Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 12:56 PM,
#19
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
बरामदे से ठीक दूसरे कोने वाले कमरे में मैं सो रहा था जो कि अक्सर गेस्ट के लिए ही खाली पड़ा रहा करता था...पर अक्सर झड़प मिया बीवी के बीच होते ही बिशल या तो मौसा जी यही आके सो जाया करते थे पर आज मैं कमरे में अकेला था...सुबह का 1 बज चुका था...दूर कहीं किसी काली के मंदिर मे धन्न धन्न की आवाज़ सुनाई दे रही थी शायद यहाँ रात्रि पूजा होती है

मैं उठके पानी पीने के लिए बाहर बरामदे में आया...फ्रिड्ज से पानी की बोतल निकालके गटागट पाँच घूँट मारें और फिर मूतने के लिए गुसलखाने में घुस गया...अचानक मूत ते वक़्त रूपाली का ख्याल आ गया उफ्फ बिशल उसे बड़ी जल्दी कमरे में ले गया था...वो भी माँ बाप के सामने बेशर्मी से क्या वो लोग अब भी चुदाई कर रहे होंगे? पर इतनी देर मे चुदाई का भूत उसके सर से उठ चुका होगा....क्यूँ ना एक बार झाँका जाए उनके कमरे में

सोचते ही मेरा लिंग फनफना कर खड़ा हो गया...मूतने में बड़ी दुविधा हुई... बाहर आया और अपने खड़े लिंग को पाजामे के भीतर ही अड्जस्ट करता हुआ पहले मौसा मौसी के कमरे के दरवाजे के पास आके कान लगाने लगा....अंदर से कोई आवाज़ नही आ रही थी चारो तरफ खामोशी छाई हुई थी

फिर मैं सामने वाले यानी बिशल के कमरे के नज़दीक आया उसके कमरे का दरवाजा लगा हुआ था...कान लगाके सुनने लगा पर पंखे की आवाज़ छोड़के मुझे कुछ और सुनाई ना दिया...फिर मैं चप्पल पहन कर गली से बाहर की ओर निकला वैसे तो इतनी रात गये रास्ते पे कोई चहेल पहेल नही होती फिर भी दूर दूर में कुत्तो की रोने की आवाज़ें आ रही थी....लेकिन जिसके दिमाग़ में उस वक़्त सेक्स का ही ख्याल उमड़ा हुआ हो वो इंसान जोश में अपने आस पास क्या हो रहा है इस पे ध्यान नही देता मेरी हालत बिल्कुल वैसी ही थी..

मैं बाहर आया और ठीक जहाँ से ताहिरा मौसी का घर दर्ज़ी की दुकान पे ख़तम हो जाता है उसके दरमियाँ एक खिड़की थी और मुस्किल ये थी कि वो खिड़की कोने की नाली के ठीक उपर थी...मेरी हाइट थोड़ी लंबी थी इसलिए मैं धीरे धीरे करके थोड़ा उचक के खिड़की को हल्का सा धक्का देने लगा..अचानक अंदर की रोशनी जल पड़ी और मेरी फॅट गयी

मैं दुबक के दीवार से नीचे सटा बैठा रहा...आस पास बहुतों के मकान थे कोई भी देख लेता तो चोर समझके शोर मचा देता या उसी वक़्त मुझे पकड़ लेता पर गनीमत थी सब अपने अपने घरो में बंद थे...मैने हिम्मत करके सर थोड़ा उपर उठाया तो कमरे का दृश्य दिखने लगा...अंदर नीले रंग की जॉकी का कच्छा पहने मेरा भाई पलंग पे चारो खाने चित खर्राटे भर रहा था और उसके कच्छे का उभार सामने दिख रहा था जबकि दूसरी ओर मुझे रूपाली दिखी जो अभी तक सोई हुई नही थी वो बिशल को देखते हुए आहिस्ते आहिस्ते चादर ठीक कर रही थी...पास की दराज़ के उपर अस्ट्रे में एक बुझी सिगरेट पड़ी हुई थी..और रूपाली नाइटी में हल्के पीले रंग की . काश 2 मिनट पहले आता तो उसे नंगी ज़रूर देख लेता

रूपाली और बिशल की शायद दोनो की काफ़ी देर पहले चुदाई हुई थी और इसी वजह से रूपाली को अब तक नींद नही आई हुई थी...जबकि बिशल नापकीयत में ही सो गया था...रूपाली की चाल ढाल और मुरझाया चेहरा और बिखरे बाल देखके सॉफ दिख रहा था कि बिशल ने उसे काफ़ी देर तक चोदा है हालाँकि उसकी आँखे बोझल सी ज़रूर लग रही थी

मैं तुरंत हड़बड़ाते हुए खिड़की को बिना सटाये वापिस गली से अंदर बरामदे में आया और तुरंत गुसलखाने में घुस गया मुझे वोई ठीक लगा...क्यूंकी रूपाली पेशाब करने के लिए गुसलखाने ही घुसती....मैने दरवाजा आधा सटाया और टाय्लेट की नाली के पास झूंट मूठ का बैठके ज़ोर लगाने लगा

लिंग वैसे ही एकदम खड़ा था...इतने में गुसलखाने की लाइट ऑन हुई और अचानक रूपाली ने आधा दरवाजा खोले मुझे अधनंगा पेशाब करते हुए बैठा पाया तो हड़बड़ा कर दरवाजा लगाए बाहर उतर गयी...मैं झूंट मूठ का पानी डाले बाहर आया और उससे माँफी मागने लगा

रूपाली : अर्रे तुम अभी तक सोए नही? कम से कम लाइट जला लेते मुझे लगा बाथरूम में कोई नही है

आदम : असल में मुझे लगा इस वक़्त तो सब सो रहे है और मैं थोड़ा नींद में था ध्यान नही दिया

रूपाली : हाहाहा कोई बात नही (उसके चेहरे पे सॉफ उत्तेजना देखी थी मैने शायद उसने मेरे लंड को पूरी तरीके से देख लिया)

वो उस वक़्त बिना ज़्यादा कुछ कहे मुस्कुराए गुसलखाने में चली गयी कुछ देर में ही मुझे उसके पेशाब करने की आवाज़ सुनाई दी...शायद उसकी चुत ने मोटी धार पेशाब की अपने छेद से बहाना शुरू किया था...लेकिन किस्मत खराब मैं उसे नंगी देख नही पाया क्यूंकी दरवाजा लोहे का था और उसमें कोई छेद नही था...

मैं अपने कमरे में आ गया ताकि उसे ये ना लगे कि मैं जानभुज्के बाहर अब भी उसके इन्तिजार में खड़ा हूँ छोटे टाउन की लड़की है ना जाने क्या उसके मन में विचार आए? मैं जल्दी से कमरे में आ गया दरवाजा हल्का सटा दिया और अपने सारे कपड़े उतारके चादर ओढ़ ली..मुझे गुसलखाने के दरवाजे के खुलने की आवाज़ सुनाई दी फिर बंद होने की फिर लाइट ऑफ करने की फिर बगल वाले कमरे का दरवाजा ज़ोर से लगाए जाने की....मैं चाहता तो आगे क्या हुआ फिर खिड़की से झाँक के देख सकता था...पर आँखे जल रही थी और मुझे कल सुबह जल्दी उठना था इसलिए मैं सो गया

अगले दिन प्रोग्राम में साला थोड़ी बाधा पड़ गयी....भारी भीषण बरसात शुरू हो गयी...सुधिया काकी थोड़ा दूर से आती थी इसलिए ताहिरा मौसी ने सुबह सुबह नाश्ते में ये जता दिया था कि शायद आज प्रोग्राम कॅन्सल हो सकता है....मैने उन्हें कहा कि मैं थोड़ा घर होके आ जाता हूँ एक बार चक्कर भी लगा लूँगा पहले तो ताहिरा मौसी ने मना किया फिर वो राज़ी हो गयी
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