RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“क्लब खुलने पर नौकरी की बहाली हो जाती सिर्फ इसलिए ऐसा किया था या और कोई भी मकसद था ?”
“शुरू में कोई और मकसद नहीं था लेकिन जब माहौल ऐसा बन गया कि मैं एक तरह से उसकी कोठी पर ही रहने लगी तो और भी मकसद सूझने लगे ।”
“जैसे शादी ?”
“या एक्सपेंसिव मिस्ट्रेस ।”
“तुम्हें उसकी रखैल बनना भी मंजूर था ?”
“मामूली रखैल नहीं । कीमती रखैल । एक्सपेंसिव मिस्ट्रेस ।”
“लेकिन मंजूर था ।”
“मिस्टर, मेल ट्रेन मिस हो जाए तो पैसेंजर से सफर करने मे कोई हर्ज होता है ?”
“कोई हर्ज नहीं होता । पैसेंजर के बाद मालगाड़ी भी होती है फिर बस, घोड़ा-तांगा, बैलगाड़ी...”
“शटअप !” वो भुनभुनाई ।
“ ओके ।”
“मैं इतना नीचे नहीं गिरने वाली ।”
“एक बार डाउनवर्ड स्लाइड शुरू हो जाए तो क्या पता लगता है कोई कितना नीचे गिरेगा ! लेकिन वो किस्सा फिर कभी । बहरहाल वो पटा नहीं तुम्हारे से ?”
“यही समझ लो । अजीब कन्फ्यूजन का माहौल रहा पूरा एक महीना । कभी लगता था पट रहा है तो कभी लगता था परों पर पानी पड़ने देने को तैयार नहीं । मैंने तो उसका मिजाज भांपने के लिए उसे जलाने की भी कोशिश की ।”
“अच्छा ! वो कैसे ?”
“अपने एक ब्वाय फ्रेंड के चर्चे करके ।”
“था कोई ऐसा । ब्वाय फ्रेंड ?”
“था । है ।”
“कौन ?”
“डिसूजा नाम है उसका । पॉप सिंगर है । क्लब में गाता-बजाता था ।”
“आई सी ।”
“एक-दो बार मैं शशिकांत के सामने डिसूजा के साथ डेट पर गई । मैंने खास ऐसा इंतजाम किया कि डिसूजा मुझे पिक करने के लिए ऐसे वक्त पर मेटकाफ रोड शशिकांत की कोठी पर आए जबकि वो घर हो ।”
“कोई नतीजा निकला ?”
“वो भुनभुनाया तो सही लेकिन हसद की उस आग में न जला जिसमें जलता मैं उसे देखना चाहती थी ।”
“फिर ?”
“कल भी डिसूजा मुझे लेने कोठी पर आने वाला था । उसके सामने ही जबकि उसका वकील पुनीत खेतान भी बैठा था, मेरे लिए डिसूजा का फोन आया जो कि मैंने स्टडी में शशिकांत के सिरहाने खड़े होकर सुना । मेरे फोन रखते ही वो मेरे पर फट पड़ा । अपने मेहमान के सामने जलील करके रख दिया कमीने ने मुझे । गुस्से में पता नहीं क्या-क्या भोंकता रहा । भड़क खेतान से रहा था और गले मेरे पड़ गया । कहने लगा अगर उस डिसूजा के बच्चे ने मेरी कोठी में कदम रखा तो साले को शूट कर दूंगा । फिर मुझे भी गुस्सा चढ़ गया । मैंने भी कह दिया कि वो कौन होता था मुझे किसी से मिलने से रोकने वाला ! जवाब में उसने इतनी गन्दी जुबान बोली कि कान पक गए मेरे ।”
“क्या बोला ?”
“बोला उसकी बला से मैं चाहे सारे शहर के डिसूजाओं के बिस्तर गर्म करूं लेकिन उसकी कोठी से बाहर ।”
“ओह ।”
“उसको अपने पर आशिक करवाने के अपने मिशन को निगाह में रखते हुए शायद मैं फिर भी जब्त कर लेती लेकिन वो उसका मेहमान, वो हरामजादा खेतान का बच्चा, मुझे बेइज्ज्त होता देखकर यूं मजे ले रहा था और हंस रहा था कि जी चाहता था कि उसका मुंह नोच लूं ।”
“उसका ? शशिकान्त का नहीं !”
“उसको तो उस वक्त गोली से उड़ा देने का जी चाह रहा था मेरा ।”
“इस काम के लिए तो कोई फायरआर्म, कोई हथियार दरकार होता । था तुम्हारे पास ?”
“नहीं था । जो कि अच्छा ही हुआ । नहीं तो जैसी उसने मेरी बेइज्जती की थी मैं जरूर उसे शूट कर देती ।”
“शूट कर देने की जगह क्या किया ?”
“मैने उसकी चाबी उसके मुंह पर मारी और घर चली आई ।”
“सात बजे ?”
“हां ।”
“'तब पुनीत खेतान अभी वहीं था ?”
“हां । बोला तो ?”
“और डिसूजा ?”
“क्या डिसूजा ?”
“वो तुम्हें लेने जो आने वाला था ?”
“वो बात तो मैं भूल ही गई थी । वो तो मुझे तब याद आया जब कि अंगारों पर लोटती मैं यहां पहुंच गई ।”
“वो गया तो होगा वहां ? आखिर उसे थोड़े ही पता था कि तुम वहां से हमेशा के लिए रुखसत ले चुकी हो ।”
“वह तो है ।”
“तुमने ये जानने की कोशिश नहीं की कि वो वहां गया था या नहीं ?”
“नहीं ।”
“कमाल है ।”
“वो....वो क्या है कि मैंने सोचा था कि मुझे वहां न पाकर वो यहां आएगा ?”
“आया ?”
“आया तो नहीं ।”
“कल नहीं तो आज तो मालूम करती कि वो गया था या नहीं ?”
“मैं ...मैं अभी करती हूं ।”
“कैसे ?”
“उसे फोन करके । नीचे ग्राउण्ड फ्लोर पर पब्लिक फोन है ।”
मैं कुछ क्षण खामोश रहा, फिर मैंने सहमति में सिर हिला दिया ।
वह पलंग से उठी और कमरे से बाहर निकल गई ।
मैं दबे पांव दरवाजे के पास पहुंचा । मैंने बाहर गलियारे में झांका । वह सीढियों की ओर बढ रही थी । कुछ क्षण बाद जब वह सीढियां उतरती मेरी आखों से ओझल हो गई तो मैं चौखट पर से हटा । मैने घूमकर कमरे में चारों ओर निगाह डाली ।
एक कोने में एक वार्डरोब थी । उसके करीब जाकर मैंने उसका हैंडल ट्राई किया तो मैंने उसे खुली पाया । मैने भीतर निगाह दौडाई ।
भीतर एक खूंटी पर एक जनाना साइज की बरसाती टंगी हुई थी । उन दिनों बरसात का मौसम नहीं था ।
मैंने जेब से रूमाल में लिपटी रिवॉल्वर निकाली और रूमाल समेत उसे बरसाती की एक भीतरी जेब में डाल दिया ।
हजरात, खाकसार की उस हरकत को गलत न समझें । मेरा इरादा लड़की को फंसाने का कतई नहीं था, मैं तो महज वक्ती तौर पर उम फसादी रिवॉल्वर को किसी सुरक्षित जगह पर ट्रांसफर करना चाहता था और उस वक्त सामने मौजूद सुरक्षित जगह के इस्तेमाल का लोभ मैं संवरण नहीं कर पाया था ।
मैंनै वार्डरोब को पूर्ववत बन्द किया और वापस कुर्सी पर आकर बैठ गया । मैंने एक नया सिगरेट सुलगा लिया और सुजाता के लौटने की प्रतीक्षा करने लगा ।
कुछ क्षण बाद वह वापस लौटी ।
“बात नहीं हुई ।” वो पलंग पर ढेर होती हुई बोली, “पता नहीं नम्बर खराब है या वो घर पर नहीं है घंटी बजती है पर कोई उठाता नहीं ।”
“कोई बात नहीं ।” मैं बोला, “रहता कहां है वो ?”
“पंडारा रोड ।”
“पता और फोन नम्बर एक कागज पर लिख दो । कभी मौका लगा तो मैं उससे संपर्क करूंगा ।”
उसने ऐसा ही किया ।
“अकेले रहता है ?” कागज तह करके जेब के हवाले करते हुए मैंने पूछा ।
“हां ।”
“फिर तो घर ही नहीं होगा । तुम एक बात बताओ ।”
“पूछो ।”
“ये डिसूजा, तुम्हारा ब्वाय फ्रेंड तुम्हारे से इतना फिट है कि तुम्हारे भड़काने से वो किसी का खून कर दे ?”
“ऐसा कोई करता है !”
“मरता हो तो करता है । मरता है तुम्हारे पर ?”
“मरता तो बहुत है ।”
“फिर तो वो खून ....”
“ये खून वाली बात कहां से आ गई ?”
“तुम्हें नागवार लगती है तो फिलहाल जहां से आई है, वहीं वापस भेज देते हैं खून वाली बात और शशिकान्त और पुनीत खेतान के झगड़े पर आते हैं । किस बात पर झगड़ रहे थे वो ? ठहरो, ठहरो” उसे प्रतिवाद को तत्पर पाकर मैं जल्दी से बोला, “ये न कहना कि तुम उनके साथ नहीं बैठी थी या जहां तुम थीं वहां तक उनकी आवाज नहीं पहुचती थी । तुमने खुद कहा था कि ऊंचा बोलने पर आवाजें पीछे बैडरूम में तुम तक पहुंचती थी । अब झगड़ा खुसर-पुसर में तो होता नहीं । झगड़े का रिश्ता तुनकमिजाजी से, गुस्से से होता है । ऐसे माहौल में जब आदमी भड़कता है उसे पता भी नहीं लगता कि वो कब उंचा ऊंचा बोलने लगता है । कुछ तो न चाहते हुए भी तुमने सुना होगा ?”
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