Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
12-13-2020, 03:04 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
इन्फेक्ट हमारे घर में सभी एक दुसरे के साथ ये चुदाई वगेरह कर लेते हैं...इस बार दादाजी जब आये तो वो भी नहीं रह पाए ये सब देखकर... और इसका परिणाम तुम्हारे सामने है...तुम्हे भी चोद डाला दादाजी ने...मैंने और ऋतू ने सब देखा, वहां खिड़की से..बड़े मजे दिए दादाजी ने तुम्हे...है न...बोलो..."
दुलारी मेरी बात सुनकर शर्मा सी गयी...मेरा हाथ खिसककर उसके मोटे मुम्मो के ऊपर आ गया..
दुलारी : " तभी मैं कहूँ...लाला को हुआ क्या है...शहर में ऐसा क्या हो गया की उसने मुझ बुढ़िया को आते ही मसल डाला...ऐसा तो मैंने लाला को पिछले दस सालो में नहीं देखा.."
मैंने दुलारी के मुम्मे हलके-२ दबाने शुरू कर दिए.
मैं : "कोन कहता है काकी की तू बुड्डी हो गयी है...मैंने देखा था तुझे अभी...वहां से...बड़ा ही कसा हुआ बदन है तेरा...और खासकर तेरे ये दोनों...पंछी.." कहते हुए मैंने वो कपडा खींच दिया और दुलारी काकी के दोनों कबूतरों का गला दबा दिया.
दुलारी : "आयीस्स्स्सस्स्स्स....ये क्या करते हो लल्ला.....तुम्हे तो मैंने अपनी गोद में खिलाया है...."
मैं : "अब मेरी बारी है काकी.....तुम्हे अपनी गोद में खिलाने की..."
और ये कहते हुए मैंने दुलारी काकी को अपने हाथो में उठाया और उन्हें अपनी गोद में खींच लिया...वो कुछ समझ पाती इससे पहले ही उनकी भीगी हुई सी चूत मेरे लंड के ऊपर थी...
दादाजी के लंड ने मेरा काम आसान कर दिया था..चूत को चौडा़ करके..और मेरे लंड का सुपाड़ा सीधा उनकी चूत के ऊपर फिट बैठ गया.. दादाजी का लंड भी अपना बिल ढून्ढ चूका था..ऋतू ने दादाजी की छाती के ऊपर हाथ रखे और सी सी करते हुए उनके लंड की कुर्सी पर बैठ गयी और उनके नाग को अपनी चूत के बिल में जगह दे दी....
दुलारी ने ऋतू की सिसकारी सुनी तो उसकी तरफ देखा...तब तक मैंने भी उन्हें अपने लंड पर खींचा और अपने लंड़ को उसकी चूत की बोतल में उतारता चला गया..
"आआआआआह्ह्ह........स्स्स्सस्स्स्स.......दैय्य्या....रे.......बबुआ.......ई का.......किया तुने...... स्स्स्सस्स्स्स अह्ह्ह्हह्ह ...." दुलारी मेरे लंड को निगलती हुई बुदबुदा रही थी....
दादाजी ने आगे उठकर ऋतू के मुम्मे अपने मुंह में भरे और उन्हें किसी बच्चे की तरह चूसते हुए अपने लंड के धक्के उसकी चूत में लगाने लगे..
ऋतू दादाजी के सर के बाल पकड़कर उन्हें अपनी छाती से दबाकर चिल्लाती जा रही थी..." अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह दादाजी....अह्ह्ह्ह....ऊऊऊओ .....म्मम्म...कितना अन्दर तक जाता है आपका....... जोर से करो न दादाजी........और जोर से...प्लीस.....आह्ह्ह्ह....ओह्ह्ह या.....ओ या........हाँ......ऐसे ही.....येस्स....येस्सस्सस्स... ..येस्स्सस्स्स्सस्स्स.... .अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ....म्मम्मम.... " और ऋतू की चूत में से गाड़ा शहद निकलकर दादाजी के लंड का अभिषेक करने लगा.
पर दादाजी तो आज वियाग्रा खाकर आये थे जैसे...दुलारी काकी की चूत का बेंड बजाने के बाद अब वो कमसिन सी ऋतू की चूत में लंड पेलकर उसे तडपा रहे थे...
ऋतू तो निढाल सी होकर उनके लंड पर कब से कुर्बान हो चुकी थी पर दादाजी के लंड से निकलने वाले धक्के उसकी चूत में एक नए ओर्गास्म का निर्माण कर रहे थे.. और जल्दी ही वो जैसे नींद से जागी और फिर से दादाजी के धक्को का मजा लेते हुए चिल्लाने लगी..
"दादाजी.....मार डाला आपने तो आज.....अह्ह्हह्ह.....ओह्ह्हह्ह माय गोड.... म्मम्मम........ अह्ह्हह्ह........ ओफ्फ्फ्फ़ ओफ्फ्फ्फ़ ओफ्फ्फ्फ़ ओफ्फ्फ्फ़ उफ्फ्फ...." ऋतू की हालत पतली होती जा रही थी.

मेरा लंड भी इंच इंच करके दुलारी की चूत के अन्दर तक समां गया...थोडा रुकने के बाद मैंने आगे हाथ करके दुलारी के खरबूजे अपने हाथो में पकडे और उन्हें दबाने लगा.. दुलारी भी अपनी गांड को मेरे लंड के ऊपर घुमा घुमा कर मजे ले रही थी...उसने शायद कल्पना भी नहीं की थी की उसकी जिन्दगी में इतने सालो के बाद एक ही दिन में दो-दो लंड उसकी चूत की सेवा करेंगे... पर वो कहते है न की ऊपर वाले के घर में देर है अंधेर नहीं, और वो जब भी देता है छप्पर फाड़ कर देता है...आज वोही हाल दुलारी का भी था...
पहले तो दादाजी के देत्याकार लंड ने उनकी चूत की लंका में हलचल मचाई और अब मेरा लंड जाकर उसी लंका में आग लगाने का काम कर रहा था...
दुलारी : " हाय......भागवान .......अह्ह्ह्ह......मार्र्र्र.....गयी रे......क्या खाते हो तुम दादा-पोता....साले कितना अच्छा चोदते हो ....अहह.........रुक बबुआ....रुक....."
मैं रुका तो काकी ने मुझे पीछे हाथ करके जमीन पर लेटने को कहा...मैं लेट गया...काकी ने एक पैर मेरे पेट से घुमा कर अपना चेहरा मेरी तरफ किया...मेरा लंड उनकी चूत के अन्दर पूरा घूम सा गया..उनकी सिसकारी सी निकल पड़ी....अपनी चूत में ऐसा घर्षण पाकर....फिर से वेसा ही सेंसेशन पाने के लिए वो फिर से मेरे पेरो की तरफ घूम गयी.....और फिर से उनके मुह से वही मादक सिसकारी निकल गयी..... लगता था की मेरा लंड पूरा जाकर उनके गर्भाशय से टकरा रहा था और घुमने की वजह से मेरा सुपाडा एक अलग ही एहसास दे रहा था उन्हें अन्दर ही अन्दर और साथ ही चूत की दीवारों पर भी लंड के घर्षण का अलग ही मजा मिल पा रहा था...और फिर से वही मजा लेने के लिए दुलारी फिर से मेरी तरफ घूम गयी..उन्हें इस तरह से लंड को अपनी चूत में घुमाने में मजा आ रहा था...
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