non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:32 PM,
#87
RE: non veg kahani एक नया संसार
बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्हाला और नयनों में नीर भरे वह तेज़ी से गौरी की तरफ बढ़ा। गौरी के पास पहुॅचते ही वह अपनी देवी समान भाभी के पैरों में लगभग लोट सा गया। उसके जज्बात उसके काबू से बाहर हो गए। फूट फूट कर रो पड़ा वह। मुह से कोई वाक्य नहीं निकल रहे थे उसके।

अपने पुत्र समान देवर को इस तरह बच्चों की तरह रोते देख गौरी का हृदय हाहाकार कर उठा। वह जल्दी से नीचे झुकी और अभय को उसके दोनो कंधों से पकड़ कर बड़ी मुश्किल से उठाया उसने। अभय उससे नज़र नहीं मिला पा रहा था। उसका समूचा चेहरा आसुओं से तर था।

"अरे ऐसे क्यों रहे हो पागल?" गौरी खुद भी रोते हुए बोली__"चुप हो जाओ। तुम जानते हो कि मैने हमेशा तुम्हें अपने बेटे की तरह समझा है। इस लिए तुम्हें इस तरह रोते हुए नहीं देख सकती। चुप हो जाओ अभय। अब बिलकुल भी नहीं रोना।"

ये कह कर गौरी ने अभय को अपने सीने से लगा लिया। अपनी भाभी की ममता भरी इन बातों से अभय और भी सिसक सिसक कर रो पड़ा। उसकी आत्मा चीख चीख कर जैसे उससे कह रही थी 'देख ले अभय जिस देवी समान भाभी पर तूने शक किया था और उनके ऊपर लगाए गए आरोपों को सच समझ कर उनसे मुह मोड़ लिया था, आज वही देवी समान भाभी तुझे अपने बेटे की तरह प्यार व स्नेह देकर अपने सीने से लगा रखी है। उसके मन में लेश मात्र भी ये ख़याल नहीं है कि तुमने उनके और उनके बच्चों से किस तरह मुह मोड़ लिया था?'

अभय अपनी आत्मा की इन बातों से बहुत ज्यादा दुखी हो गया। उसे खुद से बेहद घृणा सी होने लगी थी।

"मुझे इस प्रकार अपने ममता के आचल में मत छुपाइये भाभी।" अभय गौरी से अलग होकर बोला__"मैं इस लायक नहीं हूँ। मैं तो वो पापी हूँ जिसके अपराधों के लिए कोई क्षमा नहीं है। अगर कुछ है तो सिर्फ सज़ा। हाँ भाभी....मुझे सज़ा दीजिए। मैं आप सबका गुनहगार हूँ।"

"ये कैसी पागलपन भरी बातें कर रहे हो अभय?" गौरी ने दोनो हाँथों के बीच अभय का चेहरा लेकर कहा__"किसने कहा तुमसे कि तुमने कोई अपराध किया है? अरे पगले, मैंने तो कभी ये समझा ही नहीं कि तुमने कोई अपराध किया है। और जब मैने ऐसा कुछ समझा ही नहीं तो क्षमा किस बात के लिए? हाँ ये दुख अवश्य होता था कि जिस अभय को मैं अपने बेटे की तरह मानती थी वह जाने क्यों अपनी भाभी माॅ से अब मिलने नहीं आता? क्या उसकी भाभी माॅ इतनी बुरी बन गई थी कि वो अब मुझसे बात करने की तो बात ही दूर बल्कि नज़र भी ना मिलाए?"

"इसी लिए तो कह रहा हूँ भाभी।" अभय रो पड़ा__"इसी लिए तो....कि मैं अपराधी हूँ। मेरा ये अपराध क्षमा के लायक नहीं है। मुझे इसके लिए सज़ा दीजिए।"

"मैंने तुम्हें हमेशा अपना बेटा ही समझा है अभय।" गौरी ने अभय की आँखों से आँसू पोंछते हुए कहा__"इस लिए माॅ अपने बेटे की किसी ग़लती को ग़लती नहीं मानती। बल्कि वह तो उसे नादान समझ कर प्यार व स्नेह ही करने लगती है। चलो, अब अंदर चलो।"

गौरी ने ये कह अभय को उसके कंधों से पकड़ कर अंदर की तरफ चल दी। उसके पीछे विराज और निधि भी अपनी अपनी आँखों से आँसू पोंछ कर चल दिये।
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"तुम लोग सब के सब एक नम्बर के निकम्मे हो।" उधर हवेली में अजय सिंह फोन पर दहाड़ते हुए कह रहा था__"किसी काम के नहीं हो तुम लोग। पिछले एक महीने से तुम लोग वहाँ पर केवल मेरे रुपयों पर ऐश फरमा रहे हो। एक अदना सा काम सौंपा था तुम लोगों को और वह भी तुम लोगों से नहीं हुआ। हर बार अपनी नाकामी की दास्तान सुना देते हो तुम लोग।"
"......................।" उधर से कुछ कहा गया।
"कोई ज़रूरत नहीं है।" अजय सिंह गस्से में गरजते हुए बोला__"तुम लोगों के बस का कुछ नहीं है। इस लिए फौरन चले आओ वहाँ से।"

ये कह कर अजय सिंह ने मारे गुस्से के लैंड लाइन फोन के रिसीवर को केड्रिल पर लगभग पटक सा दिया था। उसके बाद ड्राइंगरूम के फर्स पर बिछे कीमती कालीन को रौंदते हुए आकर वह वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गया।

सामने के सोफे पर बैठी प्रतिमा क्रोध और गुस्से में उबलते अपने पति को एकटक देखती रही। इस वक्त कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई थी उसमे। जबकि अजय सिंह का चेहरा गुस्से में तमतमाया हुआ लाल सुर्ख पड़ गया था। कुछ पल शून्य में घूरते हुए वह लम्बी लम्बी साॅसें लेता रहा। उसके बाद उसने कोट की जेब से सिगारकेस निकाला और उससे एक सिगार निकाल कर होठों के बीच दबा कर उसे लाइटर से सुलगाया। दो चार लम्बे लम्बे कश लेने के बाद उसने उसके गाढ़े से धुएॅ को अपने नाक और मुह से निकाला।

"तुझे तो कुत्ते से भी बदतर मौत दूॅगा हरामज़ादे।" सहसा वह दाॅत पीसते हुए कह उठा__"बस एक बार मेरे हाँथ लग जा तू। उसके बाद देख कि क्या हस्र करता हूँ तेरा?"

"क्या बात है अजय?" प्रतिमा ने सहसा मौके की नज़ाक़त को देखकर पूछा__"फोन पर क्या बातें बताई तुम्हारे आदमियों ने?"

"सबके सब हरामज़ादे निकम्मे हैं।" अजय सिंह कुढ़ते हुए बोला__"आने दो सालों को एक लाइन से खड़ा करके गोली मारूॅगा मैं"

"अरे पर बात क्या हुई अजय?" प्रतिमा चौंकी थी__"तुम इतना गुस्से में क्यों पगलाए जा रहे हो?"
"तो क्या करूॅ मैं?" अजय सिंह जैसे बिफर ही पड़ा, बोला__"अपने आदमियों की एक और नाकामी की बात सुन कर क्या मैं कत्थक करने लग जाऊॅ?"

"एक और नाकामी???" प्रतिमा उछल सी पड़ी थी, बोली__"ये क्या कह रहे हो तुम?"
"हाँ प्रतिमा।" अजय सिंह बोला__"फोन पर मेरे आदमियों ने बताया कि अभय उन्हें गच्चा दे गया।"

"गच्चा दे गया??" प्रतिमा ने ना समझने वाले भाव से कहा__"इसका क्या मतलब हुआ?"
"मेरे आदमियों के अनुसार।" अजय सिंह ने कहा__"अभय उन्हें ट्रेन से उतरते हुए दिखा। उसके बाद वह किसी कुली को अपना बैग देकर उसके साथ स्टेशन के बाहर चला गया। बाहर आकर वह एक टैक्सी में बैठा और वहाँ से आगे बढ़ गया। मेरे आदमी भी उस टैक्सी के पीछे लग गए। लेकिन उसके बाद वो टैक्सी अचानक ही कहीं गायब हो गई। मेरे उन आदमियों ने उस टैक्सी को बहुत ढूॅढ़ा मगर कहीं उसका पता नहीं चल सका।"

"ये तो बड़ी ही अजीब बात है।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा__"कहीं ऐसा तो नहीं कि अभय को इस बात का शक़ हो गया हो कि कोई उसका पीछा कर रहा है और उसने टैक्सी वाले से कहा हो कि वह पीछा करने वालों को गच्चा दे दे।"

"हो सकता है।" अजय सिंह ने सोचने वाले भाव से कहा__"मेरे आदमी ने बताया कि अभय के पास जब कुली आया तो उनके बीच पता नहीं क्या बातें हुईं थी जिसकी वजह से अभय के चेहरे पर चौंकने वाले भाव उभरे थे। ऐसा लगा जैसे वह किसी बात पर चौका हो और वह उस कुली के साथ जाने के लिए तैयार न हुआ था। लेकिन फिर बाद में वह आसानी से अपना बैग कुली को दे दिया और चुपचाप उसके पीछे पीछे चल भी दिया था। चलते समय भी उसके चेहरे पर गहन सोच व उलझन के भाव थे।"

"हाँ तो इसमें इतना विचार करने की क्या बात है भला?" प्रतिमा ने कहा__"ऐसा तो होता ही है कि आम तौर पर कुलियों की बात पर यात्री लोग इतनी आसानी से आते नहीं हैं। दूसरी बात अभय की उस समय की मानसिक स्थित भी ऐसी नहीं रही होगी कि वह इस तरह किसी कुली के साथ कहीं चल दे।"

"हो सकता है कि तुम्हारी बात ठीक हो लेकिन।" अजय सिंह बोला__"लेकिन इसमें भी सोचने वाली बात तो है ही कि कुली ने ऐसा क्या कहा कि सुनकर अभय बुरी तरह चौंका था और फिर बाद में रहस्यमय तरीके से उस कुली के साथ चल दिया था? कहने का मतलब ये कि उसकी हर एक्टीविटी रहस्यमय लगी थी।"

"अगर ऐसा है भी तो इसमें हम क्या कर सकते हैं?" प्रतिमा ने कहा__"क्योंकि अभय नाम का पंछी तो आपके आदमियों की आँखों के सामने से गायब ही हो चुका है अब।"

"ये सब मेरे उन हरामज़ादे आदमियों की वजह से ही हुआ है प्रतिमा। खैर छोड़ो ये सब।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेकर कहा__"ये बताओ कि तुमने अपना काम कहाँ तक पहुॅचाया?"

"अ अपना काम??" प्रतिमा ने ना समझने वाले भाव से कहा__"कौन से काम की बात कर रहे हो तुम?"
"तुम अच्छी तरह जानती हो प्रतिमा कि मैं किस काम के बारे में पूछ रहा हूँ तुमसे?" अजय सिंह का लहजा सहसा पत्थर की तरह कठोर हो गया__"और अगर तुम इस काम में सीरियस नहीं हो तो बता दो मुझे। अपने तरीके से शिकार करना भली भाॅति आता है मुझे।"

"ओह तो तुम उस काम के बारे में पूछ रहे हो?" प्रतिमा को जैसे ख़याल आया__"यार तुम तो जानते हो कि ये करना इतना आसान नहीं है। भला मैं कैसे अपनी बेटी से ये कह सकूँगी कि बेटी अपने बाप के पास जा और उनके नीचे लेट जा। ताकि तेरे मदमस्त यौवन का तेरा बाप भोग कर सके।"

"अच्छी बात है प्रतिमा।" अजय सिंह ने ठंडे स्वर में कहा__"अब तुम कुछ नहीं करोगी। जो भी करुॅगा अब मैं ही करूॅगा।"
"न नहीं नहीं अजय।" प्रतिमा बुरी तरह घबरा गई, बोली__"तुम खुद से कुछ नहीं करोगे। मैं अतिसीघ्र ही अपनी बेटी को तुम्हारे नीचे सुलाने के लिए तैयार कर लूॅगी।"

"अब तुम्हारी इन बातों पर ज़रा भी यकीन नहीं है मुझे।" अजय ने कहा__"बहुत देख ली तुम्हारी कोशिशें। तुमने करुणा के बारे में भी यही कहा था और अब अपनी बेटी के लिए भी यही कह रही हो। तुम्हारी कोशिशों का क्या नतीजा निकलता है ये मैं देख चुका हूँ। इस लिए अब मैं खुद ये काम करूॅगा और तुम मुझे रोंकने की कोशिश नहीं करोगी।"

"पर अजय ये तुम ठीक...।" प्रतिमा का वाक्य बीच में ही रह गया।
"बस प्रतिमा, अब कुछ नहीं सुनना चाहता हूँ मैं।" अजय सिंह कह उठा__"अब तुम सिर्फ देखो और उसका मज़ा लो।"

प्रतिमा देखती रह गई अजय को। उसका दिल बुरी तरह घबराहट के कारण धड़कने लगा था। चेहरा अनायास ही किसी भय के कारण पीला पड़ गया था उसका। मन ही मन ईश्वर को याद कर उसने अपनी बेटी की सलामती की दुवा की।
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अभय को अपने साथ लिए गौरी ड्राइंग रूम में दाखिल हुई, उसके पीछे पीछे विराज और निधि भी थे। गौरी ने अभय को सोफे पर बैठाया और खुद भी उसी सोफे पर उसके पास बैठ गई। विराज और निधि सामने वाले सोफे पर एक साथ ही बैठ गये।

अभय सिंह का मन बहुत भारी था। उसका सिर अभी भी अपराध बोझ से झुका हुआ था। गौरी इस बात को बखूबी समझती थी, कदाचित इसी लिए उसने बड़े प्यार से अपने एक हाथ से अभय का चेहरा ठुड्डी से पकड़ कर अपनी तरफ किया।

"ये क्या है अभय?" फिर गौरी ने अधीरता से कहा__"इस तरह सिर झुका कर बैठने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम अपने दिलो दिमाग़ से ऐसे विचार निकाल दो जिसकी वजह से तुम्हें ऐसा लगता है कि तुमने कोई अपराध किया है। तुम्हारी जगह कोई दूसरा होता तो वह भी वही करता जो उन हालातों में तुमने किया। इस लिए मैं ये समझती ही नहीं कि तुमने कोई ग़लती की है या कोई अपराध किया है। इस लिए अपने मन से ये ख़याल निकाल दो अभय और अपने दिल का ये बोझ हल्का करो, जो बोझ अपराध बोझ बन कर तुम्हें शान्ति और सुकून नहीं दे पा रहा है।"

"भाभी आप तो महान हैं इस लिए इस सबसे आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।" अभय ने भारी स्वर में कहा__"किन्तु मैं आप जैसा महान नहीं हूँ और ना ही मेरा हृदय इतना विशाल है कि उसमें किसी तरह के दुख सहजता से जज़्ब हो सकें। मैं तो बहुत ही छोटी बुद्धि और विचारों वाला हूँ जिसे कोई भी ब्यक्ति जब चाहे और जैसे भी चाहे अपनी उॅगलियों पर नचा देता है। शायद इसी लिए तो....इसी लिए तो मैं समझ ही नहीं पाया कि कभी कभी जो दिखता है या जो सुनाई देता है वह सिरे से ग़लत भी हो सकता है।"

"ये तुम कैसी बातें कर रहे हो अभय?" गौरी ने दुखी भाव से कहा__"भगवान के लिए ऐसा कुछ मत कहो। अपने अंदर ऐसी ग्लानी मत पैदा करो और ना ही इन सबसे खुद को इस तरह दुखी करो।"

"मुझे कहने दीजिए भाभी।" अभय ने करुण भाव से कहा__"शायद ये सब कहने से मेरे अंदर की पीड़ा में कुछ इज़ाफा हो। आप तो मुझे सज़ा नहीं दे रही हैं तो कम से कम मैं खुद तो अपने आपको सज़ा और तकलीफ़ दे लूॅ। मुझे भी तो इसका एहसास होना चाहिए न भाभी कि जब हृदय को पीड़ा मिलती है तो कैसा लगता है? हमारे अपने जब अपनों को ही ऐसी तक़लीफ़ देते हैं तो उससे हमारी अंतर्आत्मा किस हद तक तड़पती है?"

"नहीं अभय नहीं।" गौरी ने रोते हुए अभय को एक बार फिर से खींच कर खुद से छुपका लिया, बोली__"ऐसी बातें मत करो। मैं नहीं सुन सकती तुम्हारी ये करुण बातें। मैंने तुम्हें अपने बेटे की तरह हमेशा स्नेह दिया है। भला, मैं अपने बेटे को कैसे इस तरह तड़पते हुए देख सकती हूँ? हर्गिज़ नहीं....।"

देवर भाभी का ये प्यार ये स्नेह ये अपनापन आज ढूॅढ़ने से भी शायद कहीं न मिले। विराज और निधि आँखों में नीर भरे उन्हें देखे जा रहे थे। कितनी ही देर तक गौरी अभय को खुद से छुपकाए रही। सचमुच इस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे अभय दो दो बच्चों का बाप नहीं बल्कि कोई छोटा सा अबोध बालक हो।

"राज।" सहसा गौरी ने विराज की तरफ देख कर कहा__"तुम अपने चाचा जी को उनके रूम में ले जाओ। लम्बे सफर की थकान बहुत होगी। नहा धो कर फ्रेस हो जाएॅगे तो मन हल्का हो जाएगा।"

"जी माॅ।" विराज तुरंत ही सोफे से उठ कर अभय के पास पहुॅच गया। गौरी के ज़ोर देने पर अभय को विराज के साथ कमरे में जाना ही पड़ा। जबकि अभय और विराज के जाने के बाद गौरी उठी और अपनी आँखों से बहते हुए आँसुओं को पोंछते हुए किचेन की तरफ बढ़ गई।
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