non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:17 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"जी बिलकुल।" अभय सिंह ने कहा___"अच्छा भाई साहब मैं ज़रा आज की दवाइयों को अंदर रख कर आता हूॅ। वो अभी कार में ही रखी हुई हैं।"
"ओह हाॅ।" जगदीश ओबराय ने कहा___"और हाॅ अंदर गौरी बहन से कहना ज़रा गरमा गरम चाय तो बना कर पिलाए।"

जगदीश ओबराय की बात सुन कर अभय सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया और कुर्सी से उठ कर कार की तरफ बढ़ गया। कार से उसने एक प्लास्टिक की थैली निकाली और उसे लेकर बॅगले के अंदर चला गया।

वहीं एक तरफ निधी के कमरे में निधी और आशा बेड पर बैठी हुई थी। पिछले दिन हुई बातचीत से निधी आशा के सामने आने से थोड़ा असहज सा महसूस करती थी, किन्तु आशा के समझाने पर उसकी झिझक व शर्म बहुत हद तक दूर हो गई थी। आशा पहले भी ज्यादातर उसके पास ही रहती थी किन्तु जब से उसके सामने ये बात खुल गई थी कि निधी विराज से प्यार करती है तब से वो और भी निधी के समीप ही रहती थी। आशा उमर में रितू जैसी ही थी तथा एक समझदार व सुलझी हुई लड़की थी इस लिए वो निधी को एक पल के लिए उदास या मायूस नहीं होने देती थी।

आशा के ही पूछने पर निधी ने उसे बताया कि कैसे उसे अपने भाई से प्यार हुआ और कैसे उसने अपने उस प्यार को विराज के सामने उजागर भी किया था। आशा सारी बातें सुन कर हैरान थी। सबसे ज्यादा इस बात पर कि निधी ने विराज से अपने प्यार का इज़हार भी कर दिया है। ये अलग बात है कि विराज ने इसे अनुचित व ग़लत कहते हुए उसे इस संबंध में समझाया था। उसने उसे ये भी समझाया था कि इस रिश्ते को दुनियाॅ वाले कभी स्वीकार नहीं कर सकते और ना ही उसके घर वाले। विराज अपनी इस लाडली को जी जान से चाहता था किन्तु एक बहन भाई के रूप में। वो नहीं चाहता था कि उसकी कठोरता से निधी को ज्यादा दुख पहुॅचे। छोटी ऊम्र का आकर्शण कभी कभी ज़िद के चलते इतना उग्र रूप धारण कर लेता है कि अगर उसे समय रहते सम्हाला न गया तो परिणाम गंभीर भी निकल आते हैं।

शुरू शुरू में आशा को भी यही लगा था कि निधी अपने भाई पर महज आकर्षित है। किन्तु जब उसने निधी से इस संबंध में सारी बातों को जाना और उसकी डायरी के हर पेज पर दिल को झकझोर कर रख देने वाले मजमून को पढ़ा तो उसे महसूस हुआ कि ये महज आकर्शण नहीं है बल्कि ये बेपनाह मोहब्बत का प्रत्यक्ष सबूत है। आशा ने निधी की इजाज़त से ही उसकी डायरी को पढ़ना शुरू किया था। यूॅ तो डायरी में लिखी हर बात अपने आप में निधी की तड़प बयां करती थी किन्तु निधी के द्वारा लिखी गई ग़ज़लें ऐसी थीं जो आशा के दिल को बुरी तरह तड़पा देती थी। उसे ऐसा लगता जैसे ग़ज़ल की हर बात में उसी का हाले दिल बयां किया गया है। निधी अपने आपको बहलाने के लिए ज्यादातर किताबों में ही डूबी रहती थी। आशा उसकी पढ़ाई में कोई हस्ताक्षेप नहीं करती थी। किन्तु उसे भी पता था कि किसी चीज़ में अति हानिकारक होती है। इस लिए वो निधी का हर तरह से ख़याल भी रखती थी। इस वक्त भी वह उसके लिए चाय लेकर आई थी।

निधी ने चाय पिया और फिर कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद वह फिर से किताबों में डूब गई थी। जबकि आशा बेड पर सिरहाने की तरफ रखे पिल्लो के नीचे से निधी की डायरी निकाल कर उसे पढ़ने लगी थी। उसमें एक ग़ज़ल थी जिसे वो बार बार पढ़े जा रही थी।

अब किसी भी बात का यूॅ मशवरा न दे कोई।
इश्क़ गुनाहे अजीम नहीं तो सज़ा न दे कोई।।

अज़ाब तो मोहब्बत के साथ ही मिल जाते हैं,
फिर ग़मों को हमारे घर का पता न दे कोई।।

कैसे समझाएॅ के ऑधियों के बस का भी नहीं,
ये तो दिल के चिराग़ हैं इन्हें हवा न दे कोई।।

दिल की चोंट तो दिलबर से ही रफू होती है,
बेवजह इस दिल की अब दवा न दे कोई।।

इस लिए अपने दिल को समझा लिया हमने,
सरे राह मेरे महबूब का सिर झुका न दे कोई।।

आग लगे इस इश्क़ को के इसकी वजह से,
परेशां हो के मुझको कहीं भुला न दे कोई।।

आशा ने इस ग़ज़ल को बार बार पढ़ा। उसके दिल में अजीब सी हचचल होने लगी थी। काफी देर तक वो उसके बारे में सोचती रही। वो हैरान भी थी कि निधी इतना कुछ कैसे लिख सकती है? पर सबूत तो उसकी ऑखों के सामने ही था। आशा ने निधी से पूछा भी था कि ये किस शायर की लिखी हुई ग़ज़ल है, जवाब में निधी ने बस मुस्कुरा दिया था। जब आशा ने ज़ोर दिया तो उसने बताया कि ये उसके ही दिल की आवाज़ है जिसे उसने शब्दों में पिरो कर ग़ज़ल का रूप दे दिया है। निधी की इस बात पर आशा सोचों में गुम हो गई। फिर जैसे उसने खुद को सम्हाला। उसकी नज़र डायरी के दाहिने वाले पेज़ पर लिखी एक और ग़ज़ल पर पड़ी। उसने उस ग़ज़ल को भी पढ़ना शुरू किया।

दिल तो दरिया ही था इक ग़म भी समंदर हो गया।
फक़त दर्द से फाॅसला था वो भी मयस्सर हो गया।।

हर वक्त ज़हन में अब उनका ही ख़याल तारी है,
मेरी पलकों के तले हर ख़्वाब सिकंदर हो गया।।

इसके पहले तो बहारे गुल का हर मौसम हरा रहा,
अब खिज़ां क्या आई के हर बाग़ बंज़र हो गया।।

मेरी ज़रा सी आह पर तड़प उठते थे कुछ लोग,
आजकल तो मोम का हर पुतला पत्थर हो गया।।

कितनी हसीं थी ज़िन्दगी मरीज़-ए-दिल से पहले,
अब तो नज़र के सामने बस वीरां मंज़र हो गया।।

अपनी बेबसी का ज़िक्र भला करें भी तो किससे,
बस छुप छुप के रोना ही अपना मुकद्दर हो गया।।

इस ग़ज़ल को पढ़ कर आशा के संपूर्ण जिस्म में झुरझुरी सी हुई। दिल में इक हूक सी उठी जिसने उसकी ऑखों में पलक झपकते ही ऑसुओं का सैलाब सा ला दिया। उसने पलट कर चुपके से निधी की तरफ देखा। निधी पूर्व की भाॅति ही किताबों में खोई हुई थी। ये देख कर आशा को ऐसा लगा जैसे उसका दिल एकदम से धड़कना बंद कर देगा। उसने बड़ी मुश्किल से अपने अंदर के प्रबल वेग में मचलने लगे जज़्बातों को सम्हाला और फिर डायरी को बंद कर बेड पर चुपचाप ऑखें बंद करके लेट गई। दिलो दिमाग़ एकदम से शून्य सा हो गया था उसका। उसे निधी के दर्द का बखूबी एहसास हो चुका था। किन्तु दिमाग़ में ये सवाल ताण्डव सा करने लगा कि कोई लड़की इस हद तक कैसे किसी को चाह सकती है कि उसके प्रेम में इस तरह बावरी सी होकर ग़ज़ल व कविता लिखने लग जाए? मन ही मन जाने क्या क्या सोचते हुए आशा को पता ही नहीं चला कि कब नींद ने उसे अपनी आगोश में ले लिया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अजय सिंह तेज़ रफ्तार से कार चलाते हुए शहर की तरफ जा रहा था। इस वक्त उसके चेहरे पर पत्थर सी कठोरता विद्यमान थी। उसकी नज़र बार बार कार के अंदर लगे बैक मिरर पर पड़ जाती थी। वह काफी समय से देख रहा था कि उसके पीछे लगभग सौ मीटर के फाॅसले पर एक जीप लगी हुई है। पहले उसे लगा था कि शायद कोई लोकल आदमी होगा जो उसकी तरह ही शहर जा रहा है किन्तु फिर जाने क्या सोच कर अजय सिंह ने उसे परखने का सोचा था? अजय सिंह ने कई बार अपनी कार की रफ्तार को धीमा किया था, ये सोच कर कि पीछे आने वाली जीप उसे ओवरटेक करके उसके आगे निकल जाएगी मगर ऐसा एक बार भी नहीं हुआ था। बल्कि उसकी कार के धीमा होते ही उस जीप की रफ्तार भी धीमी हो जाती थी।

अनुभवी अजय सिंह को समझते देर न लगी कि पीछे लगी जीप वास्तव में उसका पीछा कर रही है। इस बात के समझते ही उसे ये भी समझ आ गया कि संभव है ऐसा उसके साथ अब से पहले भी हो चुका हो। उसके मस्तिष्क में दो नाम आए रितू और विराज। यकीनन इन दोनो ने उसकी हर गतिविधि पर नज़र रखने के लिए कोई आदमी उसके पीछे लगा रखा था। अजय सिंह को अब सब समझ आ गया था कि क्यों वो बार बार मात खा रहा था अपने दुश्मन से। उसके दुश्मन को उसकी हर ख़बर रहती थी तभी तो वो उससे चार क़दम आगे रहता था। अजय सिंह को अपने आप पर बेहद गुस्सा भी आया कि उसने इस बारे में पहले क्यों नहीं सोचा था? जबकि ये एक अहम बात थी। उसकी बेटी के लिए ये सब करना महज बाएॅ हाथ का खेल था। वो एक पुलिस वाली थी, जिसके तहत मुजरिमों को खोजने के लिए उसके अपने गुप्त मुखबिर होना लाजमी बात थी। किन्तु अब भला इस बारे में सोचने का क्या फायदा था? जो होना था वो तो हो ही चुका था, मगर अब जो होने वाला था ये उसने सोच लिया था।

अजय सिंह ने अपने पीछे लगी उस जीप को चकमा देने का मन बना लिया था। अब वो अपनी गतिविधियों की जानकारी अपने दुश्मन तक नहीं पहुॅचने देना चाहता था। उसने कार को तेज़ रफ्तार से दौड़ा दिया और कुछ ही समय में शहर के अंदर दाखिल हो गया। बैक मिरर पर उसकी नज़र बराबर थी। वो देख रहा था कि पीछे लगी जीप भी उसी रफ्तार से आ रही थी। अजय सिंह को पता था कि उस जीप को चकमा देने का काम वो शहर में ही कर सकता था। क्योंकि यहाॅ पर आबादी थी तथा कई सारे रास्ते थे जहाॅ पर पल में गुम हो सकता था। अजय सिंह ने ऐसा ही किया, यानी शहर में दाखिल होते ही कई सारे रास्तों से चलते हुए पीछे लगी जीप की पहुॅच से दूर हो गया। इस बीच उसने किसी से फोन पर बात भी की थी।

थोड़ी ही देर में अजय सिंह ने कार को सड़क के किनारे रोंक दिया। वह बैक मिरर पर अभी भी देख रहा था। लगभग दस मिनट गुज़र गए। पीछे लगी जीप का कहीं कोई पता न था। अलबत्ता इस बीच एक कार ज़रूर उसके सामने आकर रुकी। कार से एक साधारण कद काठी का आदमी बाहर निकला और चल कर अजय सिंह के पास आया। उस आदमी को देख कर अजय सिंह अपनी कार से नीचे उतरा। अजय सिंह के उतरते ही वो आदमी अजय सिंह की कार में बैठ गया। कार में बैठते ही उसने कार को आगे पीछे करके यू टर्न लिया और वहाॅ से चला गया। उस आदमी से अजय सिंह ने कोई बात न की थी, शायद उसने फोन पर ही उसे सब कुछ समझा दिया था। ख़ैर उस आदमी के जाते ही अजय सिंह भी उस आदमी की कार के पास पहुॅचा और कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ कर कार को आगे बढ़ा दिया।

कुछ ही समय में अजय सिंह की ये कार जिस जगह रुकी उसके बाएॅ तरफ एक ऊॅची सी बिल्डिंग थी। ये बिल्डिंग पाॅच मंजिला थी। नीचे के ग्राउंड फ्लोर पर कई दुकानें थी जबकि दूसरे फ्लोर पर बिल्डिंग की बाहरी दीवार पर स्टील के बड़े बड़े अच्छरों से "दा जिम" लिखा था। बाॅकी के ऊपरी फ्लोर पर कुछ और भी चीज़ें थीं जिनका ज़िक्र करना यहाॅ ज़रूरी नहीं है।

कार से उतर कर अजय सिंह उसी बिल्डिंग की तरफ बढ़ चला। बिल्डिंग के ऊपरी फ्लोर पर जाने के लिए दोनो तरफ की दुकानों के बीच एक बड़ा सा चैनल गेट लगा था। उस चैनल गेट से ही सीढ़ियाॅ लगी थी। अजय सिंह तेज़ तेज़ क़दमों से चलता हुआ उस चैनल गेट के पास पहुॅचा और फिर सीढ़ियाॅ पर चढ़ता हुआ ऊपर की तरफ चला गया। कुछ ही देर में वो दूसरे फ्लोर यानी कि दा जिम वाले हिस्से के एक बड़े से मीटिंग हाल में दाखिल हुआ। मीटिंग हाल में पहले से ही कुछ गिनती के लोग बैठे हुए थे।

"हैलो फ्रैण्ड्स।" अजय सिंह उन सबकी तरफ देखते हुए कहा और फिर फ्रंट की मुख्य कुर्सी पर बैठ गया।
"अच्छा हुआ ठाकुर साहब।" उनमे से एक ने अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा___"कि आपने ये मीटिंग की और हम सबको यहाॅ बुला लिया। हम खुद भी चाहते थे कि सामने बैठ कर इस बारे में तसल्ली से बात करें। हम सबने आपकी मदद के लिए अपने अपने आदमियों को आपके पास भेजा था किन्तु उस दिन के हादसे में हमारे वो सब आदमी पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए। ये हमारे लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं हुआ है। आप समझ सकते हैं कि पुलिस के पास पत्थरों का भी मुह खुलवा लेने की कूवत होती है। इस लिए अगर हमारे आदमियों ने पुलिस के सामने अपना अपना मुह खोल दिया तो उसका अंजाम यही होगा कि बहुत जल्द हम सब भी पुलिस के द्वारा धर लिये जाएॅगे।"

"मामला वाकई बेहद गंभीर हो गया है कमलकान्त।" अजय सिंह ने कहने के साथ ही शिगार सुलगा लिया, फिर बोला___"इस मामले को हम बड़ी आसानी से सुलझा लेते मगर आज मंत्री जी की गिरफ्तारी से बहुत बड़ा झटका लगा है। हम में से किसी को भी ये उम्मीद नहीं थी कि मंत्री जैसा चतुर व शातिर इंसान इस तरह पलक झपकते ही पुलिस के द्वारा धर लिया जाएगा। ख़ैर, आप सब चिंता न करें, क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि पुलिस उन सबको छोंड़ देगी।"

"क्याऽऽऽ???" मीटिंग हाल में बैठे वो सब इस बात को सुन कर उछल पड़े थे, एक अन्य बोला___"ऐसा आप कैसे कह सकते हैं ठाकुर साहब? जबकि ये असंभव बात है। पुलिस भला ऐसे संगीन अपराधियों को कैसे छोंड़ देगी?"

"उसकी एक ठोस वजह है।" अजय सिंह ने कहा___"इस शहर की पुलिस का सारा महकमा भले ही बदल गया था किन्तु इस बात को गुज़रे हुए काफी समय हो गया है। इस देश में ऐसे पुलिस वालों की कमी नहीं है जिनका इमान थोड़े से पैसों के लिए डगमगा जाता है। कहने का मतलब ये कि पुलिस महकमे में एक खास पुलिसिया ऐसा ही है जिसका इमान हमने पैसे से डगमगा दिया है। उसी ने हमे फोन पर इस सबके बारे में जानकारी दी थी।"

"क..कैसी जानकारी ठाकुर साहब?" कमलकान्त के चेहरे पर हैरानी के भाव आए।
"यही कि पुलिस ने हमारे जिन आदमियों को गिरफ्तार किया था।" अजय सिंह ने कहा___"उनके खिलाफ कोई केस फाइल नहीं किया गया है अब तक और महकमे के अंदर का माहौल भी यही ज़ाहिर कर रहा है कि आगे भी अभी उन पर कोई केस फाइल होने की संभावना नहीं है। दरअसल पुलिस डिपार्टमेंट अभी मंत्री की गिरफ्तारी पर ज्यादा ज़ोर दे रहा है। पुलिसिये ने बताया कि एसीपी रमाकान्त शुक्ला को केन्द्र से भेजा गया था मंत्री और उसके साथियों के खिलाफ़ गुप्तरूप से सबूत इकट्ठा कर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए। ताकि इस प्रदेश से गंदगी दूर हो सके।"

"वो सब तो ठीक है ठाकुर साहब।" अभिजीत सहाय नाम का आदमी बोल पड़ा___"लेकिन इससे ये तो साबित नहीं होता कि मंत्री की वजह से पुलिस हमारे आदमियों पर कोई केस फाइल नहीं करेगी। बल्कि पुलिस का तो काम ही यही है मुजरिमों को सज़ा दिलाना। अतः देर सवेर पुलिस अपना काम ज़रूर करेगी।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 01:17 PM

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