10-12-2020, 01:33 PM,
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desiaks
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RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“तुम चिट्ठी में कम से कम अपना पता तो लिख सकते थे ?”
“क्या फायदा होता ?”
“यह फायदा होता कि तुम्हारा भरम मिट जाता । तुम्हें हकीकत की जानकारी फौरन हो जाती ।”
“लेकिन मैं तो उसे ही हकीकत समझता था, जो मैंने देखा सुना था ।”
आशा चुप रही ।
“फिर शाम को मैंने तुम्हें अर्चना माथुर की पार्टी में देखा लेकिन तुम्हारे पास आकर तुमसे बाते करने का मेरा हौसला नहीं हुआ । अभी मैंने तुम्हें अन्धेरी रात में यूं अकेले बाहर जाते देखा तो मुझसे रहा नहीं गया और मैं तुम्हारे पीछे पीछे चला आया ।”
उसी क्षण मोड़ से एक कार घूमी और हैड लाइट्स की रोशनी आशा और अमर के ऊपर पड़ी । उनकी आंखें चौंधया गई और वे चुपचाप खड़े कार के गुजर जाने की प्रतीक्षा करने लगे ।
लेकिन कार गुजरी नहीं । एकदम उनके सामने आकर खड़ी हो गई ।
फिर स्टियरिंग के पीछे से अशोक निकला और उनके सामने आकर खड़ा हो गया ।
“मैं तुम्हें ही तलाश करने जा रहा था ।” - अशोक अमर को एकदम नजरअन्दाज करता हुआ आशा से बोला - “मुझे अभी अभी एक नौकर ने बताया था कि उसने तुम्हें अकेले बाहर जाते देखा था । आशा, गलती सरासर मेरी थी और उसके लिये मैं तुमसे माफी चाहता हूं । मैं पार्टी के हंगामे में ऐसा खो गया था कि यह बात मैं एकदम भूल गया था कि तुमने बम्बई वापिस जाने की बात की थी । तुम्हारी असुविधा के लिये मैं फिर माफी चाहता हूं तुम से ।”
फिर आशा के उत्तर की प्रतीक्षा लिये बिना वह अमर की ओर आकर्षित हुआ । उसने कार की हैड लाइट्स की रोशनी में एक बार सिर से पांव तक अमर को देखा और फिर बोला - “आप कौन हैं ?” - फिर उसने एक उड़ती हुई दृष्टि आशा पर डाली और जल्दी से बोला - “नहीं, नहीं, तुम मत बताना तुम कौन हो । मैं बताता हूं । तुम अमर हो ।”
“आपने कैसे जाना ?” - अमर हैरानी से बोला ।
“ताड़ने वाले कयामत की नजर रखते हैं ।” - अशोक अट्टाहास करता हुआ बोला - “मेरा दिल कह रहा था, तुम अमर हो । आशा के चेहरे पर लिखा था, तुम अमर हो । मेरा नाम अशोक है ।”
और उसने बेतकल्लुफी से अमर की ओर हाथ बढा दिया ।
अमर ने झिझकते हुए अशोक से हाथ मिलाया और धीरे से बोला - “मैं आपको जानता हूं ।”
“अभी क्या जानते हो ? अभी आगे आगे जानोगे ।” - और अशोक एकदम गम्भीर हो गया - “एक बात बताओ ।”
“पूछिये ।”
“जितनी मुहब्बत आशा तुमसे करती है । तुम भी आशा से उतनी मुहब्बत करते हो ?”
अमर ने सिर झुका लिया ।
“जवाब दो भई ?”
“मैं... मैं..” - अमर असुविधापूर्ण स्वर से बोला ।
“मैं मैं क्या ? साफ साफ बोलो । अच्छा जाने दो । और बात बताओ ।”
“फरमाइये ।”
“तुम्हें मालूम है, आशा का कोई सगा सम्बन्धी इस दुनिया में नहीं है, सब भूकम्प की भेंट हो गये थे ।”
“मुझे आशा ने नहीं बताया है” - अमर धीरे से बोला - “लेकिन मैं जानता हूं कि आशा इस संसार में बिल्कुल अकेली है ।”
“कौन कहता है, आशा संसार में बिल्कुल अकेली है ।” - अशोक गर्जकर बोला - “मैं, आशा का सौ फीसदी जीता-जागता छोटा भाई तुम्हारे सामने खड़ा हूं और तुम कहते हो आशा इस संसार में बिल्कुल अकेली है । नान सैन्स ।”
अमर आश्चर्य से अशोक का मुंह देखने लगा ।
आशा ने भी अशोक की ओर देखा और फिर न जाने क्यों एकाएक उसके नेत्रों से टपाटप आंसू टपकने लगे ।
“अब तुम लोग यहां क्यों खड़े हो ?” - अशोक फिर बोला
“आशा बम्बई लौटने के लिये स्टेशन पर जा रही थी । इस समय तो बम्बई कोई गाड़ी जाती नहीं । मैं आशा से यह कहने वाला था कि अगर उसे कोई एतराज न हो तो वह रात भर के लिये मेरे घर चली चले । मेरी मां आशा से मिलकर बहुत खुश होगी ।”
“नानसेंस ।” - अशोक बोला - “मुझे एतराज है । आशा शादी से पहले तुम्हारे घर कैसे जा सकती है । और फिर कौन कहता है कि इस वक्त बम्बई कोई गाड़ी नहीं जाती ।” - अशोक कार के हुड पर एक जोरदार घूंसा जमाता हुआ बोला - “यह गाड़ी जाती है बम्बई ।”
“चलो दीदी ।” - अशोक कार का दरवाजा खोलता हुआ बोला - “जीजा जी तो पागल हैं । अभी से तुम इनके घर कैसे जा सकती हो ।”
आशा का गला रुंध गया । वह अवरिल बहते हुए आंसुओं को साड़ी के पल्लू से रोकने का असफल प्रयत्न करती हुई गाड़ी में जा बैठी ।
अशोक ने अमर की ओर हाथ बढा दिया । अशोक मुंह से कुछ नहीं बोला लेकिन अमर की आंखों से अशोक की आंखों में तैरते हुए आंसू छुप न सके !
समाप्त
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