि वह डीप थ्रोट दे रही थी। लगता है पापा ने उसे मस्त ट्रेन कर दिया है। क़रीब दस मिनट की चुसाई के बाद वह उसके मुँह में झड़ने लगा। उसके मुँह के साइड से गाढ़ा सा सफ़ेद रस गिर रहा था। रचना की ऊँगली अपने बुर पर चली गयी और वह अपने पापा के लौड़े को एकटक देखती रही जो अब उसके मुँह से बाहर आ कर अभी भी हवा में झूल रहा था।

अब रचना अपने कमरे में आकर अपनी नायटी उठायी और तीन ऊँगली डालकर अपनी बुर को रगड़ने लगी और जल्दी ही उओओइइइइइइइ कहकर झड़ गयी।

शशी के जाने के बाद राज तैयार होकर रचना से बोला: बेटी, चलो सुनार के यहाँ चलते हैं और एक बार होटेल का चक्कर भी मार लेते हैं। देखें मैनेजर को अभी भी कुछ समझना तो नहीं है।
रचना: ठीक है पापा , मैं अभी तैयार होकर आती हूँ।

रचना ने सोचा कि उसके सेक्सी पापा को आज अपना सेक्सी रूप दिखा ही देती हूँ। वह जब तैयार होकर आयी तो राज की आँखें जैसे फटी सी ही रह गयीं। रचना ने एक छोटा सा पारदर्शी टॉप पहना था जिसमें से उसकी ब्रा भी नज़र आ रही थी। उसके आधे बूब्ज़ नंगे ही थे। उसके पेट और कमर का हिस्सा बहुत गोरा और चिकना सा नज़र आ रहा था। नीचे उसने एक मिनी स्कर्ट पहनी थी जिसमें से उसकी गदराई हुई गोल गोल चिकनी जाँघें घुटनो से भी काफ़ी ऊपर तक नज़र आ रही थीं।

राज: बेटी, आज लगता है अमेरिकन कपड़े पहन ली हो।

रचना: जी पापा, सोचा आज कुछ नया पहनूँ। कैसी लग रही हूँ?

राज को अपना गला सूखता सा महसूस हुआ। वह बोला: बहुत प्यारी लग रही हो।

रचना हँसते हुए: सिर्फ़ प्यारी सेक्सी नहीं?

राज: अरे हाँ सेक्सी भी लग रही हो। अब चलें।

रचना: चलिए । कहकर आगे चलने लगी। पीछे से राज उसके उभारों को देखकर अपने खड़े होते लौड़े को ऐडजस्ट करते हुए चल पड़ा।
राज कार लेकर गरॉज़ से बाहर लाया और जब रचना उसकी बग़ल की सीट में बैठने के लिए अपना एक पैर उठाकर अंदर की तब राज को अपनी प्यारी बेटी की गुलाबी क़च्छी नज़र आ गयी। उसकी छोटी सी क़च्छी बस उसकी बुर को ही ढाँक रही थी। अब तो उसका लौड़ा जैसे क़ाबू के बाहर ही होने लगा। उसकी क़च्छी से उसकी बुर की फाँकें भी साफ़ दिखाई दी। अपने लौड़े को दबाके वह कार आगे बढ़ाया। रचना भी अपने पापा के पैंट के उभार को देखकर बिलकुल मस्त होकर सोची कि पापा को आख़िर उसने अपने जाल में फँसाने की तैयारी शुरू कर ही दी। वह सफल भी हो रही थी। वैसे उसकी भी पैंटी थोड़ी गीली हो चली थी, पापा का तंबू देखकर।

सुनार के यहाँ काम ख़त्म करके वो दोनों होटेल में पहुँचे जहाँ शादी की पूरी फ़ंक्शन होने वाली थी। होटेल में सब लोग ख़ूबसूरत औरत को देखे जा रहे थे। राज ने ध्यान से देखा कि क्या जवान क्या अधेड़ सभी उसको वासना भरी निगाहों से देखे जा रहे थे। अब वो दोनों रेस्तराँ के एक कोने में बैठे और मैनेजर को बुलाया । अब वो सब फ़ाइनल तैयारियों के बारे में डिस्कस करने लगे। राज ने देखा कि मैनेजर भी रचना की छातियों को घूरे जा रहा था। राज को अचानक जलन सी होने लगी। फिर राज का हाथ मोबाइल से टकराया और वह नीचे गिर गया। वह झुक कर उसे उठाने लगा तभी उसकी नज़र टेबल के नीचे से रचना की फैली हुई जाँघों पर पड़ीं। वहाँ उसे उसकी क़च्छी दिखाई दी जो कि एक तरफ़ खिसक गयी थी और उसकी बुर एक साइड से दिख रही थी। बुर की एक फाँक दिख रही थी। वहाँ थोड़े से काले बाल भी दिखाई दे रहे थे। उसकी इच्छा हुई कि उस सुंदर सी बुर की पप्पी ले ले। पर अपने को संभाल कर वो उठा।

रचना ने शैतानी मुस्कुराहट से पूछा: पापा कुछ दिखा?

राज सकपका कर बोला: हाँ मोबाइल मिल गया। वो गिर गया था ना।

रचना मुस्कुराई: अच्छा दिख गया ना ? फिर वह उठी और बोली: चलो पापा चलते हैं।

अब वो दोनों घर की ओर चले गए।

रचना मन ही मन मुस्कुरा रही थी। राज की आँखों के सामने रचना की बुर की एक फाँक आ रही थी।
दोनों अपने अपने ख़यालों में गुम से थे।
शादी में अब ३ दिन बचे थे। रिश्तेदार भी आने शुरू हो गए थे। दूर और पास के भाई चचेरा, ममेरा और मौसी और ना जाने कौन कौन आए थे। अब तो किसी को भी फ़ुर्सत नहीं थी। जय, रचना, शशी और राज सभी बहुत व्यस्त हो गए थे ।किसी को चुदाई की याद भी नहीं आ रही थी। शाम तक सभी बहुत थक जाते थे और सो जाते थे। यही हाल रश्मि , अमित और डॉली का भी था। घर मेहमानो से पट गया था।

ख़ैर शादी का दिन भी आ ही गया। रश्मि अपने परिवार के साथ होटेल में शिफ़्ट हो चुकी थी। वह सब तैयार होकर दूल्हे और बारात के आने का इंतज़ार करने लगे। डॉली भी आज बहुत सुंदर लग रही थी,शादी के लाल जोड़े में।

उधर बारात नाचते हुए होटेल के पास आइ और जय के दोस्त और रिश्तेदार भी बहुत ज़ोर से नाचने लगे। जय फूलों से लदी कार में बैठा था । उसके सामने सभी नाच रहे थे। राज सिक्के बरसा रहा था। रचना भी भारी साड़ी में मस्ती से नाच रही थी। उसकी चिकनी बग़लें मर्दों को बहुत आकर्षित कर रही थीं। बार बार उसका पल्लू खिसक जाती थी और उसकी भारी छातियाँ देखकर मर्द लौड़े मसल रहे थे। कई लोग नाचने के बहाने उसकी गाँड़ पर हाथ भी फेर चुके थे।

जब बारात बिलकुल होटेल के सामने पहुँची तो सब ज़ोर से नाचने लगे। अब राज भी नाचने लगा क्योंकि रचना उसको खींच लायी थी । रचना पसीने से भीगी हुई थी। उसकी बग़ल की ख़ुशबू राज के नथुनों में घुसी और साथ ही उसके बड़े दूध जो नाचने से हिल रहे थे , उसे मस्त कर गए थे। फिर उसे याद आया कि उसे और भी काम हैं, तो वह आगे बढ़कर दुल्हन के परिवार से मिला। उसने रश्मि को देखा तो देखता ही रह गया। क्या जँच रही थी वह आज। फिर शादी हो गयी और रात भर चली । सुबह के ५ बजे फेरे ख़त्म हुए। और जय रोती हुई दुल्हन लेकर अपने घर आ गया।

कई मेहमान तो उसी दिन चले गए। दिन भर रचना ने डॉली का बहुत ख़याल रखा और डॉली ने दिन में रचना के कमरे में ही आराम किया। शाम तक सभी मेहमान चले गए थे। राज और रचना ने चैन की साँस ली। जय और डॉली दोपहर में आराम किए थे सो फ़्रेश थे।

रचना ने एक फ़ोन लगाया और होटेल से एक आदमी आया और जय के कमरे को फूलों और मोमबतीयों से सजाया । सुहाग की सेज तैयार थी और रचना ने ख़ुद उसे सजवाया था अपने भाई और भाभी के लिए। रात को खाना खाकर राज ने जय को एक हीरे की अँगूठी दी और बोला: बेटा , ये अँगूठी बहू को मुँह दिखाई में दे देना। फिर वह अपने कमरे में चले गया। रचना डॉली को लेकर जय के कमरे में ले गयी और डॉली ये सजावट देखकर बहुत शर्मा गयी । रचना: चलो भाभी अब मेरे भाई के साथ सुहाग रात मनाओ। ख़ूब मज़े करो। मैं चलती हूँ, ये दूध रखा है पी लेना दोनों। ठीक है ना?

डॉली ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली: दीदी रुकिए ना, मुझे डर लग रहा है।

रचना: अरे पगली , इसमें काहे का डरना। आज की रात तो मज़े की रात है। आज तुम दोनों एक हो जाओगे। ख़ूब प्यार करो एक दूसरे को। अब जाऊँ?

डॉली शर्माकर हाँ में सिर हिला दी। अब रचना बाहर आइ और जय को बोली: जाओ अपनी दुल्हन से मिलो और दोनों एक दूसरे के हो जाओ। बेस्ट ओफ़ लक। मेरी बात याद है कि नहीं?

जय: जी दीदी याद है। कोशिश करूँगा कि नर्वस ना होऊँ। थोड़ा अजीब तो लग रहा है।

रचना ने उसकी पीठ पर एक धौल मारी और बोली: अरे सब बढ़िया होगा, भाई मेरे,अब जाओ। और हँसती हुई अपने कमरे में चली गयी।

जय अब अपने कमरे में गया और वहाँ की सजावट देखकर वह भी दंग रह गया। बहुत ही रोमांटिक माहोल बना रखा था दीदी ने । उसने देखा कि डॉली बिस्तर पर बैठी उसका इंतज़ार कर रही थी। उसने साड़ी के पल्लू से घूँघट सा भी बना रखा था। बिलकुल फ़िल्मी अन्दाज़ में ।

वह बिस्तर पर बैठा और जेब से वो हीरे की अँगूठी निकाली और फिर प्यार से बोला: डॉली, मेरी जान मुखड़ा तो दिखाओ। ये कहते हुए उसने घूँघट उठा दिया और उसके सामने डॉली का गोरा चाँद सा मुखड़ा था। वो उसे मंत्रमुग्ध सा देखता रह गया और फिर उसने उसे अँगूठी पहनाई। वह बहुत ख़ुश हुई और थैंक्स बोली।

जय: अब तुम बताओ तुम मुझे क्या गिफ़्ट दोगी ?

डॉली: मैंने आपका घूँघट थोड़े उठाया है जो मैं आपको गिफ़्ट दूँ। यह कहकर वह मुस्कुराई । जय भी हँसने लगा।
अब जय उसे देखते हुए बोला: डॉली, वैसे एक गिफ़्ट तो दे ही सकती हो?

डॉली: वो क्या?

जय ने अपने होंठों पर ऊँगली रखी और बोला: एक पप्पी अपने कोमल होठों की।

डॉली शरारत से मुस्कुराकर बोली: पहली बात कि आपको कैसे पता कि मेरे होंठ कोमल हैं? और फिर क्या सिर्फ़ एक पप्पी लेंगे? वो भी सुहाग रात में?

दोनों ज़ोर से हँसने लगे। अब जय ने डॉली को पकड़ा और ख़ुद बिस्तर पर लुढ़क गया और साथ में उसे भी अपने ऊपर लिटा लिया। अब दोनों के होंठ आमने सामने थे।
अब जय ने डॉली के होंठ का एक हल्के से चुम्बन लिया। डॉली हँसकर बोली: चलो हो गया आज का कोटा और मेरी रिटर्न गिफ़्ट भी आपको मिल गयी। यह कहकर वह पलटी और उसके बग़ल में लेट गयी। अब जय ने उसको अपनी बाहों में भरा और उसको अपने से चिपका लिया।

फिर दोनों ने ख़ूब सारी बातें की। स्कूल , कॉलेज , दोस्तों और रिश्तेदारों के बारे में भी एक दूसरे से बहुत कुछ शेयर किया। इस बीच में दोनों एक दूसरे के बदन पर हाथ भी फेर रहे थे। जय के हाथ उसकी नरम कलाइयों और पीठ पर थे। डॉली के हाथ जय की बाहों की मछलियों पर और उसकी छाती पर थे।

बातें करते हुए ११ बज गए और डॉली ने एक उबासी ली। जय: नींद आ रही है जानू?

डॉली: आ रही है तो क्या सोने दोगे?

जय: सोना चाहोगी तो ज़रूर सोने दूँगा।

डॉली: और सुबह सब पूछेंगे कि सुहागरत कैसी रही तो क्या बोलेंगे?

जय : कह देंगे मस्त रही और क्या?
डॉली: याने कि झूठ बोलेंगे?

जय: इसमें झूठ क्या है। मुझे तो तुमसे बात करके बहुत मज़ा आया। तुम्हारी तुम जानो।

डॉली: मुझे भी बहुत अच्छा लगा। फिर वह आँखें मटका कर के बोली: वैसे अभी नींद नहीं आ रही है। आप चाहो तो कल आपको झूठ नहीं बोलना पड़ेगा।

जय हंस पड़ा और उसको अपनी बाहों में भर कर उसके गाल चूम लिया। वह भी अब मज़े के मूड में आ चुकी थी सो उसने भी उसके गाल चूम लिए। अब जय उसके गाल, आँखें, और नाक भी चूमा। फिर उसने अपने होंठ उसके होंठ पर रखे और चूमने लगा। जल्दी ही दोनों गरम होने लगे। अब उसने डॉली की गरदन भी चुमी और नीचे आकर उसके पल्लू को हटाया और ब्लाउस में कसे उसके कबूतरों के बाहर निकले हुए हिस्से को चूमने लगा।

डॉली भी मस्ती से उसके गरदन को चूम रही थी। अब उसे अपनी जाँघ पर उसका डंडा गड़ रहा था। उसकी बुर गीली होने लगी और ब्रा के अंदर उसके निपल तन कर खड़े हो गए। वह अब उससे ज़ोर से चिपकने लगी। अब जय बोला: जानू, ब्लाउस उतार दूँ।

डॉली हँसकर: अगर नहीं कहूँगी तो नहीं उतारेंगे?

जय हँसते हुए उसके ब्लाउस का हुक खोला। और अब ब्रा में कसे हुए दूध उसके सामने थे । वह उनको चूमता चला गया। उधर डॉली उसकी क़मीज़ के बटन खोल रही थी। अब उसके हाथ उसकी बालों से भारी मर्दानी छाती को सहला रहे थे। जय उठा और अपनी क़मीज़ उतार दिया। फिर वह उसकी साड़ी को पेट के पास से ढीला किया और डॉली ने अपनी कमर उठाकर उसको साड़ी निकालने में मदद की। अब वह सिर्फ़ पेटिकोट और ब्रा में थी। उसका दूधिया गोरा जवान बदन हल्की रौशनी में चमक रहा था। अब जय उसके पेट को चूमने हुए उसकी कमर तक आया और फिर उसने उसके पेटिकोट का भी नाड़ा खोल दिया।अब फिर से डॉली ने अपनी कमर उठाई और पेटिकोट भी उतर गया। अब डॉली की गोरी गदराई हुई मस्त गोल भरी हुई जाँघें उसकी आँखों के सामने थे। उफ़ क्या चिकनी जाँघें थीं। उनके बीच में पतली सी गुलाबी पैंटी जैसे ग़ज़ब ढा रही थी। पैंटी में से उसकी फूली हुई बुर बहुत मस्त नज़र आ रही थी। अब जय बिस्तर से उठकर नीचे आया और अपनी पैंट भी उतार दिया। चड्डी में उसका फूला हुआ लौड़ा बहुत ही बड़ा और एक तरफ़ को डंडे की तरह अकड़ा हुआ दिख रहा था। डॉली अब उसे देखकर डर भी गयी थी और उत्तेजित भी हो रही थी।
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RE: बहू की चूत ससुर का लौडा - by sexstories - 06-26-2017, 12:31 PM

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