Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
09-17-2021, 01:07 PM,
#61
RE: Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
UPDATE-65

खलनायक : खून ख़राबा हमें पसंद है लेकिन मौके पे…जब हम यहां से निकलेंगे वैसे ऊस लड़की रोज़ को भी हम साथ ले जाएँगे

निशणेबाज़ : पर सर ये आप क्या कह रहे है? वॉ तो हमारी दुश्मन उसके वजह से हमें कितना नुकसान उठना पड़ा माल को लेकर

काला लंड चुपचाप एक जगह खड़ा सुन रहा था…”नुकसान हुआ तो भरपाई भी कर दी है ऊसने”……..निशानेबाज़ और बाकी गुंडे हैरान थे….”अब भरपाई कैसे की उसका तुम्हें बयान करना मैं जरूरी नहीं समझता…रोज़ के पीछे लग जाओ और इस बार मैं इसमें ंसाथ दूँगा मुझे वो लौंडिया ज़िंदा चाहिए और उसके ठीक मेरे हाथों में आने के बाद मैं ऊस देवश और इस देश में एक हड़कंप मचके यहां से फरार हो जाऊंगा गॉट इट”……….निशानेबाज़ ने सिर्फ़ आदेश का पालन करते हुए सर झुकाया

“अब जाओ हमें कुछ देर आराम करने दो”…….सारे गुंडे और निशनीबाज़ बाहर निकल गये…क्सिी को भी हक़ नहीं की ऊस हाथों में ब्रा की बात छेद दे…यक़ीनन ऊन लोगों को लगा किसी का शिकार खलनायक ने किया है…पर वो जानते नहीं की रोज़ खलनायक के दिल में बस चुकी है

काला लंड बार बार ऊस ब्रा को देख राह था….और ऊसने पास आकर खलनायक के जाते ही ऊस दराज़ से ऊस ब्रा को सूँघा…और उसके आंखों में एक जुनून सवार हो गया और ऊसने ऊस ब्रा कोफौरन दराज़ में रख डाला..इसकी खुशबू में तो ऊस औरत की महक है”……काला लंड का गुस्सा सातनवे आसमान पे चढ़ गया उसे सब समझ आ चुका था….

उधर रोज़ देवश की तस्वीर को देखकर उदास थी…और खलनायक के खुद के जिस्मो पे हुए हर स्पर्श को महसूस कर सकती थी…ऊसने फौरन देवश के तस्वीर पे लगे आँसू को जल्दी से पोंछा…और फिर अपने कपड़ों की ओर देखा….ऊसने ऊन कपड़ों को जल्दी से पहन लिया..और फिर एक बार नक़ाबपोश रोज़ बन गयी..जिसके आंखों में अंगार था….आज वो फिर गश्त के लिए बाइक पे सवार होकर निकल जाती है…और ऊस्की आंखें आज खलनायक के आदमियों को ढूदन्ह रही होती है….

आँधी तूफान की तरह बाइक को पूरी रफ्तार से चलते हुए…रोज़ हेलमेट के अंदर से ही चारों ओर के सन्नाटे अंधेरे में देख रही थी….बस ऊस्की बाइक की मोटर की आवाज़ उसे सुनाई दे सकती थी…इस वीरने में एक चिटी भी नहीं दिख रहा था…लेकिन तभी ऊस्की निगाह एकदम से सामने हुई और बाइक को फौरन ब्रेक मर दी…बाइक ने एक ज़ोर का झटका खाया और रुक गयी…रोज़ वैसे ही बाइक पे सवार बस सामने घूर्र रही थी

वन की गाड़ी में बैठा एक जाना पहचाना शॅक्स था जिसके चेहरे के नक़ाबपोश से साफ मालूम हो चुका था की यह कौन है?….खलनायक ऊस्की ओर देखते हुए जैसे उठा…उसके मोष्टंडे गुंडे और पेड़ की दूसरी ओर छुपे टहनियो पे निशानेबाज़ ऊसपे निशाना लगाए बैठा है….

रोज़ बाइक को बंद करके चाबी निकलती है…और फिर फुरती से खड़ी हो जाती है…ऊन गुंडों की तरफ देखते हुए एक बार हल्का मुस्कुराती है और खलनायक के तरफ आने लगती है “आज तुम्हें मेरे गुंडों से लार्न की जरूरत नहीं तुम्हें रोज़…आज ये गुंडे तुम्हें उठाने आए है”…….खलनायक की बात सुन वही रोज़ रुक जाती है

रोज़ : मुझे क्या कोई कमज़ोर औरत समझ रखा है तूने कमीने?

खलनायक : हाहाहा इसी आइडिया पे तो मैं फिदा हूँ तुम्हारे रोज़ अपनी महक मेरे जिंदगी में भी डाल दो तो शायद इस ज़िल्लत भारी जिंदगी दो पल का प्यार मिल सके

रोज़ : तुम जैसा आदमी प्यार तो क्या नफरत के भी काबिल नहीं

खलनायक : क्या सोचती हो तुम? की यहां इस दो कौड़ी के लोगों के लिए तुम इतना जोखिम उठाकर क्राइम का सफ़ाया कर डोगी..हां हां हां तुमसे भी शातिर मुज़रिम है दुनिया में और मैं जनता हूँ ऊस कमीने इंस्पेक्टर के लिए तूने ये रास्ता छूना तेरा पूरा हिस्ट्री पता लग चुका है मुझे अपनी हाँ दे दे और मेरा हाथ थाम ले

रोज़ : मुज़रिम हाला तो ने बनाया और ऊसने तो एक अच्छा रास्ता दिखाया आज मैं उसी में सुकून महसूस करती हूँ जिसे तू दो ताकि की कह रहा है वो मेरे अपने है और तू जिसका नाम गाल्त लवज़ो से लेरहा है ऊस्की मैं कोई लगती हूँ

खलनायक का गुस्सा सातनवे आसमान पे था…निशानेबाज़ बस खलनायक की कमज़ोरी पे ऊस्की खिल्ली मन ही मन उड़ा रहा था…खलनायक ने अपने आदमियों को इशारा किया….ऊन्हें पहले से ही बताया गया था जैसे भी हो आज रोज़ को उठाना है ताकि वो उसे किडनॅप करके अपनी बना सके और फिर उसे अपने साथ इस देश को एक गहरा जख्म देकर बांग्लादेश ले जाए

जैसे ही गुंडे रोज़ की तरफ आए…रोज़ फुरती से उनके ऊपर खुद ही बरस पड़ी…रोज़ ने फौरन अपनी बेक किक सामने वाले गुंडे के छाती पे मारी..और ऊन गुंडों से भीढ़ गयी….निशनीबाज़ बस हमको के इंतजार में था…वैसे ही वो खिजलाया हुआ था देवश की वजह से पर सख्त ऑर्डर्स थे खलनायक के एक खरॉच भी ऊस्की जान लेने के लिए काफी थी….

रोज़ गुंडों से मुकाबला करने लगी…ऐसा लग ही नहीं रहा था की यह खतरनाक हसीना किसी के हाथ में आने वाली है…खलनायक बस चुपचाप देखता रहा…कुछ ही पल में रोज़ ने ऊन सब गुंडों को दरशाही कर दिया…वो लोग ऊस देवी से भीख मागने लगे…”देख लिया कुत्ते अपने गुंडों को कैसे भीख माँग रहे है जान की बेहतर है अपने आपको मेरे हवाले कर दे”………खलनायक तहाका लगाकर हस्सने लगा…कुछ समझ नहीं पाई रोज़ पर वो जानती थी खलनायक का कोई खतरनाक ही मूव था उसी पल एक तीर उसके कंधे को छूते निकल गयी रोज़ ने जैसे ही ऊपर उठना चाहा…दूसरा तीर उसके मुखहोते पे लग्के उसके मुखहोते को चेहरे से जुड़ा करके पेड़ पे धासा…तीर पे उसका मुखहोटा लटक सा गया

रोज़ आशय होकर गिर पड़ी ऊसने अपना चहरा छुपा लिया…निशनीबाज़ ने खलनायक की ओर देखा ऊसने निशानेबाज़ को उतार जाने को कहा…बिना मुखहोटा के रोज़ का लरना नामुमकिन ही था वो बस अपने बेबसी पे एक बार फिर पछताने लगी वो चेहरे को हाथों में लिए टांगों को सिमते ज़मीन पे लाइट गयी…”ज़रा देखे तो इस चेहरे की मालकिन कैसी है?”….खलनायक के हाथ अभी रोज़ के चेहरे तक पहुंचे ही थे….और ऊसने उसका हाथ को लगभग हटाने की कोशिश की ही थी…इतने में एक और बाइक की आवाज़ सुनाई दी..हेडलाइट की चकाचौंड रोशनी से खलनाया की आँखें बंद सी हो गयी वो अपने मुखहोते पे हाथ रखकर पीछे होकर खड़ा हो गया

वो बाइक सवार ठीक खलनायक से 20 कदम दूरी पे आ खड़ा हुआ…निशानेबाज़ भी उसे घूर्र घूर्र के देखने लगा…खलनायक को कुछ समझ नहीं आया..लेकिन जब हेडलाइट ऑन करके वो धीरे धीरे बाइक से उतरा…और उसके नज़दीक आने लगा…तो निशानेबाज़ और खलनायक दोनों हैरान हो गये ऊन्हें मालूम नहीं था ये कौन है?……सामने वही काले कपड़ों में…काले नक़ाब के ऊपर एक और मुखहोटा…जिसे देखकर कोई भी कह देगा की ये कोई और नहीं “काला साया” है

खलनायक : कौन है तू?

काला साया : काला साया (रोज़ फुरती से एकदम चेहरे को ढके ही खड़ी हो गयी जो गुंडे उसे जानते थे उनकी साँसें रुक सी गयी सब ठिठक गये सिवाय खलनायक के और निशानेबाज़ के जो उसे जानते नहीं थे)

खलनायक : तो शायद ये नहीं जनता की क्सिी के रास्ते में आने का क्या अंजाम होता है?

काला साया : तू शायद ये नहीं जनता की इस शहर का पहले कभी कोई योद्धा भी रही चुका है…जिससे तू अंजान है अपने अंजाम की सोच

खलनायक गुस्से में तो था ही ऊसने अपनी गुण निकाल ली…काला साया ने फुरती से अपने छुपे हाथ की गुण सीधे खलनायक के हाथों पे मर दी…गोली सीधे नीचे गिर पड़ी खलनायक के हाथों से वो अपने हाथ पे लगे गोली से दहेक उठा…काला साया उसके करीब जैसे आया…निशानेबाज़ ने निशाना सांड़ दिया…काला साया फुरती से दूसरी ओर जा कूड़ा…निशानो पे निशाना लेकिन हर हमले से ऐसे बच रहा था जैसे कोई तेज तरह नेवला….खलनायक ने अपनी गोलियों से निशाना सांड़ दिया…जो सीधे निशनीबाज़ के ऊपर बरस उठी वो संभाल ना पाया और उसे लास्ट में जंगल के ढलान में कूद जाना पड़ा..

दूसरी ओर खलनायक ठिठक सा गया उसके आदमी वैसे ही लाहुलुहान परे थे जो बचे कुचे थे वो तो काला साया के नाम से ही भाग गये…खलनायक ने खुद ही मोर्चा संभाला…और रोज़ पे जैसे हाथ लगाने की कोशिश की…काला साया एकदम से उसके चेहरे पे लात दे मारता है…खलनायक दूर जा गिरता है

खलनायक पहली बार किसी से टकरा राहत हां….वो अपने जेब से लंबा सा चाकू निकलता है और काला साया पे फुरती से चलाने लगता है…काला साया उसके हर हमले से बचते हुए उसके हाथ को पकड़ लेता है लेकिन उसके पेंट पे खलनायक की लात जैसे लगती है वो पीछे हो जाता है खलनायक जैसे ही दूसरा लात मारता…काला साया ने उसके टाँग को पकड़ा और उसे एक ही झटके में अपने दूसरे बेक किक से गिरा डाला…अभी चाकू उठाने के लिए खलनायक पलटा ही था काला साया ने उसके गोली लगे हाथ पे पाओ रख दिया…खलनायक ज़ोर से दहढ़ उठा

काला साया कुछ समझ नहीं पा रहा था की इस मुखहोते के भीतर कौन है…लेकिन तभी उसके कमर पे निशनीबाज़ का तीर एक बार फिर छू जाता है…काला साया दर्द से बिबिला उठता है…और वो गुस्से भारी निगाहों से निशानेबाज़ की ओर देखता है इससे पहले निशानेबाज़ और तीर लगा पता वो उसके ऊपर अपनी स्विस नाइफ निकलकर फैक देता है जो सीधे उसके टहनी पे जा लगती है और निशानेबाज़ गिर परता है
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