Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"क्यों ?"
"क्योंकि लिबर्टी बिल्डिंग की पांचवीं मन्जिल और बेसमैंट सेठ मंगत राम ने राम ललवानी के लिये लाखों रुपयों का हरजाना भरकर खाली करवाई थी । सेठ किसी अजनबी आदमी के लिये भला इतना बखेड़ा क्यों करेगा ?"
"मैं चैक करवाऊंगा । दूसरा काम क्या है ?"
"दूसरा काम बहुत मामूली है । तुम यह जानने का कोशिश करो कि सुनीता क्या अभी भी राम ललवानी के साथ रहती है या मर गई ?"
"उसके मर गई होने की भी सम्भावना है ?"
"बिल्कुल है । जौहरी की रिपोर्ट के अनुसार अपनी शादी से पहले भी वह हेरोइन और मारिजुआना और एल.एस.डी. जैसे तीव्र नशों की आदी बन चुकी थी । इतने भीषण नशों की आदी औरत अगर अब तक परलोग सिधार चुकी हो तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है ।"
"अच्छी बात है । मैं चैक करवाता हूं ।"
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने रिसीवर को क्रेडल पर रखा ही था कि फोन की घन्टी बज उठी । उसने विचित्र नेत्रों से टेलीफोन की ओर देखा और फिर बड़े अनिच्छापूर्ण ढंग से रिसीवर उठा लिया ।
"हल्लो ।" - वह बोला ।
"मिस्टर सुनील देअर ?" - दूसरी ओर से किसी ने प्रश्न किया ।
"बोल रहा हूं ।"
"मिस्टर सुनील, मैं सेठ मंगत राम का प्राइवेट सैक्रेट्री हूं । सेठजी आपसे मिलना चाहते हैं ।"
"किस विषय में ?"
"यह तो उन्होंने मुझे नहीं बताया लेकिन उन्होंने इतना जरूर कहा है कि इस मुलाकत में दोनों का लाभ है ।"
"दोनों से आपका मतलब सेठजी और मुझसे है ?"
"जी हां ।"
"कहां आना होना ?"
"उनकी कोठी पर । पता है चार, नेपियन रोड ।"
"कब आना होगा ?"
"अभी आ जाइये । सेठजी सवा दस बजे आपकी प्रतीक्षा करेंगे ।"
"सॉरी ।" - सुनील बोला - "नहीं आ सकता ।"
"वजह ?"
"वजह आपकी समझ में नहीं आयेगी ।"
"फिर भी बताइये तो ? अगर आपकी कोई समस्या हो तो शायद मैं उसका कोई हल सुझा सकूं ।"
"समस्या तो है लेकिन उसका हल आप नहीं सुझा सकेंगे ।"
"मिस्टर सुनील, आप अपनी समस्या मुझे सेठ मंगत राम का प्रतिनिधि समझ कर बताइये । मैं वर्षों से सेठजी का सैक्रेट्री हूं और मैंने सेठजी के केवल जुबान हिला देने से कितने ही असम्भव कार्य सम्भव होते देखे हैं । और अगर आप इसे गलत न समझें तो मैं यह भी कहूंगा कि आपको इसे अपना सौभाग्य समझना चाहिये कि सेठजी आपसे मिलना चाहते हैं और आपको अपनी कोठी पर बुला रहे हैं ।"
"आल राइट । सेठ जी की महानता का आपने मुझे पर खासा रोब डाल दिया है । इसलिये मेरी समस्या सुन लीजिये । दस बजे मुझे पुलिस हैडक्वार्टर में पुलिस इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल के पास पहुंचना है । इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल मुझे अच्छी निगाहों से नहीं देखता । वह मुझे निहायत शरारती और क्रिमिनल माइन्डिड आदमी समझता है । अगर मैं दस बजे पुलिस हैडक्वार्टर नहीं पहुंचा तो वह मेरा पुलन्दा देगा ।"
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