RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
थोड़ा और घूमके सब के सब थोड़ी चाट और पानी पूरी में व्यस्त हो गए और फिर एक एक करके थोड़े अलग अलग दिशा लेने लगे पहरियो के और l
सब के सब ऐसे हसीन वादियों में खो से गए, एक तरफ रेणुका अपने भाभियों के साथ घूमने गयी तो दूसरी तरफ अजय और राहुल अपने अपने माओ को लेके अलग दिशा लेने लगे l रेखा अपने बेटे के साथ घूमते घूमते उसे टोक देता हैं l राहुल बस अपने माँ के तरफ देखने लगा l
रेखा : बड़ा बदमाश बन रहा था तू!
राहुल : क्या माँ! तुम भी न! अभी भी उस बात को लेके परेशान हो!
रेखा : अरे बेटा बहू क्या सोचती होगी? (थोड़ी कामुकता से) तू अपने माँ पर ही डोरे डालने लगा?
राहुल इसे सिग्नल समझ कर आगे बढ़ता हुआ अपने माँ के हाथों को अपने में लेलेता हैं और आँखों से आँखें मिलाने लगा l इस हरकत से रेखा की दिल की धड़कन कुछ ज़्यादा ही बद गयी अनजाने में ही दोनों के चेहरे एक दूसरे के करीब आते गए और तब राहुल के होंठ हिले l
राहुल : माँ मुझसे वादा करो के मुझसे दिल की हर बात आप बाँटोगी अभी से! आपको आपकी यह बलखाती हुई हुस्न की कसम
रेखा : (सहम सी गयी हुई) य्ययएह क्या कह रहा है बीटा?
राहुल : माँ! अब और नाटक की कोई ज़रुरत नहीं है! बस! मुझे तो यह भी मालूम है के उस दिन जब मैं तुझे ज्योति समझ कर पीछे चिपक गया था तो आपको काफी अच्छा लगा! लेकिन यह दिल की बात दिल में ही क्यों दबा दिया?! बोलो माँ!!!!
रेखा की छाती की गति बढ़ सी गयी और उसके मुँह से बस आहें निकलती गयी l रेखा को लगा के अपने भावनाओं का इज़हार किसी भी हाल में अभी के अभी की जाये और सारे तनाव को दूर भगाया जाये l
रेखा अपने बेटे से कस्स के चिपक गयी और राहुल भी अपने माँ के पीठ पर हाथ फेरता गया l माँ बेटे ऐसे चिपके रहे जैसे दो प्रेमी एक अरसे के बाद मिलाप कर रहे हो l फिर न जाने क्यों आस पास कुछ कपल्स को देखके रेखा थोड़ी सहम सी जाती हैं और दोनों माँ बेटे स्वाभाविक तरीके से वादियों का आनंद लिए आगे की और जाते हैं lसच पूछिए तो आग दोनों तरफ बराबर लगी थी l
जी हाँ! कुछ ऐसा ही हाल कविता और अजय की थी, दोनों के उंगलिया एक दूसरे में धसे हुए थे और आस पास कोई और नहीं बल्कि खुमारिया और वादियो के सरसराहट छाए हुए थे l
मज़े की बात यह थी कि जिस वक़्त राहुल अपने अपने वासना का इज़हार कर चूका था, तब तक अजय भी उसी किरणे में पहुँच चूका था। दोनों बेटे अब एक ही कश्ती पे सवार हो चुके थे, गति भी लगभग एक ही थी और मंज़िल थी यह दोनों सुडौल गदरायी कामुक औरतें l
बस फिर क्या होना था, रेखा और कविता कस्स के अपने बेटो से चिपक जाते हैं और दोनों माँ बेटे की जोड़ी वापस अपने रिसोर्ट आजाते हैं l रिसोर्ट वापस आके अजय और मनीषा एक एक ड्रिंक लेते हुए थोड़ा प्राइवेसी पे चले जाते हैं कि तभी मनीषा अपनी पति के ट्रॉउज़र के तम्बू मसाल लेते हैं टेबल के नीचे से l
मनीषा : क्योंजी बात कुछ जमी की नहीं मुम्मीजी और आप के बीच में??
अजय अपने पत्नी से साड़ी बातें कर लेते हैं कि किस तरह पहरियो के दरमियान वोह कविता से कस्स के गग गले लगा था और कैसे वह अपनी माँ की आहे सुन रहा था l मनीषा तो जैसे मानो नीचे पूरी यमुना दरिया बहा रही थी बस इतनी सी कथन सुनके। उसे यकीन हो चूका था के अब कविता मौका देखते ही बेटे को लपक लेगी l
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दोस्तों! इसी तरह आपका प्यार मिलता रहे l
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