Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
12-09-2019, 12:16 PM,
#7
RE: Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
अपडेट - 7



शाम होते होते सुरेश ने निर्णय लिया कि आज मैं मां की नही बल्कि माँ मेरी सुनेंगी । सुरेश खुद को मेंटली तैयार करके घर के लिए निकल चुका था।

वहीं घर पर चाँदनी ने भी निर्णय कर लिया था कि आज वो सुरेश की नहीं सुनेंगी, बिल्कुल भी नहीं। आज सीधे सीधे वो अपना निर्णय सुरेश को सुनाएंगी और उसे इसे मानना पड़ेगा।


अब आगे.....


देर शाम को सुरेश घर पहुंचा। सुरेश थोड़ा असमंजस में ज़रूर था इसलिए हिम्मत जुटा कर सुरेश ने डोर बेल बजा दी। डोर बेल के बजट ही चांदनी और चंचल दोनों को एहसास हो गया था कि सुरेश घर आया होगा। चंचल दौड़ते हुए दरवाजे तक गयींऔर दरवाजा खोल दिया। चंचल अपनी सास का लिहाज करते हुए रुक गयी वरना तो चंचल की एक्साइटमेंट से लग रहा था कि वो वही सुरेश को अपने चुम्बनों से भिगो देती। लेकिन चंचल ने खुद पर काबू पाते हुए सुरेश को अंदर बुलाया और खुद किचन में चली गयी।

चांदनी: आओ बीटा मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। बड़ी खास बात है। इसलिए मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी ।

सुरेश: माँ मुझे भी आपसे कुछ बात करनी थी अगर आप....

चांदनी: (सुरेश की बात को काटते हुए) आज तू सिर्फ मेरी सुनेगा। घर का बड़ा बेटा है तू इस लिए मैंने तुझे किसी काम से नही रोका। हमेशा अपनी माँ कि सेवा मैं लगा रहता है। इसलिए आज सिर्फ मेरी सुनेगा और बीच में कुछ नहीं बोलेगा।

सुरेश: लेकिन माँ मेरी बात तो....

चांदनी: बस बहुत हो गया अब चुप चाप सुनो। मैं कल सुबह जल्दी यहां से तीर्थ यात्रा पर निकल जाउंगी। मुझे मालूम था तू मेरे साथ जाने की जिद करेगा लेकिन फिर ये बिज़नेस कौन संभालेगा? और फिर मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम और चिंता में इनसे भी बे फ़िक़्र नहीं हूँ। सो मैंने छोटी बहू की मम्मी यानी कि मेरी समधन से भी बात की तो वो भी तैयार हो गयी तीर्थ यात्रा के लिए। इस लिए तुझे मेरी फ़िक़्र करने की ज़रूरत नहीं है। और हां ये बात मैं शिर्फ़ तुझे बात रही हूँ इसके बारे में मुझे और कुछ नहीं सुनना।

सुरेशSadमन ही मन) अगर माँ सुबह तीर्थ यात्रा पर निकल रही है मेरे बिना तो फिर मुझे उन्हें ये बताने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी कि में एक महीने के लिए विदेश यात्रा पर जा रहा हूँ। लेकिन ये कैसे पता करूँ की माँ तीर्थ यात्रा से कब तक आएंगी। बातों बातों में ही माँ से ये निकलवा लेता हूँ।

सुरेश: लेकिन माँ ऐसे कैसे आप अकेले.... और फिर हफ्ते आध हफ्ते की ही तो बात है इसमें कौनसा बिज़नेस का नुकसान होगा। मैं चलता हूँ ना आपके साथ।

चांदनी: तुझे सुनता कम है क्या? या फिर तू समझता नही है? अभी बताया तो है मैंने की मेरे साथ मेरी समधन और समधि जी भी जा रहे है। और तुझे किसने बोल दिया तीर्थ हफ्ते गया दो हफ्ते में हो जाएगा। मुझे वहां कम से कम एकबमहीन तो लगेगा ही और उसमें भी दस पन्द्रह दिन ऊपर हो सकते है।

सुरेश : (मन ही मन खुश होते हुए) अरे वाह मतलब माँ भी एक महीने के लिए जा रही है। मतलब मैं चुपचाप जाकर आ भी जाऊंगा। फिर बाद में मैं माँ को बता भी दूंगा की मुझे उनके जाने के बाद अर्जेंट विदेश निकलना पड़ा।

सुरेश: (उदासी का नाटक करते हुए) ठीक है माँ। जब तुमने मुझसे पहले ही सब कुछ सोच कर निर्णय ले लिया तो बताओ मैं और क्या कर सकता हूँ?

चांदनी: (मुस्कुराते हुए) अपनी मां की बात मान और बिज़नेस और बहुत दोनो का ध्यान रख।

तभी चंचल पानी का गिलास और खाना लेकर आ जाती है । खाने की टेबल पर इधर उधर की बात होती रहती है। और इसी बीच सुरेश को ये भी पता चलता है कि सरिता को उसकी माँ ने भी बनारस आने के लिए बोला है। जिस का मतलब ये है कि अगर वो भविष्य में अपनी माँ को अपनी विदेश यात्रा के विषय मे ना भी बताए तो उन्हें कभी पता ही नही चल पाएगा।

खाना खाने के बाद सभी अपने अपने कमरे में चले जाते हैं। चंचल सुरेश के बेडरूम में घुसते ही उसे अपनी नाजुक बाहों में जकड़ लेती है। और अपने नाजुक से होंठ सुरेश के होंठों के नज़दीक ले जाकर....

चंचल: क्या बात है हीरो। धीरे धीरे अमीर बनने की दौड़ में लंबी रेस का घोड़ा बनते जा रहे हो।

सुरेश भी चंचल की इस बात पर मुस्कुरा पड़ता है।

सुरेश: ( चंचल को गौड़ मैं उठाते हुए) जिसकी पत्नी महारानी हो उसे तो राजा बनना ही पड़ेगा ना जान।

दोनों अपनी मीठी मीठी बातों और शैतानियों मैं खोकर गले लग जाते है और हँसने लगते है।

सुरेश और चंचल का करीब 30 से 40 मिनट तक मिलान समारोह चलता रहता है। जिसकी हल्की हल्की आवाजें चाँदनी को भी सुनाई पड़ती है।

चाँदनी तो चाहती भी यही है कि दोनों बेटे बहु इतनी रास लीला करें कि उनके घर में किलकारियां गूंज उठें। बड़ी मुश्किल से चाँदनी अपने बेटे बहु से अपना ध्यान हटा कर नींद के आगोश में चली गयी।

सुबह करीब 4 -4.30 बजे....

ठक ठक ठक...... (दरवाजे पर नॉक)

चाँदनी: सुरेश ओ सुरेश...

चाँदनी की आवाज और दरवाजे पर हुई नॉक से चंचल की नींद खुल गयी। चंचल हड़बड़ा कर उठती है और दरवाजे की तरफ दौड़ती है लेकिन आधे रास्ते मे ही रुक जाती है। दरअसल चंचल रात को सुरेश के साथ काम क्रीड़ा करते करते थक कर सो गई थी। तबसे लेकर अब तक उसके बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था। चंचल ने सुरेश की तरफ नज़र उठाकर देखा तो सुरेश नींद के आगोश में था। चंचल ने तुरंत अपने कपड़े ढूंढे जो कि वास्तव इस वक़्त मिल पाना मुश्किल था। कुछ कपड़े सुरेश के नीचे दबे थे तो कुछ बिस्तर के इर्द गिर्द बिखरे थे। चंचल ने तुरंत अपनी कबड़ की और रुख किया और एक सलवार और सूट निकल कर पहन लिया। फिर चाँदनी को आवाज देते हुए....

चंचल: आयी माँ जी...

चंचल दरवाजा खोलने से पहले सुरेश को उठा कर बाहर चाँदनी के होने की खबर देती है। जिसे सुनकर सुरेश तुरंत नग्न हालत में ही बाथरूम में भाग जाता है।

चंचल दरवाजा खोलती है तो सामने चाँदनी खड़ी मिलती है।

चंचल: जी मां जी

चाँदनी: अरे क्या जी माँ जी? सुरेश कहाँ है? उसे कहो मुझे तुरंत ट्रैन मैं बिठा कर आये। मैं लाते हो रही हूं भाई।

तभी सुरेश बाथरूम से तैयार होकर आता है। दरअसल सुरेश के रात के कुर्ते पाजामे बाथरूम में थे जिनको वो सोते समय पहनता था। तो उन्हें ही पहन कर सुरेश बाहर आ गया।

सुरेश: हां माँ बस अभी चलते है।

सुरेश एक कॉल करता है और चंचल को चाय के लिए बोल देता है। चंचल किचन में जाकर चाय बनाने लगती है। तब तक सुरेश अपने आफिस सूट मैं तैयार होकर बाहर आ जाता है। चंचल चाय सुरेश की और बढ़ाते हुए।

चंचल चाँदनी से:- माँ जी आप इस तरह तैयार होकर इतनी सुबह...?

चाँदनी: हाँ बेटा मैं तीर्थ यात्रा पर जा रही हूँ। तुम्हारी देवरानी की माँ और पापा के साथ।

चंचल: लेकिन माँ यूँ अचानक.. और फिर सुरेश भी तो आज...

तभी सुरेश बीच मे बोल पड़ता है...

सुरेश: हाँ चंचल मैंने भी माँ को बोला था कि मैं चल लेता हूँ साथ लेकिन माँ तैयार ही नही हुई।

चंचल: हाँ वो सब तो सही है लेकिन आप तो...

सुरेश तुरंत चाय का कप खाली करके नीचे रखते हुए।
सुरेश: चलो माँ देर हो रही है। गाड़ी आ गयी। और चंचल तुम ज़रा मेरा नाश्ता भी बना दो आज कुछ काम के सिलसिले में जल्दी जाना है

सुरेश इतना बोलकर चाँदनी और उसके सामान के साथ घर के बाहर आ जाता है। सुरेश और चाँदनी गाड़ी में बैठ रेल यात्रा की और बढ़ जाते है।

वहीं दूसरी और चंचल को सुरेश का व्यवहार और दिनों से कुछ अलग और अजीब लगता है। ऐसा लगता है जैसे सुरेश कुछ छिपा रहा हो।

चंचल सुरेश को कॉल करके वार्निंग देते हुए बोल देती है कि माँ जी को ट्रैन मैं बिठाते ही घर आएं। क्योंकि उसे सुरेश से बहुत से बातों को जान ना था।

सुरेश भी चंचल की अधीरता को समझ जाता है। सुरेश जानता था कि ये बात उसकी मां चाँदनी से तो छिपा सकता है लेकिन अपनी पत्नी चंचल से छिपा पाना उसके बस की बात नहीं। सुरेश चाँदनी को ट्रेन में बिठा कर घर की और रुख कर लेता है।

जैसे ही सुरेश घर पहुंचता है चंचल सुरेश पर अपने ढेर सारे सवालों को लेकर बिखर पड़ती है। सुरेश बड़े ही प्यार से चंचल को कुरसिंपर बिठा कर अपनी मजबूरी बताता है और बताता ही कि उसे किन हालात में अपनी मां से उसकी विदेश यात्रा छिपानी पड़ी है। और इस राज में वो चंचल को अपना भागीदार बना ता है।

चंचल अछि तरह से जानती थी कि सुरेश अगर अपनी माँ चाँदनी से इतनी बड़ी बात छिपा रहा है तो ज़रूर उसकी ये मजबूरी रही होगी।

करीब 7.30 या 8 बजे सुरेश अपना सामान जमा कर एयरपोर्ट पहुंच जाता है जहां से सुरेश आने एक महीने के तौर टूर पर निकल जाता है।

चंचल अकेली घर पर बोते हो रही थी कि तभी करीब 11.30 के करीब दरवाजे पर नॉक होता है। चंचल चौंक जाती है कि आखिर इस वक़्त कौन है। चंचल दरवाजा खोल कर देखती है तो ये कोई और नहीं बल्कि उसकी देवरानी सरिता थी। चंचल सरिता को देख कर बेहद खुश होती है। दोनों एक दूसरे को गले लगती है और घर मे आ जाती है।
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