XXX Kahani मेरा सुहाना सफर-कुछ पुरानी यादें
08-18-2021, 11:51 AM,
RE: XXX Kahani मेरा सुहाना सफर-कुछ पुरानी यादें
अब मैं अपने हाथ भी रेवा के चूतड़ों पर रखने लगा ताकि किसी और मर्द का हाथ वहाँ ना लग जाए और यह हकीकत रेवा से छुपी नहीं थी, वो भी अपने चूतड़ों को आगे पीछे करके मेरे और ज़्यादा नज़दीक आने की कोशिश कर रही थी.अब मैं एक किस्म से दोनों लड़कियों के बीच में था यानि आगे रेवा थी और पीछे सांवरी थी और दोनों ही मुझ को दबा रही थी.
यह सारा तमाशा नैना देख रही थी और वो मुस्करा भी रही थी क्यूंकि उसको लग रहा था कि ये दोनों अनछुई कलियाँ भी शायद मेरे हरम में दाखिल होने के लिए काफी तैयार लग रही थी.
नैना की वजह से हम सब सही सलामत आगे विशिष्ट मेहमानों के लिए लगी कुर्सियों पर बैठने के लिए पहुँच गए और जो कुर्सियाँ खाली पड़ी थी उनमें से एक में रेवा बैठ गई और दूसरी पर मैं, उसके साथ वाली पर सांवरी बैठ गई और नैना, निम्मो और पर्बती हमारे पीछे वाली सीटों पर बैठ गई.जब सब बैठ गई तो मैंने अपने चारों तरफ देखा तो सबसे आगे सीटों पर मम्मी पापा और विशिष्ट अतिथि उनके साथ बैठे थे और बाकी की सीटों पर कई स्त्रियाँ और कन्यायें बैठी थी, जिनको मैं नहीं जानता था.
अब मैंने अपनी बाईं तरफ देखा तो रेवा और मेरी दायें तरफ सांवरी बैठी थी और हम सबकी टांगें एक दूसरे को छू रही थी और मैंने अपनी टांगों का दबाव दोनों अनछुई कलियों की टांगों पर बनाये रखा, वे भी इस दबाव का जवाब हल्के से दबाव से दे रही थी.मैंने पीछे मुड़ कर देखा और जब मेरी नज़र नैना से मिली तो मैंने एक हल्की सी आँख उसको मारी.
थोड़ी देर बाद लखनलीला के लखन जी रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण को जलाने के लिए आगे बड़े और अपने जलते हुए तीर उन तीनों पर बारी बारी से चला दिए.इन तीनों के बुतों पर तीर लगते ही वो एकदम से धू धू कर जल उठे और उनमें भरे हुए पटाखे बहुत तीव्र आवाज़ से फट पड़े और उनके फटने की ध्वनि से लड़कियाँ औरतें और बच्चे घबरा से गए और उठने लगे अपनी सीटों से लेकिन मैंने रेवा और सांवरी को बिठाए रखा और ऐसा करते हुए मैंने उन दोनों को अपने और भी निकट बिठा लिया और दोनों की कमर में अपने हाथ डाल कर अपने से चिपटाए रखा.दोनों ने मेरी तरफ बड़ी प्यार भरी नज़रों से देखा.
जब रावण जल गया तो हम सब खड़े हो गए लेकिन मैंने उन सबको रुके रहने के लिए कहा ताकि भीड़ निकल जाने दें और फिर चले.इस सारे समय मैंने दोनों लड़कियों को कमर से पकड़ रखा था और अपने से चिपकाए रखा था और अँधेरा भी बढ़ गया था सो किसी ने कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया.
फिर जब भीड़ छंट गई तो हम भी कार की तरफ चल दिए लेकिन कार तो मम्मी और पापा को लेकर चली गई, हम सब वहीं खड़े कार का इंतज़ार करते रहे और जब कार वापस आई तो मैंने सबसे पहले दोनों भाभियों को और बाकी लड़कियों को बिठा दिया.रेवा और सांवरी को भी कहा कि वो चली जायें लेकिन दोनों ने कहा ‘वो मेरे साथ जाएंगी…’हम वापसी में भी एक दूसरे को हाथ लगाते हुए घर पहुँचे.
वो रात आये हुए सब मेहमानों की आखिरी रात थी हमारी हवेली में तो बहुत ही अच्छा और उम्दा खाना बनाया गया था जिसको खाकर सबने बहुत तारीफ की और पर्बती को शाबाशी दी गई.नैना को मैंने मेले में हुई बातों से वाकिफ करवा दिया था और उसका भी मानना था यह दोनों लड़कियाँ भी तैयार हो जाएँगी.मैंने नैना को उनसे पूछने को कहा.
खाने के बाद हम सब बच्चे और दोनों भाभी जान बैठक में बैठे हुए गप्पें मार रहे थे. मैं रेवा और सांवरी के बीच बैठा था और बाकी सब सामने वाले सोफे पर बैठी थी और अक्सर मेरा हाथ उनके बाज़ू से टकरा जाता था और एक दो बार रेवा का हाथ मेरी गोद में आ लगा लेकिन मैंने कोई ध्यान नहीं दिया.
जब हम सब उठने वाले थे तो बड़ी भाभी बोली- सतीश भैया, जाने से पहले एक छोटी सी मुलाकात हो जाए तुम्हारे कमरे में क्यों?मैंने नैना की तरफ देखा और उसने बात को शुरू किया- भाभी जी, अब छोटे मालिक के कमरे में जाना ठीक नहीं होगा. मम्मी पापा भी अभी जाग रहे हैं तो आप अपने कमरे में सब लेट जाओ, मैं वहाँ आकर बता दूँगी कि क्या कैसे करें? ठीक है ना?मैं अब अपने कमरे में आ गया और और अपना कुरता पजामा पहन कर इंतज़ार करने लगा.
इंतज़ार करते हुए थोड़ी देर ही हुई थी कि नैना आ गई और मुस्कराते हुए बोली- वो दोनों भी आपके पास आने के लिए राज़ी हो गई हैं. वैसे उनकी मर्ज़ी बहुत थी लेकिन वो बन रही थीं कि कोई उनसे ख़ास तौर से कहे तो वो जाएँ.मैंने नैना से पूछा- क्या तुमने अपनी तरफ से पूछा या फिर उन दोनों ने खुद ही पहल की?
नैना फिर मुस्कराई और बोली- वो ऐसा है छोटे मालिक, मुझको इतना तो ख्याल है कि हम नहीं चाहते कि उनसे ज़बरदस्ती की जाए. मैंने उनसे पूछा कि वो कब वापस जा रही हैं तो वो दोनों बोली कि उनको लेने आने वाले भाई का फ़ोन आया था कि वो परसों आएंगे तो वे दिन और ठहरेंगी. मैंने उनसे कह दिया कोई बात नहीं जब तक वो चाहे वो ठहर सकती हैं.

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