non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:13 PM,
#19
RE: non veg kahani एक नया संसार
ऐसे ही पन्द्रह बीस दिन गुज़र गए। विराज अब कुशलतापूर्वक कंपनी का सारा कारोबार सम्हालने लगा था। जगदीश ओबराय उसकी हर तरह से मदद भी कर रहा था। उसने एक ग्राण्ड पार्टी रखी जिसमें शहर के सभी बड़े बड़े लोग आमंत्रित थे। यहाॅ तक कि मंत्री मिनिस्टर तथा पुलिस महकमें के उच्च अधिकारी वगैरा सब। इस पार्टी को रखने का एक मकसद था और वो था विराज को प्रमोट करना। जगदीश ने स्टेज में जा कर तथा एनाउंसमेन्ट कर सबको बताया कि उसकी सारी मिल्कियत का अब से विराज ही अकेला वारिस तथा मालिक है। सब ये सुन कर हैरान भी थे और खुश भी। सभी बड़े बड़े लोगों से विराज को मिलवाया गया।

अब विराज कोई आम इंसान नहीं रह गया था बल्कि अब उसे सारा शहर जानता था। प्रेस और मीडिया वालों को कुछ सोचकर जगदीश ने पार्टी में आने नहीं दिया था। अब उसका सम्मान और रुतबा वैसा ही हो गया था जैसे खुद जगदीश ओबराय का था। गौरी व निधि इस सबसे बहुत खुश थी। उनके मन में जगदीश के प्रति बड़ा आदर और सम्मान हो गया था। अब ये सब जगदीश को पूरी तरह अपना मानने लगे थे। उन्होंने ये ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि ऐसा असंभव कार्य भी कभी होगा लेकिन सच्चाई अब उनके सामने थी। आज गौरी का बेटा हज़ारों करोड़ रूपये की सम्पत्ति का मालिक था। गौरी इस बात के लिए भगवान का लाख लाख शुक्रिया कर रही थी।

जगदीश ओबराय हार्ट का मरीज़ था। उसने अपने जीवन में एक ही झटके में अपनों को खोया था। उसके एक ही बेटा था, अमरीश ओबराय। अमरीश की नई नई शादी हुई थी और वो अपनी बीवी के साथ हनीमून के लिए इटली जा रहा था। किन्तु इटली जा रहा विमान क्रैस हो गया और एक ही झटके में विमान में बैठे सभी पैसेंजर मौत को प्राप्त हो गए थे। उस हादसे से जगदीश की मुकम्मल दुनिया ही तबाह हो गई थी। उसका अपना कोई नहीं बचा था। उसकी इतनी बड़ी दौलत और इतने बड़े कारोबार को सम्हालने वाला कोई नहीं बचा था। उसकी पत्नी तो पहले ही गुज़र गई थी जिससे वह बेहद प्यार करता था। इस सबसे जगदीश दिल का मरीज़ बन गया था, उसे दो बार दिल का दौरा पड़ चुका था जिसमें वह बड़ी मुश्किल से बचा था। वह रात दिन इसी सोच में मरा जा रहा था कि उसके बाद उसकी मिल्कियत का अब क्या होगा? उसके कम्पटीटर कहीं न कहीं इस बात से खुश थे और जो उसके घनिष्ठ मित्र थे वो जगदीश की इस हालत से दुखी थे। वह चाहता तो इस उमर में भी दूसरी शादी कर सकता था जिसके लिए उसके खास चाहने वाले मित्रों ने सुझाव भी दिया था। किन्तु जगदीश ने दूसरी शादी करने से साफ मना कर दिया था। उसका कहना था कि इस उमर में वह किसी से शादी नहीं करेगा, लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे कि उसने अपनी बेटी की उमर वाली लड़की शादी की।

अपनों के खोने का दुख और उसके द्वारा रात दिन सोचते रहने की वजह से वह दिल का मरीज़ बन गया था। इतने बड़े बॅगले में वह अकेला रहता था, ये अकेलापन उसे किसी सर्प की भाॅति रात दिन डसता रहता था। नौकर चाकर तो बहुत थे लेकिन जिनसे उसके मन को तथा आत्मा को सुकून व त्रप्ति मिलती वो उसके अपने नहीं थे। विराज के आने से उसे ऐसा लगा जैसा उसे उसका खोया हुआ बेटा अमरीश मिल गया था। उसने विराज के बारे में गुप्त रूप से सारी मालुमात की थी। विराज के अपनों ने उसके और उसकी माॅ बहन के साथ क्या अत्याचार किया ये उसको पता चला था। विराज का नेचर उसे बहुत अच्छा लगा। विराज एक होनहार तथा मेहनती लड़का था। जगदीश ने फैसला कर लिया था कि विराज ही अब उसका 'अपना' होगा। उसने विराज को अपने बॅगले में बुलवाया और तसल्ली से उससे बात की। उसने विराज से उसके बारे में सब बातें पूछी और खुद भी अपने मन की बात विराज को बताई कि वह क्या चाहता है। अपने बाॅस व मालिक की ये बातें सुन कर विराज चकित था, उसे यकीन ही नही हो रहा था कि कोई ऐसा भी कर सकता है।

विराज ने जगदीश की बातें सुनकर ये कहा कि उसे सोचने के लिए वक्त चाहिए। जगदीश ने उसे वक्त दिया और विराज वहा से चला आया था। उसने अकेले में इस बारे में बहुत सोचा। उसे जगदीश के प्रति ऐसा कुछ भी नहीं लगा कि इस सबके पीछे जगदीश का कोई गलत इरादा या मकसद हो। कंपनी में काम करने वाले सभी कर्मचारियों की तरह वह भी ये बात जानता था कि उसके मालिक जगदीश ओबराय निहायत ही एक सच्चे व नेकदिल इंसान हैं। उनकी नेकनीयती व नरमदिली का कंपनी के कुछ उच्च अधिकारी लोग गलत फायदा उठा रहे थे। जिनका उसने बड़ी सफाई से पर्दाफाश किया था। किसी को इस बात का पता तक न चला था। विराज ने पक्के सबूत इकट्ठा करके सीधा जगदीश ओबराय के सामने रख दिया था। जगदीश ओबराय विराज के इस कार्य और उसकी इस इमानदारी से बेहद प्रभावित हुए थे। उन्होंने विराज को अपनी सभी कंपनियों की गुप्तरूप से जाॅच पड़ताल का काम सौंप दिया किन्तु प्रत्यक्ष रूप में वह कंपनी का एक मैनेजर ही रहा।

जगदीश ओबराय के द्वारा सौंपे गए इस गुप्त कार्य को उसने बड़ी ही कुशलता तथा सफाई से अंजाम दिया। एक महीने के अंदर अंदर ही उन सबको तगड़े नोटिश के साथ कंपनी से तत्काल निकाल दिया गया। किसी को कुछ सोचने समझने का मौका तक नहीं मिला और न ही किसी को ये समझ आया कि ये अचानक उनके साथ क्या और कैसे हो गया? सबूत क्योंकि पक्के थे इस लिए उन सबको वो सब भारी हरजाने के साथ देना पड़ा जो उन सबने कंपनी से खाया था। एक झटके में ही सबके सब भीख माॅगने की हालत में आ गए थे। बात अगर इतनी ही बस होती तो भी ठीक था किन्तु उनके द्वारा किये गए इन कार्यों के लिए उन सबको जेल का दाना पानी भी मिलना नसीब हो गया था।
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