RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
“पताा नहीं क्या हो गया हैं साब.......।' नौकर ने जवाब दिया-'रात को दो बजे के करीब वो घर वापस लौटेथे, आते ही मैंने उनकों आपका सन्देशा सुना दिया था। हादसे की खबर सुनकर वो थोड़ी देर तो गुमसुम बैठे रह गए थे, फिर उन्होंने अपने कमरे में जाकर कमरे का दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया था। मैंने समझा, वो शायद सो गए हैं, लेकिन तीन बजे उन्होनें फिर मुझे बुलाया था और चाय मांगी थी।
कुछ देर बाद जब मैं चाय लेकर गया था तो वो कुछ लिख रहे थे। चाय मेज पर रखकर मैं कमरे से निकल आया था । करीब बीस मिनट बाद जब मैं बर्तन लेने गया था तो डॉक्टर साहब बिस्तर पर बेहोश पड़े हुए थे। उस वक्त से वो बेहोश ही पड़ें हुए है। हम लोग उन्हें होश में लाने के कई जतर कर चुके हैं........कृपया आप जल्दी आ जाइए और उन्हें देख लीजिए।"
“ठीक हैं, मैं अभी आ रहा हूं।'
नीकलण्ठ ने फोन बन्द कर दिया और नौकरी को सतीश की देखभाल के लिए निर्देश देकर कार में बैठे कर डॉक्टर जय के घर की तरफ चल पड़ा।
रात का वक्त था, सड़के खाली पड़ी था, बहुत जल्दी वो डॉक्टर जय की कोठी पर पहुंच गया।
नौकर बाहर ही खड़ा उसका इन्तजार कर रहा था।
'क्यों, अब कैसी हालत हैं उनकी ?" उसने जवाब दियां
राज कार से उतर कर जय के कमरे की तरफ चल पड़ा।
लेकिन कमरे की दहलीज पर कदम रखते ही वो ठिठक गया। उसकी नजर डॉक्टर जय पर जम कर रह गई, जो बिस्तर पर निश्चय पड़ा हुआ था। राज ने आगे बढ़ कर डॉक्टर जय की नब्ज टटोली।
लेकिन जय की कलाई हाथ में लेते ही राज को झुरझुरी दौड़ गई। डॉक्टर सजय की कलाई बर्फ की तरह ठण्डी थी और नब्ज बिल्कुल गायब।
राज ने उसके दिल पर हाथ रखा, डॉक्टर जय के वो शब्द गूंज गए।
“यकीन कीजिए......मैं अपनी प्रेमिका के बगैर एक दिन भी जिन्दा नहीं रह गया।
तो क्या डॉक्टर जय ने ज्योति की मौत की खबर सुनकर खुदकशी कर ली थी ? राज सोचने लगा। क्या वाकईउसे ज्योति से इतना ही प्यार था ? वो चकरा गयां
जय.......ज्योति......... सतीश । ये तीन शब्द तेजी से राज के दिमाग मे घूम रहे थे। तेजी से बदलते हालात और इतने कम वक्त में अपनी दो करीबी जानकारी की मौत ने उसके होश उड़ दिए थे। वो चकराकर गिर ही पड़ता अगर उसने जल्दी से सोफे का सहारा न ले लिया होता। वो सिर थाम कर सोफे पर बैठे गया।
"कैसी तबीयत है डॉक्टर साहब इनकी ?"
“नौकर ने राज को परेशान देखा तो घबरा कर पूछा था-"कुछ नहीं, ठीक हैं......... । एक गिलास पानी जाओं" राज ने फंसी-फसी आवाज में कहा।
पानी का गिलास एक ही सांस में गटक कर राज थोड़ा सम्मला तो उसने फिर से डॉक्टर का मुआयना किया। लेकिन डॉक्टर जय मर ही चुका था।
“अफसोस कि ये भी स्वर्ग सिधार चुके हैं........।” राज ने नोकर की तरफ पलटकर मायूसी से कहा।
“मर गए ?” नौकर का मुंह हैरत से खला और फिर वो चीखने लगा।
नीककण्ठ ने डॉक्टर जय की लाश को सीधा किया और उस पर एक चादर डाल दी। उसके सिरे के नीचे से तकिया निकालते हुए राज की निगाह उस बन्द लिफाफे पर पड़ी जो पहले तकिये के नीचे दबा हुआ था । राज ने उसे उठाकर देखा उस पर उसी का नाम लिया हुआ था।
राज ने उसे जल्दी से खोलकर पढ़ा, लिखा था
डियर राज अलविदा!
तुम्हें याद होगा कि मैंने तुमसे कहा था, मैं अपनी प्रेमिका के बगैर एक दिन भी जिन्दा नहीं रह सकता। आज में उस बात को साबित कर रहा हूं। मैंने पत्र लिखने से पहले एक बहुत घातक जहर अपने पास रख लिया हैं, जिसके असर से मुझें डेढ़ मिनट के अन्दर-अन्दर मौत आ जाएगी।
ज्योति की मौत की खबर पाकर और यह मालूम होने बाद कि उसे एक छोटे से मगर निहायत खतरनाक सांप ने काट लिया था, मुझें पर भेद खुल गए। तुम्ही वो शख्स हो जो इस सारे फसाद की जड़ है। तुमने मुझें झूठी फोन कॉल करके मुझें मेरे घर से हटाया और मेरा सांप चुरा कर ले गए, मेरे सांप की जगह तुमने कोई दूसरा सांप रखकर उस पर तेजाब का मर्तबान गिरा दिया, वो मर्तबान इतने सालों से वहां रखा थां, मगर गिरा नहीं था, वो गिरा भी तो बिल्कुल उसी सांप पर।
तुम्हें किसी तरह ज्योति के नेकलेसे का राज जालूम हो गया था
ओर तुम किसी भी तरह अपने दोस्त सतीश का बचाना चाहते थे। तुमने उसे बचा लिया।
काशः मुझे तुम्हारे बारे में कुछ दिन पहले शक हो जाता तो सतीश के साथ मैं तुम्हें भी ज्योति के पहले पांच पतियों के पास पहुंचा देता।
लेकिन अफसोस........वक्त गुजर चुका है। ज्योति की मौत के बाद में अपने अन्दर तुमसे बदला लेने की शक्ति भी नही महसूस कर रहा हूं। बहरहाल तुम आज के विजेता हो, मेरी बधाई स्वीकार करो, क्योंकि आखिर हम दिखावे के दोस्त तो थे ही!
अलविदा
-जय
पत्र पढ़कर राज ने चाय का कप उठाकर उसे सूघा, उसमें से अजीब सी गंध आ रही थी। वो समझ गया कि जहर चाय के कप में डालकर पिया गया है।
सतीश को उसने वापिस लौटकर डॉक्टर जय की मौत की सूचना दी, लेकिन पत्र की बात गोल कर गया। सतीश को यही बताया था लीलकण्ठ ने कि अचानक हार्ट फेल हो जाने से डॉक्टर जय मर गया है।
सतीश के दिलों-दिमाग पर ज्योति की मौत का सदमा ही ऐसा छाया हुआ था कि उस पर दूसरी मौत का कोई असर ही नही हुआ था। वो सिर्फ एक बार चौंका था, हैरत से राज को देखा और फिर गर्दन झुकाकर बैठा गया था।
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