Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
12-09-2019, 12:06 PM,
#4
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
आज भी हमारे देश में अक्सर शादी के बाज़ार में जहां लड़कों की अहमियत का पैमाना सिर्फ उनकी पैसा कमाने की क़ूवत से नापा जाता है, वहीं लड़की की सिर्फ़ शारीरिक सुंदरता को तरज़ीह दी जाती है. लड़का चाहे +2 पास/फेल हो लेकिन अगर बिज़नेस में दो तीन लाख़ रुपया महीना कमाता हो तो उसको सी ए, एम बी ए, कॉलेज की प्रोफ़ेसर, यहां तक कि आई ए एस, पी सी एस लड़की भी आम मिल जाती है.

वर-वधू की कुंडलियाँ तो मिलाई जाती हैं लेकिन वर-वधू की मानसिक-अनुकूलता की किसी को कोई परवाह नहीं रहती. जो लड़कियां समझौता कर लेती हैं वो सारी उम्र अंदर ही अंदर कुढ़ती रहती हैं और जो लड़कियां विद्रोह करती हैं, उन लड़कियों की अमूमन शादी देर से या बहुत देर से होती है. बहुत ज़हीन, बहुत ज़्यादा पढ़ी-लिखी और आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर लड़कियों की ये प्रॉब्लम बहुत आम है.

अक्सर शादी में हो रही देर लड़कियों के मन में एहसास-ऐ-कमतरी यानि हीन भावना को जन्म देती है जो लड़कियों को या तो डिप्रेशन में ले जाती है या फिर दबंग और बद्तमीज़ बना देती है. वसुन्धरा को कुदरत ने या फिर खुद वसुन्धरा ने, दबंग और बद्तमीज़ बना दिया था लेकिन इस में एक लोचा था. जिन लोगों को ऐसी लड़कियों का अवचेतन मन पसंद करता है या जिन लोगों की ख्वाहिश करता है, उनको सबके बीच तो नीचा दिखाती है लेकिन उन लोगों के आगे एकांत में, बे-ध्यानी में ऐसी लड़कियों की सारी दबंगई और बदतमीज़ी का कवच एक ही क्षण में खील-खील हो जाता है.
सीधी-सादी भाषा में इस का यही मतलब निकलता था कि वसुन्धरा मन ही मन मुझे पसंद करती थी. पिछले तीन दिन में वसुन्धरा की मेरे साथ की सारी बद्तमीज़ियां और उनके कारण अब मुझे आईने की तरह साफ़ थे.

“हाँ … हाँ यही बात है!” वसुन्धरा के बारे में सोचते हुए और ख्यालों में उलझे हुए मेरे मुंह से ये शब्द निकल गए.
“आपने मुझसे कुछ कहा?” वसुन्धरा पहली बार मुझ से सीधे मुख़ातिब थी. हालांकि वसुन्धरा की पलकें तो झुकी हुई थी लेकिन आवाज़ में हल्की सी सत्तात्मक लरज़ बता रही थी कि शेरनी वापिस चैतन्य हो रही थी.
“जी नहीं! मैं कुछ सोच रहा था, बेख्याली में मेरे मुंह से कुछ लफ्ज़ निकल गए … सॉरी!” मुझे खुद ही अपनी आवाज़ बहुत नर्म, बहुत कोमल सी लगी.

मामले की जड़ समझ में आने पर अब मेरा वसुन्धरा के प्रति गुस्सा कम हो चुका था … कम क्या हो चुका था, ख़त्म ही हो चुका था.
मेरे लहज़े की असाधारण कोमलता को वसुन्धरा ने भी महसूस किया और चौंक कर मेरी ओर देखा. क्षण भर को निगाहों से निगाहें मिली, तत्काल ही वसुन्धरा ने अपनी आँखें झुका ली. मैंने भी अपनी निगाहें वापिस सामने सड़क पर जमा ली.

यूं मेरा इरादा मेरे हक़ में पलटी इन परिस्थितियों का कोई फायदा उठाने का क़तई नहीं था लेकिन किसी लड़की का … किसी गैर लड़की का अपने प्रति ऐसा अनुरागात्मक रवैया मन में कहीं गुदगुदी सी तो कर ही रहा था.
पुरुष दम्भ … ये तो है ही!
यक-बा-यक बिला-वज़ह ही फिज़ा खुशगवार सी हो चली थी और वसुन्धरा भी कुछ सहज़ सी दिखने लगी. वसुन्धरा के हाथ अब अटैची-केस के हैंडल से हट चुके थे और अब वो सहजता से सीट की पुश्त से पीठ लगाए, गोदी में रखे अटैची-केस पर अपने दोनों हाथ टिकाये बाएं हाथ की तर्जनी उंगली पर दायें हाथ से दुपट्टा लपेट-खोल रही थी.

“आई ऍम सॉरी!” अचानक ही सर नीचा कर के बैठी वसुन्धरा ने सरगोशी सी की.
“किस लिए?” मैंने पूछा, हांलाकि मुझे बिल्कुल ठीक-ठीक अंदाज़ा था कि वसुन्धरा किस बारे में बात कर रही थी.
“मैंने रंग में भंग डाला.” वसुन्धरा की आवाज में कंपन था.
“आप ऐसा क्यों सोचती हैं?” मैंने पूछा.
“क्योंकि … ऐसा ही है. मुझे पता है और मेरे कारण आप भी सज़ा भुगत रहें हैं.” कहते-कहते वसुन्धरा की नम आँखें ऊपर कार की छत की ओर उठ गयी और आवाज़ भर्रा गयी.
“वसुन्धरा जी! आप गलत सोच रहीं हैं. मैं कसम खा के कहता हूँ कि … आपका साथ मेरे लिए सज़ा नहीं, मस्सर्रत का वाईज़ है.”
वसुन्धरा ने बड़ी हैरतभरी नज़रों से मेरी ओर देखा और आँख मिलते ही मैं निर्दोष भाव से मुस्कुराया.

ख़ैर! बात ज्यादा हुई नहीं. मैंने वसुन्धरा को ब्यूटी-पार्लर के गेट पर उतारा और उसको “जैसे ही आप तैयार हो जायें, मुझे सैल पर कॉल कर दें, मैं आप को लेने आ जाऊंगा.” की हिदायत देकर वापिस शादी वाले होटल की ओर उड़ चला.
सब उलझनें सुलझ गयी थी लेकिन एक गिरह अभी भी नहीं खुली थी. क्या भा गया था वसुन्धरा को मुझमें? क्यों वसुन्धरा मुझे पसंद करने लगी थी? अभी जुम्मा-जुम्मा कुल दो ही दिन की तो मुलाक़ात थी हमारी और कोई मर्द चाहे कितने भी आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक क्यों न हो, इतनी जल्दी तो कोई लड़की उस पर फ़िदा नहीं होती. ऊपर से मैं शादीशुदा, बाल-बच्चेदार आदमी, अपनी पत्नी के सिवा न तो किसी और स्त्री को किसी भी तरह के भविष्य की गारंटी दे सकता था और न ही किसी भी तरह के भावनात्मक-सम्बंध निभा सकता था. ये बात वसुन्धरा बड़ी अच्छी तरह से जानती थी … तो भी? चक्कर क्या था? कोई न कोई तो ऐसी बात जरूर थी जिस का अभी मुझे इल्म नहीं था, इसी उधेड़-बुन में डूबता-उतरता मैं शादी वाले होटल वापिस पहुँच गया.

लम्बी कहानी कई भागों में जारी रहेगी.
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